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एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा

                         जय श्री कृष्ण     

एक रोमांचक बजट यात्रा


एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा
पहाड़ों की सुबह


हमारे यहां गीता जयंती महोत्सव मनाया जाता है। इस महोत्सव में प्रति वर्ष एक संत के गीता जी पर प्रवचन होते है। इस कड़ी में नेपाल के संत श्री चैतन्य कृष्ण जी को आमंत्रित किया गया था। वे उज्जैन तक ट्रेन से पधारे थे। वहां से उन्हें लाने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ। रास्ते मे ज्ञान चर्चा के साथ नेपाल के बारे में भी बहुत कुछ जाना। 
महोत्सव के समापन पर संत जी हमें नेपाल आने के लिये आमंत्रित कर गये थे। 
सभी मित्रों के समक्ष नेपाल यात्रा का प्रस्ताव रखा गया। हम छः सदस्य तैयार हुऐ। सभी ने यात्रा के सभी पहलू पर विचार विमर्श किया। इसमें प्रमुख था। यात्रा मार्ग , वाहन , मार्ग में होने वाला व्यय , भोजन की व्यवस्था और किन किन जगहों पर रूकना है इत्यादि। अब सबसे मुख्य वह गाडी जिससे हमे यात्रा करनी थी। उसकी सर्विसिंग जरूरी थी । यह काम ड्राईवर भाई अंबाराम जी के जिम्मे किया गया। 

अगले दिन सुबह सामान गाडी में व्यवस्थित रखवाया। जिससे रास्ते में किसी तरह की परेशानी न हो। 11 बजे से सभी साथियों का इंतजार करते करते दोपहर करीब 2.30 बजे कहीं जाकर सफर शुरू हुआ। सभी में यात्रा का उत्साह चेहरे पर साफ झलक रहा था। 

हम लोग रात 8.00 बजे भोपाल पहुंचे। जनवरी महिने की रात्री में ठंड भी अच्छी खासी होती है। अतः रात भोपाल में माता जी के आश्रम में रूके। एक बडे से हाल में हम सब के रूकने की व्यवस्था कर दी गई थी। 
      

एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा
माता जी का आश्रम, भोपाल 


बाहर कड़ाके की  ठंड पड रही थी। कमरे में जाते ही सकून मिला। रात बहुत अच्छी निकली। अगले दिन सुबह जल्दी तैयार होना था। सो ठंडे पानी से ही स्नान करना पडा। कंपकपाते तैयार हो रहे थे। तभी आश्रम के सेवाभावी भक्त चाय ले आये। ठंड में चाय मिल जाये तो समझो नव जीवन मिला हो। 
सुबह 6.00 बजे हमारा सफर पुनः शुरू हुआ । आज का लक्ष्य 500 किमी दूर चित्रकूट था। हाईवे पर आते ही स्पीड पकड़ी किंतु बाहर ठंड ज्यादा थी और कांच बंद करो तो विंड स्क्रीन पर धुंध छाने लगती थी। आखिर एक तरफ के कांच थोडे नीचे करने पड़े। सूर्य देव के भी दर्शन नहीं हो पा रहे थे। रूकते चलते शाम 7.30 बजे चित्रकूट में प्रवेश किया। सबसे पहला काम, ठहरने की जगह का इंतजाम करना और उसके लिये थोडे से प्रयास में ही एक धर्मशाला में जगह मिल गई थी। जरूरी सामान गाडी से उतरवा कर भोजन बनाने का काम शुरू किया। इसके लिये सभी सदस्य सहायता करवाते थे। इस तरह की मेरी पहली यात्रा थी। जो बहुत कुछ नया सिखा रही थी

चित्रकूट 


अगले दिन हम लोग चित्रकूट घूमने निकले। यह वही चित्रकूट है जहां प्रभु श्रीराम जी ने चौदह वर्षो के वनवास में कुछ समय यही विश्राम किया था। 


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नौका विहार, चित्रकूट 

मंदाकिनी नदी के दोनों ओर मंदिर बने है। नाव से सभी जगह दर्शन करने गये।



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विशाल हनुमान जी की प्रतिमा
 
राम घाट पर जहां श्री राम जी स्नान ध्यान करते थे।और इसी नदी के किनारे भरत मिलाप भी हुआ था। चित्रकूट के पास जंगल में सती अनुसूईया का भी मंदिर है।

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सती अनुसूईया मंदिर, चित्रकूट 

पास ही स्फटिक शीला पर मां सीता जी के चरण अंकित है।

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स्फटिक शिला पर मां सीता के चरण चिन्ह 

चित्रकूट के पास हनुमान धारा और अन्य बहुत से दर्शनीय स्थल है।किंतु समयाभाव के चलते खास खास जगह पर ही जा सके। शाम हो गई थी अतः रात यही पर रूके। दुसरे दिन सुबह जल्दी ही सफर पर चल दिये। वैसे तो हमारा लक्ष्य गोरखपुर था। किंतु प्रयाग राज में कुंभ महोत्सव चल रहा था। सो कुंभ स्नान के लिये सर्व सम्मति बन गई । 135 किमी का सफर तय कर सुबह करीब 9.00 बजे प्रयागराज स्थित कुंभ मेले में  पहुंचे। बहुत भीड भाड लगी थी। किसी तरह मेले क्षेत्र में एक परिचीत पंडे के टेंट तक पहुंचे।   

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त्रिवेणी संगम ,प्रयागराज 


अपना सामान टेंट मे रखकर नाव से त्रिवेणी संगम गये। संगम पर बहुत भीड भाड थी किंतु हमारे नाव वाले ने व्यवस्था करके स्नान ध्यान करवा दिया। वापसी तक वही नाव वाला हमारे साथ रहा।


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बड़े हनुमान जी, प्रयागराज 


वापस आकर एक संत के यहां चल रहे भंडारे में भोजन प्रसादी ग्रहण की। कुंभ मेला स्थल के नजदीक हनुमान जी का प्रसिद्ध पुरातन मंदिर है।

 दोपहर 3.00 बजे हम लोग गोरखपुर के लिये चल दिये। बहुत भीड भाड होने से जगह जगह ट्रेफिक जाम की स्थिती बनी हुई  थी। हमारी गाडी बहुत ही कम गति से आगे बढ पा रही थी। बहुत मुश्किल से हाई वे तक पहुंच पाये थे। हाई वे का हाल भी बहुत अच्छा नहीं था। बहुत लंबी लाईन लगी हुई थी। तकरीबन 3 धंटे में जाम से निजात पाई। शाम 7.00 बजे फिर गाडी ने स्पीड पकड़ी। गोरखपुर का सफर 300 किमी का था। इस सारी जद्दोजहद में सभी लोग थक गये थे। अतः पुनः तरोताजा होने के लिये कहीं थोडा विश्राम और एक अदद चाय की तलब सता रही थी। कुछ किमी चलने पर एक होटल पर रूके। थोडा सुस्ताने के बाद चाय का आनंद लेकर वापस अपने सफर पर चल दिये।

रात करीब 11.00 बजे धुंध बढने लगी थी। मगर कुछ दुरी तक का दिखाई दे रहा था। मैने अंबु भाई से पुछा कि रूके या चले। वे बोले जब तक चल सकते है। चलेगें। मगर समय के साथ हालात और खराब हो रहे थे। दृश्यता अब और कम हो गई थीगाडी के सभी साईड इंडिकेटर चालू करके चलना पडा।  ऐसे में सडक के एक किनारे पर मैने नजरे गडा रखी थी। डर था कहीं नीचे न उतर जाये।  रात 2.50 बजे कोहरा बहुत धना होने से मजबूरन एक होटल पर रूकना ही पडा।   कुछ देर रूक कर हालात के बारे में जानकारी ली। स्थानीय व्यक्ति ने सलाह दी धीरे धीरे जा सकते हो गोरखपुर  की दूरी 20 किमी  है। एक बार फिर हिम्मत करके चल दिये। अब बहुत ही सावधानी से व धीरे धीरे गाडी चला रहे थे। 
आखिर सुबह 5.00 बजे गुरू गोरखनाथ मंदिर के पास वाली धर्मशाला पहुंचे। किंतु  धर्मशाला में भीड थी और कोई कमरा न मिलने पर बरामदे मे ही समय गुजारना पडा।
सुबह 8.00 बजे सोनाली बार्डर की तरफ चल दिये।  रास्ते में हमने अपने नेपाली मित्र देबाशीश भाई को फोन कर दिया था।  उन्होने हमें सोनाली बार्डर पर मिलने का कहा।

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नेपाल प्रवेशद्वार, सोनाली बार्डर 

सोनाली बार्डर के एक ओर भारत व दुसरी ओर नेपाल का प्रवेश द्वार है। जिस देश में जाना हो वहां की कुछ कानूनी प्रक्रियाऐं पुर्ण करनी पड़ती है। हम लोगों ने नेपाल की सीमा पर पहुंच कर नेपाल का रोड टेक्स ,वहां की नंबर प्लेट व कुछ जरूरी खानापूर्ति करी। इस सब में हमें तीन धंटे का समय लगा साथ ही वहां की करेंसी एक्सचेंज करवाई ।और एक अति महत्वपूर्ण काम, एक मोबाईल चिप भी खरीद ली थी। बस एक और जरूरी औपचारिकता, रोड परमिट बनवाने के साथ ही पुरी हो गई।  हमारे मित्र देबाशीश भाई जी का विशेष आग्रह होने से उनके निवास स्थान तिलोत्तमा शहर में रूके। घर पर बहुत अच्छा सत्कार किया तथा उन्होने आगे के मार्ग के लिये हमें गाईड कर दिया।

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परममित्र देबाशीश भाई, तिलोत्तमा

तिलोत्तमा से करीब 2.00 बजे  चले। हमारा अगला शहर बुटवल था । भारत से नेपाल का प्रवेश द्वार बुटवल शहर है। यह  तिनाउ नदी के किनारे बसा बहुत खुबसुरत शहर है। यहां से नेपाल के कई प्रमुख शहरों तक पहुंचा जा सकता है।

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बुटवल शहर, नेपाल 

एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा
सिध्दबाबा मंदिर,बुटवल नेपाल 

इस शहर के पास ही पहाड़ी पर बना सिद्ध बाबा का मंदिर प्रमुख आस्था का केंद्र है। अतः हमारी भी आस्था और प्रबल होने से मंदिर दर्शन को चल दिये। जैसा सुना था। वाकई पहाड़ी पर बना बहुत सुंदर मंदिर था। आईये आपको भी दर्शन करवा देते है। 


एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा


एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा
सिध्दबाबा मंदिर, बुटवल नेपाल 

मंदिर पहाड़ी पर स्थित होने से दर्शन करने में करीब दो धंटे लग गये। उपर  एकांत में शिव धुन सुन कर मन  बहुत प्रसन्न हुआ।

शाम के 4.00 बजने वाले थे। और आगे का सफर पुरी तरह पहाड़ी मार्ग का था। आज हम लोगो को मालुंगा ,काली गण्डकी मार्ग तक पहुंचना था।  पहाड़ों में नेटवर्क न मिलने से गूगल देव असहाय थे। अब तो स्थानीय लोगो से जानकारी लेकर ही चलना पड रहा था। मुख्य मार्ग की हालत भी कुछ ठीक नहीं थी। अभी कुछ दुर ही चले थे। कि चेक पाईंऐट आ गया था। गाडी के कागज और मार्ग परमिट चेक किया गया। चेक पोस्ट के आफिसर का व्यवहार बहुत अच्छा था। उन्होने ही हमें आगे के रास्ते की जानकारी दी। पहली बार पहाड़ों में सफर कर रहे थे। ऊंचे नीचे टेढ़े मेढे रास्ते और दोनों ओर बडे बडे पहाड दूर से देखने में लग रहा था अगले पहाड के बाद रास्ता कहीं खो गया हो। उस पर स्थानीय वाहन चालकों की स्पीड कभी कभी डरा देती थी। एक बात पहाड़ों की बहुत अच्छी लगी कम से कम कोहरे की समस्या नहीं आ रही थी। किसी तरह पता करते करते आखिर रात 10.00 बजे मालुंगा पहुंचे।
श्री चैतन्य कृष्ण जी हमारा इंतजार ही कर रहे थे। आपका घर मेन रोड के पास में था। अतः कोई परेशानी नहीं हुई।  रात संत श्री चैतन्य कृष्ण जी के निवास पर ही हम लोगों के रूकने की व्यवस्था की गई ।

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कालीगण्डकी नदी,मालुंगा नेपाल 

पहाड़ों की सुबह बहुत ही सुहावनी लग रही थी। ठंड के साथ सुर्य की किरणें, मानो हमें बुला रही हो ,यहां आओ प्रकृति के पास ,मैं अपने को रोक नही पाया जब तक सब तैयार होते बाहर का एक चक्कर लगा आया।  सुबह की ताजी हवा ने  मन प्रफुल्लित कर दिया था। हम सब संत श्री जी के साथ काली गण्डकी के किनारे स्थित मंदिर और शालीग्राम शिला के दर्शन के लिये चल दिये। नदी पर बने झुला पुल से पार करते वक्त बहुत डर लग रहा था। पुरा पुल ही हिल रहा था। आश्चर्य स्थानीय निवासी मोटर साईकिल से गुजर रहे थे। मालुंगा उत्तरवाहिनी काली गंडकी नदी के किनारे स्थित है। यह नेपाल की सबसे बडी नदी और सबसे लंबा मार्ग तय करती है।

एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा
                                                कालीगण्डकी नदी पर बना झुला पुल


एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा
शालिग्राम शिला, कालीगण्डकी,मालुंगा नेपाल 

काली गण्डकी नदी में स्व निर्मित ॐ चिन्ह के साथ शालीग्राम जी की मुर्तियां मिलती है। पास ही संत जी का एक आश्रम का कार्य होने वाला है । 

वहां पर भी गये।  संत जी ने नदी के पास बनने वाले इस आश्रम की रूपरेखा बताई। बहुत सुंदर जगह थी। एकांत ध्यान योग के लिये उत्तम स्थान।
हमें बताया गया कि कल हम लोग उस स्थान पर जायेंगें जहां विश्व की सबसे बडी शालीग्राम शिला है। आप सब भी अगले अंक में साथ रहियेगा। यह ब्लाग थोडा लंबा हो गया है

कल हमारी यात्रा सेतीबेणी और पोखरा शहर की ओर होगी ।

इसे भी देखें    khatu shyam ji 

                              क्रमशः--           


                                                                     जय श्री कृष्ण














  



   


  




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