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चंद्रदेव के संकट मोचक सोमनाथ महादेव

   
                                                                               जय श्री कृष्ण   

गिर नेशनल पार्क में बडा आनंद आया। कोलाहल से दूर प्रकृति की गोद में चारों ओर हरियाली और मुक्त वन्य जीवों को पास से देखने में समय तेजी से गुजर गया।
 शाम का समय हो चला था। सूर्य देव भी अस्तांचल की ओर प्रस्थान कर रहे थे हमें भी रात्री का ठोर ठिकाना देखना था। गूगल बाबा ने बताया कि 45 किमी पर अति प्राचीन स्थान प्राची है। बस चल दिये और वैसे भी कल रात की गलती करने के मुड में नहीं थे।

रात्री विश्राम प्राची में ही किया। यहां पर औसत श्रेणी की होटलें है।

प्राची

अति प्राचीन स्थान है। यहां कहा जाता है। सरस्वती नदी बहती है। और इसके किनारे पर किया गया पितृ तर्पण पुर्वजों को मोक्ष दिलाता है। एक कथानुसार युद्ध के बाद धर्मराज युधिष्ठीर ने कौरवों की आत्म शांति के लिये यही पितृ शांति कार्य कर मोक्ष के लिये प्रार्थना की थी। 
यहां पर देखने योग्य स्थान 
  1. माधवराय मंदिर
  2. प्राची मंदिर
  3. मोक्ष पीपल            
 माधवराय मंदिर में दर्शन कर रवाना होने ही वाले थे कि तभी आरती की तैयारी होने लगी। यह देख हम भी रूक गये । आरती शुरू हुई तो घंटो की लयबद्ध ध्वनि ने मंत्रमुग्ध कर दिया। लगा जैसे हमारे चारों ओर एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो रहा हो।  

सोमनाथ मंदिर


सोमनाथ महादेव ,सोमनाथ
सोमनाथ महादेव 


यह प्राची से मात्र 35 किमी दूर है।। दोपहर में मंदिर पहुंचे।  गाडी पार्किंग कि व्यवस्था एक बडे मैदान में है। पार्किंग स्थल से मंदिर तक जाने के पैदल मार्ग में   क्लाक रूम बना है। जहां पर अपने हैंड बैग, बेल्ट ,मोबाईल व चमडे की अन्य सामग्री लाकर में रखने की सुविधा है।इसके आगे  चैक पाईंट है जहां से दर्शनों के लिये लाईन लगती है। हम भी लाईन में लग गये। जब हमारा नंबर आया तो मुझे वापस कर दिया क्योंकि मेरे पास गाडी की चाबी थी जो कि इलेक्ट्रानिक्स वस्तु में आती है। अतः पुनः क्लाक रूम पर जाकर गाडी की चाबी जमा करानी पड़ी।



एक बार फिर से लाईन में लगना पडा मगर जल्दी ही नंबर आ गया।  लाईन में लगे थे तभी एक सज्जन ने सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के बारे मे पौरणिक कथा  व इतिहास बताया। चलिये आपको भी बता देते है।

इतिहास      

उपलब्ध जानकारी व उन सज्जन के अनुसार यह मंदिर आस्था और वैभव में सर्वोपरि होने से अनेक बार आक्रमण झेल चुका, जिसमें महमूद गजनवीं के सत्रह और कई अन्य मुस्लिम शासकों के आक्रमण प्रमुख है।हर बार नष्ट होने के बाद हिन्दू आस्था ने पुनः इसे खडा कर दिया ।

वर्तमान मंदिर की आधारशिला सौराष्ट्र के पुर्व राजा दिग्विजय सिंह ने 8 मई 1950 को रखी थी। मंदिर में ज्योतिर्लिंग की स्थापना डा. राजेन्द्र प्रसाद जी ने 19 मई 1951 में की थी। 1962 में मंदिर बन कर तैयार हुआ था। तत्कालीन भारत के गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल जी के नेतृत्व में बन कर तैयार हुऐ मंदिर को   1 दिसंम्बर 1995 को राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा जी ने  राष्ट्र को समर्पित किया था।
मंदिर तीन भाग में बना है। गर्भगृह ,सभामंडप और नृत्य मंडप। इसका शिखर 150 फिट का और 27 फिट की ध्वजा है।

पौराणिक कथा

महामना प्रजापति दक्ष ने अपनी अश्विनी आदि 27 कन्याओं का विवाह चंद्रमा से किया था। दक्ष कन्याऐं भी चंद्रमा को पाकर बहुत खुश थी। रोहिणी नाम की कन्या से चंद्रदेव का विशेष लगाव होने से विशेष प्रिती और प्रेम रहने लगा। यह देख बाकि कन्याएं दुखी होकर पिता की शरण में गई । दक्ष ने चंद्रदेव को समझाया मगर कोई परिवर्तन न देख शाप दिया तुम्हें क्षय रोग हो। शाप के प्रभाव से चंद्रदेव के क्षीण होने से ब्रह्मांड संतुलन गड़बड़ा गया। चंद्रदेव की दशा देख  इंद्र ने ब्रह्मा से युक्ति पुछी। तब ब्रह्मदेव ने कहा प्रभास क्षेत्र में जाकर शिव लिंग की स्थापना करें और महामृत्युंज्य मंत्र का जाप करें। चंद्रदेव ने निष्ठा पूर्वक भक्ति की जिससे  शिवजी ने प्रसन्न होकर वर दिया और कहा कि एक पक्ष में प्रतिदिन तुम्हारी कला क्षीण होगीं और दुसरे पक्ष में निरंतर बढती रहेगी। यह वर पाकर चंद्रदेव संतुष्ट हुऐ। तभी से चंद्रमा का यश विस्तार करने के लिये भगवान शिव सोमनाथ नाम से प्रसिद्ध हुऐ। 


सोमनाथ
सोमनाथ 



अंदर मंदिर में शिवलिंग के दर्शन कर पीछे की दीवार से लगे समुद्र के दर्शन किये। बडी बडी लहरें दीवारों से टकरा कर जैसे प्रणाम कर रही हो।बडा भव्य मंदिर है ।दूर से ही ध्वजा के दर्शन हो जाते है।

बाण स्तंभ  

सन 1970 में जामनगर की राजमाता ने अपने पति राजा दिग्विजय सिंह जी की स्मृति में दिग्विजय द्वार का निर्माण करवाया था। मंदिर के दांई ओर बने स्तंभ पर एक तीर के निशान का संकेत है कि सोमनाथ और दक्षिणी ध्रुव के मध्य कोई भू भाग नहीं है। इस स्तंभ को ही  बाण स्तंभ कहते है। केवल आपकी जानकारी के लिये।

सोमनाथ
सोमनाथ 

  1. दर्शन प्रतिदिन सुबह 6 से शाम रात 9.30 बजे तक
  2. आरती दिन में तीन बार सुबह 7 दोपहर 12 और शाम 7 बजे   
यहां पर समुद्र का शोर दूर से ही सुन सकते है। किनारे चहल कदमी करना बडा रोमांचक लगा।
 समुद्र में उठती हुई लहरों में स्नान और बीच पर ऊंट व घुड सवारी का आनंद परम अहसास दे रहा था।
मंदिर से दर्शन कर अन्य पर्यटन स्थलों की ओर चल दिये।               

भालका तीर्थ

यहां पर जरा नामक शिकारी ने श्री कृष्ण जी के तलवों में तीर मारा था । जिससे वे परम धाम को चले गये थे।

बाण गंगा शिव लिंग

बहुत खुबसुरत जगह है।  यह शिवलिंग समुद्र मे स्थित होने से समुद्र के जल से ही अभिषेक होता हैै। पानी में भीगना और भगवान शिव जी का अभिषेक दोनों का  एक साथ पाकर हम धन्य हो गये।           

त्रिवेणी संगम          

यहां पर तीन नदी सरस्वती,कपिल और हिरण्या नदी का संगम स्थल है।

  • सूर्य मंदिर
  • गौ लोक धाम
  • गीता मंदिर
  • पांडव कालीन गुफाऐं
  • स्वामीनारायण मंदिर
  • सोमनाथ बीच
  • प्रभास पाटन म्यूज़ियम                                           
  • यहां पर आने के लिये अहमदाबाद और बडौदा से कार व बस सेवा तथा वेरावल तक ट्रेन सुविधा उपलब्ध है। रहने के लिये हर श्रेणी की होटलें  व रेस्टोरेंट मिल जाते है। 


सोमनाथ में एक दिन रूकने के बाद अगला सफर यहां से 45 किमी की दूरी पर मूल द्वारका का था।। कहा जाता है कि श्री कृष्ण जी मथुरा से आकर द्वारका के निर्माण तक यहां पर रहे थे।

बहुत सुन्दर मंदिर बने हुऐ है। बाग बगीचों के मध्य एकदम शांत चारों ओर हरियाली आज ऐसा है तो श्री कृष्ण के समय कैसा रहा होगा।

हमारा अगला पाईंट दीव है। यह तीन तरफ से समुद्र से घिरा है । बहुत सुन्दर जगह है । खूबसूरत द्वीप दीव की सैर पर चलते  है 

                                                                                     जय श्री कृष्ण











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