header

लाक डाऊन के बाद का पहला सफर

लाक डाउन के बाद का पहला सफर



कोरोना वायरस
कोरोना वायरस 


जनवरी माह में न्यूज चैनलों से मालूम चल रहा था कि कोई खतरनाक वायरस चीन की धरती से जन्म लेकर पुरी दुनिया में फैल रहा है। और इस वायरस के सामने बडे बडे सम्पन्न देश भी बेबस हो रहे हैं। 
धीरे धीरे मौत का आंकडा भी बढने लगा था। फरवरी महिना भी इसी तरह बीता मार्च के प्रथम सप्ताह में कोरोना ने भारत में भी दस्तक दे दी थी। मगर दुसरे सप्ताह में दक्षिण में पहली मौत के बाद 22मार्च को पुरे दिन लाक डाउन की पहली रिहर्सल ने समझाया कोरोना और लाक डाउन का संबंध ।  
अभी पुरी तरह से तैयार हुऐ भी नहीं थे की 23 मार्च से पुरी तरह लाक डाउन की घोषणा ने सब समझा दिया।  बाजार बंद, बसे बंद ,लोक परिवहन सेवाऐं बंद अब हम पुरी तरह से समझ गये कि लाक डाउन क्या होता है।
घर में कैद होकर रहना। ता जिंदगी यो घर पर रहे नहीं अब बाहर निकलना बंद। सात दिनो के बाद बेचैनी बढने लगी। यहां तक की डाक्टर भी उपलब्ध नहीं । शहर के सारे अस्पताल भी बंद। अब सब समझ आने लगा था। कभी ऐसा भी हो सकता है। बिना युद्ध के ही एक साथ कई देशों पर दबाव बनाना ।
 घर में रहकर प्रतिदिन न्यूज पर कोरोना  बीमारी और उसके प्रभाव तथा पीड़ित रोगी की विडीयो ने हमें अंदर तक भयभीत कर दिया था। हर पल डर के सायें में जीने लगे। बाहर निकलते ही  घबराहट कहीं कोरोना न हो जाये। हर चिर परिचीत भी शंका के दायरे में आ गया था।

 सब्जीवाले और न्यूज पेपर वाले से भी डर लगने लगा था। कोई भी वस्तु लेने से पहले सेनेटाईंज करना, हाथ धोना अनिवार्य हो गया था। खुला दुध लेने में डर का माहौल बना था। पैक चीजों पर ही विश्वास करने लगे थे।  किराना लेने जाने की झंझट खत्म आर्डर करो और सामान घर पहुंच सेवा मगर बिना मोलभाव व गुणवत्ता के।

एक सप्ताह  निकल जाने के बाद इन्दौर से फोन आया कि मम्मी जी की तबियत खराब है। अब जाये तो जायें कैसे । 
किसी तरह खोज खबर निकाली और  एस डी एम  आफिस में पता किया कैसे जा सकते है। वहां से पुरी प्रर्किया समझी तो 70% हिम्मत जवाब दे गई। उस पर इन्दौर में बढते मरीजों की संख्या ने और मुसीबत बढा दी। खैर अब केवल मोबाईल पर हाल चाल पुछने के अलावा कोई रास्ता नहीं था।  किसी तरह दो माह तक हर दिन हर पल जीवन का अहसास ले डर के साये में जी रहे थे। मजबुरी ऐसी की चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते थे। 

आखिर जून के दुसरे सप्ताह तक छुट मिलने लगी तो हमने भी इन्दौर जाने के लिये मन बना लिया। जरूरी सामान के साथ मास्क और सेनेटाइजर भी साथ लिया। 
सडकों पर नजारा बडा विचित्र था। केवल बसें नहीं चल रही थी ।मगर हर कोई अपने अपने उपलब्ध साधन से चला जा रहा था। सारी शोशल डिस्टेंसिंग गायब बाईक पर तीन तीन और कार में छः सवारी से कम नहीं । रफ्तार इतनी के बस चंद मिनटों में मुकाम तक पहुंचने की जद्दोजहद।  लाक डाउन में प्रदुषण, अपराध, एक्सीडेंट का जो ग्राफ नीचे चला गया था अब तेजी से बढने लगा था।   

मार्ग में कभी आबाद रहते होटलों पर इक्का दुक्का वाहन ही रूके थे। सडकों पर भीड थी मगर हर कोई दौड़ रहा हो रूकने की किसी को फुर्सत नहीं थी।  किसी तरह इन्दौर पहुंचे। 

यहां गाड़ियों की चेकिंग के साथ मास्क न पहनने वालों पर कार्यवाही हो रही थी। लंबी लाईन में लगना पडा। पुरे एक धंटे के बाद हमारा नंबर आया । व्यवस्था चाक-चौबंद मगर हर कार्य के लिये सरकार पर निर्भर नहीं हो सकते हमें भी जागरूक होना होगा। या यों कह सकते है। भविष्य में होने वाली कोई अप्रिय धटना कि रिर्हसल हो।
  इन्दौर में कहीं खुला कहीं बंद का मिला-जुला असर दिखाई दे रहा था। मगर हां भविष्य कैसा होगा इसकि तस्वीर उभरने लगी है। 
क्या आप भी महसुस करते है। इस तरह की आपदा के लिये कोई फुल प्रुफ प्लान हो। तो अपनी राय शेयर करें।

                                      घन्यवाद 

    

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

welcom for your coments and sugest me for improvement.
pl. do not enter any spam Link in the comment box.

Popular post