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गिर , गिरनार और जूनागढ़

        

  गिर,गिरनार और जूनागढ़ 



जब तक सब तैयार होते मैं गाडी लेकर सबसे पहले टायर दुकान गया । पंचर स्टेपनी बनने को दी। वापस होटल आकर शहर के बारे में कुछ जरूरी जानकारी ली जिससे समय बर्बाद न हो। हम अपने सफर की शुरूआत यहां के संक्षिप्त इतिहास से करेगें।



एशियन शेर



इतिहास  

इतिहासकारों के अनुसार जूनागढ़ का निर्माण 9 वीं में शताब्दी में हुआ था। तत्कालीन रियासत पर चूड़ासमा राजपुतों का अधिकार था। अलग अलग कालखंड में कई शासकों का अधिकार रहा।
मौर्य शासक अशोक 260-238  ई.पू.
रूद्रामन                         150  ई.पू.
स्कन्दगुप्त               455-467   ई
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1472 में गुजरात के महमूद बेगढा़ ने कब्जा करके इसका नाम मुस्तफाबाद रख दिया था। उस समय की एक मस्जिद खंडहर अवस्था में है।
100-700 ई. के मध्य बौद्ध काल में कई मंदिर , स्तुप और गुफाओं का निर्माण हुआ था।

जूनागढ़ रियासत का भारत में विलय   

विभाजन के पूर्व यहां का नवाब महाबत खान था। नवाब साहब को अपने अधिकार पाकिस्तान में ज्यादा सुरक्षित लगें सो उन्होने रियासत को पाकिस्तान मे शामिल करने का षडयंत्र रचा मगर यहां कि 80% हिंन्दु जनता को यह मंजूर नहीं था। 20 फरवरी 1948 को जनमत संग्रह में पाकिस्तान के पक्ष में 10% से भी कम वोट पड़े। नतीजों के पहले ही नवाब साहब अपनी कुछ बेगमों के साथ पाकिस्तान भाग गये।  आदरणीय सरदार पटेल जी की अगुआई में विधिवत यह रियासत भारत का अभिन्न अंग बन गई।
जूनागढ़ मुख्य रूप से दो भागों में विभक्त है। पहला मुख्य शहर के चारों ओर दीवार से धिरा किलेनूमा और भाग और दुसरा प्राचीन दुर्ग जिसे उपर कोट कहते है।

जूनागढ़ के पर्यटन स्थल 


 उपर कोट किला  

यह किला चंद्रगुप्त मौर्य के समय में बना था। इसका तोरण द्वार हिंन्दु संस्कृति की स्थापत्य कला का उत्कृष्ठ नमूना है। इस किले की खोज और जीर्णोद्धार चूड़ास्मा राजा ग्रिहारिपु  ने करवायी। राजा को पिछली कोई जानकारी नहीं मिलने से इसका नाम जूनागढ़ रख दिया था। आस पास का जंगल साफ करवा कर कई इमारतों का निर्माण करवाया और इसे अपनी  राजधानी बनाई ।
किले में प्रवेश करने पर एक तरफ गणेश जी व दुसरी तरफ हनुमान जी का मंदिर है।  किले की दीवारें करीब 70 फिट ऊंची है। आगे जाने पर किले की रक्षा के लिये दो तोपें लगी हुई है। जिनका नाम नीलम और कांडल है।  एक राज सिंहासन भी बना हुआ है। अंदर रानी रणक देवी का महल है। इस महल से एक सुरंग गिरनार तक जाती है। रानी गिरनार जी की परम भक्त थी।

मुस्लिम शासक मोहम्मद बेगडा़ ने महल को  तोडकर मस्जिद में परिवर्तित कर दिया था।

अडी कडी की वाव

  किले की जल आपूर्ति के लिये यहां दो वाव यानि बावडीनूमा कुऐ  बनवाये थे। इनमे से एक की लंबाई करीब 300 फिट और गहराई 150 फिट की है। कुएं में नीचे जाने तक 120 सीढियां है। इसकी विशेषता चट्टानों को उपर से तराशते हुऐ नीचे तक गये है।

अडी कडी नाम की दो कुंवारी कन्याओं से संबंधित कई दन्त कथाएं है। एक कथानुसार उन दोनों की निर्माण के पूर्व बलि देना बताया है । वहीं दुसरी कथा में ये दोनों बहनें महल के लिये इस वाव से पानी भरती थी। सच क्या है। मगर इस वाव का नाम पडा इन दोनों बहनों के नाम पर ही।

नवध रथ रंन कुवां 

राजा नवघन ने इस कुएं का निर्माण करवाया था। 156 फीट गहरे  कुएं को काले पत्थर की चट्टानों को उपर से तराशते हुऐ नीचे तल तक ले जाया गया है। उसमें हर उस चीज का ध्यान रखा गया है जिसकी जरूरत होती है। कल्पना और मेहनत का सबसे बेहतरीन नमूना है। तत्कालीन समय पर इन दोनो जल संरचनाओं से किले की जल आपूर्ति की जाती थी।

दामोदर कुंड

यहां एक तालाब भी बना हुआ है। जिसके चारों ओर घाट बने है। तालाब के किनारे दामोदर राय जी का मंदिर बना हुआ है। 

तालाब देखकर नहाने का मन हो गया। ठंडे ठंडे पानी में नहाना बडा अच्छा लग रहा था।

  • इसके अलावा बौद्ध गुफाऐं , फिल्टर प्लांट  व मृत्युद्वार जहां से मृत्युदंड प्राप्त कैदी को उपर से बाहर फेंक दिया जाता था।
जूनागढ में स्वामीनारायण मंदिर ,अंबा माता मंदिर ,नरसिंह मेहता का चबूतरा ,अशोक के शिलालेख,उपला विन्ध्येश्वरी मां मंदिर,साईंस म्युझियम,बापा प्यारे गुफा ,सक्करबाग ज्युलोझिकल गार्डन , जैक म्युझियम और महाबत खां मकबरा देखने योग्य जगह है।


उपर कोट किले से घुमकर आने के बाद  भोजन का समय भी हो रहा था। पास ही एक रेस्टोरेंट मे सादी गुजराती थाली का आनंद लेकर फिर अन्य दर्शनीय स्थलों की ओर चल दिये। नई जगह नये लोगों से मिलना बहुत ही अच्छा लगता है। 

शाम को होटल में रूके , अगले दिन गिरनार पर्वत पर जाने का कार्यक्रम था। गिरनार जी की चढाई और वापस आने में एक पुरा दिन लग जाता है। 

गिरनार पर्वत


 सुबह जल्दी हम दोनों ही तैयार हुऐ क्योंकि पापा मम्मी का पर्वत पर चढ़ाना संभव नहीं था। 
पर्वत पर जाने के लिये हमने साथ में पानी की बोतल कुछ जरूरी दवाईयां और एक एक लकड़ी सहारे के लिये साथ ले ली थी।

गिरनार पर्वत की ऊंचाई 3500 है। यहां करीब 10 हजार पेढियां के साथ सम्पूर्ण रास्ते में पत्थर की सीढियां है। एक तरफ पहाड़ी और दुसरी तरफ खाई के साथ पत्थर से निर्मित सुरक्षा दीवार है।

भवनाथ के दर्शन कर भगवान शिव से अनुमति ली।

गिरनार पर्वत पर जाने के लिये एक तोरण द्वार से होकर गुजरना होता है। हनुमान मंदिर से  सीढि़यों का क्रम शुूरू हो जाता है। इन सीढियों के दोनो और छोटी छोटी दुकानें व मंदिर है। ज्यादातर यात्री सुबह जल्दी जाने की कोशिश करते है जिससे ठंडे समय और सुबह की ऊर्जा
से चढने में दिक्कत न हो। पर्वत पर हिंन्दु और जैन धर्मावलंबियों के प्रमुख धर्मस्थल होने से चहल-पहल बनी हुई थी।
कोई पैदल जा रहा था तो किसी ने पालकी की सवारी कर रखी थी।रास्ते में हमारी पहचान एक महाराष्ट्रीयन परिवार से हो गई । चढते चढते बातों का सिलसिला चलता रहा। कुछ दूर चढने के बाद एक जगह व्यूह पाईंट से देखा तो पुरा जूनागढ़ दिख रहा था। उपर से मकान बहुत छोटे छोटे दिखाई दे रहे थे। लग रहा था मानो छोटे खिलौने सजाकर रख दिये हो। करीब 2100 सीढ़ियां चढने के बाद भव्य नेमिनाथ जैन मंदिर दिखाई देने लगा था। मंदिर की उत्कृष्ठ बनावट और वास्तुकला देखने योग्य थी।
अभी कुछ दूर चले थे कि हल्की बारिश होने लगी। एक खंडहर नुमा जगह में शरण ली। थोडी देर बाद मौसम खुशनुमा हो गया था। पेड़ों पर पक्षियों की चहचहाहट मानो मौसम का धन्यवाद और यात्रियों का स्वागत कर रही हो।





वन्य पक्षी



सामने नेमिनाथ जी का भव्य जैन मंदिर दिखाई दे रहा था। इस स्थान पर नेमिनाथ तीर्थंकर ने तपस्या कर मोक्ष को प्राप्त किया था। जन श्रुतिनुसार भगवान नेमिनाथ को विवाह में बलि देने के लिये लाये गये पशुओं को देख विरक्ति हो गई थी। तब यहां आकर तपस्या करी और निर्वाण को प्राप्त हुऐ।
कुछ देर विश्राम करके आगे चल दिये। करीब आधा रास्ता तय करने के बाद मां अंबा के मंदिर में प्रवेश किया। यहां तीन जल कुंड गौ मुख ,हनुमान धारा और कमंडल है। जल से अपने को शुद्ध करके मां के मंदिर में दर्शन किये। यहां पर विश्राम कर फिर आगे की यात्रा शुरू कर दी। मगर अब यात्रा थोडी कढिन होती जा रही थी। सीधी चढाई और दोनो तरफ सुरक्षा दीवार थी मगर हवा का दबाव बेहद तीव्र होने से संभल कर चलना पड रहा था। जरा सी चूक होने पर अनहोनी हो सकती थी। थोडी दूर के बाद पुनः दोनो तरफ पहाड़ियां आने से राहत महसूस करी।

नीचे देखने पर लग रहा था मानो हम बादलों के बीच में हो। धुंध ही धुंध थी। रास्ता कठिन था मगर रोमांच से भरपुर और अतः हमने दत्तात्रय मंदिर में प्रवेश कर लिया। वहां पर दत्तात्रय भगवान की चरण पादुका के दर्शन किये। मंदिर से बाहर देखने पर लगा हम कितनी ऊंचाई पर आ गये है। यदि कभी मौका मिले तो एक बार अवश्य जाना चाहिये।

अन्य मंदिरों में प्रमुख  गोरखनाथ और कालका चोटी प्रमुख है।

अब बारी वापसी की थी। रूकते चलते नीचे की ओर चल दिये। रास्ते में प्रकृति के मन मोहक नजारों के साथ तलहटी के जंगल क्षेत्र का भी आनंद लिया।
शाम को वापस होटल पहुंचने तक बहुत थक चुके थे।

गिर वन्य अभ्यारण्य 



एशियाई शेर


यह वन सौ वर्ष पुराना है। रियासत काल में यहां के नवाब ने घटती हुई शेरों की संख्या के कारण शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया था और वन्य क्षेत्र को आरक्षित कर दिया था। स्वतंत्रता के बाद इसे गिर नेशनल पार्क का दर्जा देकर करीब 1425 वर्ग किमी मे विकसित किया। आज यहां शेरों की संख्या में बहुत वृद्धि हुई है। पिछली गणनानुसार करीब 523 शेर थे। इनके अलावा हिरण , बारहसिंगा, सियार , लकड़बध्धा और बहुत से वन्य जीव है। ये सब मुक्त जंगल में विचरण करते है। गिर नेशनल पार्क घूमने के लिये आन लाईन बुकिंग करवानी पड़ती है। दो तरह की सुविधा उपलब्ध है। एक बस से तथा दुसरी जंगल सफारी विशेष प्रकार की खुली जिप्सी से , यहां टूरिस्ट बगलों भी है। जो जंगल में रहने का सुखद अनुभव कराते है। यह जंगल सफारी करीब तीन धंटे की होती है।
सफारी के लिये केवल आन लाईन बुकिंग की व्यवस्था ही है।
सफारी का समय
6.15 से 9.00     बजे
8.00 से 11.00   बजे
15.00 से 18.00 बजे

गिर वन में  देख ने योग्य बाणेज गंगा मंदिर ,जहां पर अर्जुन ने अज्ञातवास में मां कुंती को प्यास लगने पर बाण से जलधारा प्रगट की थी। यह स्थान एकांत में धने जंगल में है। 

कनकी माता मंदिर और जंजीर वाला वाटर फाल 


जूनागढ़ पहुंचने के लिये राजकोट ,अहमदाबाद,बडौदा से बस सेवाऐं उपलब्ध है। यह स्थान वायु मार्ग से भी जुडे है। पर्यटक बसों व कार भी उपलब्ध हो जाती 


जूनागढ़ में तीन दिन की सैर करके अपने अगले पड़ाव चंद्रदेव के संकट मोचक सोमनाथ महादेव जोकि एक ज्योतिर्लिंग भी है। सुबह सोमनाथ  की ओर चल दिये। 

                                                                   

                                                               " जय श्री कृष्णा 






पोरबंदर के पर्यटन स्थल


जय गणेश जी

             आज हम गुजरात की ऐतिहासिक और पुरातन भूमि पोरबंदर में है। यह महाभारत काल से भी पहले से अस्तित्व में है। 


पोरबंदर के पर्यटन स्थल
सुदामा मंदिर, पोरबंदर 

श्री कृष्ण के सखा सुदामा जी की जन्म भूमि जिसे सुदामा पुरी नाम से भी पहचान मिली थी। पौराणिक कथानुसार श्री कृष्ण के सखा सुदामा अत्यंत गरीब थे। बडी मुश्किल से गुजर बसर हो पाती थी। एक बार उनकी पत्नि ने उन्हे अपने सखा श्री कृष्ण से मिल कर कुछ जीवनयापन के लिये सहायता मांगने के लिये कहा किन्तु मित्र से मुलाकात करने पर भेंट देने के लिये कुछ नहीं था।तब तीन मुठ्ठी चावल का प्रबंध कर मिलने गये। श्री कृष्ण जी ने सुदामा जी से बडे प्रेम से मिले और बडी आवभगत की।  भेंट मे मिले चावल को ग्रहण कर मित्र सुदामा को अथाह धन दौलत दी। यह बात सुदामा जी को नही मालूम थी। जब अपने घर वापस आये तो झोपड़े की जगह महल बना मिला।   

इतिहास                                                 
        
  पोरबंदर गुजरात के दक्षिणी छोर पर समुद्र किनारे बसा हुआ है। कहा जाता है यह महाभारत काल में अस्मावतीपुर और 10 वीं शताब्दी में पौरावेलापुर तथा बाद में सुदामापुरी के नाम से विख्यात हुआ था।आज इसे पोरबंदर नाम से जानते है।  दुसरी बडी पहचान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को यही पर हुआ था। गांधी जी की प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर में हुई।                                   
 पोरबंदर बंदरगाह के रूप में भी पहचान  जाता है ।                                                 

पोरबंदर के पर्यटन स्थल                                      

सुदामा मंदिर                                          
      1902/1907 में जेठवा राजवंश ने शहर के मध्य स्थित इस मंदिर का निर्माण करवाया था। विशेष रूप से श्री कृष्ण सुदामा की मित्रता और श्री कृष्ण के सिंहासन पर सुदामा जी को बैठाकर रूक्मणी और कृष्ण द्वारा उनका सम्मान करने पर आधारित है । मंदिर में सुंदर बगीचे बने हुऐ है।                                        

पोरबंदर के पर्यटन स्थल
सुदामा मंदिर, पोरबंदर 

          यहीं पर 84 भूलभुलैया है।   कहते है इसे एकबार में बिना पैर बाहर किये यदि पार कर लिया जाता है तो इंसान सब पापों से मुक्त हो जाता है।  हमने भी प्रयास किया था। किंतु सफल नहीं हो सके। बगीचे के एक ओर पक्षियों को दाना डालने की व्यवस्था है। दाना डालते ही एक साथ बहुत सारे कबूतर और अन्य पक्षी आ जाते है। इस मंदिर में तांदूल यानि कच्चे चावल का प्रसाद चढ़ता है।                                                        
पोरबंदर के पर्यटन स्थल
भूल-भुलैया

कीर्ति मंदिर          

 महात्मा गांधी जी का जन्म स्थान , 2 अक्टूबर 1869 को महात्मा गांधी जी का जन्म इसी स्थान पर हुआ था। इस जगह को उनकी स्मृति में  एक उद्योगपति ने मूल संरंचना को केन्द्र में रख कर  79 फिट की इमारत में वह सब संजो कर रखा है जो गांधी से संबंधित है।यहां पर उस समय की लकड़ी की सीढियां, तहखाने,अलमारियां,कमरे सब वैसा ही है। एक संग्रहालय और पुस्तकालय भी है। यहां एक प्रार्थना कक्ष भी बनाया गया है।
     
पोरबंदर के पर्यटन स्थल
कीर्ति मंदिर


 कीर्ति मंदिर के पीछे नवी खादी है। जहां कस्तूर बा का जन्म हुआ था


पोरबंदर के पर्यटन स्थल
कीर्ति मंदिर 

धूमली गणेश मंदिर                                 

      अति प्राचीन करीब 10 वीं शताब्दी में बना यह मंदिर हिन्दू संस्कृति  की वास्तुकला का उत्कृष्ठ उदाहरण है।  

सूर्य मंदिर                                 

        पोरबंदर से करीब 48 किमी  दूर उत्तर पूर्व में स्थित यह मंदिर छठीं शताब्दी के आरंभ काल में बना हिन्दू संस्कृति की आस्था और मंदिर निर्माण की  वास्तुकला का बेहतरीन उदाहरण है।                                 

श्री हरि मंदिर                                

        रमेश भाई ओझा जी द्वारा संचालित यह मंदिर बहुत बडे क्षेत्र में फैला है। खुबसुरत बगीचों के मध्य 65 स्तंभों और 105 फिट ऊंचे इस मंदिर में दांयी तरफ गणेश जी की आकर्षक प्रतिमा के दर्शन होते है तो दुसरी तरफ चंद्रमौलीश्वर महादेव की प्रतिमा है। यहां राधा कृष्ण , जानकी वल्लभ, लक्ष्मीनारायण जी, करूणा मयी माता जी और हनुमान जी की प्रतिमाऐं है। यहां पर एक साईंस गैलरी भी है। इस मंदिर के अंतर्गत सांदीपनी आश्रम में अनेक विधार्थी वैदिक शिक्षा भी ग्रहण करते है। शाम के समय लाईटिंग लगने पर बहुत सुंदर दिखाई देता है।  यहां पहुंच कर बहुत सकून मिल रहा था। कई तरह के फूल लगे थे जो अपनी महक से वातावरण को और सुखद बना रहे थे।               
                              

पोरबंदर के पर्यटन स्थल
श्री हरि मंदिर 

रोकड़िया हनुमान                                  

       बहुत समय पहले एक संत महात्मा  पत्थर की शीला को हनुमान स्वरूप पुजा करते थे। कभी कभी कोई भक्त अपनी समस्या का समाधान के लिये उनके पास जाता था तो महात्मा जी हनुमान जी का ध्यान करके उसकी सहायता करते थे। धीरे धीरे समय के साथ आस्था और  प्रसिद्धि बढती गई। आज यह स्थान आस्था का प्रमुख केन्द्र बन गया है। सुंदर बगीचे खुले स्थान के मध्य मंदिर में पत्थर की शिला खडी स्थिती में है। हनुमान जी की मुर्ति के बांये पैर के नीचे शनिचर जी का सिर और दांये पैर के नीचे शनिदेव के पैर है।         हनुमान जी के एक हाथ में संजीवनी पर्वत और दुसरे हाथ में गदा है।वीर मुद्रा में मुर्ति में मानो जाग्रत लगती है।
मंदिर में शांत वातावरण मन को शांति प्रदान करता है।

नेहरू तारा मंडल  (प्लैनेटेरियम)                                     

  यहां पर खगोलीय धटना से संबंधित एक शो बडी सी इमारत में संचालित किया जाता है।                          

पोरबंदर चौपाटी                                        

        समुंद्र किनारे बहुत खुबसूरत स्थान है। साफ स्वच्छ तटीय क्षेत्र में अनेक मनोरंजक गतिविधियों के साथ जल क्रीडा का आनंद लिया जा सकता है या किनारे बैठकर समुद्रीय हलचल को निहारे। पास ही पक्षियों के लिये दाना डालने की व्यवस्था है। एक साथ हजारो पक्षियों को दाना चूगते देखना और उनका अचानक उनका उड़ना एक अलग ही अनुभव प्रदान करता है।                                                 
         यहां से अरब सागर में सूर्योदय और सूर्यास्त  दोनो देख सकते है। चौपाटी की सुबह और शाम बडी सुहावनी लगती है।                                       
                                          

पक्षी अभ्यारण्य                                 

         हज़ारों पक्षियों का आश्रय स्थल 1 वर्ग  किमी क्षेत्र में फैला है।यहां देशी व विदेशी पक्षियों को देखा जा सकता है।फ्लेमिंगो,आंईबिस,कर्ल जैसी सैकडों           प्रजातियों हैं।                                                     

भूतनाथ महादेव                                         

     यह महादेव जी का मंदिर है। छोटे से मंदिर की बडी आस्था होने से हमेशा भक्तो की भीड लगी रहती है। 

माधवपुर तट                                            

        रेतिले तटों पर नारियल पेडों से धिरा यह क्षेत्र बहुत सुंदर लगता है। यहां पर माधवराय जी का मंदिर है।  यहां की  शाम मनोहारी है।                                                            

पोरबंदर तट                                          

        यह द्वारका और वेरावल के मध्य पडने वाला प्रमुख तट है। यहां पर भी अनेक तटीय गतिविधी संचालित होती है।                                           

इंद्रेश्वर महादेव                                    

यह समुद्र किनारे स्थित लिंगरूप में  सफेद रंग का मंदिर है। इसका नक्काशीदार गोल गुंबद दूर से ही दिखाई दे जाता है। यह मंदिर करीब 200 वर्ष पुराना है। यहां से सूर्योदय , सूर्यास्त और सागर दर्शन कर सकते है।  यहां असीम शांति मिलती है। ऐसा लग रहा था ,धंटो यहां बैठकर सागर को निहारते रहे।          

दरबारगढ़ महल                                    

        राणा सुलतान जी प्रतिहार द्वारा 1671/1699 के मध्य इसका निर्माण करवाया था। महल के प्रवेश द्वार  को पत्थर पर खुबसुरत नक्काशी करके बनवाया गया था।  अंदर दोनों तरफ ऊंची ऊंची मीनारें है। लकड़ी के बडे़ बडे दरवाजे विशाल दालान और बगीचों से सज्जित है।                                                     

हूजूर महल                                          

           राणा नटवर सिंह ने 20 वीं शताब्दी के आरंभ काल में इस महल का निर्माण करवाया था। महल में बडी बडी खिडकियां, अद्धगोलाकार आकृति ,बगीचे  कमरों की बनावट , लकड़ी की छत  और झाड फानूस में स्पष्ट यूरोपियन शैली का प्रभाव दिखाई देता है।                                        

        चोरो महल                                             

   राणा सतरन जी ने इस महल का निर्माण 1671/!691 के मध्य करवाया था। राजपूती शैली में बनी तीन मंजिली इमारत को ग्रीष्मकालीन अवकाश में उपयोग में लिया जाता था।                                   

लाईट हाऊस

          समुद्रीय किनारा और बंदरगाह होने से यहां एक लाईट हाऊस बना हुआ है। सन 1887 में निर्मित इस टावर की ऊंचाई करीब 90 फिट है। सफेद व काले रंग के टावर की लाईटें समुद्र में करीब 16 माईल तक दिखाई देती है।                                               

         जामवंत की गुफा       

          रामायण काल के प्रमुख पात्र जामवंत बहुत वीर और बुद्धिमान थे। एक बार जामवंत जी का श्री कृष्ण जी से मणी के विषय में युद्ध हुआ। इस युद्ध में जामवंत जी ने पराजय स्वीकार करते हुऐ अपनी पुत्री जमुवंती का विवाह श्री कृष्ण से करके मणी भी प्रदान कर दी।
जामवंत जी की इस गुफा में 51 शिव लिंग स्थापित है। जिन पर गुफा की छत से रिसाव वाला पानी सतत गिरता है मानो अभिषेक कर रहा हो। यहां एक कुंआ भी है। इसमें जल की धारा का प्रभाव बना रहता है।  कहते है कि गुफा में स्वर्ण की बारिश होती रहती थी।आज भी इसकी छत व दीवारों पर स्वर्ण रंग की आभा दिखाई देती है।                               

इसके अलावा भारत मंदिर ,गीता मंदिर , सत्यनारायण मंदिर और रामधुन मंदिर प्रमुख है।

दिन भर घूमते घूमते  थोडी सी थकान होने लगी थी। इसलिये शाम को कमला नेहरू पार्क में कुछ देर के लिये रूक गये। यहां के सुंदर बगीचे में हल्की शीतल वायु बडा सकून दे रही थी। शाम को पार्क में हलचल बढने लगी  थी। पास ही बच्चे लोग झुले के आनंद ले रहे थे। हम भी  पार्क का आनंद लेकर अब फिर अपने अगले गंतव्य के चल पडे। हमारा अगला गुजरात दर्शन के अंतर्गत  आने वाला पडाव गिर गिरनार और  जूनागढ़ था।

             

             
 जय श्री कृष्ण
            

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