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Swaminarayan Mandir स्वामीनारायण मंदिर वडताल के दर्शन


स्वामीनारायण मंदिर, वडताल 

गुजरात दर्शन यात्रा में हमारा अगला पाईंट  स्वामीनारायण मंदिर, वडताल था। जो कि सारंगपुर से 160 किमी की दूरी पर है। गुजरात में स्वामीनारायण संप्रदाय का बहुत प्रभाव है। कई भव्य मंदिरों की श्रृंखला और उनका संचालन बखुबी हो रहा है। किन्तु वडताल में मुख्य मंदिर होने से यहां का महत्व बढ जाता है।

मंदिर प्रवेशद्वार,वड़ताल
मंदिर प्रवेशद्वार, वड़ताल 


हम लोग करीब 10.30 बजे वडताल पहुंच गये थे। सीधे मंदिर की ओर जाने पर एक भव्य प्रवेश द्वार से अंदर प्रविष्ट होने पर, बांयी ओर पार्किंग स्थल बना हुआ था। जहां गाडी पार्क करके पैदल ही मंदिर की ओर चल दिये। रास्ते में बाजार में दोनो ओर दुकानें सजी हुई थी। यहां हर प्रकार का सामान था। एक दुकान पर कुछ गुजराती ड्रेस देखी, बहुत आकर्षक लग रही थी। थोडा मोल भाव करके खरीद ली।

मुख्य मंदिर प्रवेश द्वार ,वडताल
मुख्य मंदिर प्रवेश द्वार ,वडताल 


कुछ दुर चलने पर सामने स्वामीनारायण मंदिर क्षेत्र में प्रवेश के लिये अन्य द्वार था।
यहां से हम लोग मंदिर क्षेत्र में आ गये थे। चलिये पहले थोडा सा जान ले ,स्वामीनारायण संप्रदाय और इसके संस्थापक जी के बारे में ।

इतिहास      

  स्वामीनारायण संप्रदाय के संस्थापक स्वामी सहजानंद थे। इन्होने 1824 में  संप्रदाय की नींव रखी और प्रचार प्रसार किया। अपने शिष्यों को पांच व्रत मांस ,मदिरा,चोरी,व्यभिचार का सर्वथा त्याग और स्वधर्म का पालन करने की शिक्षा दी। सदाचार व समाज सेवा परमोधर्म के लिये प्रेरित किया। 
समाज की कुरीतियों जैसे यज्ञ में बली प्रथा,सती प्रथा,कन्या हत्या,भूत बाधा का विरोध कर बंद करवाया।  

स्वामी जी का जीवन परिचय

स्वामी सहजानंद जी का जन्म 3अप्रेल 1781(चैत्र शुक्ल,नवमीं,विं.संवत 1837) को उत्तरप्रदेश के गोंडा जिले के छपिया ग्राम में हुआ था। पिता हरिप्रसाद और माता भक्ति देवी ने इनका नाम धनश्याम रखा था। जन्म से ही इनके हाथों में पद्म पैर में बज्र उर्ध्व रेखा तथा कमल के चिन्ह होने से विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। अल्प आयु में ही सभी वेद शास्त्रों का अध्धयन कर लिया था। 11वर्ष की आयु में माता पिता का विछोह और परिवारिक परेशानीयों के चलते घर छोड़ देशाटन पर निकल गये। मार्ग में कई विभूतियों के दर्शन हुऐ तथा इनको भी एक उपनाम नीलकंठ वर्णी  मिला। श्री गोपाल योगी से विधिवत अष्टांग योग सीखा।
भ्रमणकाल में इनकी मुलाकात स्वामी मुक्तानंद से मांगरोल के पास लोज गांव में हुई। स्वामी मुक्तानंद ने अपने गुरू रामानंद जी से परिचय करवाया।
स्वामी रामानंद जी ने पीपलाणा ग्राम में नीलकंठ वर्णी को दीक्षा देकर नया नाम स्वामी सहजानंद दिया। 
इन्होने निर्धनों और प्राकृतिक आपदा में सेवा कार्य को प्रमुखता दी। 
सन 1830 में ब्रह्मलीन हो गये थे।चलिये मंदिर परिसर में चलते है।

मंदिर          


स्वामीनारायण मंदिर,वड़ताल
स्वामीनारायण मंदिर,वड़ताल

वडताल ,लक्ष्मीनारायण गादी का प्रमुख केन्द्र है। यहां का मंदिर निर्माण सदगुरू ब्रह्मानंद की देखरेख में मात्र 15 माह में ही पुर्ण कर लिया गया था। इस मंदिर के लिये दी गई जमीन एक डकैत जोबन पगी की थी। डकैत स्वामीनारायण जी के सम्पर्क में आने से सब गलत काम छोड़ उनका अनुयायी बन कर समाज सेवा में लग गया था।  सामने स्वर्ण रंग के गुंबदों वाला भव्य मंदिर वास्तुशिल्प का अदभुत नमुना दिखाई दे रहा था। यह मंदिर कमल की आकृति लिये हुऐ है। उपर नौ गुंबद बने हुऐ है। मंदिर में तीन प्रमुख विग्रह है। मध्य में लक्ष्मीनारायण जी दांई ओर श्री हरिकृष्ण महाराज के रूप में स्वामीनारायण जी के साथ राधाकृष्ण और बांयी ओर श्री वासुदेव ,श्रीधाम पिता व माता भक्तिदेवी की मुर्तियां स्थापित है। 


लक्ष्मीनारायण मंदिर
लक्ष्मीनारायण मंदिर,वड़ताल

इन मुर्तियों की प्राणप्रतिष्ठा 3 नवम्बर 1824 को की गई थी। मंदिर में भगवान की मुर्तियों के अलावा बांयी तरफ दक्षिणावर्त शंख  व  शालिग्राम जी और शेषनाग के आसन पर दस अवतारों की मुर्तियां है।


वासुदेव,धर्मदेवऔर भक्तिदेवी की प्रतिमा
वासुदेव, धर्मदेव और भक्तिदेवी की प्रतिमा

मंदिर में लकड़ी के स्तंभों पर आकर्षक रंगीन कलाकृति की गई है। रंगीन पत्थरों से जगह जगह विशेष आकार दिया गया है। मंदिर की छत को बहुत सुंदर सजाया गया है।

राधाकृष्ण मंदिर,वड़ताल
राधाकृष्ण मंदिर,वड़ताल

ज्ञानबाग बगीचा मंदिर के उत्तर-पश्चिम में है। दक्षिणी छोर पर अक्षर भुवन है। इसकी पहली मंजिल पर धनश्याम महाराज की खडी अवस्था की मुर्तियां है।दुसरी मंजिल पर धनश्याम महाराज की बैठी अवस्था की मुर्तियां है। यहीं पर धनश्याम महाराज की निजी व उपयोग में लाई वस्तु का संग्रह है। पश्चिम में हरि मंडप में शिक्षा पत्री रखी है। यहां प्रसाद की अलग व्यवस्था है।

मंदिर की बहुत सारी धर्मशालाएं व गेस्टहाऊस है। जहां यात्रियों को ठहरने की उत्तम व्यवस्था है। 

मंदिर की अद्भुत कलात्मकता
मंदिर की अद्भुत कलात्मकता ,वड़ताल


यहां की भोजन व्यवस्था भी सर्वोत्तम है।पहले रसोई नहीं थी तब नीबू और मिर्च दी जाती थी। समय के साथ साधन बढने पर एक बहुत बडी भोजनशाला का संचालन होता है। जहां एक बार में सैकडों भक्त एक साथ भोजन कर सकते है। 

पूर्णिमा को बहुत बडा मेला लगता है। इस अवसर पर हजारों भक्त सम्मिलित होते है। इसमें सेवा के लिये आस पास के ग्रामीण स्वेच्छा से सेवा देते है। भोग प्रसाद में लड्डू का भोग लगता है।

वडताल में एक आम के बगीचे में जहां स्वामीनारायण जी होली खेलते थे। एक छत्री बनी है। इसके दक्षिण की ओर बारह दरवाजों का झुला है। उत्तर में स्वामीनारायण जी द्वारा खुदवाई गई गोमती झील है। झील के मध्य एक स्थान बना हुआ है और पश्चिम में एक छतरी बनी हुई है। जहां खुदाई के समय बैठते थे। पास ही वह पेड़ है जहां बैठकर वतनामृत का प्रचार किया था।

वडताल के अलावा कई और जगह भी स्वामीनारायण के मंदिर है। इन्में अहमदाबाद,मूली,जेतलपुर,धोलका, गढ्डा,धोलेरा , जूनागढ़ प्रमुख है।


यहां आकर हम सब बहुत प्रसन्न थे। इस मंदिर के एक बार अवश्य दर्शन करने आना चाहिये। क्या आप मुझे इस यात्रा वृतांत की कोई कमी पर प्रकाश डालेंगे। 

शाम ढलने को आई है और आज हमारा अगला मुकाम डाकोर जी मंदिर दर्शन के लिए डाकोर जी में रात्रि विश्राम होगा। कल सुबह मंदिर दर्शन के लिए चलेगें।


                                                                                य श्री कृष्ण 













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