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विश्वमंगल हनुमान जी,तारखेडी

 

विश्वमंगल हनुमान जी,तारखेडी के दरबार में



विश्वमंगल हनुमान जी,तारखेडी
विश्वमंगल हनुमान जी,तारखेडी


एक कहावत है। जब मन से याद करो तो इच्छा अवश्य पुर्ण होती है। वैसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ। एक पारिवारीक शादी में शामिल होने पेटलावद जाना था। घर के अधिकांश लौग बस से रवाना हो गये थे। हम कुछ सदस्यों को कार से जाना था। सभी ने तय किया तारखेडी हनुमान जी के दर्शन करने चलेगें।  


विश्वमंगल हनुमान जी,तारखेडी

विश्वमंगल हनुमान जी,तारखेडी


सभी अति प्रसन्न थे कि चलो तारखेडी हनुमान जी के दर्शन लाभ भी हो जायेंगें। समय का सद उपयोग कर रास्ते में कहीं पर भी नहीं रूके। हमारे साथ चल रही गाडी के सभी लौग मार्ग से भलीभांति परिचीत थे। इसलिये मार्ग में कोई असुविधा भी नहीं हुई। इंदौर अहमदाबाद हाईवे पर राजगढ ग्राम से थोडा चलने पर तारखेडी के लिये मुडना पडता है। खैर, मंदिर पहुंच कर बडा सकून मिला। प्रागंण में राम धुन के चलते माहौल पूर्ण भक्ति मय था।  सभी ने दर्शन कर मंदिर में कुछ देर विश्राम किया। यहां के बारे में जानने कि मेरी उत्सुकता ने स्थानिय भक्तों से मुलाकात करी। 

इतिहास 

एक वृद्ध सज्जन ने बताया कि महंत श्री राम जी प्रप्पन्न  हनुमान जी के अनन्य भक्त थे। सदा हनुमान जी की भक्ति में लीन रहते थे। एक दिन वह हनुमान जी कि अराधना कर रहे थे। तभी उन्हें दिव्य अनुभुति का अहसास हुआ। उसी रात हनुमान जी ने स्वप्न में दर्शन देकर दिव्य मुर्ति के बारे में बताया। प्रातःकाल पुर्ण विधी विधान से खुदाई कर दिव्य प्रतिमा निकाली और जहां आज मंदिर है। वहीं पर स्थापना कर पुजा अर्चना करने लगे।तभी से यहां पर हवन, पुजन ,आरती, सुन्दरकांड और रामायण पाठ तथा राम धुन होती रहती है।  सन 1970 से अखंड ज्योत प्रजव्लित है। 

आस्था

विश्वमंगल हनुमान जी के भक्तों की आस्था इतनी प्रबल है। कि जब भी कोई नया काम ,नया वाहन अथवा नवीन कार्य का शुभारंभ करता है। तो सर्वप्रथम मंदिर में हनुमान जी के समक्ष उपस्थित होकर उनकी कृपा और सफलता के लिये प्रार्थना करता है। 
प्रत्येक मंगलवार को हवन कीर्तन होते है। हनुमान जयंती पर महाआरती के पश्चात प्रसादी वितरण का आयोजन होता है। प्रति वर्ष अश्विन व चैत्र नवरात्रों मे मंदिर में विशेष साज सज्जा की जाती है। अखंड रामायण पाठ किये जाते है। 


विश्वमंगल हनुमान जी,तारखेडी
विश्वमंगल हनुमान जी,तारखेडी


 एक बार यहां दर्शन कर अनुभव कर सकते है। हनुमान जी के एक और दिव्य चमत्कारी अति प्राचीन बलवारी हनुमान  मंदिर तक  पद यात्रा कर सुखद दिव्य अनुभूति का अहसास होगा । यकीन ना हो तो एक बार कर के देखे ।  

कैसे पहूंचें


निकटतम रेल्वे स्टेशन  मेधनगर व बामनिया हैं। जो कि रतलाम बडौदा रेल मार्ग पर स्थित है। यहां से बस अथवा छोटे वाहन से मंदिर पहूंच सटते है। 
निकटतम सर्व सुविधा युक्त ग्राम पेटलावद है।

सडक मार्ग से इंदौर अहमदाबाद हाईवे पर राजगढ से आगे पेटलावद मार्ग पर जाना होता है।
 
              जय सियाराम 



 

विश्वमंगल हनुमान जी,तारखेडी के दरबार में



विश्वमंगल हनुमान जी,तारखेडी
विश्वमंगल हनुमान जी,तारखेडी


एक कहावत है। जब मन से याद करो तो इच्छा अवश्य पुर्ण होती है। वैसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ। एक पारिवारीक शादी में शामिल होने पेटलावद जाना था। घर के अधिकांश लौग बस से रवाना हो गये थे। हम कुछ सदस्यों को कार से जाना था। सभी ने तय किया तारखेडी हनुमान जी के दर्शन करने चलेगें।  


विश्वमंगल हनुमान जी,तारखेडी

विश्वमंगल हनुमान जी,तारखेडी


सभी अति प्रसन्न थे कि चलो तारखेडी हनुमान जी के दर्शन लाभ भी हो जायेंगें। समय का सद उपयोग कर रास्ते में कहीं पर भी नहीं रूके। हमारे साथ चल रही गाडी के सभी लौग मार्ग से भलीभांति परिचीत थे। इसलिये मार्ग में कोई असुविधा भी नहीं हुई। इंदौर अहमदाबाद हाईवे पर राजगढ ग्राम से थोडा चलने पर तारखेडी के लिये मुडना पडता है। खैर, मंदिर पहुंच कर बडा सकून मिला। प्रागंण में राम धुन के चलते माहौल पूर्ण भक्ति मय था।  सभी ने दर्शन कर मंदिर में कुछ देर विश्राम किया। यहां के बारे में जानने कि मेरी उत्सुकता ने स्थानिय भक्तों से मुलाकात करी। 

इतिहास 

एक वृद्ध सज्जन ने बताया कि महंत श्री राम जी प्रप्पन्न  हनुमान जी के अनन्य भक्त थे। सदा हनुमान जी की भक्ति में लीन रहते थे। एक दिन वह हनुमान जी कि अराधना कर रहे थे। तभी उन्हें दिव्य अनुभुति का अहसास हुआ। उसी रात हनुमान जी ने स्वप्न में दर्शन देकर दिव्य मुर्ति के बारे में बताया। प्रातःकाल पुर्ण विधी विधान से खुदाई कर दिव्य प्रतिमा निकाली और जहां आज मंदिर है। वहीं पर स्थापना कर पुजा अर्चना करने लगे।तभी से यहां पर हवन, पुजन ,आरती, सुन्दरकांड और रामायण पाठ तथा राम धुन होती रहती है।  सन 1970 से अखंड ज्योत प्रजव्लित है। 

आस्था

विश्वमंगल हनुमान जी के भक्तों की आस्था इतनी प्रबल है। कि जब भी कोई नया काम ,नया वाहन अथवा नवीन कार्य का शुभारंभ करता है। तो सर्वप्रथम मंदिर में हनुमान जी के समक्ष उपस्थित होकर उनकी कृपा और सफलता के लिये प्रार्थना करता है। 
प्रत्येक मंगलवार को हवन कीर्तन होते है। हनुमान जयंती पर महाआरती के पश्चात प्रसादी वितरण का आयोजन होता है। प्रति वर्ष अश्विन व चैत्र नवरात्रों मे मंदिर में विशेष साज सज्जा की जाती है। अखंड रामायण पाठ किये जाते है। 


विश्वमंगल हनुमान जी,तारखेडी
विश्वमंगल हनुमान जी,तारखेडी


 एक बार यहां दर्शन कर अनुभव कर सकते है। हनुमान जी के एक और दिव्य चमत्कारी अति प्राचीन बलवारी हनुमान  मंदिर तक  पद यात्रा कर सुखद दिव्य अनुभूति का अहसास होगा । यकीन ना हो तो एक बार कर के देखे ।  

कैसे पहूंचें


निकटतम रेल्वे स्टेशन  मेधनगर व बामनिया हैं। जो कि रतलाम बडौदा रेल मार्ग पर स्थित है। यहां से बस अथवा छोटे वाहन से मंदिर पहूंच सटते है। 
निकटतम सर्व सुविधा युक्त ग्राम पेटलावद है।

सडक मार्ग से इंदौर अहमदाबाद हाईवे पर राजगढ से आगे पेटलावद मार्ग पर जाना होता है।
 
              जय सियाराम 



सिद्ध तपोभूमि वागनाथ


सिद्ध तपोभूमि वागनाथ 




सिद्ध तपोभूमि वागनाथ
सिद्ध तपोभूमि वागनाथ 


नर्मदा नदी का किनारा प्राकृतिक रुप से बहुत सम्पन्न है। हर तरफ हरियाली अथाह जल राशि और एकांत। ऐसे में इसके किनारे पर बहुत सारे आराध्य स्थल,तपोभूमि, मंदिर व आश्रम हैं। जहां पर साधू, संत,दिव्य विभूतियां और सिद्ध महात्मा सदैव अपनी साधना में लीन रहते है।  वे ईश्वर अराधना के लिये  पुजा,जप,तप,और विशेष अनुष्ठान कर यज्ञ करते हैं। इन स्थलों की जानकारी आम जनता को यज्ञ की पुर्णाहुती अथवा भंडारों पर ही लग पाती हैं। कई स्थल तो आज भी जानकारी के अभाव में अछुते है। या कहें कि उनकी जानकारी स्थानीय स्तर तक ही सिमीत रह जाती है।   वागनाथ एक रमणीय ,शांत और प्राकृतिक दृश्यों से ओत प्रोत स्थल है। यहां पर अति प्राचीन दो शिव लिंग स्थित है। एक तट से उपर वागनाथ महादेव जिसके बारे में पुरातत्व विभाग का कहना है। यह भूमि में करीब 11 फिट अंदर तक है। तथा दुसरा नर्मदा के किनारे जागनाथ महादेव। कहते है दोनों स्थानों के दर्शन करने पर ही प्रतिफल मिलता है।

सिद्ध तपोभूमि वागनाथ
जागनाथ महादेव मंदिर 


वागनाथ महादेव जी

यह स्थान धार जिले के मनावर तहसील अंतर्गत एकलबारा ग्राम के निकट पहाड़ी पर स्थित है। नर्मदा नदी के किनारे होने से एक तरफ जल व दुसरी तरफ पहूंच मार्ग है। किंतु वर्षा काल और उसके बाद भी जब नर्मदा में जल स्तर बढ जाता है। तो चारों ओर पानी से धिरा होने के कारण आने जाने के लिये नौका ही एक मात्र सहारा होता है। यहां पर एक विशाल वृक्ष के समीप हनुमान मंदिर है। पास ही में वागनाथ महादेव और किनारे पर जागनाथ महादेव का मंदिर है। शाम को यहां से नर्मदा नदी का बहुत ही मनोरम दृश्य दिखाई देता है। शोरगुल से दूर एकदम शांत यह छोटी सी जगह मन को असीम शांति देती है। यही कारण है कि  ये संतो की प्रिय स्थली है। 

सिद्ध तपोभूमि वागनाथ
वागनाथ महादेव मंदिर 

इतिहास  

यहां के इतिहास का कोई भी प्रमाणिक साक्ष्य तो उपलब्ध नहीं है। लेकिन वृद्धजनों ने बताया कि नर्मदा पुराण में कही इसके बारे में उल्लेख है। पुरातन काल में यहां पर राजा ब्रह्मदत्त ने 99 यज्ञ करवाये थे। तभी से इसे सिद्ध स्थान के रुप में देखा जाता है। आज भी संत, महात्मा योगी समय समय पर आते हैं। और अपनी साधना पूर्ण कर गंतव्य की ओर प्रस्थान कर देते है। स्थाई निवास किसी ने भी नहीं बनाया। 

संत कि साधना स्थली 

सन 2020 में भारी बारिश के चलते नर्मदा अपने रौद्र रुप में थी। जहां तक नजर जाती अथाह पानी हिलोरे लेता नजर आता था। ऐसे में जल स्तर बढने के कारण बचाव दल दिन रात निगरानी पर था।  वागनाथ महादेव स्थल भी चारों ओर से पानी से धिर गया था। सुरक्षा के चलते किनारों की बिजली अवरूद्ध कर दी गई थी। रात को अंधेरे में जलधारा की तीव्र ध्वनि भय उत्पन्न कर रही थी। ऐसे में वहां पर एक संत अपनी साधना में लीन थे। बढते जल स्तर के चलते बचाव दल ने बाबा से अनुरोध किया आप सुरक्षित स्थल पर आ जाये। किंतु बाबा जी ने कहा यहां कुछ भी अनहोनी नहीं होगी आप निश्चिंत रहें।  वे निर्भय होकर अपनी साधना में लगे रहे। बाद में स्थानीय लोगों के कहने पर पास ही ग्राम में वर्षाकाल व्यतित किया। 
जब जल स्तर कम हुआ तो मन में अभिलाषा हुई क्यों न एक बार इस स्थान पर चला जाय। हम अपने साथीयों के साथ वागनाथ दर्शन करने गये। उस समय संत महात्मा यज्ञ कर रहे थे। दूर से ही मंत्रों की लयबद्ध ध्वनि और आहुति डलने से उत्पन्न अग्निदेव की तीव्रता वायुमंडल में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह कर रही थी। हम धन्य हो गये उस पल के साक्षी होकर।  
       

सिद्ध तपोभूमि वागनाथ
विशाल और प्राचीन वृक्ष


आज भी नर्मदा नदी के किनारे कई ऐसे दिव्य स्थल हैं। जो बहुत कम लोगों को ही मालूम है। यहां कई बार दिव्य ऋषि मुनि तप साधना के लिये आते है। और अपनी साधना पूर्ण कर चल देते है। हमारा तो प्रयास है कि इन स्थानों की आम जनता तक पहचान हो। कई अद्भुत और सिद्ध स्थान इस क्षेत्र में कुछ किमी की दूरी पर है। उनमें से हनुमान जी का बहुत पुराना मंदिर है। यहां पर हनुमान जी की बहुत पुरानी दिव्य और चमत्कारी मूर्ति है। स्थानीय निवासी प्रति वर्ष पद यात्रा कर मंदिर में ध्वज चढ़ाते हैं। चलिये हम आपको भी इस यात्रा पर ले चलते है। अति प्राचीन बलवारी हनुमान मंदिर तक पद यात्रा।

जय श्री कृष्ण 



अति प्राचीन बलवारी हनुमान मंदिर तक पद यात्रा

 अति प्राचीन बलवारी हनुमान मंदिर तक पद यात्रा 

अति प्राचीन बलवारी हनुमान मंदिर तक पद यात्रा
बलवारी हनुमान मंदिर 

पद यात्रा

बलवारी ग्राम के आस पास क्षेत्रों में मान्यता है। कि हनुमान जी की कृपा पुरे वर्ष उन पर बनी रहे। इसलिये  नव वर्ष के पहले हफ्ते में तय दिन पद यात्रा कर झंडा चढ़ाते है। इसी कडी में मनावर से वर्ष के पहले सोमवार को यह यात्रा निकाली जाती है। इस यात्रा का आयोजन नगर के प्रतिष्ठित गणमान्य लौग करते है। सैकडों की संख्या में नगरवासी इसमें शामिल होते हैं। 
एक वर्ष मुझे भी इस यात्रा का हिस्सा बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। हम सभी लोग सुबह धार रोड स्थित हनुमान जी के मंदिर पहुंचे। यहां पर सभी ने सामुहिक रुप से हनुमान चालिसा का पाठ किया । इसके पश्चात विधिवत यात्रा की शुरूआत हुई ।  22 किमी की इस पद यात्रा में बडी संख्या में श्रद्धालू सम्मिलित हुऐ थे। जय सीया राम के जयकारों से पुरा मार्ग गूंजायमान हो रहा था। रास्ते में भक्त लोग पदयात्रियों के लिये चाय पानी व नाश्ते की व्यवस्था कर रहे थे। एक जगह हम अपने  सहयात्रियों के साथ चाय व पानी के लिये रुके। यहां से फिर तरो ताजा हो आगे चल दिये। पैदल चलने के कारण ठंड में भी गर्मी का अहसास होने लगा था। लिहाजा स्वेटर उतारना पडा। कुछ देर तक तो स्वेटर लेकर चलें किंतु थकान होने पर ये बोझ लगने लगा। तब साथ चल रहे परिचीत के वाहन में रख थोडा सकून महसुस किया। करीब आधे मार्ग तय करने पर एक जगह थोडे विश्राम और चाय नाश्ते की व्यवस्था की गई थी। यहां पहूंचने पर जैसे ही थोडा सुस्ताने के लिये रुके बडा सकून महसुस किया साथ ही समझ आ रहा था। आगे का मार्ग आसान नहीं है। खैर अब प्रण किया है तो निभाना पड़ेगा ही। संगी साथियों से बलवारी हनुमान जी के बारे में और जानने के लिये चर्चा की।

अति प्राचीन बलवारी हनुमान मंदिर तक पद यात्रा

इतिहास 

मंदिर के पुजारी जी के अनुसार उनके पूर्वजों के समय से  इस मंदिर की पुजा अर्चना करते आ रहे है। कहते है सन 1100 के पुर्व से ही यह मुर्ति यहां स्वयंम प्रकट हुई थी। करीब साडे बारह फीट की मुर्ति बिना किसी सहारे के खडी हुई है। उस समय धना जंगल था। हर समय जंगली जानवरों का भय बना रहता था। किंतु हनुमान जी की कृपा से यह स्थान पावन हो गया था। यहां निर्भय होकर भक्त सतत पुजा अर्चना निरंतर करते आ रहे है। कई वर्षो तक तो मंदिर खुले में ही था।  इंदौर के व्यवसायी को हनुमान जी की प्रेरणा से मंदिर की छत डालने का अवसर प्राप्त हुआ।समय समय पर निर्माण होता गया। 

हमारी पद यात्रा भी चल रही थी। गंधवानी ग्राम तक आने पर थकान महसूस होने लगी थी। किसी तरह यात्रा जारी रखी। हनुमान जी की कृपा से हम मंदिर पहूंच गये। सभी ने मिलकर आरती करी। आरती पश्चात भंडारे का आयोजन था। वहां सभी ने मिलकर प्रसादी ग्रहण करी।
 हनुमान जयंती पर व समय समय पर कई बडे आयोजन होते रहते है। 


अति प्राचीन बलवारी हनुमान मंदिर तक पद यात्रा



    बलवारी हनुमान जी की कृपा से भक्तों को कई अदभुत सुखद अनुभव प्राप्त हुऐ है। बहुत दुर दुर सें भक्त आते है।     
पहूंच मार्ग :-
सडक मार्ग 

इंदौर से धामनोद मनावर होते हुऐ गंधवानी ग्राम से 160  किमी

यदि आप इंदौर अहमदाबाद मार्ग से आते हैं। तो मांगोद जीराबाद होते हुऐ 130 किमी का सफर है।
रेल मार्ग व वायु मार्ग केवल इंदौर तक ही उपलब्ध है।
 भोजन व ठहरने के लिये गंधवानी और मनावर में ही सुविधा है।                          

                                                                 

                                                                           ।।  जय श्री राम ।।
           

Muradpura.hanuman.ji.shajapur



मुरादपुरा हनुमान जी,शाजापुर


दिव्य बाल हनुमान जी
मुरादपुरा हनुमान मंदिर, शाजापुर 

मुरादपुरा हनुमान मंदिर में कई बार जाने का अवसर मिला। जब भी दिव्य प्रतिमा के दर्शन करता, अपने में एक सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह को महसुस करता। एक बार मन में मंदिर के बारे में जानने कि इच्छा जाग्रत हुई। इसी इच्छा को लेकर मंदिर से जुडे कुछ वृद्ध सज्जनों से मुलाकात की। 

कथा ः-

एक प्रचलित कथानुसार सैकडों वर्षो पुर्व जहां आज मंदिर है।वहां पर खेत हुआ करता था।धने जंगल के मध्य से नदी पार करके खेत में जाने का रास्ता था। इस मार्ग पर एक पुराने वृक्ष को किसान काटना चाहता था। एक दिन जब वह वृक्ष को काट रहा था। उसी समय ऐसा न करने का चेतावनी भरा स्वर गूंजा। किंतु किसी के न दिखाई देने पर वहम समझ ध्यान नहीं दिया और वृक्ष को काट दिया। अगले दिन उसकी मृत्यु हो गई।
इस धटना से ग्रामीण भयभीत हो वहां जाने से डरने लगे। कुछ समय बाद हनुमान भक्त बेजु बा रजक वहां से गुजरे तो उन्हें दिव्य अनुभूति का अहसास हुआ। वह नित्य वहां जाते और हनुमान जी का स्मरण करते थे।एक दिन उन्हे स्वप्न में हनुमान जी ने दर्शन देकर उस स्थान पर प्रतिमा होना बताया। अगले दिन सभी की सहमति से खुदाई करने पर हनुमान जी की बाल रूप खडी मुर्ति मिली। उन्होने पुरे विधी विधान से मुर्ति स्थापित कर नित्य पुजा अर्चना करने लगा।


मुरादपुरा हनुमान मंदिर
मुरादपुरा बाल हनुमान मंदिर, शाजापुर 

कुंडी  :-

मंदिर के पास ही वह कुंडी भी है। जहां से मुर्ति प्रगट हुई थी।
 
धीरे धीरे ग्रामीण भी मंदिर से जुडने लगे। कई भक्त अपनी मनोकामना लेकर हनुमान जी की शरण में आते है और पुर्ण होने पर अपनी श्रद्धानुसार चोला, प्रसाद अथवा भंडारा करवाते है। 

 प्रभू कृपा :-

एक ऐसे ही भक्त की आप बीती बताते है। बहुत पुरानी बात है। जावरा के प्रतिष्ठित व्यापारी का कारोबार बहुत अच्छा चल रहा था। ना जाने किस की नजर लग गई। उनसे उस समय के ईनामी डकैत ने बहुत बडी रकम की मांग रख दी और न देने पर परिवार सहित खत्म कर देने की धमकी। अब व्यापारी बडी मुसीबत में पड  गये। अचानक बहुत बडी रकम की व्यवस्था कर पाना संभव नहीं था। उस पर जीवन बचाने की चिंता। इस फिक्र में वे परिवार सहित अज्ञात स्थान पर चले गये। एक दिन भयग्रस्त व्यापारी मुरादपुरा हनुमान जी के मंदिर में अपनी याचना लेकर गये और प्रभू चरणों में  व्यथा रखी।

हे प्रभू प्राण संकट में है। रक्षा करो अब तो तुम ही तारणहार हो।  
अपनी विनती लगा इंदौर चले गये। डकैत के डर से बार बार स्थान बदलने की भी मजबुरी थी। एक दिन वे किसी काम से बाहर जाने के लिये इंदौर बस स्टैंड गये थे। तभी उनकी नजर अखबार में प्रकाशित एक खबर पर पड़ी। वे खुशी से झुम उठे और हनुमान चालीसा की पंक्तियां गुनगुनाने लगे। 
तुम रक्षक काहू को डरना। ईनामी डकैत पुलिस मुठभेड में मारा गया था। इसी तरह के अनगिनत किस्से हैं।   

   मंदिर परिसर में नवग्रहों के मंदिर और एक छोटा सा शिवालय भी है।

मंदिर के पिछले भाग में एक छोटा सा बगीचा है। जहां बच्चों के मनोरंजन के लिये झुले लगे हुऐ है।

मुरादपुरा हनुमान मंदिर बगीचा


पास ही धर्मशाला बनी हुई है। कोरोना काल में मंदिर बंद कर दिया है। बाहर से ही दर्शन कर सकते है। सावधानी व सुरक्षा के मध्ये नजर रखते हुऐ विशेष प्रकार की घंटी लगी हुई है।जब आप घंटी के सामने जाते हैं।तो बजती है


मुरादपुरा हनुमान मंदिर बगीचे के झूले



 नेशनल हाईवे आगरा बाम्बे मार्ग पर इंदौर से आगरा जाते समय शाजापुर शहर के पास ही यह मंदिर स्थित है।

               "जय श्री राम"


Salasar bala ji dham ( सालासर बाला जी)

                   जय श्री कृष्ण

 

हम
Salasar bala ji dham ( सालासर बाला जी)
Salasar bala ji 

 सब को खाटू श्याम जी में दर्शन लाभ न मिलने से बहुत मायूसी हो रही थी। किंतु फिर  तय किया कि समय व्यर्थ न करते हुऐ सालासर बाला जी के ही दर्शन कर लिये जाये। वैसे भी शनिवार का दिन बाला जी के दर्शनों के लिये उत्तम माना जाता है। सालासर बाला जी खाटू श्याम जी से 105 किमी की दूरी पर जयपुर - बीकानेर मार्ग पर स्थित है। 


Salasar bala ji dham ( सालासर बाला जी)
लक्ष्मण द्वार, सालासर 

गूगल आंटी से मार्ग निर्देशन लिय कुछ किमी तक तो सिंगल और धुमावदार रोड होने से धीरे चलना पड रहा था।सीकर से हाई-वे मिलने पर गाडी की स्पीड बढ गई। लक्ष्मणगढ के पास ही सालासर धाम विकास समिती द्वारा निर्मित श्री लक्ष्मण द्वार बनाया गया है। यहां से 30 किमी की दूरी पर सालासर धाम में विराजित हैं  दाढी मूंछ धारण किये हुऐ बाला जी का भव्य स्वरूप।

श्री सालासर बाला जी की कथा -- 

श्री सालासर बाला जी की कथा कुछ ऐसी है कि सालासर  के असोटा ग्राम में  एक जाट किसान अपने खेत की  जुताई में तल्लीन था। अचानक हल सें कोई चीज टकराई , वह कुछ देर रुक कर फिर हल चलाने की कोशिश करने लगा किंतु हल तो नहीं चला अपितु वहां से आवाज आई। तब तक किसान कि पत्नि भोजन लेकर आ गई थी। उस स्थान की खुदाई करने पर वहां दो मुर्तियां मिली। पत्नि ने मुर्तियों को साडी के पल्लू से पोंछ कर साफ किया तब पता चला कि ये मुर्तियां तो बाला जी की है। किसान ने पत्नि के साथ पुजन अर्चन कर घर से लाये चूरमें का भोग लगाया। और गांव के ठाकुर साहब को इसकी सूचना दी।

Salasar bala ji dham ( सालासर बाला जी)
हनुमान जी, सालासर 

बाला जी का पूजन कर एक मूर्ति को सालासर और दुसरी मूर्ति को यहां से 23 किमी नागौर जिले में स्थापित किया। इधर सालासर में उसी दिन हनुमान जी ने अपने परम भक्त बाल ब्रह्मचारी मोहन दास जी को स्वप्न में दर्शन देकर असोटा में प्रकट होने कि बात बताई और कहा कि मूर्ति को यहां लाकर स्थापित करो। मोहन दास जी ने स्वप्न की बात का जिक्र कर ठाकुर साहब को संदेश भेजा। ठाकुर साहब आश्चर्य चकित हो गये उन्हे भी इसी तरह का स्वप्न आया था। वे विचार करने लगे कि ये कैसे संभव है। तब उन्होने मोहन दास जी को मूर्तियों को ले जाने के लिये कहा। मोहन दास जी दो बैलगाड़ियां लेकर असोटा पहूंचे। वहां मूर्तियों  पाबोलाम‌ (जसवंतगढ़ ) के लिये रवाना किया। सुबह जसवंतगढ़ में और शाम को सालासर में एक ही दिन श्रावण शुक्ल पक्ष नवमी संवत 1811 शनिवार को दोनों स्थानों पर  स्थापित किया गया। जिस बैलगाड़ी से सालासर मूर्ति ला रहे थे। वह एक स्थान पर रुक गई ।वहीं पर आज का मंदिर बना हुआ है। इस मंदिर के निर्माण में दो मुस्लिम कारीगर फतेहपुर के नूर मोहम्मद और दाऊ का विशेष योगदान रहा है।

सालासर बाला जी मंदिर की व्यवस्था --

 मंदिर कि देखरेख मोहन दास जी ट्रस्ट द्वारा उनके भांजों के वंशज करते आ रहे हैं। 

मंदिर में आज भी दो बैलगाड़ियां खडी रहती है।

    मनोकामना पुर्ती के लिये --यहां कि विशेषता भक्त और भगवान के मध्य कोई नहीं। सीधे बाला जी से निवेदन के लिये एक नारियल लेकर अपनी मनोंकामना मन में दोहराइये और वहीं पर बांध दिजीये। मनोकामना पूर्ण होने पर नारियल अपने आप गिर जाता है। जिसे बाद में मंदिर के सेवादार एक तय जमीन में विसर्जित कर देते है। 


Salasar bala ji dham ( सालासर बाला जी)
श्री बालाजी धाम, सालासर 

अखंड धूना --

यहां पर मोहन दास जी द्वारा प्रज्वलित धुना आज भी जाग्रत है। भक्त लोग इसकी राख धारण करते है। पास ही वृक्ष पर सैकडों पक्षियों का डेरा है।, मंदिर में पिछले 8 सालों से निरंतर रामायण पाठ और 20 वर्षो से हरि कीर्तन राम धुन जारी है।

श्री मोहन दास मंदिर -- 

यहां पर संत मोहन दास जी और कनिदादी के पैरों के निशान और समाधि स्थल की। पुजा होती है व  आगंतुक यहां श्रद्धा से नमन करते है                                                     

  सालासर के आस पास अन्य दर्शनिय स्थल                     

1.   अंजनी माता मंदिर

2.    जमवाय माता मंदिर

3.    चांदपोल मंदिर

4.     त्रि पति बालाजी 

5.      हरीराम बाबा मंदिर

6.      शयनन माता मंदिर 

    

 करीब 1100 वर्ष पुराना यह मंदिर सालासर से 15 किमी दूर रेगिस्तान में पहाडीं पर स्थित है। 

पर्यटन स्थल --

सालासर में एक टैंक भी रखा हुआ है। पर्यटक यहां फोटोग्राफी का आनंद लेते है। हमने भी इसका   आनंद लिया और टैंक को करीब से देखा।

    

Salasar bala ji dham ( सालासर बाला जी)
श्री बालाजी धाम, सालासर 


उत्सव व मेले --

हनुमान जयंती , चैत्र शुक्ल व अश्विन शुक्ल पूर्णिमा को भव्य मेले का आयोजन होता है। बहुत दूर दूर से श्रद्धालू दर्शन को आते है।

यहां ठहरने के लिये धर्मशालाऐं व होटलें हैं। तथा खाने के लिये भोजनालय की उत्तम व्यवस्था है। समय समय पर भंडारों का भी आयोजन होता रहता है

कैसे पहूंचे --

जयपुर -बीकानेर राजमार्ग पर स्थित है। 

सीकर -57

सुजानगढ-24

लक्ष्मणगढ-30

पिलानी-140

जयपुर से सालासर बाला जी की दूरी -171 किमी है।

बीकानेर-178 किमी 

निकटतम हवाईअड्डा -

जयपुर और बीकानेर

सालासर के निकटतम रेल्वे स्टेश  सुजानगढ ,जयपुर ,सीकर ,डीडवाना और रतनगढ 

    शाम के पांच बजे हम लोगों ने वापसी का सफर शुरु किया।लग रहा था रास्ते में कहीं रुकना पड़ेगा। 

चलिये फिर मिलते है। एक नये सफर में तब तक के लिये अलविदा और हां आपका कोई सुझाव हो तो अवश्य दें

                                                                जय श्री कृष्ण      




khatu.shyam.ji

 

Khatu shyamji ( खाटू श्याम जी) 

khatu shyam ji
खाटू श्याम जी

प्रतिवर्ष अनुसार इस बार भी सांवलिया सेठ के दर्शन करने मंडफिया गये थे। रात वहीं रुके। अगले दिन सुबह दर्शन करके वापस पार्किंग की ओर जा रहे थे।तभी सामने होटल में गर्मा गर्म नाश्ता पोहे कचोरी बनते देख कर रुक गये। हल्की हल्की ठंड होने से गुंन गुंनी धूप अच्छी लग रही थी। सो हम लोग होटल में बाहर कुर्सियों पर ही बैठे गये और नाश्ते का आर्डर  दे अगली यात्रा की चर्चा करने लगे।

 नाश्ता करने के बाद  वत्सल ने  कहा नाना जी क्यों न खाटू श्याम जी चला जाय। 

सभी की सहमति बनी और खाटू श्याम जी की ओर चल दिये। रास्ते में गूगल मैप की मदद से पता चला करीब 390 किमी  है।  

वत्सल ने अगली फर्माइश कर दी कि नाना जी , खाटू श्याम जी की कहानी सुनाओं। चलिये हम आपको भी प्रचलित कथा के बारे में बतातें है।  

खाटू श्याम जी की कथा -

  यह कहानी धटोत्कच और दैत्य राज मूर की पुत्री मोरवी के पुत्र तथा भीम के पौत्र बर्बरीक की है। बचपन में ही कठोर तपस्या कर भगवान शिव और मां आदिशक्ति को प्रसन्न कर आशिर्वाद स्वरुप दो वर प्राप्त किये थे।

1. प्रभु दर्शन

2. निर्बल और असहाय लौगो की रक्षार्थ       शक्ति

तब भगवान शिव और आदि शक्ति मां  ने दर्शन देकर तीन बाण प्रदान किये। और उन तीनों कि विशेषता बताई।

1. पहला बाण युध्द भूमि में जिनका वध करना चाहोगे उन सब पर मृत्यु चिन्ह अंकित कर देगा।

2. दुसरा बाण सभी चिन्हितों का वध कर देगा।

3. तीसरा बाण समस्त संसार का विनाश कर देगा और वापस तुणीर में आ जायेगा।

किन्तु ये सब मानवता की भलाई के लिये ही उपयोग करना। साथ ही कमजोर और हारने वाले की सहायता करना।

तीनों बाणों की शक्ति और अग्निदेव द्वारा प्रदान धनुष के कारण  बर्बरिक बहुत शक्ति सम्पन्न हो गये थे। 

महाभारत युद्ध के समय बर्बरिक को भी उसमें हिस्सा लेने कि इच्छा हुई और वह मां से युद्ध में भाग लेने के लिये अनुमति लेने गये। मां ने आशिर्वाद देकर एक वचन लिया कि युद्ध में सभी तुम्हारे रिश्तेदार है किन्तु जो हार रहा हो तुम हारने वाले का साथ देना। तभी से इनका एक नाम 

हारे का सहारा " पडा। 

बर्बरिक अपने नीले धोडे पर सवार हो युध्द भूमि की ओर चल दिये। रास्ते में इनकी मुलाकात ब्राह्मण वेशधारी श्री कृष्ण जी से हुई। चर्चा में बर्बरिक ने अपना परिचय देकर कहा युद्ध में भाग लेने जा रहा हूं। तब ब्राह्मण वेशधारी श्री कृष्ण जी ने उपहास उडाते हुऐ कहा बिना अस्त्र शस्त्र और सेना के युद्ध कैसे लडोगे। इस पर बर्बरिक ने भगवान शिव और मां आदिशक्ति से प्राप्त तीन बांणों के बारे में बताया और कहा कि कुछ ही पलों में युद्ध समाप्त कर सकता हूं।तब श्री कृष्ण जी ने बाणों की सत्यता को प्रमाणित करने के लिये कहा।

परिक्षा -(examination)

बर्बरिक ने सामने पीपल के वृक्ष को निशाने पर रख कर कहा इसके सभी पत्ते मेरे निशाने पर है। वह बांण प्रत्यंचा पर चढा कर प्रार्थना करने लगा। तभी श्री कृष्ण जी ने एक पत्ता चुपके से अपने पैर के नीचे छिपा लिया। जैसे ही बर्बरिक ने बांण छोडा वृक्ष के सभी पत्तों पर क्षणभर में चिन्ह अंकित हो गये और बांण श्री कृष्ण जी के पैरों के चक्कर लगाने लगा। अब बर्बरिक ने श्री कृष्ण जी से प्रार्थना कर कहा आप अपना पैर हटा लें अन्यथा यह आपके पैरो को क्षति पहूंचा देगा।

 श्री कृष्ण जी यह सब देख सोचने लगे कि कौरवों की हार तो निश्चित है और मां के वचनों में बंधा बर्बरिक इसे एक क्षण में  जीत में बदल देगा।।  इससे इस धर्म युद्ध में अधर्म की जीत हो जायेगी।

उस समय श्री कृष्ण जी ने बर्बरिक से विश्राम के लिये साथ चलने को कहा। किन्तु प्रण अनुसार बर्बरिक ने वहीं रुकने का निवेदन किया।अगले दिन श्री कृष्ण जी और अर्जुन बर्बरिक से मिले और कहा वत्स आज शुक्ल फाल्गुनी द्वादशी है। कल से युद्ध आरंभ हो जायेगा किन्तु इसके पूर्व रंणचंडी काली एक महाबलशाली यौद्धा की बली मांग रही है। और हम तीनों के अलावा इस योग्य कोई नहीं।  

अर्जुन ने अपने आप को प्रस्तुत किया। इस पर श्री कृष्ण जी ने कहा यह संभव नहीं । इस धर्म युद्ध में सभी पाडंवों का जीवित रहना आवश्यक है। तब श्री कृष्ण जी कहने लगे मैं ही अपनी बली देता हूं।  

बर्बरिक श्री कृष्ण को गुरु कहते थे। अतः उन्होने कहा शिष्य के रहते यह संभव नहीं। मैं अपना शीश देता हूं कहकर एक ही क्षण में तलवार से अपना शीश काटकर श्री कृष्ण जी के हाथों में दे दिया। यहां ये   शीश दानी॥ के नाम से विख्यात हुऐ। 

यह सब देख सभी पांडव विलाप करने लगे और श्री कृष्ण जी को इसका दोषी मानने लगे। 

उसी समय आदिशक्ति ने प्रगट हो आकाशवाणी द्वारा बर्बरिक के पूर्व जन्म में ब्रह्मदेव से धमंड कर शापित होने की बात बतायी और निवार्णार्थ जब पृथ्वी पर धर्म युद्ध होगा उसी समय इन्हे श्री कृष्ण द्वारा मोक्ष प्राप्त होगा। वे ही इनकी मृत्यु का कारण बनेगें। इसमें इनका कोई दोष नहीं।यह सुन सभी पांडव लज्जित हो क्षमा मांगने लगे।

श्री कृष्ण जी ने मां आदिशक्ति से वर मांगा और कहा कि हे देवी यह शीश एक भक्त का है। जिसने धर्म की रक्षार्थ निस्वार्थ भाव से दान किया है। इसे अमृत से सींच  कर अमर कर दो। तब मां आदिशक्ति ने तथास्तु कह शीश को पूर्नजीवित कर दिया । श्री कृष्ण जी ने बर्बरिक को किर्तीमान भवः का आशिर्वाद दिया और अपनी सभी शक्तियां प्रदान कर नया नाम  श्याम दिया। साथ ही उनकी इच्छा पुछी।

बर्बरिक ने अपनी दो इच्छा जाहिर करी

1. मेरी देह को आप ही अग्नि दें।

2. मैं महाभारत का युद्ध देखना चाहता हूं।

दोनों इच्छाओं को स्वीकार कर उनके शीश को कुरुक्षेत्र के पास एक पहाडी पर  सम्मान पूर्वक स्थापित किया।

 महाभारत का युद्ध हुआ और परिणामस्वरुप पांडव जीते किंतु जीत के श्रेय के लिये आपस में विवाद होने लगा। तब सभी श्री कृष्ण जी के पास गये। 

श्री कृष्ण जी ने कहा कि इस युद्ध का एक साक्षी है। जिन्होने सम्पूर्ण युद्ध देखा है। वहीं बता सकते है। व उचित निर्णय दे सकते है। सभी बर्बरिक के शीश के पास जाकर यह जानना चाहा कि इस विजय श्री का असली हकदार कौन है। बर्बरिक ने सभी पांडवो की गलतीयां बताई। उन्होनें कहा धर्मराज युधिष्ठिर ने असत्य का सहारा ले द्रोणाचार्य का वध किया। दादा श्री भीम ने गदा नियमों का उलंधन कर दुर्योधन को मृत्यु के धाट उतारा और गांडीवधारी अर्जुन ने पहले तो युद्ध पूर्व ही धनुष बांण रख दिये थे। फिर शीखंडी का सहारा ले पितामह भीष्म को सर शय्या पर लेटा दिया और दादा कर्ण से बचने के लिये पिता धटोत्कच की आहुती दे दी। इस युद्ध के महानायक तो श्री कृष्ण और उनका सुदर्शन चक्र ही थे। यत्र तत्र सर्वत्र श्री कृष्ण ही दिखाई दे रहे थे। यह सुन सभी पांडवों ने क्षमा मांगी। 

श्री कृष्ण ने बर्बरिक को आषिश दे कहा कलयुग में तुम मेरे नाम से ही पुजित होवोगे। 

खाटू श्याम का प्रगटीकरण

खटवांग राजा बडा धर्म परायण और मानव सेवी था। उसके यहां एक बहुत बडी गौ शाला थी। प्रतिदिन सेवक लौग गायों को चराने पास के ग्राम खाटू ले जाते थे। जहां अकसर गायें झुंड में ही विचरण करती थी। किन्तु उन्में से राधा नाम की गाय सबसे अलग दूर एक पहाडी स्थान पर जाती थी। और अपना सारा दुध उस स्थान पर स्वतःही चढा कर वापस आ जाती थी। एक रोज सेवक ने अलग जाते हुऐ और दुध चढाते हुऐ देख लिया। अब सेवक उस पर नजर रख कर कुछ दिन यह सब देखता रहा। जब उसे विश्वास हो गया तो सारी धटना की जानकारी गौ शाला प्रधान को दी। उन्होनें भी हकिकत देख राजा को सारी धटना कि जानकारी दी। आश्चर्य होने से राजा स्वंयम आये और यकिन होने पर पास ही हनुमान मंदिर में पुजा अर्चना करवा कर उस स्थान की खुदाई करवायी।  खुदाई वाले स्थान जिसे आज श्याम कुंड के नाम से जानते है। वहां से  श्याम बाबा का शीश शालीग्राम विग्रह रुप में मिला था। आज उसी शालीग्राम विग्रह की पूजा अर्चना की जाती है। खाटू श्याम जी का मंदिर 1027 ई. में रुपसिंह चौहान और उनकी पत्नि नर्मदा कवंर ने बनवाया था। शीश रुपी विग्रह को कार्तिक मास की एकादशी को मंदिर में स्थापित किया था। कालांतर में मारवाड के दीवान अभय सिंह जी ने 1720 ई. में मंदिर का जीर्णोध्दार करवाया था। यहां पर प्रतिवर्ष फाल्गुन माह में मेले का आयोजन होता है। 

कहते है सच्चे मन से श्याम बाबा को याद करो तो अवश्य ही कृपा होती हे।

जय श्याम बाबा की। 

रास्ते में अत्यधिक डायवर्शन के कारण देर होने से सीधे जयपुर ही पहूंचे। रात जयपुर में ही रुके। अगली सुबह जल्दी ही खाटू श्याम जी के लिये चल दिये। यहां से मात्र 70 किमी है और रोड भी बहुत अच्छी होने से हम लोग 9.00 बजे पहूंच गये। 

Khatu Shyam ji
श्री खाटू श्याम जी                                                                          

दर्शनों के लिये आन लाईन रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है।

हम से एक बडी गलती हो गई थी। बिना रजिस्ट्रेशन के ही पहूंच गये थे। इसलिये श्याम बाबा के दर्शनों से वंचित रहे। कोरोना काल होने से सभी जगहों पर रजिस्ट्रेशन अनिवार्य  है। आप भी यदि दर्शनों के लिये जा रहे है तो वेब साईट पर एक नजर अवश्य डाल लें।  

 यहां रुकने के लिये बहुत सी धर्मशालाऐं और हर श्रेणी की होटलें हैं।

भोजन के लिये भी होटल , रेस्टोरेंट है।

खाटू श्याम जी कैसे पहूंचने -

रेल मार्ग -

1.यदि आप ट्रेन से जा रहे है। तो जयपुर से रींगस के लिये ट्रेन बदलनी होगी। रींगस से 16 किमी सडक मार्ग की यात्रा बस अथवा टेक्सी से करनी होती है।

2. सडक मार्ग  

 जयपुर से 80 किमी  बस ,टेक्सी सुविधा उपलब्ध है।

अजमेर से 175 किमी  बस अथवा टेक्सी सुविधा उपलब्ध है।

निकटतम् हवाई अड्डा -

3. सबसे निकट का एयरपोर्ट जयपुर है। 

सभी को भुख लग रही थी। सो पहले पेट पूजा फिर काम दूजा। निकट की एक होटल में भोजन कर सालासर हनुमान जी के दर्शनों के लिये चल दिये। आप सबसे अब वहीं मुलाकात होगी।

                                                                                जय श्री कृष्ण

                               


                        



अतिप्राचीन जलप्रपात श्री गंगा महादेव

अतिप्राचीन जलप्रपात श्री गंगा महादेव



गंगा महादेव 

कोरोना काल की इस लंबी अवधि में सारी गति विधीयां सिमट कर रह गई थी। घर से आफिस और जरुरी हुआ तो बाजार से सामान लेने जाने के अलावा कहीं नहीं जा सकते थे। पहले तो अच्छा लगा मगर अब बोरियत होने लगी थी। ऐसे में विचार आया कि क्यों न कहीं आस पास ही घूमने चला जाय।थोडी सी जांच पड़ताल में एक बहुत सुंदर प्राकृति के मध्य भीडभाड से दुर स्थल का पता चला।अति प्राचीन जलप्रपात श्री गंगा महादेव 
कार्यक्रम बना, तय किया रविवार को वहीं पर पिकनीक पार्टी मनाई  जाय। 
सभी जरुरी सामान शनिवार शाम को ही गाडी में रख दिये। अगले दिन रविवार को हम लोग श्री गंगा महादेव की ओर चल दिये। हल्की हल्की ठंड में सुबह का सफर बडा सुहाना लग रहा था। सभी बडे खुश थे। बहुत दिनों बाद कहीं बाहर जाने का मौका मिला। रास्ते में एक होटल पर रुके।  गर्म गर्म जलेबी और पोहे देख अपने आप को रोक नहीं सके। सभी ने नाश्ता किया व चाय पी कर तरोताजा हो गये।
श्री गंगा महादेव बहुत ही प्राचीन जलप्रपात है। जंगल के मध्य यह स्थान हरियाली से आच्छादित अति रमणीय मनमोहक स्थान है।                                 

श्री गंगा महादेव जल प्रपात 


 हम लोग करीब 8.00 बजे पहुंच गये। गाडी पार्किंग कर प्रवेश द्वार की ओर चल दिये। प्रवेश द्वार के करीब से ही सीढियां  उतरने पर सामने ही मनोहारी जलप्रपात दिखाई दिया। हल्की हल्की पानी की बुंदे बहुत सुकून दे रही थी। काफी ऊंचाई से गिर रहे झरने की तीव्र ध्वनि ने रोमांचित कर दिया। सामने पानी के कुंड में बहुत से दर्शनार्थी नहाने का आनंद ले रहे थे। वाकई बहुत ख़ूबसूरत जगह है। कहते है बारिश में तो यहां की छटा और निराली हो जाती है। चारों ओर फुलों की सुगंध और पक्षियों की चहचहाहट से वातावरण गूंजायमान रहता है। शिवरात्री पर मेले का आयोजन होता है। विशेषकर सावन माह में ज्यादा गहमा गहमी रहती है।

श्री गंगा महादेव झरना

 चट्टानों के नीचे गंगा महादेव जी का मंदिर है। हम सब ने भी मुंह हाथ धो कर महादेव जी के दर्शन किये। एक ओर मंदिर की घंटी और दुसरी तरफ झरने की मधुर ध्वनि
ने मंत्र-मुग्ध कर दिया। कहते है यहां पर बहुत से औषधीय वृक्ष भी  है किंतु जानकारी के अभाव में हम वहां तक नहीं पहुंच पाए। कुंड से थोडा आगे जाने पर खुले मैदान  में हरियाली और घनी होती जा रही थी।  सभी अपनी तरह से    आनंद लेने लगे। हम लोग भी एक चट्टान पर बैठकर दृश्यों को निहार रहे थे।    

श्री गंगा महादेव झरना
                        
यह स्थान इंदौर -अहमदाबाद हाई वे पर स्थित धार से करीब 20 किमी दूर ग्राम सुलतानपुर के समीप है। बोधवाडा तक  हाई वे  है यहां से श्री गंगा महादेव जी निजी वाहन से ही जा सकते है ।                                  शाम की वापसी के साथ आज की            

 पिकनीक पार्टी का समापन हुआ।             

 
जय श्री कृष्ण
            


                      









 



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