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Khatu shyamji ( खाटू श्याम जी) 

khatu shyam ji
खाटू श्याम जी

प्रतिवर्ष अनुसार इस बार भी सांवलिया सेठ के दर्शन करने मंडफिया गये थे। रात वहीं रुके। अगले दिन सुबह दर्शन करके वापस पार्किंग की ओर जा रहे थे।तभी सामने होटल में गर्मा गर्म नाश्ता पोहे कचोरी बनते देख कर रुक गये। हल्की हल्की ठंड होने से गुंन गुंनी धूप अच्छी लग रही थी। सो हम लोग होटल में बाहर कुर्सियों पर ही बैठे गये और नाश्ते का आर्डर  दे अगली यात्रा की चर्चा करने लगे।

 नाश्ता करने के बाद  वत्सल ने  कहा नाना जी क्यों न खाटू श्याम जी चला जाय। 

सभी की सहमति बनी और खाटू श्याम जी की ओर चल दिये। रास्ते में गूगल मैप की मदद से पता चला करीब 390 किमी  है।  

वत्सल ने अगली फर्माइश कर दी कि नाना जी , खाटू श्याम जी की कहानी सुनाओं। चलिये हम आपको भी प्रचलित कथा के बारे में बतातें है।  

खाटू श्याम जी की कथा -

  यह कहानी धटोत्कच और दैत्य राज मूर की पुत्री मोरवी के पुत्र तथा भीम के पौत्र बर्बरीक की है। बचपन में ही कठोर तपस्या कर भगवान शिव और मां आदिशक्ति को प्रसन्न कर आशिर्वाद स्वरुप दो वर प्राप्त किये थे।

1. प्रभु दर्शन

2. निर्बल और असहाय लौगो की रक्षार्थ       शक्ति

तब भगवान शिव और आदि शक्ति मां  ने दर्शन देकर तीन बाण प्रदान किये। और उन तीनों कि विशेषता बताई।

1. पहला बाण युध्द भूमि में जिनका वध करना चाहोगे उन सब पर मृत्यु चिन्ह अंकित कर देगा।

2. दुसरा बाण सभी चिन्हितों का वध कर देगा।

3. तीसरा बाण समस्त संसार का विनाश कर देगा और वापस तुणीर में आ जायेगा।

किन्तु ये सब मानवता की भलाई के लिये ही उपयोग करना। साथ ही कमजोर और हारने वाले की सहायता करना।

तीनों बाणों की शक्ति और अग्निदेव द्वारा प्रदान धनुष के कारण  बर्बरिक बहुत शक्ति सम्पन्न हो गये थे। 

महाभारत युद्ध के समय बर्बरिक को भी उसमें हिस्सा लेने कि इच्छा हुई और वह मां से युद्ध में भाग लेने के लिये अनुमति लेने गये। मां ने आशिर्वाद देकर एक वचन लिया कि युद्ध में सभी तुम्हारे रिश्तेदार है किन्तु जो हार रहा हो तुम हारने वाले का साथ देना। तभी से इनका एक नाम 

हारे का सहारा " पडा। 

बर्बरिक अपने नीले धोडे पर सवार हो युध्द भूमि की ओर चल दिये। रास्ते में इनकी मुलाकात ब्राह्मण वेशधारी श्री कृष्ण जी से हुई। चर्चा में बर्बरिक ने अपना परिचय देकर कहा युद्ध में भाग लेने जा रहा हूं। तब ब्राह्मण वेशधारी श्री कृष्ण जी ने उपहास उडाते हुऐ कहा बिना अस्त्र शस्त्र और सेना के युद्ध कैसे लडोगे। इस पर बर्बरिक ने भगवान शिव और मां आदिशक्ति से प्राप्त तीन बांणों के बारे में बताया और कहा कि कुछ ही पलों में युद्ध समाप्त कर सकता हूं।तब श्री कृष्ण जी ने बाणों की सत्यता को प्रमाणित करने के लिये कहा।

परिक्षा -(examination)

बर्बरिक ने सामने पीपल के वृक्ष को निशाने पर रख कर कहा इसके सभी पत्ते मेरे निशाने पर है। वह बांण प्रत्यंचा पर चढा कर प्रार्थना करने लगा। तभी श्री कृष्ण जी ने एक पत्ता चुपके से अपने पैर के नीचे छिपा लिया। जैसे ही बर्बरिक ने बांण छोडा वृक्ष के सभी पत्तों पर क्षणभर में चिन्ह अंकित हो गये और बांण श्री कृष्ण जी के पैरों के चक्कर लगाने लगा। अब बर्बरिक ने श्री कृष्ण जी से प्रार्थना कर कहा आप अपना पैर हटा लें अन्यथा यह आपके पैरो को क्षति पहूंचा देगा।

 श्री कृष्ण जी यह सब देख सोचने लगे कि कौरवों की हार तो निश्चित है और मां के वचनों में बंधा बर्बरिक इसे एक क्षण में  जीत में बदल देगा।।  इससे इस धर्म युद्ध में अधर्म की जीत हो जायेगी।

उस समय श्री कृष्ण जी ने बर्बरिक से विश्राम के लिये साथ चलने को कहा। किन्तु प्रण अनुसार बर्बरिक ने वहीं रुकने का निवेदन किया।अगले दिन श्री कृष्ण जी और अर्जुन बर्बरिक से मिले और कहा वत्स आज शुक्ल फाल्गुनी द्वादशी है। कल से युद्ध आरंभ हो जायेगा किन्तु इसके पूर्व रंणचंडी काली एक महाबलशाली यौद्धा की बली मांग रही है। और हम तीनों के अलावा इस योग्य कोई नहीं।  

अर्जुन ने अपने आप को प्रस्तुत किया। इस पर श्री कृष्ण जी ने कहा यह संभव नहीं । इस धर्म युद्ध में सभी पाडंवों का जीवित रहना आवश्यक है। तब श्री कृष्ण जी कहने लगे मैं ही अपनी बली देता हूं।  

बर्बरिक श्री कृष्ण को गुरु कहते थे। अतः उन्होने कहा शिष्य के रहते यह संभव नहीं। मैं अपना शीश देता हूं कहकर एक ही क्षण में तलवार से अपना शीश काटकर श्री कृष्ण जी के हाथों में दे दिया। यहां ये   शीश दानी॥ के नाम से विख्यात हुऐ। 

यह सब देख सभी पांडव विलाप करने लगे और श्री कृष्ण जी को इसका दोषी मानने लगे। 

उसी समय आदिशक्ति ने प्रगट हो आकाशवाणी द्वारा बर्बरिक के पूर्व जन्म में ब्रह्मदेव से धमंड कर शापित होने की बात बतायी और निवार्णार्थ जब पृथ्वी पर धर्म युद्ध होगा उसी समय इन्हे श्री कृष्ण द्वारा मोक्ष प्राप्त होगा। वे ही इनकी मृत्यु का कारण बनेगें। इसमें इनका कोई दोष नहीं।यह सुन सभी पांडव लज्जित हो क्षमा मांगने लगे।

श्री कृष्ण जी ने मां आदिशक्ति से वर मांगा और कहा कि हे देवी यह शीश एक भक्त का है। जिसने धर्म की रक्षार्थ निस्वार्थ भाव से दान किया है। इसे अमृत से सींच  कर अमर कर दो। तब मां आदिशक्ति ने तथास्तु कह शीश को पूर्नजीवित कर दिया । श्री कृष्ण जी ने बर्बरिक को किर्तीमान भवः का आशिर्वाद दिया और अपनी सभी शक्तियां प्रदान कर नया नाम  श्याम दिया। साथ ही उनकी इच्छा पुछी।

बर्बरिक ने अपनी दो इच्छा जाहिर करी

1. मेरी देह को आप ही अग्नि दें।

2. मैं महाभारत का युद्ध देखना चाहता हूं।

दोनों इच्छाओं को स्वीकार कर उनके शीश को कुरुक्षेत्र के पास एक पहाडी पर  सम्मान पूर्वक स्थापित किया।

 महाभारत का युद्ध हुआ और परिणामस्वरुप पांडव जीते किंतु जीत के श्रेय के लिये आपस में विवाद होने लगा। तब सभी श्री कृष्ण जी के पास गये। 

श्री कृष्ण जी ने कहा कि इस युद्ध का एक साक्षी है। जिन्होने सम्पूर्ण युद्ध देखा है। वहीं बता सकते है। व उचित निर्णय दे सकते है। सभी बर्बरिक के शीश के पास जाकर यह जानना चाहा कि इस विजय श्री का असली हकदार कौन है। बर्बरिक ने सभी पांडवो की गलतीयां बताई। उन्होनें कहा धर्मराज युधिष्ठिर ने असत्य का सहारा ले द्रोणाचार्य का वध किया। दादा श्री भीम ने गदा नियमों का उलंधन कर दुर्योधन को मृत्यु के धाट उतारा और गांडीवधारी अर्जुन ने पहले तो युद्ध पूर्व ही धनुष बांण रख दिये थे। फिर शीखंडी का सहारा ले पितामह भीष्म को सर शय्या पर लेटा दिया और दादा कर्ण से बचने के लिये पिता धटोत्कच की आहुती दे दी। इस युद्ध के महानायक तो श्री कृष्ण और उनका सुदर्शन चक्र ही थे। यत्र तत्र सर्वत्र श्री कृष्ण ही दिखाई दे रहे थे। यह सुन सभी पांडवों ने क्षमा मांगी। 

श्री कृष्ण ने बर्बरिक को आषिश दे कहा कलयुग में तुम मेरे नाम से ही पुजित होवोगे। 

खाटू श्याम का प्रगटीकरण

खटवांग राजा बडा धर्म परायण और मानव सेवी था। उसके यहां एक बहुत बडी गौ शाला थी। प्रतिदिन सेवक लौग गायों को चराने पास के ग्राम खाटू ले जाते थे। जहां अकसर गायें झुंड में ही विचरण करती थी। किन्तु उन्में से राधा नाम की गाय सबसे अलग दूर एक पहाडी स्थान पर जाती थी। और अपना सारा दुध उस स्थान पर स्वतःही चढा कर वापस आ जाती थी। एक रोज सेवक ने अलग जाते हुऐ और दुध चढाते हुऐ देख लिया। अब सेवक उस पर नजर रख कर कुछ दिन यह सब देखता रहा। जब उसे विश्वास हो गया तो सारी धटना की जानकारी गौ शाला प्रधान को दी। उन्होनें भी हकिकत देख राजा को सारी धटना कि जानकारी दी। आश्चर्य होने से राजा स्वंयम आये और यकिन होने पर पास ही हनुमान मंदिर में पुजा अर्चना करवा कर उस स्थान की खुदाई करवायी।  खुदाई वाले स्थान जिसे आज श्याम कुंड के नाम से जानते है। वहां से  श्याम बाबा का शीश शालीग्राम विग्रह रुप में मिला था। आज उसी शालीग्राम विग्रह की पूजा अर्चना की जाती है। खाटू श्याम जी का मंदिर 1027 ई. में रुपसिंह चौहान और उनकी पत्नि नर्मदा कवंर ने बनवाया था। शीश रुपी विग्रह को कार्तिक मास की एकादशी को मंदिर में स्थापित किया था। कालांतर में मारवाड के दीवान अभय सिंह जी ने 1720 ई. में मंदिर का जीर्णोध्दार करवाया था। यहां पर प्रतिवर्ष फाल्गुन माह में मेले का आयोजन होता है। 

कहते है सच्चे मन से श्याम बाबा को याद करो तो अवश्य ही कृपा होती हे।

जय श्याम बाबा की। 

रास्ते में अत्यधिक डायवर्शन के कारण देर होने से सीधे जयपुर ही पहूंचे। रात जयपुर में ही रुके। अगली सुबह जल्दी ही खाटू श्याम जी के लिये चल दिये। यहां से मात्र 70 किमी है और रोड भी बहुत अच्छी होने से हम लोग 9.00 बजे पहूंच गये। 

Khatu Shyam ji
श्री खाटू श्याम जी                                                                          

दर्शनों के लिये आन लाईन रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है।

हम से एक बडी गलती हो गई थी। बिना रजिस्ट्रेशन के ही पहूंच गये थे। इसलिये श्याम बाबा के दर्शनों से वंचित रहे। कोरोना काल होने से सभी जगहों पर रजिस्ट्रेशन अनिवार्य  है। आप भी यदि दर्शनों के लिये जा रहे है तो वेब साईट पर एक नजर अवश्य डाल लें।  

 यहां रुकने के लिये बहुत सी धर्मशालाऐं और हर श्रेणी की होटलें हैं।

भोजन के लिये भी होटल , रेस्टोरेंट है।

खाटू श्याम जी कैसे पहूंचने -

रेल मार्ग -

1.यदि आप ट्रेन से जा रहे है। तो जयपुर से रींगस के लिये ट्रेन बदलनी होगी। रींगस से 16 किमी सडक मार्ग की यात्रा बस अथवा टेक्सी से करनी होती है।

2. सडक मार्ग  

 जयपुर से 80 किमी  बस ,टेक्सी सुविधा उपलब्ध है।

अजमेर से 175 किमी  बस अथवा टेक्सी सुविधा उपलब्ध है।

निकटतम् हवाई अड्डा -

3. सबसे निकट का एयरपोर्ट जयपुर है। 

सभी को भुख लग रही थी। सो पहले पेट पूजा फिर काम दूजा। निकट की एक होटल में भोजन कर सालासर हनुमान जी के दर्शनों के लिये चल दिये। आप सबसे अब वहीं मुलाकात होगी।

                                                                                जय श्री कृष्ण

                               


                        



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