header

जामनगर का अनोखा मुक्तिधाम


                                                                   जय श्री कृष्णा 
 

                 कैम छो ,मज्जा मा , अभिवादन के साथ आज हम लोग राजकोट मे है।यह चौटिला से मात्र 45किमी दूर  एक बहुत सुंदर, साफ शहरो की गिनती में आता है इस शहर को ठाकुर साहब विभा जी जडेजा ने सन 1612ई. में बसाया था।अजी और न्यारी नदी किनारे बसे इस शहर की प्राकृतिक छटा भी बडी निराली है।


प्रद्युम्न पार्क, राजकोट

पहले ये सौराष्ट्र की राजधानी हुआ करता था।सारे राज काज यही से संचालित हुआ करते थे।महात्मा गांधी जी का बाल्यकाल यही पर गुजरा उन्होने अलफ्रंट हाई स्कूल मे शिक्षा ग्रहण की।उनके पिता करमचंद जी सौराष्ट्र रियासत मे दीवान रहे। यहां प्रमुख रूप से दर्शनीय स्थल काबा गांधी ना, राजकुमारी उधान, जुबली पार्क, वाटसन संग्रहालय  ,राम कृष्ण आश्रम  ,लाल परी झील, अजी डेंम, रंजीत विलास पैलेस और सरकारी दुगध डेयरी है । प्रद्युम्न पार्क को बहुत ही सुंदर तरीके से विकसीत किया है।


जामनगर का अनोखा मुक्तिधाम
प्रद्युम्न पार्क, राजकोट 


श्री स्वामी नारायण मंदिर की अपनी अलग ही वास्तुकला है बहुत सुंदर देखने योग्य ।एक पुरा दिन घूमने मे लगा।
हमे जामनगर पहुंचने के लिये 132किमी का सफर करना था सो जल्द ही राजकोट को बिदा कह दिया।लगातार चलने पर भी तीन धंटे तो लगना ही है। करीब रात 8.30 बजे जामनगर पहुंचे।शहर लाईटों से जगमगा रहा था।जल्द ही होटल तलाश की।  जामनगर  अरब सागर से लगा कच्छ की खाड़ी के दक्षिण मे स्थित इस शहर को नवानगर के महाराजा जाम साहेब ने सन 1540 में बसाया था।शहर के मध्य एक झील है और दो इमारतें कोठा बैस्टिआन व लसोट।इन इमारतों तक पत्थर के पुल से ही पहुंचा जा सकता है।इस शहर को पीतल नगर, तेल शहर व काठियावाड का रत्न नाम से भी जाना जाता है ।यहां के मुख्य पर्यटन स्थल लकोटा म्युझियम, डा. आंबेडकर उधान, काली मंदिर, जैन मंदिर, श्री कृष्ण प्रणामी संप्रदाय का मूल, खिजड़ा मंदिर, श्री स्वामीनारायण मंदिर, शाही महल, प्रताप विलास पैलेस, रिलायंस आईल रिफायनरी और माणिक भाई मुक्तिधाम। 


जामनगर का अनोखा मुक्तिधाम
मुक्ति धाम,जामनगर

मुक्तिधाम की विशेषता है कि जो भी यहां आता है ,देखने जरूर जाता है बहुत ही कलात्मक तरीके से जीवन का परिचय और अंत मे अंतिम यात्रा का सच मुर्ति व कला-कृतियों की सहायता से समझाया गया है।


जामनगर का अनोखा मुक्तिधाम
मुक्ति धाम, जामनगर

 इसके अतिरिक्त नराना मेरिन नेशनल पार्क, बाल हनुमान मंदिर, रणमल लेक, शिवराजपुर बीच व बुझियो कोठों जो कि युद्ध काल मे राजा तथा राजपरिवार के सुरक्षित बाहर निकलने का मार्ग था।
  
जामनगर का अनोखा मुक्तिधाम
जामनगर 

यहां का प्रसिद्ध खाना स्पाइसी धुधरा है। चलिये कल हम  मिलेगे  श्री कृष्ण की कर्म भूमि द्वारका मे तब तक के लिए ..               


जय श्री कृष्ण 


गुजरात के प्रमुख दर्शनीय स्थलों की सैर


गुजरात के प्रमुख दर्शनीय स्थलों की सैर


अंबा जीगब्बर के दर्शन कर हम लोग अपनी होटल लौट आये।कुछ देर सुस्ताने के बाद पास ही रेस्टोरेंट मे भोजन किया।बाजार कि चहलपहल देखने पैदल ही घूमने निकल गये। बाजारों मे गुजराती पहनावे से संबंधित, पुजन सामग्री और कुछ एक दुकानें संगमरमर को  तराशकर बनाई गई मुर्तियां मंदिर व विभिन्न कलात्मक कलाकृतियों की थी। मंदिर के आसपास होटल, धर्मशाला और भोजनालयों की बहुतायत है। शाम को विचार किया गया क्यों न द्वारका और सोमनाथ चला जाय। दोस्तो अब जो प्लान बनाया गया है इसमें अधिकांश गुजरात की जगह समावेश हो रही थी।अतः हमने अपने टूर को  गुजरात दर्शन नाम दिया। कल से हमारी यात्रा यथावत चालू रहेगा।


मातृगया, सिद्धपुर
मातृ गया ,सिद्धपुर 

  हमारा इस टूर का पहला पडाव सिद्धपुर है।अंबा जी से करीब 83 किमी दुर है यह स्थान मातृ गया यानि मां व कुल की सभी दिवंगत महिलाओं को पिंडदान संस्कार कर आत्मा की शांति की प्रार्थना करते है। कहा जाता है कि प्रमुख पांच सरोवर कैलाश मानसरोवर, नारायण सरोवर, पुष्कर सरोवर, पंम्पा सरोवर और बिंन्दु सरोवर मे से बिंन्दु सरोवर यही पर हैै। तथा सरस्वती नदी यहां लुप्त हो गई है। कपिल मुनि के पिता ने इस सरोवर के पास कई वर्षो तक तपस्या की। कपिल मुनी ने यही पर अपनी माता जी का श्राद्ध कर्म किया। परशुराम जी ने भी मां रेणुका का श्राद्ध किया। पौराणिक कथानुसार नारायण लक्ष्मी जी के साथ यही पर निवास करते थे। यहां की कैमल रेस और देशी घोड़ा दौड़ बहुत प्रसिद्ध है ।बर्फ के गोलों की  दूर दूर  तक पहचान है। 


गुजरात के प्रमुख दर्शनीय स्थलों की सैर
श्राद्ध स्थल, सिद्धपुर 


गुजरात के प्रमुख दर्शनीय स्थलों की सैर
सिद्धपुर 


पाटण पटोला साड़ीयों के लिये प्रसिद्ध है, यहां हैंडलूम पर बनी पटोला साडीयां बेहतरीन डिजाईन और  बनावट के लिये प्रसिद्ध है।ये साडीयां इतनी महिन और मुलायम होती है कि अंगुठी मे से निकाल सकते  है।इनकी कीमत भी 12000 से लेकर 1.5लाख और उससे कहीं अधिक हो सकती है।   पाटण मे एक कलात्मक वाव (बावड़ी)  है जो कि वहां की रानी उदयामति ने अपने दिवंगत पति राजा भीमदेव प्रथम की याद मे वर्ष 1063 मे बनवाई थी। वास्तुकला की भव्यता से पूर्ण 64मीटर लंबी 20मीटर चौड़ी और 27 मीटर गहराई वाली वाव मे सात तल है प्रत्येक तल पर बेजोड़ कला कृतियाँ  भगवान विष्णु, वामन अवतार और नाग कन्या को समर्पित हैभारत सरकार ने अपने नये 100 रूपये के नोट मे इसे दर्शाया है। वाव के आसपास बहुत सुंदर गार्डन है। घूमते घूमते समय का पता ही नहीं चला ,एक जगह आस पास की मालूमात करने पर जानकारी मिली कि यहां से कुछ ही दूरी पर सूर्य मंदिर है ।               


गुजरात के प्रमुख दर्शनीय स्थलों की सैर
मोढेरा सूर्य मंदिर 
                    

35 किमी का सफर कर मोढेरा पहुंचे। 1026 ईश्वी मे राजा भीमदेव प्रथम ने पुष्पावती नदी के तट पर बनवाया था।कलाकृति का बेजोड़ नमूना है।मंदिर के चारो ओर सुंदर बगीचा विकसित किया है।यहां पर रख रखाव के लिये टिकीट व्यवस्था है और पास ही पार्किंग की भी।



गुजरात के प्रमुख दर्शनीय स्थलों की सैर
सरोवर

गुजरात के प्रमुख दर्शनीय स्थलों की सैर
सूर्य मंदिर, मोढेरा


गुजरात के प्रमुख दर्शनीय स्थलों की सैर
सूर्य मंदिर,मोढेरा


गुजरात के प्रमुख दर्शनीय स्थलों की सैर
सरोवर



गुजरात के प्रमुख दर्शनीय स्थलों की सैर
सूर्य मंदिर 


कल मां चोटिला के दरबार मे फिर मिलेगे।


                                                                                जय श्री कृष्णा .....                 क्रम


चलो चले मां अंबे के धाम अम्बा जी

    


  चलो चले मां अंबे के धाम अम्बा जी 

    गरबे हो रहे थे, देखते देखते ख्याल आया कि क्यो न माता के धाम अंबा जी चला जाय।घर पर चर्चा की, सब की सहमति से कार्यक्रम बनाया और तैयारी मे जुट गये ।अगले दिन सबसे पहले गाडी को सर्विस के लिये दिया। सफर के लिये  यह बहुत जरूरी था।


चलो चले मां अंबे के धाम अम्बा जी
मां अंबा जी , गुजरात 

  शाम तक गाडी भी सर्विसिंग से आ गई थी। अब एक बहुत ही आवश्यक कार्य और करना था। सो वह भी गूगल आंटी की सहायता से पुरा कर लिया। रूट प्लान बनाया। सारी तैयारी हो गई। सुबह जल्दी निकलना था, कही कुछ छुट न जाय इसलिये रात मे ही सब सामान गाडी मे रख लिया। यात्रा के लिये कुछ आवश्यक चीजे जैसे  गाडी के सभी पेपर, ड्राईविंग लाइसेंस, सभी सदस्यो के आधार कार्ड, जरूरी मोबाइल नंबर, दवाईयां हल्का नाश्ता पानी की बोटल व यात्रा मार्ग का रूट प्लान।

 सुबह जल्दी घर से निकल गये, सबसे पहले महाकाल उज्जैन के दर्शन किये,भीड ज्यादा थी  इसलिये बाहर के दर्शन फटाफट हो गये
हमारा अगला पडाव विश्व मंगल हनुमान जी तारखेडी था।करीब 128 किमी तय करने मे साढे तीन धंटे लग गये।


चलो चले मां अंबे के धाम अम्बा जी
विश्व मंगल हनुमान जी,तारखेडी

 यह मंदिर झाबुआ जिले की पेटलावद तहसील के अन्तर्गत ग्राम तारखेडी मे स्थित है।दर्शन कर पुजारी जी से मंदिर के बारे मे जानकारी ली। उन्होने बताया कि यहां के महंत जी को स्वप्न मे हनुमान जी ने दर्शन दिये और एक मुर्ति के बारे मे बताया ,स्वप्नानुसार बताई जगह पर जब खुदाई करी तो हनुमान जी की प्रतिमा निकली, यह वही प्रतिमा है और इसे यहां पर स्थापित कर प्रति दिन हवन, पुजन और रामायण पाठ करने लगे प्रति मंगलवार को सुंदरकांड का पाठ होता है और तब से यह क्रम अनवरत जारी है। मंदिर की ख्याति दूर दूर तक है। प्रसाद ग्रहण कर पास ही मे जलपान गृह है वहां भोजन किया ।कुछ देर विश्राम कर सफर पुनः शुरू किया। अभी हमे 90 किमी का सफर करना था, रास्ते तो ठीक ठाक ही है मगर कही कही बेहद खराब भी, शाम पांच बजे मां त्रिपुरा सुंदरी मंदिर जो कि बांसवाडा से 15किमी और ग्राम तलवाडा से 5किमी दूर है

                 
चलो चले मां अंबे के धाम अम्बा जी
मां त्रिपुरा सुंदरी मंदिर, बांसवाड़ा 

आज सफर ज्यादा हो गया था कुछ थकान महसूस हो रही थी। वैसे भी शाम होने से आज रात यही विश्राम के लिये मंदिर से लगी धर्मशाला मे रूके । गाडी पार्क करके अपना रूम सुरक्षित करवा लिया। कुछ देर विश्राम करके मंदिर दर्शन को गये वाकई मे मां की बहुत ही दिव्य मुर्ति है ,बाहर प्रवेश द्वार के पास बगीचा बना हुआ है।

चलो चले मां अंबे के धाम अम्बा जी
त्रिपुरा सुंदरी माता मंदिर, बांसवाड़ा 

मंदिर के धंटे की ध्वनि और दर्शनार्थियों की चहल पहल माहौल को मंत्रमुग्ध कर रही थी।बाहर चबूतरे पर बैठकर हम इसका आनंद लेने लगे और आपस मे चर्चा कर रहे थे कि मंदिर कितना पुराना है पास बैठे सज्जन जो कि यहां के स्थानीय लग रहे थे। कहने लगे यह बहुत पुराना मंदिर है। हमारी उत्सुकता बढती देख उन्होने मंदिर के संबंध मे बहुत गहन जानकारी दी ।

   कहा जाता है कि प्राचीन काल मे यहां तीन पुरीयां शिवपुरी, शक्तिपुरी और विष्णुपुरी थी इनके मध्य मे मां ललिता स्वरूपीं  स्थित होने से त्रिपुरा सुंदरी कहलाई।मंदिर का स्वरूप तीन सदी पूर्व का है मां का तेज ही है कि गुजरात, मालवा और मेवाड के राजा माता जी के आगे नत मस्तक होते थे। अराधना करते थे। राजा सिद्धराज जयसिहं की तो इष्ट देवी थी। समय चक्र के चलते कई उतार चढाव आये।तीन सदी पुर्व पांचाल समाज के चांदा भाई ने प्रमुख रूप से मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया और तब से ही मंदिर की देखभाल का जिम्मा पांचाल समाज के पास है।


चलो चले मां अंबे के धाम अम्बा जी
मां त्रिपुरा सुंदरी

मां की श्यामवर्णी मुर्ति के अठारह भुजाएं दिव्य अस्त्र शस्त्र से सुशोभित है, चारो ओर दुर्गा के नौ रूप है चरण स्थल मे दिव्य श्री यंत्र स्थापित है मंदिर के पृष्ठ भाग मे त्रिवेद दक्षिण में काली और उत्तर में अष्टभुजा सरस्वती मंदिर है। मां दिन मे तीन रूप धारण करती है प्रात: कुमारी का दोपहर मे यौवना और सांयकालीन प्रौढा का रूप धारण करती है तीनो रूपो की सवारी भी अलग अलग है सिंह, मयुर और कमलासन।मां शक्ति की देवी होने से यहां पर तांत्रिको , मांत्रिकों और देवी आराधकों का तांता लगा रहता है। सुबह जल्द ही तैयार होकर यहां से 5 किमी दूर ग्राम तलवाडा मे भी कुछ प्राचीन मंदिरो के अवशेष मिलते है। जिनमे गणेश जी और द्वारकाधीश का मंदिर के दर्शन किये।  यहां से अब हमे 235 किमी खेड़ ब्रह्मा मंदिर जाना है, रास्ता पहाड़ी और व्यस्त है करीब पांच धंटे का सफर होगा। 4 बजे हम लोग खेड़ ब्रह्मा मे छोटी माता मंदिर पहुंचे, रास्ता  पहाड़ी जरूर था मगर हरियाली होने से बडा सुंदर लग रहा था।                                                                             

चलो चले मां अंबे के धाम अम्बा जी
छोटी माता मंदिर, खेड़ा गुजरात 

                       

पौराणिक कथानुसार जब ब्रह्मा जी हवन कर रहे थे तो महिषासुर नामक राक्षस ने हवन मे विध्न उत्पन्न करना शुरू कर दिया, हवन कुंड को नुकसान पहुंचाने लगा और भयंकर उत्पात मचाने लगा तब ब्रह्मा जी ने मां का स्मरण किया और इससे विपदा से निजात दिलाने की प्रार्थना की, मां अंबे ने महिषासुर का वध किया और सारे उपद्रव शांत किये। तब ब्रह्मा जी ने मां से प्रार्थना की कि आप यही पर विराजित हो जाइये, इस तरह इस मंदिर को छोटी माता के नाम से जाना जाता है ।यहां के दर्शन करने पर ही मां की कृपा और यात्रा पूर्ण मानी जाती है । यहां की एक विशेषता और है ब्रह्मा जी के केवल दो ही मंदिर है एक पुष्कर व दुसरा यही खेड़ ब्रह्मा मे।                                                    


चलो चले मां अंबे के धाम अम्बा जी
छोटी माता खेड़ ब्रह्मा 


हमारी यात्रा का अंतिम पडाव मां अंबे जी का धाम अंबा जी मात्र 50किमी शेष रह गया था।अंबा जी गुजरात राजस्थान की सीमा पर स्थित है
हम लोग रात 8 बजे अंबा जी पहुंचे ।मंदिर के समीप बहुत गहमागहमी लगी थी, दूर दूर से दर्शनार्थी आ रहे थे। मंदिर रंगबिरंगी लाईटों से सजा हुआ था।किस्मत से हमे मंदिर के पास ही एक होटल मिल गई ।लंबे सफर
से सब थक गये थे। थोडा विश्राम का सोचा था मगर फिर सुबह ही दर्शन करेगे ।
सुबह 5 बजे उठे और जल्द ही सब तैयार हो गये ।मंदिर मे जाकर देखा लाईन बहुत बडी है हम भी लाईन मे लग गये, धीरे धीरे लाईन बढ रही थी, हमारे साथ खडे मोटा भाई जो कि गुजराती थे ,से बातचित होने लगी ।बातो ही बातो मे हमने उनसे मंदिर के बारे मे जानकारी ली।
उन्होने बताया कि ये स्थान 51शक्तिपीठो मे से  और उसमे भी 12प्रमुख शक्तिपीठ मे से एक है यहां माता का ह्रदय गिरा था। मंदिर मे माता की मुर्ति नहीं है उसके स्थान पर श्री यंत्र को इस तरह से रखा है कि उसमे मां के दर्शन होते है ।शिखर 103 फीट का 358 स्वर्ण कलशों से सुसज्जित है ।मंदिर परिसर बहुत बडा है ।यहां का रख रखाव के लिये एक कमेटी कार्य करती है इस मंदिर का निर्माण वल्लभी शासक सूर्यवंश सम्राट अरूणसेन ने चौथी शताब्दी मे करवाया था



चलो चले मां अंबे के धाम अम्बा जी
मां अंबा जी का प्रवेशद्वार 

12 शक्तिपीठ  :- मां कामाक्षी  कांचीपुरम, मां भगवती काली।  उज्जैन, श्रीकुमारिका।  कन्याकुमारी, महालक्ष्मी  मंदिर  कोल्हापुर व देवी ललिता     प्रयाग,विध्यवासीनी।     विंध्याचल व विशालाक्षी   वाराणसी, मंगलावती  गया, मां सुंदरी  बंगाल तथा गुह्येश्वरी देवी।    नेपाल
  यहां से 2 पश्चिम मे पर्वत पर मां का एक छोटा मंदिर है करीब 999 सीढियां चढकर माता श्री अरासुरी के मंदिर मे पहुंचा जा सकता है, अभी तो रोपवे भी पर्वत पर जाने का एक सुगम साधन है गब्बर पर मंदिर मे बीज मंत्र के सामने अखण्ड ज्योत जलती है 



चलो चले मां अंबे के धाम अम्बा जी
माता की अखंड ज्योत,गब्बर,अंबा जी

यहां पर सनसेंट पाईंट, गुफाएं व माता के झुले देखने लायक है


चलो चले मां अंबे के धाम अम्बा जी
गब्बर,अंबा जी


आज हमारी यात्रा मां के दर्शनों के साथ पुरी हुई । साथियों कल हम घर जाने के लिये दुसरा मार्ग लेगे। इस मार्ग पर एक ऐसी रानी का स्थान जिसने  अपने पति के नाम से बावड़ी बनवाई वो भी सात मंजिली और हर मंजिल पर हजारो मुर्तियां है। क्या आप भी चलेगें हमारे साथ गुजरात के प्रमुख दर्शनीय स्थलों की सैर तो चलिए।



कल फिर नया सफर नई कहानियों के साथ                  

                     
                                                                                जय श्री कृष्णा







नर्मदा नदी के मध्य एक टापू बिल्लवामृतेश्वर, धरमपुरी,मप्र

10 मार्च 2020                                                                                                                                             

नर्मदा नदी के मध्य एक टापू  बिल्लवामृतेश्वर महादेव  , धरमपुरी                                                                                            


नर्मदा नदी के मध्य एक टापू बिल्लवामृतेश्वर, धरमपुरी,मप्र
बेंट संस्थान ,धरमपुरी,मप्र
  

आप सभी को नमस्कार, साथियों आज हम बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान पर जाने के लिये घर से रवाना हुए है यह स्थान अति प्राचीन होने के साथ ही कई महत्वपूर्ण व ऐतिहासिक घटनाओं को संजोए है। हम  घर से जल्द ही रवाना हो गये थे स्थान तो ज्यादा दूर नही था मात्र 45 मिनट का रस्ता था और  नर्मदा नदी मे स्नान का लाभ भी लेना चाहते थे ,घर से निकले किन्तु पुल पर जाम लगा था सो रूकना पडा ,एक ट्राला बीच पुल पर खराब हो गया था न जाने कब रास्ता खुलेगा । कुछ देर इंतजार के बाद दुसरे रास्ते से रवाना।
  8.45 बजे हम लोग धरमपुरी पहुंच गये थे।यह स्थान धार जिले के अन्तर्गत आता है। बाम्बे आगरा रोड पर खलघाट से करीब 11 किमी अन्दर की ओर मनावर रोड पर स्थित है।

जिस स्थान पर हम जा रहे है वह नर्मदा नदी की धारा के मध्य टापू रूप मे उभरा हुआ है,करीब 3किमी लंबा और 650मीटर चौड़ा भू भाग है इस स्थान पर आने के लिये जब पानी कम हो तो पुल व ज्यादा हो तो नाव से आना होता है ।धरमपुरी ग्राम किनारे पर स्नान की कोई विशेष व्यवस्था नहीं है किन्तु थोडा आगे जाने पर नहाने के लिये ठीक जगह थी, कभी कभी नदी स्नान करने का मजा बडा रोमांचकारी होता है।

  किनारे पर ही ग्यारह लिंगी महादेव का मंदिर है कहते है यह स्वयंम प्रकट हुई थी।पुजा अरचना करने के बाद नाव से ही बेंट संस्थान जाना पडा, पानी ज्यादा था ।यह टापू नर्मदा नदी की दो धाराओं के मध्य मे है।बारिश मे यह स्थान बडा मनोहारी लगता है मगर तेज धाराओ के मध्य से जाना भी जोखिम भरा है।नाव मे हमारे एक साथ यही के रहवासी मित्र ने धरमपुरी ग्राम के बारे मे बडी ही रोचक जानकारियां दी । कहानी कथाएं तो बहुत सी है किन्तु प्रमुख व ऐतिहासिक जानकारी, यहां आप से शेयर कर रहे है।

नर्मदा नदी के मध्य एक टापू बिल्लवामृतेश्वर, धरमपुरी,मप्र


 इस स्थान से दो बडी ऐतिहासिक व पौराणिक कथा जुडी है एक है रानी रूपमती की व दुसरी महर्षि दधीचि की । 

 यहां के राजा थान सिंह की सुपुत्री रूपमति बहुत ही खुबसुरत थी उसके रूप की चर्चा जब मांडव के सुलतान बाजबहादुर के कानो तक पहुंची तो उसने विवाह प्रस्ताव भेजा किन्तु रूपवती ने विवाह से पहले शर्त रखी कि वह रोज नर्मदा नदी के दर्शन से पुर्व कुछ भी ग्रहण नहीं करती है अतः ऐसी व्यवस्था हो की रोज दर्शन हो सके ।बाजबहादूर ने रानी के लिये मांडू मे महल बनवाया जहां से रोज दर्शन करती थी ।बेंट मे एक दीप स्तम्भ भी बनवाया जहां पर पुजा अर्चना के बाद दीपक लगा दिया जाता था शाम को रानी दीप दर्शन करती थी 


नर्मदा नदी के मध्य एक टापू बिल्लवामृतेश्वर, धरमपुरी,मप्र
 बिल्लवामृतेश्वर महादेव , धरमपुरी,मप्र

दुसरी कहानी है महर्षि दधीचि की, पौराणिक कथानुसार जब देव और दानवों मे संघर्ष हुआ तो दानवों का पलडा भारी पड़ने लगा, तब देवो को ऐसे हथियार की आवश्यकता पड़ी जिससे असुरों का संहार किया जा सके ,उस समय महर्षि दधीचि ने अपनी अस्थियां से बने शस्त्रों से देवो की विजय मिली । कहते है आज भी वहां पर महर्षि दधीचि की तपस्थली के प्रमाण मिलते है हम इतनी बारिकी मे नहीं  गये । 

नर्मदा नदी के मध्य एक टापू बिल्लवामृतेश्वर, धरमपुरी,मप्र
 बिल्लवामृतेश्वर महादेव  नागदेव , धरमपुरी,मप्र


 नाव से उतर कर कुछ सीढियां चढनी पड़ी तब प्रवेश द्वार दिखाई दिया ,द्वार के अंदर की ओर  चारो ओर धने पेड़ है हर तरफ हरियाली ही हरियाली और शांति, बीच मे से रास्ता बिल्लवामृतेश्वर महादेव के मंदिर को जाता है हर शिवरात्री को भीड लगी रहती है

बेंट वाले स्थान को रेवा गर्भ यानि नर्मदा का गर्भ भी कहते है ।

नर्मदा नदी के मध्य एक टापू बिल्लवामृतेश्वर, धरमपुरी,मप्र
 बिल्लवामृतेश्वर महादेव मंदिर , धरमपुरी,मप्र


यहां पार्टी के लिये बहुत ही अच्छा स्थान है साथियों अब शाम होने वाली है सूरज देव भी अस्ताचल की ओर है हमे भी चलना चाहिये वैसे भी शाम के वक्त थोडा ध्यान से ही चलना यहां बहुत अधिक सांप है मगर आश्चर्य अभी तक एक भी सर्प दंश की घटना नही हुई

साथियों हमारी अगली यात्रा गुजरात से है चलो चले मां अंबे के धाम चलो चले मां अंबे के धाम जो कि एक शक्तिपीठ भी है। और मां का भव्य मंदिर भी है।
                                                                   

                                                                             जय श्री कृष्ण 

महेश्वर यात्रा

9 मार्च 2020,  

                   महेश्वर यात्रा 

                   
महेश्वर यात्रा
महेश्वर घाट 
   

दोपहर करीब 1.00बजे महेश्वर  पहुंचे,  ओंकारेश्वर से यहां की दूरी 66 किमी और एनएच 3 से 22         किमी है ,यह खरगोन जिले मे नर्मदा नदी के उतर तट  बसा है इसे होलकर राजवंश ने राजधानी के     रूप मे  विकसित किया, महारानी अहिल्या देवी यही दरबार लगाती थी। आज भी उनके जमाने का   किला, राजगद्दी, पालकी, और कई अन्य सामग्री संजो के रखी गई है।  बगीचे में अहिल्याबाई होलकर की मुर्तिकार इतनी सजीव लगती है ।मानो अभी बोलने  लगेगी ।                                                                 

महेश्वर यात्रा
अहिल्याबाई होलकर

किले से ही नर्मदा नदी पर जाने के लिये भव्य घाट बना है। घाट से नर्मदा का पवित्र दर्शन कर कृतार्थ हो गये। भव्य मगर शांत जल धारा अपने ही वेग में बह रही है।                                                                                                


महेश्वर यात्रा
नर्मदा नदी का विहंगम मनमोहक दृश्य 

हम सीधे घाट पर ही गये, गाडी ले जाने का मार्ग है। अब नदी पर जाये तो स्नान का अपना ही अलग मजा है। पास ही मछलियों को खिलाने के लिये आटे की गोलीयां मिल रही थी हमने भी एक पैकेट खरीद लिया। ज्योंहि दाना पानी में डाला एक बडा सा झुंड इकठ्ठा होने लगा। अब हम जिधर दाना डालते  झुंड उधर ही दौड़ लगाता। मछलियों का उछल कुद देखकर बडा आनंद आ रहा था।




महेश्वर यात्रा
महेश्वर घाट 

घाट पर घंटो बैठे रहो मन नहि भरता, यहां से नाव द्वारा सहस्त्र धारा और नदी के बीच स्थित शिव मंदिर के लिये जाते है । महेश्वर के किले मे आज भी राजवंश के समय का सामान संजो के रखा है । चलिये किले मे चलते है


विठ्ठो जी की छत्री

महेश्वर यात्रा
विठ्ठो जी की छत्री

किले मे मंदिर और गलियारे है जो देखने योग्य है कुछ झरोखे बहुत खुबसुरत जहां बैठकर एक अलग ही अनुभुति होती है ।आप शब्दो से ज्यादा आनंद, तस्वीरो से लगा सकते है रजवाड़ों की शानोशौकत, हमने उन जगहों पर फोटो ली और अनुभव किया उस समय के कालखंड को।


महेश्वर यात्रा
महेश्वर किला

किले में खुबसूरत नक्काशी और पत्थर से बनी जालियों का उपयोग बहुत हुआ है। जगह जगह आकर्षक झरोखें बरबस मन मोह लेते है



महेश्वर यात्रा
महेश्वर किले के झरोखे 

यूं तो बहुत सारे फोटो है मगर कुछ यहां शेयर किये है किला बहुत ही खुबसुरत बना है।


महेश्वर यात्रा
किले से घाट पर जाने का गेट
 

ख़ासकर  शाम को नर्मदा नदी के तट पर जब सूरज देव प्रस्थान कर जाते है तब सब ओर शांति और नदी का संगीत मंत्रमुग्ध कर देता है दूर दिये टिमटिमा रहे है कही कोई भजन गा रहा है चलिये किले के अंदर की खास बाते शेयर कर ले, यहां पर जगत प्रसिद्ध महेश्वर की कलात्मक साडी जोकि हैंडलूम पर बनाई जाती है बेहद सुन्दर लगती है आप उन्हे अपने सामने बनते हुऐ भी देख सकते है और यदि पसंद आये तो सेल काउंटर पर खरीद भी सकते है ।किले के प्रवेश द्वार पर एक बहुत लंबी और वजनी तोप रखी हुई है ।


महेश्वर यात्रा
भारीभरकम तोप


सामने ही अहिल्याबाई  का दरबार हाल है  जहां पर वे राज संबधी कार्य और चर्चा करती थी वही पर एक छोटा सा तत्कालीन वस्तुओ और तस्वीरो का संकलन है जो कि इतिहास बताता है हां पास ही मे राज परिवार के अराध्य का मंदिर है जहां आज भी ठोस स्वर्ण और चांदी की प्रतिमाऐं है । किले से बाहर आकर चाय नाश्ता करके कुछ प्रमुख मंदिर है जहां जा रहे है वैसे भी समय अधिक हो रहा है । हां समय रहे तो ये मंदिर अवश्य देखे


  1. श्री राज राजेश्वरी मंदिर
  2. श्रीअहिल्या बाई मंदिर
  3. पंढरीनाथ मंदिर
  4. गणेश मंदिर
  5. रणजीत हनुमान
  6. जलेश्वर मंदिर और जगन्नाथ धाम

समय भी काफ़ी हो गया था और डिनर के लिये रेस्टोरेंट तलाश रहे थे फिर सोचा कि क्यो न पास ही धामनोद है और वहां सभी सुविधाएं उपलब्ध है मात्र 35 मिनट मे हम लोग धामनोद पहुंच गये वहां भोजन कर के देर रात  घर पहुंचे......   

हमारा अगला पडाव बहुत ही खुबसुरत जगह है नर्मदा नदी के मध्य एक टापू पर होगा। बहुत सारे साधू संतो की तपोभूमि रही है।

                                                                           
                                                                                        जय श्री कृष्ण 

ओंकारेश्वर यात्रा -2


ओंकारेश्वर यात्रा  भाग -2 

मंदिर के पास ही छोटा सा बाजार है। जहां पर पुजन सामग्री देवी देवताओं की मुर्ति , शंख , धंटी तथा मालाओं की दुकानें सजी हुई थी। कही कहीं पर चाय नाश्ते की दुकानें भी थी। हम एक बार पुरे बाजार में घुम आये।  एक दुकान पर कुछ शंख देखे। कई तरह के शंख देखने व बजाने के बाद एक खरीद लिया।
बाजार के पास से ही नाव धाट पर जाने का रास्ता है सो हम नाव धाट पर चल दिये।  रास्ते में एक दृश्य देखकर लगा कि मां नर्मदा के सम्मान में दोनों तरफ पहाड अभिवादन के लिये खडे हो। ओंकारेश्वर में ज्योतिर्लिगं और शिवालय दोनो नर्मदा नदी के अलग अलग तट पर है। 

औंकारेश्वर यात्रा -2
नया पुल 

ज्योतिर्लिंग जाने के लिये पैदल यात्रियों दो पुलों से जा सकते है। एक नव निर्मित है व दुसरा पुराना पुल 

औंकारेश्वर यात्रा -2
पुराना पुल 

यह पुल बहुत पुराना बना हुआ है। पहले इस पर से ही मंदिर आना जाना होता था। किन्तु अब नया पुल बन जाने से अधिकतर इसे ही काम में लेते है। 


औंकारेश्वर यात्रा -2
ममलेश्वर शिवालय 

अब तक भोजन का समय भी हो गया था और कुछ देर विश्राम करने के लिये  जगह देख रहे थे ।बाजार मे बहुत सारे भोजनालय है  यहां का प्रसिद्ध भोजन है                                                                                
दल बाटी 
 

   भोजन के बाद विश्राम के लिये गेस्ट हाऊस गये ।  शाम पांच बजे पैदल ही घूमने निकले बाजार मे अधिकतर पुजन सामग्री की दुकानें  मिली ।
घूम फिर कर घाट पर आ गये, यहां पर बैठना बडा सकून भरा लग रहा था मंदिर के धंटो की ध्वनि और नदी की कलकल मे जैसा सारे शोर विलुप्त हो गये थे । 
शाम को मां नर्मदा की आरती देखने का शौभाग्य मिला।  

पैदल ऊंकार पर्वत की परिक्रमा    

सुबह जल्दी परिक्रमा के लिये चल दिये। साथ में थोडा खाने का सामान और एक जोडी कपडे ले लिये थे। नर्मदा कावेरी संगम पर पहुंच कर नर्मदा में नर्मदे हर की जय धोष के साथ डुबकी लगाई। नहाने के बाद एकदम तरोताजा हो गये। परिक्रमा पथ पर वन्य  पशु पक्षी मिलते हैं।जिन्हे दाना डालने पर बडी संख्या में चूगते देख बडा अच्छा लगता है। बंदरो को चने बहुत प्रिय होते है। चने देख बडी संख्या में आ जाते है। परिक्रमा पथ 7 किमी लंबा है।इस पथ पर बहुत 


                 औंकार पर्वत 

 सारे मंदिर ,स्तंभ व मुर्तियों के दर्शन होते है। अधिकांश मार्ग जंगल से गुजरता है। चारों ओर हरियाली

 और भक्तो की  जय धोष के साथ  बंमबंम महादेव ,हर हर महादेव की लयबद्ध संगीत लहरी  में हम परिक्रमा कब पुरी हो गई पता ही नहीं चला। 

ओंकारेश्वर कहां और कैसे जाये 

यह सडक मार्ग से चारों तरफ से जुडा है।    

  1. ओंकारेश्वर रोड ( मोट्टका)     12 किमी
  2.  सनावद                              13 किमी
  3. खंडवा                                70 किमी
  4. इन्दौर                                 78 किमी
  5. धामनोद                              79 किमी
  6. उज्जैन                              138 किमी                                                                                           नजदीकी एयरपोर्ट इन्दौर है।                        रेलमार्ग से खंडवा और अजमेर- खंडवा लाईन पर (मोट्टका  ) ओंकारेश्वर रोड स्टेशन मात्र 12 किमी की दूरी पर है।                 

                

                                                                  हम अहिल्याबाई की नगरी महेश्वर यात्रा  मे मिलेंगे                              

                                                                                   धन्यवाद 

                               

                                                                                      शुभ रात्री       










ओंकारेश्वर यात्रा


हमारी ओंकारेश्वर यात्रा      

बडे दिनो बाद एक संयोग बना,मन ओंकारेश्वर जाने का कर रहा था।मगर कुछ न कुछ अडचनो के चलते जा नहीं पा रहे थे।अचानक गुजरात से मौसी जी का परिवार के साथ आगमन हुआ, बहुत समय बाद आई थी ,परिवार मे मेल मिलाप के बाद शाम को चर्चा हुई कि औकारेश्वर यहां से कितनी दूर है व कैसे जाये ।मैने उन्हें सारी जानकारी दे दी,मगर उनका आग्रह था कि आप दोनो भी साथ चले तो ज्यादा अच्छा रहेगा कहीं कोई तकलीफ़ नहीं  होगी ,हम भी तैयार हो गये।कार्यक्रम बना और तय हुआ कि सुबह जल्दी चला जाय।

8 मार्च ,सब जल्दी उठे।

 हम भी कार की सफाई मे लग गये ।                                               


ओंकारेश्वर यात्रा
यात्रा रथ

  6 बजे औकारेश्वर के लिये रवाना हुऐ, सब बडे खुश थे और बहुत दिनो बाद मुलाकात हुई थी  तो बातचित का सिलसिला जो चला तो कब खलधाट टोल पहुंच गये पता ही नहीं चला। टोल गेट पर बहुत लंबी लाईन लगी थी हमारी गाडी मे फास्ट टैग नहीं होने से केश वाली लाईन मे ही लगना पडा करीब पौन घण्टे के बाद हमारा नंबर  आया।  8.15 बजे धामनोद पहुंचे यहां पर चाय नाश्ते के लिये रूके, सुबह सुबह कचौरी, समोसा और पोहे का गर्म गर्म नाश्ता लुभा रहा था । हम सबने भी नाश्ता किया ।                                                                                                                                              करीब 11.15 बजे औकारेश्वर पहुंच गये।                                                                                          

     
कार पार्क करके सीधे नाव धाट पहुंचे


ओंकारेश्वर यात्रा
नाव से ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की ओर

धाट पर नाव वालो से मोल भाव किया  एक नाव वाले से 75/प्रति सवारी सैर और दर्शन कराकर वापस यही पर छोड़ना का तय हुआ।                                
 हम नर्मदा नदी किनारे नौका से चक्रतीर्थ गये।वहां स्नान करके फिर ओंकारेश्वर दर्शन के लिये आये।
दुसरे किनारे सीढियां चढकर मंदिर के प्रवेश द्वार पर पहुंचे । फूल की दुकानें सजी थी एक दुकान से फूल लिये और वही पर अपने चरण पादुका उतार दिये।

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग

मंदिर में प्रवेश करने पर सबसे पहले पंचमुखी गणेश जी के दर्शन होते है। उसके बाद प्रथम तल पर ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग है। यह शिखर से विलग एक ओर विराजित है। पास ही मां पार्वती विराजित है। दुसरे तल पर महाकालेश्वर तीसरे तल पर सिद्धनाथ चौथे तल पर गुप्तेश्वर और पांचवे तल पर ध्वजेश्वर लिंग स्थापित है। प्रथम दो तलों तक छत है।बाकी खुले में मंदिर बना है। पहले दो तलों पर नंदी विराजित है। जिसमें प्रथम तल पर नंदी की मुर्ति के हनु के नीचे एक स्तंभ दिखाई देता है। जो सबसे विलग है। ओंकारेश्वर के साथ मां नर्मदा का भी महत्व है
ओंकारेश्वर तीर्थ में 24 अवतार ,माता धाट, मार्कण्डेय शिला,धावडी कुंड,सीता वाटिका,विज्ञान शाला,बडे हनुमान,सन्यास आश्रम,अन्नपूर्णा आश्रम, खेड़ापति हनुमान,गायत्री मंदिर,ओंकार मठ,माता आनंदमयी आश्रम, ऋणमुक्तेश्वर महादेव,सिद्धनाथ गौरी, आड़े हनुमान,गायत्री माता मंदिर,चांद-सूरज दरवाजे,विष्णु मंदिर,बंध्धेश्वर महादेव,गजानन महाराज,नरसिंह टेकडी,कुबेरेश्वर व चंद्रमोलेश्वर महादेव मंदिर है।  मान्धाता टापू करीब 4 मील लंबा व 2 मील चौड़ा है। 


औंकारेश्वर परिक्रमा का बहुत महत्व है। किन्तु इसके लिये एक दिन यहां रूक कर अगले दिन प्रातः काल में मान्धाता पर्वत जिसे ओंकार पर्वत भी कहते है ,के चारों ओर यह दो प्रकार से होती है। एक नाव से तथा दुसरी पैदल । किन्तु पैदल परिक्रमा में बहुत सारे मंदिर संगम स्थल आते है। परिक्रमा करने पर मन को असीम शांति के साथ प्राकृति नजारे भी देखने को मिलते है। रास्ते में राजा मान्धाता का महल भी दिखाई देता है।

मां नर्मदा नदी

अति पूजनीय पुर्व से पश्चिम की ओर बहने वाली यह नदी के बारे में कहा जाता है कि एक बार दर्शन से ही वह सारा पुण्य प्राप्त हो जाता है । जो कि गंगा ने कई बार स्नान से मिलता है।
यहां से पुनः सीढियां चढकर दर्शन वाली लाईन मे लगे । किस्मत से लाईन ज्यादा लंबी नहीं थी जल्द ही दर्शन हो गये । बाहर आकर  उपर मंदिरो के दर्शन के लिय पुनः कुछ सीढियां चढनी पड़ी ।


ओंकारेश्वर यात्रा
मां नर्मदा नदी

 यहां से नदी और औकारेश्वर का मनोहारी दृश्य देखने को मिलता है ।
 नौका सेर के समय हमने नाविक से यहां के बारे में  पुछा तो उसने अपनी ही शैली में एक कथा सुनाई।

ओंकारेश्वर यात्रा
नाव से नर्मदा परिक्रमा

कथा    

यहां के राजा मान्धाता बहुत बडे शिव भक्त थे। एक बार उन्होने इस पर्वत पर जहां ओंकारेश्वर विराजित है बहुत कठोर तपस्या करी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी ने वर मांगने को कहा। तब राजा मान्धाता ने शिव जी से यहीं पर विराजित होने का वर मांग लिया। भगवान शिव जी ने तथास्तु कह स्वयंम प्रकट लिंग रूप में विराजित हुऐ। 


ओंकारेश्वर यात्रा
महादेव जी की पालकी

एक अन्य कथा के अनुसार कुबेर जी ने शिवलिंग स्थापित उनकी पुजा अर्चना करके प्रभु को प्रसन्न किया था।वरदान में उन्हे देवों का धनपति बनाया।  कुबेर के स्नान के लिये शिवजी ने अपनी जटा के बाल से कावेरी नदी उत्पन्न की जो नर्मदा-कावेरी संगम पर मिलता है । 

आस्था 

ओंकारेश्वर यात्रा
महादेव का भव्य त्रिशूल 

देवी अहिल्याबाई होलकर की ओर से प्रतिदिन 18 सहस्त्र शिवलिंग तैयार करके नित्य पुजन किया जाता था। और उन्हे नर्मदा नदी में प्रवाहित किया जाता था।
हर हिन्द आस्था रखने वाला एक बार अवश्य ही आना चाहता है। वैसे भी ज्योतिर्लिंगों में चौथे स्थान पर स्मरणीय इस मंदिर पर हर तीर्थयात्रा की पूर्णता मानी जाती है।
मित्रों अगले अंक में नौका से  ओंकारेश्वर यात्रा परिक्रमा और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी साझा करेगें।

              

                           शुभरात्री

                         जय श्री कृष्ण


क्रमशः..........

Popular post