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डाकोर जी मंदिर दर्शन

  डाकोर जी मंदिर 

गुजरात दर्शन श्रृंखला में अब हमारी यात्रा का अगला पडाव रणछोड़ राय मंदिर,डाकोर जी था।


वडताल से मात्र 41 किमी की दूरी पर है। हम सुबह 9 बजे वडताल से चले थे। पास ही होने से कोई जल्दबाजी नहीं थी। सुबह सुबह गाडी में श्री कृष्ण जी के भजन......छोटी छोटी गईयां छोटे ग्वाल....  चल रहे थे। बांसुरी की मधुर धुन माहौल को और खुशनुमा बना रही थी। धंटे भर में हम लोग डाकोर जी मंदिर पहुंच गये।

मंदिर जाने वाला मार्ग बहुत व्यस्त था। थोडी सी परेशानी के बाद पार्किंग में पहुंचने में सफल हो गये। यहां से पैदल मंदिर की ओर चल दिये। रास्ते में दो तीन गलीयां पार करने के बाद मंदिर पहुंचे। एक बडे से दरवाजे में अंदर जाने पर सामने रणछोड़ राय मंदिर के दर्शन हुऐं। 

डाकोर जी मंदिर
डाकोर जी मंदिर

मंदिर और रणछोड़ राय जी की एक  पौराणिक कथा                             


कहते है मन में विश्वास हो तो भगवान भी दौडे चले आते है। कुछ ऐसी ही कहानी है। डाकोर जी मंदिर की। द्वारकाधीश के परम भक्त विजय सिंह बोडाना को विश्वास था कि प्रभु दर्शन अवश्य देगें। इसी आस्था के चलते वे अपनी हथेली में तुलसी के पौधे को उगाते और वर्ष में दो बार अपनी पत्नि गंगाबाई के साथ द्वारका में अर्पण करने जाते थे। यह क्रम वर्षो निर्बाध रूप से चलता रहा। धीरे धीरे बोडाणा जी वृद्धावस्था की ओर बढ रहे थे। और इसी के चलते अब जाने में कठिनाई आ रही थी। वे बडे बेचैन रहने लगे। तब प्रभु ने उन्हे स्वप्न में दर्शन दिये और कहा कि इस बार के बाद यहां आने की जरूरत नहीं बल्कि मुझे अपने साथ ले जाना। पहले तो बोडाणा जी धबराये किन्तु स्वप्नानुसार योजना बनाकर  द्वारका जी पहुंचे। दर्शन कर आधी रात में गृभ गृह से द्वारकाधीश की मुर्ति को चुरा कर बैलगाड़ी से वापस चल दिये।                                                         

सुबह जब पुजारी ने द्वारका में मंदिर के पट खोले तो    मुर्ति न पाकर भाग दौड़ मच गई। खोज खबर निकालने पर बोडाणा के बारे में पता चला। द्वारकावासी और पुजारियों की टोली बोडाणा का पीछा करने लगी। जब बोडाणा को लगा कि  पकड़े जायेगें तो उन्होने मुर्ति को गोमती तालाब में छिपा दिया। पुजारियों व द्वारकावासियों ने तालाब की खुदाई कर मुर्ति को ढुंढने की बहुत कोशिश करी फावड़े और भालों से तालाब खोद दिया । इसी धटना क्रम में भाले का प्रहार मुर्ति पर भी लगा जिसका निशान आज भी है। मुर्ति मिलने के बाद जब वापस ले जाने लगे तो एक समझोता हुआ।  पुजारियों ने लोभ वश शर्त रखी की मुर्ति बराबर सोना दे दो वापस चले जायेगे। अब पुनः बोडाणा पर विपदा आ गई , तब प्रभु ने ही राह बताई अपनी पत्नि के जेवर ले आओ। पत्नि के पास केवल एक जेवर नाक की नथ वो भी बहुत हल्की थी। तोल कांटे पर एक तरफ भगवान और दुसरे कांटे पर नाक की नथ व तुलसी का पत्ता रखा। ईश्वर की कृपा से बोडाणा का पलडा भारी हो गया। अतः पुजारियों को मुर्ति को छोड़कर जाना पडा। 

मु्र्ति को पूर्णिमा के दिन डाकोर जी में ही स्थापित कर दिया गया। यहां द्वारकाधीश रणछोड़ कैसे हुऐ। तो एक समय श्री कृष्ण और जरासंध में धमासान युद्ध हुआ। तब श्री कृष्ण जी को अपने लोगों को बचाने के लिये युद्ध से भागकर डाकोर जी में आ गये थे। तब से ही उनका नाम रणछोड़ राय पडा।

रणछोड़ राय  मंदिर                                                 

चलिये मंदिर में दर्शन कर लेते है। साथ ही यह जिज्ञासा भी हो रही होगी कि यह मंदिर कब और किसने बनवाया।
1772 में पूना के भालचंद्र राव और उनके वंशजों ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था।तथा बडौदा के गायकवाड महाराज नें सिंहासन भेंट किया था। मुख्य दरवाजे पर पहले तल पर प्रतिदिन तीन धंटे शहनाई वादन होता है। इस मंदिर की स्थापत्य कला में महाराष्ट्रीयन शैली का प्रयोग किया गया है। 
सम्पूर्ण डाकोर जी मंदिर सफेद संगमरमर से बना हुआ है। मंदिर में रणछोड़ राय जी की कृष्ण शिला की चतुर्भुज नयनाभिराम मुर्ति विराजित है। मंदिर के अंदर श्री कृष्ण की लीलाओं पर केंद्रीत कर चित्रकारी की हुई है। उपर गुंबद पर स्वर्ण कलश और सफेद ध्वज उसकी सुंदरता में चार चांद लगा देते है। 

मंदिर दर्शन का समय            

सुबह          6:15 - 12:00
शाम           4:15 -  7:00  
मंगल आरती प्रातः 6:45 पर मंगल भोग  बाल भोग,श्रीनगर भोग व राज भोग के साथ  
दोपहर में उस्थापन भोग, शयन भोग और शक्ति भोग के साथ दर्शन होते है।
प्रमुख उत्सव - कार्तिक,चैत्र,फाल्गुन और अश्विन पुर्णिमा पर तथा विशेष उत्सव शरद पुर्णिमा पर

डाकोर जी में अन्य देखने लायक स्थान 

1.गोमती नदी के किनारे तुलादान स्थल 
2.भक्त बोडाणा मंदिर
3. लक्ष्मी मंदिर 
4.बाल हनुमान,गांधी बाग 
5.गंगेश्वर महादेव
6.हिंगलाज माता मंदिर
7.स्वामीनारायण मंदिर
    
इसे भी देखें Vishvamangal.human.temple.Tarkhedi.html
                       

    कैसे पहुंचें    

सडक मार्ग से यह अहमदाबाद,बडौदा,दाहोद,गोधरा, इंदौर व नडियाद , से सीधा जुडा हुआ है।               
अहमदाबाद व बडौदा नजदीकी एयरपोर्ट है।           
डाकोर रेल मार्ग से भी जुडा है। यहां रेल्वे स्टेशन है   

    डाकोर जी में हर श्रेणी के होटल उपलब्ध है।
  
 इस ब्लाग में डाकोर जी मंदिर के संबंध में अधिकतम जानकारी दी गई है। यह हमारी गुजरात दर्शन श्रृंखला का एक पाईंट था। अब हमारी मुलाकात पावागढ़ में होगी ।
तब तक के लिये.
                  
                                      जय श्री कृष्ण
     
                                     



  

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