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एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा पार्ट- 5


                               जय श्री कृष्ण

 सीता जी के जन्म स्थल जनकपुर की यात्रा-----


एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा पार्ट- 5


शाम  7.00 बजें काठमांडू से जनकपुर के लिये चले। रोड हाई-वे था। मगर अति व्यस्त खतरनाक पहाड़ी रास्ता और उपर से रात में भारी वाहनों की लाईटें परेशान कर रही थी। कभी कभी तो आंखो से आंसु भी आ जाते थे।  इन सब परेशानियों के बावजूद भी हमारे ड्राईवर साहब की ड्राईविंग स्किल कमाल की थी। बेख़ौफ़ वो अपना काम कर रहे थे।  

काठमांडू में ही तय कर लिया था कि भोजन रास्ते मे करेगें । किंतु हर जगह नानवेज का बोलबाला था। अतः चाय पीकर ही संतुष्ट होना पडा। जैसे जैसे समय बढ रहा था। नींद और भुख भी सता रही थी। इसी उहापोह में रात 1.20 बजे जनकपुर पहुंचे। यहां पर हल्की बारिश के कारण ठंड और बढ गई थी। एक सज्जन से धर्मशाला का पता पुछकर उस ओर चल दिये। मन में विचार आ रहा था। कि इतनी रात को वहां कौन मिलेगा। किंतु वहां पहुंचे तो देखा अच्छी खासी भीड थी। यात्री बसें आ जा रही थी। 

धर्मशाला पहुंचकर सबसे पहले एक हाल बुक किया।  फिर भोजन बनाने के लिये तामझाम गाडी से उतारे। वहां निर्देश थे।कि भोजन रसोईघर  में ही बनावें तो सारा सामान लेकर रसोईघर पहुंचे। सभी अपने अपने काम में लगे थे।  हमारे दो साथी बाकी का सामान हाल तक पहुंचाने चल दिये। 
सभी के सहयोग से जल्द ही भोजन बन गया था। पुरी यात्रा में पहली बार था । कि देर रात भोजन कर रहे थे। खैर एक कहावत है कि पहले पेट पुजा फिर काम दुजा ।

 सुबह सभी देर से उठे । बाहर आकर देखा तो धर्मशाला खाली हो गई थी। सफाई कर्मचारी अपने अपने काम में लगे थे। हमें भी जल्दी ही निकलना था। चलिये सभी लोग तैयार होकर आये, तब तक जनकपुर के बारे में थोडा जान ले।

 जनकपुर 

इतिहास 

 एक कथा के अनुसार जनकपुर के शासक कराल जनक ने कामांध होकर एक ब्राह्मण कन्या का शील भंग किया था। इसकि परिणीती में राजा अपने  बंधु बांधवों के साथ मारे गये।  जनक वंश के जो लोग शेष बचे थे। उन्होने जगंल में शरण लेकर जान बचाई थी। यह जंगल ही आज का जनकपुर है।  प्राचीन काल में मिथिला की राजधानी जनकपुर थी। यहां पर राजा जनक का शासन था। यह वही जनकपुर है। जहां पर सीता जी का जन्म हुआ था।  विदेह में निमी वंश के राजा सिरध्वज  जनक 22वें  जनक थे। सीता जी इन्ही की पुत्री थी।जनकपुर का महत्व तब और बढ गया जब सीता स्वयंवर और राम जी के साथ सीता जी का विवाह हुआ। राजा जनक को अपनी पुत्री के लिये योग्य वर चाहिये था। और उसके लिये राजा महाराजाओं में स्वयंवर का प्रचलन था। इन स्वयंवरों में योग्यता परखी जाती थी। राज महल में एक दिव्य शिव धनुष था। जिसे प्रतिदिन सीता जी एक हाथ से उठाकर उस स्थान की सफाई करती थी। यह देख राजा ने प्रतिज्ञा ली थी कि जो राजकुमार इस शिव धनुष की प्रत्यंचा चढा देगा उसी से सीता का विवाह करेगें। स्वयंवर में बहुत से राजकुमार आये पर कोई सफल नहीं हुआ। तब श्री राम जी ने धनुष की प्रत्यंचा चढा कर सीता जी से विवाह किया था।  साथ ही श्री राम जी के भाई  भरत जी का मांडवी से लक्ष्मण जी का उर्मिला तथा श्रुति कीर्ति का शत्रुघ्न के साथ विवाह हुआ था।

पर्यटन स्थल

जानकी मंदिर -

यह मंदिर सीता जी (जानकी जी) को समर्पित है। इसके निर्माण में 16 वर्षो का समय लगा था।  सन 1895 ई. में आरंभ होकर 1911 ई. में पूर्ण हुआ था। 4680 वर्ग फिट क्षेत्र में निर्मित इस भव्य मंदिर कि भी बड़ी रोचक कहानी है। कहते है कि टीकमगढ़ की महारानी वृषभानु कुमारी बुंदेला ने पुत्र की चाह में अयोध्या में कनक भवन मंदिर बनवाया। किन्तु सफलता नहीं मिली।


सीता मंदिर, जनकपुर नेपाल

तब गुरु की आज्ञा से जनकपुर में जानकी मंदिर का निर्माण शुरू करवाया था। इसके एक वर्ष में ही उन्हे पुत्र प्राप्त हुआ था। 

जानकी मंदिर, जनकपुर नेपाल 

किन्तु कुछ समय बाद उनकी मृत्यु होने से मंदिर का निर्माण प्रभावित हुआ था। बाद में वृषभानु बहन नरेन्द्र कुमारी ने निर्माण कार्य पुर्ण करवाया था। 

विवाह मंडप, जनकपुर नेपाल 

यहां और भी बहुत सुंदर स्थान है। थोडा समय लेकर जायें जिससे इन सब स्थानों को आप   देखना पसंद करेंगे। 

  • जालेश्वर महादेव 
  • दोलखा भीमसेन मंदिर 
  •  गंगासागर झील
  • धनुष सागर झील 
  • रत्ना सागर
हमारी गाडी की नेपाल में अनुमति की अवधि आज समाप्त हो रही थी। इसलिए अवधि सीमा में ही वापस भारत में प्रवेश करना था। अन्यथा भारी जुर्माना देना पड़ता। शाम पांच बजे भारत नेपाल सीमा चौकी पहुंच गये थे। लाईन बहुत लंबी थी । अपना नंबर आने पर सारे कागजात दिखाकर बेरियर पर अपना अनुमति पत्र दिखाया और गेट खुलने पर भारत में प्रवेश कर लिया । रात बौद्ध गया पहुंच गये।                                           
                 
 जय श्रीकृष्ण                 
 

एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा पार्ट- 4

                                                                    जय श्री कृष्ण


काठमांडू की सैर




एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा पार्ट- 4
पशुपति नाथ मंदिर ,काठमांडू नेपाल 


रात करीब 11.30 बजे हम लोग काठमांडू पहुंचे।  देर रात पहुंचने से रूकने के लिये सबसे बडी समस्या हो गई थी। यहां भी संत जी का आशिर्वाद रहा। उन्होने ही अपने सम्पर्क सुत्र से एक होटल में हमारी व्यवस्था करवा दी थी। अब हमें उस पते पर पहुंचना था। देर रात अंजान शहर और कड़ाके की ठंड में बिना लोकल व्यक्ति की सहायता के सही जगह पहुंचना आसान नहीं था।एक दो जगह पता पुछने पर उन्होने कहीं ओर जगह ही पहुचां दिया हमें घूमते घूमते करीब एक घंटा हो गया। आखिर एक लोकल टेक्सी वाले को करना पडा।  मोल भाव कर 200 IC में राजी किया तब जाकर सही मुकाम पर पहुंचे।  हां होटल बहुत अच्छा था। एक ही हाल में हम सब की व्यवस्था कर दी थी। 

सुबह तैयार होकर सबसे पहले रिशेप्शन पर काठमांडू के पर्यटन स्थलों की जानकारी ली और रूट मैप बनाया। असुविधा से बचने के लिये यह बहुत जरूरी था। 

काठमांडू  चारों ओर पहाडीयों से धिरा हुआ है। यह समुद्र तल से 1300 मीटर की ऊंचाई पर करीब 51 वर्ग किमी क्षेत्र में बसा हुआ है। नेपाल देश की राजधानी और सबसे बडा शहर है। यहां हिन्दुओं के आराध्य भगवान शिव का विश्व प्रसिद्ध पशुपति नाथ मंदिर होने से इसका महत्व और बढ जाता है। 

काठमांडू शब्द काष्ट मंडप का अपभ्रंश है।नगर के मध्य में गोरखनाथ जी का मंदिर और एक विश्राम स्थल है। जो कि कहा जाता है कि एक ही वृक्ष  की लकड़ी से बनाया गया है। मध्यकालीन समय में इसे कांतिपुर नाम से भी जाना जाता था।

 इतिहास

भूगोलविदों के अनुसार काठमांडू पहले एक तालाब था। श्री कृष्ण के अनुयायी गोपाल वंशीय लोग यहां पर गाय चराते हुऐ आये और बाद में यही पर बस गये। राजा पृथ्वीनारायण शाह ने 1768 में मल्ल राजाओं से युद्ध में जीत कर गोरखाली नेपाल राज की स्थापना की और काठमांडू को राजधानी बनाया। राणाओं के समय बना सिंह दरबार जग प्रसिद्ध है। वर्तमान में यहीं पर नेपाल के प्रधानमंत्री का मंत्रालय और सर्वोच्च न्यायालय है। 

1934 में भूकंप में ध्वस्त काठमांडू को पुनः 1950 में बसाया गया और पर्यटकों के लिये खोल दिया।

   प्रमुख पर्यटन स्थल 

1.पशुपतिनाथ मंदिर

भगवान शिव को समर्पित हिंन्दु आस्था का प्रमुख तीर्थ स्थल है। बागमती के किनारे स्थित इस मंदिर के पास में ही श्मसान घाट भी है। यहां मुक्ति और भक्ति दोनों पास पास ही है।


एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा पार्ट- 4
नंदी जी, पशुपति नाथ मंदिर, नेपाल 


2.हनुमान ढोका


हनुमान जी का यह मंदिर देगुताले और तालेत मंदिरों के मध्य खुले मैदान में स्थित है। 1672 में प्रताप मल्ल ने हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित कर पुजा अर्चना करी थी। आज भी अनवरत जारी है।

 3.काष्टमंडप   

गोरखनाथ जी का मंदिर और विश्राम स्थल एक ही पेड़ की लकड़ी से बनाया गया है। 

4. अशोक विनायक मंदिर

अशोक वृक्ष के नीचे भगवान गणेश का यह मंदिर काष्ट मंडप के पीछे स्थित है। यहां पर धार्मिक आयोजनों के साथ राज्याभिषेक के कार्यक्रम भी होते है।

5. दरबार मार्ग

नेपाल में राणा शासन के दौरान हुऐ विस्तार का प्रमुख केन्द्र रहा यह मार्ग अपना  विशेष महत्व रखता है। इस पर कई धार्मिक स्थल और पुरातन मंदिर है। तथा राजा महेन्द्र की प्रतिमा भी लगी है।

   6. जगन्नाथ मंदिर

 हनुमान ढोका के पास में ही विष्णु जी का मंदिर है। इसमें तीन तरफ से प्रवेश कर सकते है। सम्पूर्ण मंदिर में की नक्काशी करी गई है।

7.स्वयंभू नाथ स्तूप 


एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा पार्ट- 4
स्वयंभू नाथ स्तूप, काठमांडू नेपाल 


विश्व में सबसे बडे बौद्ध स्तूपों मे से एक है।

 8.आकाश भैरव

भैरव नाथ का यह मंदिर आस्था का केन्द्र है। प्रतिवर्ष यहां इंद्रा जात्रा का आयोजन होता है।

9. राष्ट्रीय संग्रहालय

यहां राजाओं के स्मृति चिन्ह व कलाकृतियों का संग्रह है।

10. धारहारा टावर

उत्कृष्ठ वास्तु कला का यह टावर नौ मंजिला होकर करीब 61.88 मीटर ऊंचा है। इसे भीमसेन टावर के नाम से भी जानते है।

11.बौद्ध स्तूप



बौद्ध स्तूप, काठमांडू नेपाल 

12. रानी पोखरी 

सन 1670 में बनाया गया कृत्रिम तालाब है। इसे रानी का तालाब के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर बाल गोपालेश्वर का प्रसिद्ध मंदिर है।  भूकंप में ध्वस्त इस क्षेत्र का पुनः नव निर्माण किया गया है।

13. कुमारी घर

यह एक जीवित कन्या का देवी रूप में निवास स्थान है।एक प्राचीन प्रथा अनुसार नेवार कन्या का कुछ जटिल  प्रक्रिया से चयन किया जाता है। उस कन्या की देवी तालिजू का अवतार मान देवी प्रतिनिधित्व के रूप में पुजा की जाती है। विशेषता है कि कन्या कभी भी जमीन पर पैर नहीं टिकाती है केवल कुछ विशेष त्यौहारों को छोड़ कर।

14.असन बाजार

नेपाल का प्रसिद्ध बाजार है। जहां हर तरह का सामान मिलता है। खासकर इलेक्ट्रानिक सामान के लिये मशहुर है।

15.रत्न पार्क

बच्चो के लिये बनाया गया यह थीम पार्क नेपाल के राजा महेन्द्र सिंह की धर्मपत्नि के नाम पर रखा गया है 

16.पाटन दरबार क्षेत्र

काठमांडू से 9 किमी दूर ललितपुर शहर में स्थित है यह क्षेत्र । नेपाल के तीन शाही दरबारों मे से एक है। वर्तमान में युनेस्कों ने इसे विश्व धरोहर के रूप में चयनित किया है। लाल ईंटों के चौकोर फर्श पर नेवार वास्तुकला का अदभुत प्रदर्शन है।

17.शक्तिपीठ श्री गुह्येश्वरी मंदिर

कहा जाता है कि यहां पर सती के दोनों घुटने गिरे थे। इसलिये 51शक्तिपीठों में इस स्थान की मान्यता है

18.दक्षिण काली मंदिर

काठमांडू से 22 किमी दूर फार्पिंग गांव में स्थित यह मंदिर मां काली को समर्पित है। यह पुरातन मंदिरों में से एक है। 

19.तारा गांव संग्रहालय 

आर्ट गैलरी के लिये विख्यात है।

20.बुढा नीलकंठ

यहां पर भगवान विष्णु की, लेटे हुऐ मुद्रा मे श्याम शिला की बडी मनोहारी मुर्ति है।



एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा पार्ट- 4
बुढा नीलकंठ, काठमांडू नेपाल 

इसके अलावा गार्डन आफ ड्रीम ,तलेजु मंदिर ,नारायणहिती पैलेस संग्रहालय, सिद्धार्थ आर्ट गैलरी,मावु देवल और रूद्र वरण महाविहार ,कोपेन मोनेस्ट्री,कृष्ण मंदिर,बसंतपुर टावर, भीमसेन मंदिर,कुम्भेश्वर महादेव,काल भैरव,बसंतपुर डबली और न्यातापोल मंदिर देखने लायक जगह है।

 शाम करीब 6.00 बजे एक जगह भोजन के लिये रूके। उस समय हम सब विचार कर रहे थे। यहां रूके या आगे चले। आगे का सफर 225 किमी का है। वहां पहुंचने में अंदाजन 7 से 8 धंटे लगेगें।  आखिर ड्राईवर अंबू भाई पर निर्णय छोड़ा गया। कुछ विचार के बाद आगे चलना तय हुआ और शाम 7.00 बजे हम लौग जनकपुर की ओर चल दिये। यहीं पर नेपाल यात्रा पुर्ण कर भारत में प्रवेश करना था। 
काठमांडू से जनकपुर का मार्ग भी पहाडी ही था। मगर रोड ठीक होने से बिना किसी कठनाई के सफर जारी रहा। रात 1.20 बजे जनकपुर पहुंचे।

काठमांडू कैसे पहुंचे

हवाई मार्ग से जाने के लिये  काठमांडू में एयरपोर्ट है। कई देशों से सीधी उडान मिल जाती है।
सड़क मार्ग से भी जा सकते है। कई ट्रेवल ऐजेंसियां गोरखपुर व दिल्ली से सीधी बस सेवाऐं उपलब्ध करवाती है।

सडक मार्ग से जाने के लिये सोनाली बोर्डर व जनकपुर से सीधे 
यहां पर आने का सही मौसम फरवरी से अप्रेल और सितंबर से नवंबर का महिना सबसे अच्छा समय है।
 काठमांडू पर्यटन स्थल होने से रहने खाने की सुविधा हर स्तर पर मिल जाती है।


अगले अंक में जनकपुर में मिलेगें ।


                                                 जय श्री कृष्ण











एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा पार्ट-3


एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा  पार्ट-3

          

हमारी एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा के रूट चार्ट के अनुसार अगला पाइंट पोखरा था। खुबसूरत पहाड़ों और झील से घिरे शहर की अद्भुत सुंदरता बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती है। 


एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा  पार्ट-3
गुप्तेश्वर महादेव, पोखरा 

 हमें सेतीबेणी से वापसी में शाम हो गई थी। रात संत जी के निवास पर ही रूके। अगले दिन सुबह जल्दी ही नेपाल के प्रसिद्ध शहर और झीलों की नगरी ..
पोखरा की ओर जाना था

दो दिन की मालुंगा यात्रा अविस्मरणीय रही। सुबह सभी लोग अगले सफर की तैयारी में लग गये थे। संत जी से मार्ग की सारी जानकारी प्राप्त करके हम अगला कार्यक्रम तय करने मे लगे थे। तभी ग्राम में एक जगह से चाय नाश्ते के लिये आमंत्रण आया। अतः आग्रह स्वीकार कर के सब उनके घर  गये। वहां हमारा बहुत ही आत्मिक स्वागत हुआ। 

करीब 9.30 बजे संत जी से विदा ले पोखरा कि ओर चल दिये। पहाड़ी मार्ग पर सडक नागिन सी बल खाती हुई , एक पहाड़ी से दुसरी पहाड़ी तक ,कभी उपर कभी नीचे बहुत ही रोमांचक लग रही थी। इन सब के बीच खुबसुरत नजारे सफर को और खुशनुमा बना रहे थे। हम लोग  कभी कभी रूक कर खुबसुरत दृश्यों को भी , चिरस्मृति में संजोने के लिये , अपने अपने मोबाइलों में कैद कर रहे थे। नेपाल यात्रा के हमारे अगले रूट चार्ट में जगत्रदेवी , गलकोट ,  कमलाती ,वालिंग ,पुतलीबाजार और फेदी खोला होते हुऐ पोखरा शहर था। करीब 98 किमी सिद्धार्थ राजमार्ग का सफर तय करके 1.00 बजे हम पोखरा पहुंचे। यहां पर भी संत जी की कृपा रही और एक परिचीत ने हमें शहर घूमने में मदद की। उन सज्जन के कारण ऐसा लगा ही नहीं की हम अपरिचित स्थान पर घूम रहे हैं। 

बस एक ही बात का अफसोस रहा कि काश ऐसे स्थान पर आने के लिये , कम से कम दो से तीन दिन होने ही चाहिये। इतनी खुबसुरत जगह आने पर जल्दी जाने का मन नहीं कर रहा था। यहां के मनमोहक दृश्य और बहुत से दर्शनीय स्थलों की सैर यादगार अनुभव रहा। और हां यहां से प्रसिद्ध तीर्थ स्थल मुक्तिनाथ जाने का भी मार्ग है। 


पोखरा के मुख्य पर्यटन स्थल :.     

 1.  फेवा लेक
2.   गुडे लेक
3.   बेगनास लेक
4.   मेंडी लेक
5.   रूपा लेक
6.   दिपांग् लेक
7.   नियुरेनी लेक
8.   खास्टे लेक
9.   पोखरा लेक
10.  डेविस फाल
11.   राम मंदिर
12.  भीमसेन मंदिर
13.  भद्रकाली मंदिर
14.  ढोर वाराही मंदिर
15.  श्री विंधेश्वरी मंदिर
16.  ताल बाराही मंदिर
17.  गुप्तेश्वर महादेव
18.  गुंबा मानेसट्री 
19.  श्री उरगेन छोलिंग बौद्ध मोनेसट्री 
20.   जंगचूब छोलिंग मोनेसट्री
21.    माटेपानी गुंबा
22.    पेमा  साक्य मोनेसट्री
          इंस्टीटयूट
23.    अन्नपूर्णा तितली म्युझियम 
24.    रीजनल म्युझियम 
25.    अन्तरराष्ट्रीय पर्वतीय म्युझियम
26.    गोरखा स्मारक म्युझियम 
27.    मितेरी पार्क
28.     चच्वी पार्क
29.     बसुंधरा पार्क
30.     होली पार्क
31.     पोखरा प्लेनेटेरियम एंड
          साईंस सेंटर 
          ( मिरर माजे हाऊस)
32.     वर्ल्ड पीस पगोड़ा
33.     तुतुंगा व्यूह पाईंट
34.     महेन्द्र गुफा
35.     चमेरे गुफा
36.     सेती नदी धाटी
37.     के आई सिंह पुल
38.     जि एन रेकी ध्यान केन्द्र


एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा  पार्ट-3
ताल वाराही मंदिर, पोखरा 

इसके अतिरिक्त कई जगह माऊंटेनिंग व   रिवर राफ्टिंग के लिये भी कैप है। 

एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा  पार्ट-3
पोखरा लेक, पोखरा

यहां पर   मनोरंजन और रोमांच का मिला जुला आनंद मिलता है। 

एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा  पार्ट-3
पोखरा लेक बोटिंग पाइंट 

पोखरा  आने का सही समय:- 

 पोखरा में  दिसंबर और जनवरी में सबसे ज्यादा ठंड रहती है। और मई से अगस्त के माह तक बारिश का मौसम रहता है इसलिये सबसे अनुकुल समय मार्च-अप्रेल और सितंबर से नवम्बर 

पोखरा कैसे जाये:-

हवाई मार्ग :- पोखरा एयरपोर्ट है 

सडक मार्ग :-  काठमांडू से कार ,बस सेवा उपलब्ध 
यदि निजी वाहन से जा रहे है। तो बुटवल से सीधा मार्ग है। जगत्रदेवी वालिंग होते हुऐ।

गुप्तेश्वर महादेव घूमने के बाद .हमारे गाईड महोदय ने हाई-वे लिंक रोड पहुंचाकर बिदा ली। हम सबको दिन भर की भागदौड़ के बाद अब भुख सता रही थी। एक दो जगह होटलों में भी गये। किंतु नान वेज की वजह से बात नहीं बनी।  धीरे धीरे ठंड भी बढती जा रही थी। अत्यधिक थकान होने से खाना बनाने का भी मन नहीं कर रहा था। आखिर एक जगह शुद्ध शाकाहारी होटल मिल ही गई। 
खाना खाकर शाम करीब 6.30 बजे काठमांडू की ओर चले।  205 किमी का सफर था। उस पर बहुत ही व्यस्त राज मार्ग।  धीरे धीरे हमारी कार की रफ्तार बढने लगी थी फिर काठमांडू पहुंचने में 4/5 धंटे का समय तो लगेगा ही। 



एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा  पार्ट-3
गुप्तेश्वर महादेव,पोखरा


रात 11.00 बजे काठमांडू से 10 किमी पहले एक ग्राम में मार्ग की जानकारी के लिये रूके । मगर कोई भी व्यक्ति नहीं मिला। अब असमंजस की स्थिती बन रही थी। किधर जायें कोई संकेतक भी नहीं लगा था। अंदाजन ही चल रहे थे। तभी एक सुनसान स्थान पर दो तीन लोग खडे मिले। हमने उनसे जानकारी लेने के लिये कार रोकी किंतु खतरे का अहसास होते ही कार की रफ्तार बढ़ानी दी। करीब 5 किमी चलने के बाद एक वाहन दिखाई दिया उसके सहारे काठमांडू पहुंचे। चलिये अगले अंक में काठमांडू की सैर करेगें।



                                                                                
                                                                                  जय श्री कृष्ण












एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा पार्ट-2

                              राधे राधे मित्रों

आज हमारी एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा पार्ट-2 की शुरूआत हो रही है। इस पार्ट मे हम यात्रा करेगें।........

 सेतीबेणी की जहां संसार की सबसे बडी शालीग्राम शिला है। 

 

एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा पार्ट-2
सेतीबेणी, नेपाल 

मालुंगा नेपाल की पहाडीयों के बीच बसा हुआ है। चारों ओर हरियाली,ऊंचे ऊंचे पहाड और मैदानी इलाके में बस्ती, एक तरफ बहती हुई विशाल काली गण्डकी नदी, ऐसा लग रहा था कि , पोस्टर पर उतारी हुई कोई खुबसुरत पेंटिंग हो। कल आस पास के पर्यटन स्थलों पर घूमने गये थे। प्रकृति को इतने नजदीक से देख कर भाव विभोर हो गये।  शाम को संत जी के निवास पर कुछ धार्मिक परिचर्चा भी हुई। संत जी ने बताया कि यहां से थोडी दूरी पर सेतीबेणी नामक स्थान पर संसार की सबसे बडी शालीग्राम शिला है। कहते है कि इस नदी में ही कुछ इस तरह कि शिलाऐं मिलती है जिन पर स्वतः ही कि आकृति उभर आती है व और भी कुछ पहचान है जो कि कोई जानकार ही बता सकता है। खैर हम सब ने वहां जाने का मन बना लिया था। वैसे भी उस स्थान पर स्थानीय लोग ही ज्यादा जाते है। 

संत श्री शिवांश महाराज 

अगले दिन सुबह भोजन के बाद संत जी के साथ सेतीबेणी जाने का कार्यक्रम बना। हम लोग कार से 85 किमी दुर  हर्मिचौर की तरफ चल दिये। पहाड़ी व अधिकतर चढाई वाला मार्ग होने से करीब दो धंटे का वक्त लगा। हर्मिचौर में एक जल विधुत ईकाई है


हर्मिचौर बोट स्टाप


श्री शिवांस महाराज जी हमारा इतंजार कर रहे थे। वे स्वयंम ही डैम स्थल तक हमे लेने आये। महाराज जी से मिलकर बडी प्रसन्नता हुई। उनका निवास पास ही एक मंदिर में है।  यह मंदिर डैम स्थल से थोडा दुर जंगल के रास्ते पगडंडी वाले मार्ग पर है। शिवांस महाराज इस जगह अकेले ही रहते है। यहां तो दिन में भी दूर दूर तक कोई दिखाई नहीं दे रहा था। शायद भक्ति का मार्ग ही ऐसा है। सभी सांसारिक मोह बंधन से दुर रहकर एकांत में प्रभु अराधना करना।                                               

मंदिर जाने के लिये डैम के पास से ही रास्ता है। अतः हमने महाराज जी से डैम स्थल घूमाने का अनुरोध किया। इस पर उन्होने स्थानीय अधिकारी से इजाजत लेकर डैम दिखवाया।  डैम के आस पास का नजारा बहुत सुंदर था। 
शिवांस महाराज जी ने मंदिर में हम लोगों के लिये स्वल्पाहार का प्रबंध करवाया था। इस दौरान धार्मिक चर्चा भी हुई।  स्वामी जी ने आशिर्वाद स्वरूप हम सब को एक एक रूद्राक्ष और शालीग्राम जी दिये। जल्द ही यहां से विदा लेकर बोट- स्टाप की ओर चल दिये। सेती बेणी जाने के लिये मोटर बोट से तकरीबन 50 मिनट का समय लगता है। 


सेतीबेणी जल मार्ग, नेपाल 

दोंनो और बहुत ऊंची ऊंची पहाड़ियां बीच में जल मार्ग दुर से देखने पर लगेगा ही नहीं की आगे कोई मार्ग है। मोटर बोट अपनी रफ्तार से दौड़ रही थी। और उसका शोर भी पहाडीयों से प्रतिध्वनित होकर इतना ज्यादा हो रहा था। कि पास बैठे साथी की आवाज भी साफ नहीं सुन पा रहे थे। आखिर 50 मिनट का सफर थोडी असुविधा व रोमांच के साथ पुरा हुआ । बोट से उतरकर सेतीबेणी की ओर चल दिए।
छोटा सा गांव है। हम लोग इसकी मुख्य सडक जिसके दोनों ओर मकानों की श्रृंखला को पार करके शालीग्राम शिला के दर्शन करने गये। वास्तव में यह शिला  एक बडी सी चट्टान है। जिस पर स्यावभाविक रूप से बहुत सारे ओम उभरे है । 


विशाल शालिग्राम शिला,सेतीबेणी नेपाल

दर्शन कर हमें जल्द ही लौटना था। क्योंकि आखरी बोट के जाने का समय हो रहा था। यह पुरा सफर रोमांच से भरपुर था।

हम लोग करीब 9.00 बजे वापस मालुंगा आ पाये। यदि थोडा जल्दी आ जाते तो पोखरा के लिये चल देते। सभी लोग थक भी गये थे। अतः रूकना ही अच्छा रहा। चलिये नेपाल यात्रा पार्ट-3 में पुनः मुलाकात होगी। तब तक के लिये.......

                                                  ।। जय श्री कृष्ण ।।

एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा

                         जय श्री कृष्ण     

एक रोमांचक बजट यात्रा


एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा
पहाड़ों की सुबह


हमारे यहां गीता जयंती महोत्सव मनाया जाता है। इस महोत्सव में प्रति वर्ष एक संत के गीता जी पर प्रवचन होते है। इस कड़ी में नेपाल के संत श्री चैतन्य कृष्ण जी को आमंत्रित किया गया था। वे उज्जैन तक ट्रेन से पधारे थे। वहां से उन्हें लाने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ। रास्ते मे ज्ञान चर्चा के साथ नेपाल के बारे में भी बहुत कुछ जाना। 
महोत्सव के समापन पर संत जी हमें नेपाल आने के लिये आमंत्रित कर गये थे। 
सभी मित्रों के समक्ष नेपाल यात्रा का प्रस्ताव रखा गया। हम छः सदस्य तैयार हुऐ। सभी ने यात्रा के सभी पहलू पर विचार विमर्श किया। इसमें प्रमुख था। यात्रा मार्ग , वाहन , मार्ग में होने वाला व्यय , भोजन की व्यवस्था और किन किन जगहों पर रूकना है इत्यादि। अब सबसे मुख्य वह गाडी जिससे हमे यात्रा करनी थी। उसकी सर्विसिंग जरूरी थी । यह काम ड्राईवर भाई अंबाराम जी के जिम्मे किया गया। 

अगले दिन सुबह सामान गाडी में व्यवस्थित रखवाया। जिससे रास्ते में किसी तरह की परेशानी न हो। 11 बजे से सभी साथियों का इंतजार करते करते दोपहर करीब 2.30 बजे कहीं जाकर सफर शुरू हुआ। सभी में यात्रा का उत्साह चेहरे पर साफ झलक रहा था। 

हम लोग रात 8.00 बजे भोपाल पहुंचे। जनवरी महिने की रात्री में ठंड भी अच्छी खासी होती है। अतः रात भोपाल में माता जी के आश्रम में रूके। एक बडे से हाल में हम सब के रूकने की व्यवस्था कर दी गई थी। 
      

एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा
माता जी का आश्रम, भोपाल 


बाहर कड़ाके की  ठंड पड रही थी। कमरे में जाते ही सकून मिला। रात बहुत अच्छी निकली। अगले दिन सुबह जल्दी तैयार होना था। सो ठंडे पानी से ही स्नान करना पडा। कंपकपाते तैयार हो रहे थे। तभी आश्रम के सेवाभावी भक्त चाय ले आये। ठंड में चाय मिल जाये तो समझो नव जीवन मिला हो। 
सुबह 6.00 बजे हमारा सफर पुनः शुरू हुआ । आज का लक्ष्य 500 किमी दूर चित्रकूट था। हाईवे पर आते ही स्पीड पकड़ी किंतु बाहर ठंड ज्यादा थी और कांच बंद करो तो विंड स्क्रीन पर धुंध छाने लगती थी। आखिर एक तरफ के कांच थोडे नीचे करने पड़े। सूर्य देव के भी दर्शन नहीं हो पा रहे थे। रूकते चलते शाम 7.30 बजे चित्रकूट में प्रवेश किया। सबसे पहला काम, ठहरने की जगह का इंतजाम करना और उसके लिये थोडे से प्रयास में ही एक धर्मशाला में जगह मिल गई थी। जरूरी सामान गाडी से उतरवा कर भोजन बनाने का काम शुरू किया। इसके लिये सभी सदस्य सहायता करवाते थे। इस तरह की मेरी पहली यात्रा थी। जो बहुत कुछ नया सिखा रही थी

चित्रकूट 


अगले दिन हम लोग चित्रकूट घूमने निकले। यह वही चित्रकूट है जहां प्रभु श्रीराम जी ने चौदह वर्षो के वनवास में कुछ समय यही विश्राम किया था। 


एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा
नौका विहार, चित्रकूट 

मंदाकिनी नदी के दोनों ओर मंदिर बने है। नाव से सभी जगह दर्शन करने गये।



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विशाल हनुमान जी की प्रतिमा
 
राम घाट पर जहां श्री राम जी स्नान ध्यान करते थे।और इसी नदी के किनारे भरत मिलाप भी हुआ था। चित्रकूट के पास जंगल में सती अनुसूईया का भी मंदिर है।

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सती अनुसूईया मंदिर, चित्रकूट 

पास ही स्फटिक शीला पर मां सीता जी के चरण अंकित है।

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स्फटिक शिला पर मां सीता के चरण चिन्ह 

चित्रकूट के पास हनुमान धारा और अन्य बहुत से दर्शनीय स्थल है।किंतु समयाभाव के चलते खास खास जगह पर ही जा सके। शाम हो गई थी अतः रात यही पर रूके। दुसरे दिन सुबह जल्दी ही सफर पर चल दिये। वैसे तो हमारा लक्ष्य गोरखपुर था। किंतु प्रयाग राज में कुंभ महोत्सव चल रहा था। सो कुंभ स्नान के लिये सर्व सम्मति बन गई । 135 किमी का सफर तय कर सुबह करीब 9.00 बजे प्रयागराज स्थित कुंभ मेले में  पहुंचे। बहुत भीड भाड लगी थी। किसी तरह मेले क्षेत्र में एक परिचीत पंडे के टेंट तक पहुंचे।   

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त्रिवेणी संगम ,प्रयागराज 


अपना सामान टेंट मे रखकर नाव से त्रिवेणी संगम गये। संगम पर बहुत भीड भाड थी किंतु हमारे नाव वाले ने व्यवस्था करके स्नान ध्यान करवा दिया। वापसी तक वही नाव वाला हमारे साथ रहा।


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बड़े हनुमान जी, प्रयागराज 


वापस आकर एक संत के यहां चल रहे भंडारे में भोजन प्रसादी ग्रहण की। कुंभ मेला स्थल के नजदीक हनुमान जी का प्रसिद्ध पुरातन मंदिर है।

 दोपहर 3.00 बजे हम लोग गोरखपुर के लिये चल दिये। बहुत भीड भाड होने से जगह जगह ट्रेफिक जाम की स्थिती बनी हुई  थी। हमारी गाडी बहुत ही कम गति से आगे बढ पा रही थी। बहुत मुश्किल से हाई वे तक पहुंच पाये थे। हाई वे का हाल भी बहुत अच्छा नहीं था। बहुत लंबी लाईन लगी हुई थी। तकरीबन 3 धंटे में जाम से निजात पाई। शाम 7.00 बजे फिर गाडी ने स्पीड पकड़ी। गोरखपुर का सफर 300 किमी का था। इस सारी जद्दोजहद में सभी लोग थक गये थे। अतः पुनः तरोताजा होने के लिये कहीं थोडा विश्राम और एक अदद चाय की तलब सता रही थी। कुछ किमी चलने पर एक होटल पर रूके। थोडा सुस्ताने के बाद चाय का आनंद लेकर वापस अपने सफर पर चल दिये।

रात करीब 11.00 बजे धुंध बढने लगी थी। मगर कुछ दुरी तक का दिखाई दे रहा था। मैने अंबु भाई से पुछा कि रूके या चले। वे बोले जब तक चल सकते है। चलेगें। मगर समय के साथ हालात और खराब हो रहे थे। दृश्यता अब और कम हो गई थीगाडी के सभी साईड इंडिकेटर चालू करके चलना पडा।  ऐसे में सडक के एक किनारे पर मैने नजरे गडा रखी थी। डर था कहीं नीचे न उतर जाये।  रात 2.50 बजे कोहरा बहुत धना होने से मजबूरन एक होटल पर रूकना ही पडा।   कुछ देर रूक कर हालात के बारे में जानकारी ली। स्थानीय व्यक्ति ने सलाह दी धीरे धीरे जा सकते हो गोरखपुर  की दूरी 20 किमी  है। एक बार फिर हिम्मत करके चल दिये। अब बहुत ही सावधानी से व धीरे धीरे गाडी चला रहे थे। 
आखिर सुबह 5.00 बजे गुरू गोरखनाथ मंदिर के पास वाली धर्मशाला पहुंचे। किंतु  धर्मशाला में भीड थी और कोई कमरा न मिलने पर बरामदे मे ही समय गुजारना पडा।
सुबह 8.00 बजे सोनाली बार्डर की तरफ चल दिये।  रास्ते में हमने अपने नेपाली मित्र देबाशीश भाई को फोन कर दिया था।  उन्होने हमें सोनाली बार्डर पर मिलने का कहा।

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नेपाल प्रवेशद्वार, सोनाली बार्डर 

सोनाली बार्डर के एक ओर भारत व दुसरी ओर नेपाल का प्रवेश द्वार है। जिस देश में जाना हो वहां की कुछ कानूनी प्रक्रियाऐं पुर्ण करनी पड़ती है। हम लोगों ने नेपाल की सीमा पर पहुंच कर नेपाल का रोड टेक्स ,वहां की नंबर प्लेट व कुछ जरूरी खानापूर्ति करी। इस सब में हमें तीन धंटे का समय लगा साथ ही वहां की करेंसी एक्सचेंज करवाई ।और एक अति महत्वपूर्ण काम, एक मोबाईल चिप भी खरीद ली थी। बस एक और जरूरी औपचारिकता, रोड परमिट बनवाने के साथ ही पुरी हो गई।  हमारे मित्र देबाशीश भाई जी का विशेष आग्रह होने से उनके निवास स्थान तिलोत्तमा शहर में रूके। घर पर बहुत अच्छा सत्कार किया तथा उन्होने आगे के मार्ग के लिये हमें गाईड कर दिया।

एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा
परममित्र देबाशीश भाई, तिलोत्तमा

तिलोत्तमा से करीब 2.00 बजे  चले। हमारा अगला शहर बुटवल था । भारत से नेपाल का प्रवेश द्वार बुटवल शहर है। यह  तिनाउ नदी के किनारे बसा बहुत खुबसुरत शहर है। यहां से नेपाल के कई प्रमुख शहरों तक पहुंचा जा सकता है।

एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा
बुटवल शहर, नेपाल 

एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा
सिध्दबाबा मंदिर,बुटवल नेपाल 

इस शहर के पास ही पहाड़ी पर बना सिद्ध बाबा का मंदिर प्रमुख आस्था का केंद्र है। अतः हमारी भी आस्था और प्रबल होने से मंदिर दर्शन को चल दिये। जैसा सुना था। वाकई पहाड़ी पर बना बहुत सुंदर मंदिर था। आईये आपको भी दर्शन करवा देते है। 


एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा


एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा
सिध्दबाबा मंदिर, बुटवल नेपाल 

मंदिर पहाड़ी पर स्थित होने से दर्शन करने में करीब दो धंटे लग गये। उपर  एकांत में शिव धुन सुन कर मन  बहुत प्रसन्न हुआ।

शाम के 4.00 बजने वाले थे। और आगे का सफर पुरी तरह पहाड़ी मार्ग का था। आज हम लोगो को मालुंगा ,काली गण्डकी मार्ग तक पहुंचना था।  पहाड़ों में नेटवर्क न मिलने से गूगल देव असहाय थे। अब तो स्थानीय लोगो से जानकारी लेकर ही चलना पड रहा था। मुख्य मार्ग की हालत भी कुछ ठीक नहीं थी। अभी कुछ दुर ही चले थे। कि चेक पाईंऐट आ गया था। गाडी के कागज और मार्ग परमिट चेक किया गया। चेक पोस्ट के आफिसर का व्यवहार बहुत अच्छा था। उन्होने ही हमें आगे के रास्ते की जानकारी दी। पहली बार पहाड़ों में सफर कर रहे थे। ऊंचे नीचे टेढ़े मेढे रास्ते और दोनों ओर बडे बडे पहाड दूर से देखने में लग रहा था अगले पहाड के बाद रास्ता कहीं खो गया हो। उस पर स्थानीय वाहन चालकों की स्पीड कभी कभी डरा देती थी। एक बात पहाड़ों की बहुत अच्छी लगी कम से कम कोहरे की समस्या नहीं आ रही थी। किसी तरह पता करते करते आखिर रात 10.00 बजे मालुंगा पहुंचे।
श्री चैतन्य कृष्ण जी हमारा इंतजार ही कर रहे थे। आपका घर मेन रोड के पास में था। अतः कोई परेशानी नहीं हुई।  रात संत श्री चैतन्य कृष्ण जी के निवास पर ही हम लोगों के रूकने की व्यवस्था की गई ।

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कालीगण्डकी नदी,मालुंगा नेपाल 

पहाड़ों की सुबह बहुत ही सुहावनी लग रही थी। ठंड के साथ सुर्य की किरणें, मानो हमें बुला रही हो ,यहां आओ प्रकृति के पास ,मैं अपने को रोक नही पाया जब तक सब तैयार होते बाहर का एक चक्कर लगा आया।  सुबह की ताजी हवा ने  मन प्रफुल्लित कर दिया था। हम सब संत श्री जी के साथ काली गण्डकी के किनारे स्थित मंदिर और शालीग्राम शिला के दर्शन के लिये चल दिये। नदी पर बने झुला पुल से पार करते वक्त बहुत डर लग रहा था। पुरा पुल ही हिल रहा था। आश्चर्य स्थानीय निवासी मोटर साईकिल से गुजर रहे थे। मालुंगा उत्तरवाहिनी काली गंडकी नदी के किनारे स्थित है। यह नेपाल की सबसे बडी नदी और सबसे लंबा मार्ग तय करती है।

एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा
                                                कालीगण्डकी नदी पर बना झुला पुल


एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा
शालिग्राम शिला, कालीगण्डकी,मालुंगा नेपाल 

काली गण्डकी नदी में स्व निर्मित ॐ चिन्ह के साथ शालीग्राम जी की मुर्तियां मिलती है। पास ही संत जी का एक आश्रम का कार्य होने वाला है । 

वहां पर भी गये।  संत जी ने नदी के पास बनने वाले इस आश्रम की रूपरेखा बताई। बहुत सुंदर जगह थी। एकांत ध्यान योग के लिये उत्तम स्थान।
हमें बताया गया कि कल हम लोग उस स्थान पर जायेंगें जहां विश्व की सबसे बडी शालीग्राम शिला है। आप सब भी अगले अंक में साथ रहियेगा। यह ब्लाग थोडा लंबा हो गया है

कल हमारी यात्रा सेतीबेणी और पोखरा शहर की ओर होगी ।

इसे भी देखें    khatu shyam ji 

                              क्रमशः--           


                                                                     जय श्री कृष्ण














  



   


  




चोटीला माता के दरबार में


                                                                         जय श्री कृष्ण सभी को                                   


चोटिल माता जी
चोटिल माता जी

 गुजरात दर्शन मे मोढेरा के सूर्य मंदिर और वहां की वास्तुकला ने मंत्रमुग्ध कर दिया। गुजरात दर्शन मे अगला मुकाम चोटीला माता जो कि 190 किमी दूर है । चाय नाश्ता करके रास्ते की जानकारी ली। सड़कें अच्छी होने से रास्ते मे कोई परेशानी नहीं हुई। शाम को हम लोग चोटीला पहुंच गये थे। मंदिर ऊंचाई पर होने से दर्शन के लिए अब सुबह जाने का फैसला किया। रात्रि विश्राम के लिए मंदिर संस्थान की बेहतरीन धर्मशाला बनी हुई है । वहीं पर एक कमरा लिया । मगर जब कमरे में गये तो लगा चार सदस्यों के लिए छोटा है। प्रबंधक महोदय को अपनी समस्या से अवगत कराने पर उन्होनें हमें नवनिर्मित भवन में बडा कमरा दे दिया। कमरे पर थोडा तरोताजा होकर घूमने के लिए बाजार कि ओर चल दिए। धर्मशाला के बाहर बहुत सारे रेस्टोरेंट हैं जहां भोजन की अच्छी व्यवस्था है। 

चोटीला माता जी
चोटीला माता के दरबार में


मंदिर दर्शन के लिए  सुबह जल्दी तैयार हुए  चूंकि मंदिर  दूर था इसलिए  धर्मशाला का कमरा छोड़कर गाडी अब हमें मंदिर के समीप बनी पार्किंग में जाना था। यहां से थोडा सा चलने पर एक बड़ा सा प्रवेशद्वार  बना हुआ है । यहीं  से सीढ़ियां शुरु होती हैं। चढाई देख माता जी से निवेदन किया कि आपको चलने मे तकलीफ़ आयेंगी आप यहीं रुके । मगर कहते है ना कि आस्था और विश्वास दृढ़ हो तो असंभव भी संभव हो जाता हैन जाने कौन सी शक्ति से प्रेरित होकर उन्होनें आधी चढाई बिना रुके ही तय कर ली।  ऊपर माता जी का भव्य मंदिर निहारते ही रह गये। दर्शन कर कुछ देर विश्राम किया। मंदिर प्रांगण में बैठना बहुत शकुन दे रहा था। हालांकि भीड़ तो थी फिर भी मन में अद्भुत शांति का अनुभव हो रहा था। पहाड़ी पर से आस पास का दृश्य बड़ा मनोहारी दिखाई दे रहा था । 



यह मंदिर राजकोट अहमदाबाद हाईवे पर पहाड़ी पर स्थित है।मंदिर मे प्रवेश के लिए तोरण द्वार से 635 सीढियां जो कि टीन शेड के कवर ढकी  है ।  चढकर जाना होता है।कई वर्ष पूर्व यह मंदिर बहुत छोटा था और पहुंच  मार्ग  बडा कठिन था।                                                                                                                 

चोटिल माता जी


पौराणिक कथानुसार मां ने चंड और मुंड नाम के दो राक्षसों का संहार किया था।तब से मां चामुण्डा नाम से विख्यात हुई मंदिर मे उपर है  पहाड़ी के आस पास के दृश्य बहुत खुबसुरत लगते है। प्रांगण के पास एक ओर बडा सा त्रिशुल बरबस ही ध्यान आकृष्ट करता है।                                                
इस मंदिर की विशेषता है कि शयन आरती के बाद पुजारी जी सहित सब लोग पहाड़ी से नीचे उतर आते है किसी को भी वहां रहने की इजाजत नहीं है, यह रहस्य आज भी बरकरार है।                                           
हमारी यह यात्रा कल जामनगर का अनोखा मुक्तिधाम की और चल दी। कहते है की यहाँ  पर विशेष रूप से देखने आते है। 
 
                                                                 

जय श्री कृष्ण 











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