सोने की घास के मैदान सोनमर्ग का सफर
थाजीवास-ग्लेसियर-सोनमर्ग |
श्रीनगर में हमारा दुसरा दिन और रूट चार्ट के अनुसार अगला पाइंट सोनमर्ग था। जम्मू-कश्मीर राज्य के गांदरबल में करीब 2850 मीटर की उंचाई पर स्थित पर्वतीय पर्यटन स्थल जहां पर कई पर्वत और ग्लेशियर है। शीतकाल में ये स्थान बर्फ से आच्छादित रहता है तो ग्रीष्म में घास के मैदान ऐसे प्रतीत होते है कि स्वर्ण का आवरण चढा हो। रेशम के लिये प्रसिद्ध यह स्थान पुराने समय में शिल्क प्रवेश द्वार के रुप में जाना जाता था। काश्मीर लद्दाख और चीन का मार्ग यहीं से गुजरता है। |
श्रीनगर से सोनमर्ग की दूरी 80 किमी है। वहां पहुंचने में करीब तीन धंटे का समय लगता है। इसलिए सुबह जल्दी जाना था । रात में ही टेक्सी की व्यवस्था कर ली और सुबह 8.00 बजे होटल आने का कह दिया।
सुबह हम सब तैयार होकर होटल के बाहर आये तो हर तरफ बारिश की वजह से पानी ही पानी भरा था। ऐसा लग रहा था। मानो रात भर बारिश हुई हो। ठंडी हवा भी चल रही थी। मौसम के अनुरुप सब को चाय की तलब लगी। पास ही रेस्टोरेंट में चाय का आर्डर कर बाहर ही इंतजार करने लगे। कुछ ही समय में गाडी भी आ गई थी। उबैद भाई हमारी गाडी के ड्राइवर बहुत ही सज्जन और सुलझे हुऐ इंसान हर समय सही सलाह दी। हम जल्द ही अपनी मंजिल की ओर चल दिये धीरे-धीरे मौसम भी साफ हो रहा था। हल्की सी धूप निकलने से हम लोगों ने राहत की सांस ली। गाडी श्रीनगर के अंदरूनी इलाकों से गुजर रही थी सुबह सुबह कही पर बच्चे अपने स्कूल बस का इंतजार कर रहे थे तो कहीं पर साफ सफाई का काम चल रहा था। इसी तरह घनी बस्ती से बाहर निकलते ही डल झील के दुसरी तरफ की झलक दिखाई दी। निकट ही कोई खुबसूरत बाग भी था। झील में शिकारे और कही कहीं हाऊस बोट भी नजर आ रही थी। नजारों को निहारते निहारते अब हम लोग मुख्य मार्ग पर आ गये। बाहरी इलाकों में बहुत सुंदर मकान और पृष्ठ भाग में ऊंची पहाड़ियों की श्रृंखलाएं ऐसे प्रतित हो रहा था जैसे कोई खुबसूरत पेटिंग बनाई हों। हम लोग प्राकृतिक नजारों को देखने में इतने व्यस्त थे कि समय का ध्यान ही नहीं रहा । करीब एक घंटे की यात्रा के बाद गाडी रेस्त्रां के सामने रुकी। होटल में खाने का आर्डर देकर पास में घुमने निकल पड़े। बहुत शानदार जगह थी। एक तरफ नदी में बहता पानी अपनी मधुर संगीत स्वर लहरी बिखेर रहा था तो निकट में पर्वत श्रृंखला मंत्र-मुग्ध से शांत भाव में निहार रही हो। ऐसे खुबसूरत नजारों को कैमरे में कैद करने से हम अपने को रोक नहीं पाए। और हम इस कार्य में अकेले नहीं थे। और भी बहुत लोग फोटोग्राफी कर रहे थे।
इधर हमारा खाना टेबल पर लग गया था। गर्मा गर्म आलू के परांठे के साथ में दही व अचार ने खाने को और भी लजीज बना दिया।
करीब एक घंटे के विश्राम के बाद हम सोनमर्ग की तरफ चल दिये। रास्ते में कई जगह बर्फ से आच्छादित पहाड़ियां के मध्य से सडक गुजर रही थी। मानो अपने लिए रास्ता मांग रही हो। इस शांत सी जगह में भी ट्राफिक का अत्यधिक दबाव बना हुआ था । ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो सभी सोनमर्ग ही जा रहे हो। रास्ते में कई जगह प्राकृतिक दृश्यों ने मंत्र-मुग्ध सा कर दिया । कहीं कहीं सडक पर कार्य चलने से थोडा खराब रास्ता के कारण अचानक झटके लगने लगते। एक दो जगह तो टनल का कार्य भी बहुत बडे पैमाने पर चल रहा था और बीच-बीच में कहीं मरम्मत कार्य के चलते थोडा समय ज्यादा लगा। आखिर हम सोनमर्ग पहूंच गये। बर्फ से आच्छादित पहाड़ियां, आस पास के मनोरम दृश्य और खुशनुमा मौसम ने मन प्रफुल्लित कर दिया।
थाजीवास-ग्लेसियरसोनमर्ग |
उपर थाजिवास पार्क तक जाने के लिये कुछ पौनी वालों से चर्चा करी लेकिन बहुत ज्यादा रेट बताने से हमने प्रीपेड खिडकी पर जानकारी ली। उक्त जगहों के प्रति व्यक्ति पन्द्रह सौ रेट तय है। इसमें समय सीमा का बंधन नहीं है। यहीं से धोड़े किराये पर लिये। साथ ही लंबे कोट तथा बरसाती जुते भी किराये पर लेना पड़े। अपने साधारण जुते बर्फ़ में काम नहीं करते। रास्ते में एक जगह चैंकिंग कर पुछताछ हुई थी। वहां पर भी बताया गया था कि आपके साथ धोखा न हो इसलिये हम जानकारी लेते हैं। अभी थोडा सा ही चले होगें कि फोटोग्राफर,स्लेज और गाईड साथ हो लिये। यहां पर आपको भावनात्मक व लाचार बन फंसाया जाता है। तय रेट से कहीं अधिक मांग की जाती है। बहुत मोल-भाव के बाद स्लेज वाले को ही हां कहा। पहाड़ों पर बर्फ देख सभी बहुत प्रफुल्लित हो गये। जो दृश्य फिल्मों और नेट पर देखते थे आज वास्तव में देख रहें हैं। यहां कई अन्य गतिविधियों भी संचालित कि जा रही थी। किंतु किराया अत्यधिक था। परिवार के सभी सदस्यों ने भरपुर आनंद लिया। बस थोडा सा मलाल रहा कि बारिश शुरु होने से हमें जल्द वापस आना पडा। रास्ते में ऐसा कोई स्थान नहीं दिखा जहां बारिश से बचा जा सके। कच्चे और कीचड़ से भरे उबड़-खाबड़ रास्ते पर करीब पौन धंटे की पौनी सवारी के अच्छे व बुरे अनुभव रहे। कहते हैं यहां के मैदान सोने जैसी घास के दिखाई देते है। इसलिए इसे सोनमर्ग नाम मिला। अब हमे तो इस मौसम मे सभी तरफ बर्फ ही दिखाई दी। बारिश की वजह से सभी भीग गए थे ऊपर से मौसम की ठंडक ने अच्छा खासा अहसास दिला दिया।
यहां के प्रमुख पर्यटन स्थल
- ज़ोजी ला पास
- थाजीवास ग्लेसियर
- विशनसर झील
- नीलगार्ड नदी
- बालटाल घाटी
- युसमर्ग
- कृष्णसर झील
- गदासर झीलगंगाबल झील
अच्छा विदा लेते हैं। अगले अंक में श्रीनगर मे मिलेगे।
बर्फ देखनी हो तो दिसंबर से फ़रवरी मार्च और हरियाली के लिये अप्रैल से अगस्त के माह उत्तम समय है। श्रीनगर से सडक मार्ग से सीधा जुडा है। अमरनाथ यात्रा के लिए भी एक मार्ग यहीं से गुजरता है।
जय श्रीकृष्ण
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