चोटिल माता जी |
गुजरात दर्शन मे मोढेरा के सूर्य मंदिर और वहां की वास्तुकला ने मंत्रमुग्ध कर दिया। गुजरात दर्शन मे अगला मुकाम चोटीला माता जो कि 190 किमी दूर है । चाय नाश्ता करके रास्ते की जानकारी ली। सड़कें अच्छी होने से रास्ते मे कोई परेशानी नहीं हुई। शाम को हम लोग चोटीला पहुंच गये थे। मंदिर ऊंचाई पर होने से दर्शन के लिए अब सुबह जाने का फैसला किया। रात्रि विश्राम के लिए मंदिर संस्थान की बेहतरीन धर्मशाला बनी हुई है । वहीं पर एक कमरा लिया । मगर जब कमरे में गये तो लगा चार सदस्यों के लिए छोटा है। प्रबंधक महोदय को अपनी समस्या से अवगत कराने पर उन्होनें हमें नवनिर्मित भवन में बडा कमरा दे दिया। कमरे पर थोडा तरोताजा होकर घूमने के लिए बाजार कि ओर चल दिए। धर्मशाला के बाहर बहुत सारे रेस्टोरेंट हैं जहां भोजन की अच्छी व्यवस्था है।
चोटीला माता के दरबार में |
मंदिर दर्शन के लिए सुबह जल्दी तैयार हुए चूंकि मंदिर दूर था इसलिए धर्मशाला का कमरा छोड़कर गाडी अब हमें मंदिर के समीप बनी पार्किंग में जाना था। यहां से थोडा सा चलने पर एक बड़ा सा प्रवेशद्वार बना हुआ है । यहीं से सीढ़ियां शुरु होती हैं। चढाई देख माता जी से निवेदन किया कि आपको चलने मे तकलीफ़ आयेंगी आप यहीं रुके । मगर कहते है ना कि आस्था और विश्वास दृढ़ हो तो असंभव भी संभव हो जाता है ।न जाने कौन सी शक्ति से प्रेरित होकर उन्होनें आधी चढाई बिना रुके ही तय कर ली। ऊपर माता जी का भव्य मंदिर निहारते ही रह गये। दर्शन कर कुछ देर विश्राम किया। मंदिर प्रांगण में बैठना बहुत शकुन दे रहा था। हालांकि भीड़ तो थी फिर भी मन में अद्भुत शांति का अनुभव हो रहा था। पहाड़ी पर से आस पास का दृश्य बड़ा मनोहारी दिखाई दे रहा था ।
यह मंदिर राजकोट अहमदाबाद हाईवे पर पहाड़ी पर स्थित है।मंदिर मे प्रवेश के लिए तोरण द्वार से 635 सीढियां जो कि टीन शेड के कवर ढकी है । चढकर जाना होता है।कई वर्ष पूर्व यह मंदिर बहुत छोटा था और पहुंच मार्ग बडा कठिन था।
पौराणिक कथानुसार मां ने चंड और मुंड नाम के दो राक्षसों का संहार किया था।तब से मां चामुण्डा नाम से विख्यात हुई मंदिर मे उपर है पहाड़ी के आस पास के दृश्य बहुत खुबसुरत लगते है। प्रांगण के पास एक ओर बडा सा त्रिशुल बरबस ही ध्यान आकृष्ट करता है।
इस मंदिर की विशेषता है कि शयन आरती के बाद पुजारी जी सहित सब लोग पहाड़ी से नीचे उतर आते है किसी को भी वहां रहने की इजाजत नहीं है, यह रहस्य आज भी बरकरार है।
हमारी यह यात्रा कल जामनगर का अनोखा मुक्तिधाम की और चल दी। कहते है की यहाँ पर विशेष रूप से देखने आते है। जय श्री कृष्ण
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