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खुबसुरत द्वीप दीव की सैर


       
                      

                                                                       जय श्री कृष्ण


 मूल द्वारका की हरियाली और शांति ने मन मोह लिया था। मन कर रहा था। कुछ समय और रूक जाये किन्तु गुजरात दर्शन के बहुत सारे पाईंट शेष थे और हमारा सफर दुसरे सप्ताह के अंतिम चरण में होने से चलना ही विकल्प था।  घर से भी अब संदेश मिल रहे थे। कब आ रहे हो।




खुबसुरत द्वीप दीव की सैर




सफर जारी रखते हुऐ हम चल दिये खुबसुरत दीव द्वीप की ओर , ये तीन ओर से समुद्र से धिरा हुआ है। केवल दो पुलों की मदद से गुजरात से जुडा हुआ है।

48 किमी का सफर तय कर एक पुल को पार करने के बाद, प्रवेश द्वार से खुबसूरत दीव द्वीप में प्रविष्ट हुऐ।  एकदम शांत कोलाहल से दूर, न कोई भीड न कोई शोर कभी कभार कोई गाडी पास से गुजर जाती थी। मार्ग के दोनों ओर हरियाली ने और मोहक बना दिया था। 

आईये सबसे पहले हम यहां का इतिहास जान लें।

इतिहास          

सन 1535 से पुर्तगालियों का शासन रहा था। पहले व्यापारी के तौर पर आये और फिर धीरे धीरे जड़ें जमा ली। यह सिलसिला 1961 में आपरेशन विजय के तहत टुटा और दीव भारत का अभिन्न अंग बन गया। 19 दिसंबर आजादी के उपलक्ष में यहां विशेष उत्सव मनाते है ।

पर्यटन स्थल     

जैसे ही प्रवेश किया कुछ दुरी चलने के बाद बांये साईड के टर्न लेने पर शंख की बहुत सुंदर प्रतिकृती बनी हुई थी। थोडा आगे जाने पर किले की ओर का मार्ग था।  किले क्षेत्र कुछ ज्यादा ही चहल पहल थी। कोई स्कुल की टूर पार्टी थी।

किला       

किले के बारे में गाईड महोदय ने बताया कि इसे  एक बडी सी चट्टान को काट कर  56736 वर्ग मी. में बनाया गया था।पहले किले में प्रवेश के लिये एक लकड़ी के पुल पर से होकर गुजरना पड़ता था। जिसे रात में हटा लिया जाता था। यह किला अभेद्य रहा। किले में बुर्जों का निर्माण किया जहां पर आसानी से तोपों को तैनात किया जा सके। उपर जाने पर एक लाईट हाऊस (वाच टावर) भी बनाया गया है। इस टावर से दूर तक नजर रखी जा सकती थी।
सुरक्षा की दृष्टी से एक गुफा बनी हुई है जो कि सीधे किले के बाहर निकलती है।
किले के अंदर एक जेल बनी हुई है।  तथा  बाहर 1720 में बनी एक घंटी लगी हुई है। इस घंटी को बजाकर कैदीयों को भोजन के लिये संदेश दिया जाता था।

पानी कोठा        

यह जहाज की तरह बनाई गई एक जेल है। 475 वर्ष पुरानी इस जेल के चारों ओर पानी है।

सन राइज और सन सेट पाईंट

सन सेट पाईंट पर धीरे धीरे लोग आने लगे थे। हम भी उत्सुक थे सूर्यास्त के इस दृश्य को देखने के लिये, कुछ ही देर में अदभुत दृश्य देखने को मिला।। मानो कोई बडा सा गोला समुद्र में समा रहा हो। धीरे धीरे जब सूर्यदेव पुरी तरह अस्त हो गये तब हम भी अपनी होटल की ओर चल दिये।

गंगेश्वर महादेव 

 सुबह सबसे पहले यही आये थे। यहां समुद्र के किनारे पांच शिवलिंग बने है। कहा जाता है कि पांडवों ने इन्हे स्थापित किया था। समुद्र के पानी से लगातार अभिषेक होता रहता है। कभी कभी तो पानी बहुत ज्यादा आने से शिवलिंग पुर्ण रूपेण डुब जाते है। सुबह का समय इस जगह पर बहुत आनंद दायक होता है।
हम सब ने यहां पुजाकर समुद्र जल से भगवान का अभिषेक किया।

लाईट हाऊस
यह बहुत पुराना शायद पुर्तगाली शासन काल में बना था। बहुत ऊंचा स्तभं है। इससे समुद्र में रात को दूर तक जहाजों को लाईट से मार्ग दर्शन किया जाता होगा। इस इमारत पर से खुबसूरत दीव द्वीप का नजारा बहुत अदभुत दिखाई देता है।

यहां पर कई बीच है। जहां सी वाटर स्पोर्टस संचालित किये जाते है।

  1. नागवा बीच
  2. जालंधर बीच
  3. गोमती माता बीच
  4. धोधला बीच
  5. खोडियार बीच
  6. जामबोट बीच
  7. देवका बीच
  8. वनकाबरा बीच                                                  

इनमे सबसे पसंदीदा नागवा बीच है। यहां वाटर स्पोर्टस के अलावा बडी संख्या में नहाने वालो की भीड लगी रहती है। समुद्र में उठती हुई लहरों के बीच स्नान का अपना अलग ही मजा है। हम भी अपने को रोक नहीं सके। हां एक बात अवश्य थी। बाहर आने पर लगा नमक स्नान करके आये हो। पास ही बाथरूम में साफ पानी से नहाना पडा।

चक्रतीर्थ
यहांं पर विष्णु भगवान ने  जालंधर राक्षस का वध किया था।
पक्षी विहार        
यह स्थान नागवा बीच के करीब ही है। कई तरह के पक्षियों को देखने का मौका मिलता है।
बाहर निकलने पर एक व्यूह पाईंट बना है। उपर से नजारा देखने योग्य होता है।
डायनोसोर पार्क    
यहां पर डायनोसोर की खुबसूरत प्रतिकृतियां बनी हुई है।समुद्र के किनारे एकांत में सीमेंट की बैंच पर बैठना बहुत अच्छा अनुभव देता है।
ऐंट्री गेट आफ दीव सीटी    
बहुत सुंदर प्रवेश द्वार बना है। इसके बाद यहां का स्टेडियम बना हुआ है।
नायडा गुफाऐं     
प्राकृतिक रूप से पत्थरों के विभिन्न कटाव से बनी ये संरचनाएं या कहें तराश के बनाई गई हो, मगर है बहुत खुबसूरत।
आईएनएस खुकरी स्मारक
सन 1971 में नौ सेना के इस युद्धक पोत को पाक की सब मेरीन ने आक्रमण करके जल समाधिस्थ कर दिया था। तब इसके कैप्टन और अन्य साथियों ने भी साथ ही जल समाधि ले ली थी। उनकी स्मृति में INS खुकरी F 149  की वैसी प्रतिकृति बनाई गई है। 
समुद्र किनारे व्यूह पाईंट भी बना है। जहां से नजारे देख सकते है।         
दीव म्युझियम 
यहां पर कई तरह की वस्तुओं का संग्रह है। सामने बहुत सुंदर बगीचा बना हुआ है।
टेंट सिटी
खुबसूरत दीव द्वीप में खोडियार बीच के पास ही टेंट सिटी बनाई गई है। जहां पर सर्व सुविधा युक्त वातानुकुलित टेंट उपलब्ध है। 
सेंट पाल चर्च 
यह पुर्तगालियों का बहुत सुंदर चर्च बना है। इसकी बनावट और कलाकृति देखने योग्य है।

खुबसूरत दीव द्वीप की सैर आप यहां साईकिल से भी कर सकते है। इसके लिये आप साईकिल किराये ले सकते है।

खुबसूरत दीव द्वीप में रहने व खाने के लिये किले के पास बहुत सी होटल व रेस्टोरेंट है। जहां हर तरह का खाना मिल जाता है।

खुबसूरत दीव द्वीप की सैर का सबसे अच्छा समय दिसंबर से फरवरी का है।  दिसंबर में एक फेस्टिवल का आयोजन भी होता है। 

दो दिन की मनोरंजक खुबसूरत दीव द्वीप की सैर के बाद धोधला गांव की तरफ के पुल से उना सिटी में प्रवेश किया।
हमारा अगला पाईंट तुलसीश्याम था। जो कि मात्र 46 किमी दूर जंगल के एकांत में बसा पौराणिक महत्व लिये हुऐं है।

जंगल का रास्ता बहुत अच्छा लग रहा था। दोनों ओर हरियाली ,कहीं कहीं वन्य पशु पक्षी नजर आ जाते थे। पक्षियों की मधुर ध्वनि के बीच कभी कभार किसी वाहन के हार्न से लय भंग हो जाती थी। 

रास्ते में एक पहाड़ी मार्ग पर कुछ वाहन रूके हुऐ थे। दूर से कुछ समझ नहीं आया लेकिन पास जाने पर आश्चर्य जनक पहेली से रूबरू हुऐ। वे सब सडक पर पानी डालकर देख रहे थे। कि पानी नीचे जाने के बजाय उपर की ओर बह रहा था। कुछ लोग अपनी गाडी पर भी यही प्रयोग कर रहे थे। और नियम के उलट बंद गाडी भी उपर की ओर अपने आप चलने लगी थी।  शाम होने वाली थी। अतः मंदिर पहुंचना जरूरी था।
 तुलसीश्याम 
यहां गर्म पानी के तीन तप्त कुंड है। पहले वाले में सबसे ज्यादा गर्म पानी था। कहते है इस पानी में स्नान करने पर चर्म रोग में प्रभावी असरकारक है। 
यहां पर हमने स्नान कर रास्ते की सारी थकान दुर हो गई थी। यह भव्य मंदिर चारों ओर जंगल से धिरा है।कभी कभार शेर भी आ जाते है। यहां के महंत जी ने बताया था। कि भगवन ने तुल नामक राक्षस का वध किया था।
मंदिर में गणेश जी, हनुमान जी और रूक्मणी जी की मुर्तियां है। पहाड़ी पर सीढ़ियां चढकर जाने पर रूक्मणी जी का मंदिर है।

रात करीब 29 किमी का सफर तय कर ऊना वापस आये। यही पर रूकने की अच्छी व्यवस्था थी। चलिये फिर मिलते है हनुमान मंदिर ,सारंगपुर मे जहां कष्टभंजन हनुमान जी विराजते है । 

                                                                   " जय श्री कृष्ण "


                   

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