पावागढ़ दर्शन
आज हम लोग गुजरात दर्शन श्रृंखला के अंतिम पडाव पावागढ़ दर्शन के लिये चल दिये। पिछले दो हफ्तों से गुजरात की संस्कृति वहां का खान पान, पहनावा और विभिन्न पर्यटन व धार्मिक स्थलों को बहुत नजदीक से देखने का अवसर मिला। कुल मिलाकर ये सफर अविस्मरणीय रहा।
शाम 6 बजें डाकोर जी से चले। यहां से पावागढ़ की दूरी करीब 70 किमी है। रास्ते में चारों ओर हरियाली ने सफर को ओर खुशनुमा बना दिया था। हम लोग अपनी बातों में मशगूल थे। तभी सामने मैदान में बडी चहल पहल दिखाई दी। उत्सुकतावश रूक कर जानकारी निकाली तो पता चला कि यहां स्थानीय कालेज का वार्षिक महोत्सव है और बडे पैमाने पर गरबे का कार्यक्रम होने वाला है। जिज्ञासावश हम लोग भी कार्यक्रम देखने रूक गये।
करीब आधे धंटे इंतजार के बाद गरबा शुरू हुआ। बहुत सारे युवक युवतियां पारंम्परिक वेशभुषा में नजर आ रहे थे। सामने स्टेज पर कुछ गायक कलाकार और म्यूजिशियन थे। हर और उल्लास का वातावरण था।
जैसे ही स्टेज़ से संगीत की धुन और गरबे गाने की शुरू आत हुई मैदान में युवक युवतियां गरबा नृत्य करने लगे। एक साथ लयबद्ध सबको नृत्य करते देख बहुत अच्छा लग रहा था।
रात 11 बजे होटल पहुंचे। ठहरने के लिये हालोल में बहुत सारे बजट होटल तथा रेस्टोरेंट है।
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सुबह पावागढ़ दर्शन के लिये चल दिये। यह गुजरात के पंचमहल जिले में चांपानेर के निकट पहाड़ी पर स्थित है। हालोल से 13 किमी दूर 1471 फीट की ऊंचाई पर मांची हवेली तक वाहन जाते है। यहां पर एक बडा पार्किंग स्टैंड है।
मांची हवेली से उपर दक्षिण मुखी महाकालिका माता जी के मंदिर जाने के लिये दो विकल्प है।
- पैदल मार्ग
- रोपवे
बहुत से यात्री पैदल मार्ग चुनते है। पहाड़ी क्षेत्र का पैदल मार्ग बहुत अच्छा लगता है। पुरे मार्ग में जगह जगह छोटी छोटी दुकानें और आवाजाही सफर को मनोरंजक बना देती है। किन्तु समय और पैदल चलने की हिम्मत दोनों होना चाहिये। दुसरा विकल्प रोपवे है। हमने भी दुसरा विकल्प ही चुना।
रोप-वे के टिकिट काउंटर से हमने रिटर्न का टिकिट ले गार्डन में अपनी बारी का इंतजार करने लगे। जल्द ही हमारा नंबर आ गया। ट्राली से नीचे का नजारा बहुत सुंदर लग रहा था। उपर से पैदल मार्ग भी दिखाई दे रहा था।
ट्राली से उतर कर हम लोग मंदिर की ओर चल दिये।रास्ते में छोटा सा बाजार क्षेत्र है।यहां पर पुजा सामग्री व खानपान की दुकानें है। चलिये चलते चलते थोडा सा यहां का इतिहास और कथा की चर्चा कर लेते है।
इतिहास
पावागढ़ यानि पवन का स्थान ,बहुत समय पहले इस दुर्गम पहाड़ी पर चढ़ना लगभग असंभव था। चारों ओर गहरी खाईयां और सीधी पहाड़ी। यहां पर हवा का दबाव भी अधिकतम था। अतः कहा जाता था पवन देव का गढ़ यानि पावागढ़।
इस स्थान को चांपानेर के राजा वनराज चावडा़ ने अपने बुद्धिमान मंत्री के नाम पर बसाया था। यह करीब 800 मीटर की ऊंचाई पर बसा है।
कथा
यह स्थान 51 शक्तिपीठों मे से एक है। पौराणिक कथानुसार सती माता अपने पिता राजा दक्ष के यहां होने वाले यज्ञ में बिना बुलावे के ही चली गई थी। वहां पर उनका व शिव जी का घोर अपमान हुआ। इससे आहत हो माता ने योग बल से यज्ञ कुंड में प्रवेश कर अपने जीवन की आहुति दे दी। भगवान शिव ने सती माता के मृत शरीर को उठाकर उग्र तांडव करते हुऐ ब्रह्मांड में यहां वहां घूमने लगे। जिससे धरती का संतुलन गडबडाने गया। प्रलय की आशंका से विष्णु भगवान ने सुदर्शन चक्र से सती माता के अंग काट दिये। इस तरह जहां जहां अंग गिरे वह स्थान शक्ति पीठ कहलाया।
पावागढ़ में भी सती माता के दांये पैर की अंगुली गिरी थी। यह स्थान शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध हुआ। यहां की दुसरी विशेषता महाकाली देवी का दक्षिणेश्वर मुख होना। इस तरह के मंदिरों में तांत्रिक पुजा का विशेष महत्व होता है।
कहा जाता है कि विश्वामित्र जी ने महाकाली को कठोर तपस्या कर प्रसन्न किया था। रामचंद्र जी के समय में यह मंदिर अस्तित्व में था।
हम लोग चर्चा करते करते मंदिर की सीढियों तक पहुंच गये थे। अब यहां से करीब 250 सीढियां चढकर महाकाली मंदिर में प्रवेश होगा।
सीढ़ियां चढते वक्त थकान लगने पर साईड में बने स्थान पर कुछ देर रूककर फिर से चढने लगते । अंततः मंदिर पहुंचने मे सफल हो ही गये। यहां भी लाईन बहुत लंबी लगी थी। धीरे धीरे आगे बढते रहे। माता के मंदिर में पहुंचकर दर्शन किये। बहुत ही सुंदर मुर्ति है। पास ही सीढियों से मंदिर के उपर गूंबद की ओर चल दिये। उपर का नजारा बहुत ही मनमोहक था। दुर तक हरियाली और छोटी बडी पहाडीयों की श्रृंखलाऐं नजर आ रही थी।
पावागढ़ जाने का मार्ग
हवाई मार्ग :- अहमदाबाद एयर पोर्ट से 170 किमी पर
बडौदा एयर पोर्ट से 55 किमी
रेल मार्ग ;- बडौदा रेलवे स्टेशन
सडक मार्ग :- गोधरा - 51 किमी
बडौदा - 55किमी
अहमदाबाद - 160 किमी
इन्दौर - 314 किमी
उपरोक्त स्थान से बस सेवा , लक्जरी कार व ट्रेवल्स सेवा भी उपलब्ध हो जाती है।
चारों ओर से सडक मार्ग से जुडा हुआ है।
आज हमारी गुजरात दर्शन यात्रा यहां पुर्ण हुई। माता जी के स्थान अंबा जी से शुरू हुई ये यात्रा पावागढ़ माता जी के यहां सम्पूर्ण हुई।
माता का प्रसिद्ध गरबा
पंखिडा...तू उड़ी ने जजे पावागढ़ रे.............
नवरात्री में माता के दर्शन और उपासना के चलते बहुत भीड रहती है। कई लोग दूर दूर से नवरात्री पूर्व पैदल यात्रा करके माता की ज्योत लेने आते है। सभी अपनी अपनी आस्थानुरूप माता की अराधना करते है। अगला सफर खाटूश्यामजी khatushyamji में मिलते हैं।
जय माता दी
जय श्रीकृष्ण