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डाकोर जी मंदिर दर्शन

  डाकोर जी मंदिर 

गुजरात दर्शन श्रृंखला में अब हमारी यात्रा का अगला पडाव रणछोड़ राय मंदिर,डाकोर जी था।


वडताल से मात्र 41 किमी की दूरी पर है। हम सुबह 9 बजे वडताल से चले थे। पास ही होने से कोई जल्दबाजी नहीं थी। सुबह सुबह गाडी में श्री कृष्ण जी के भजन......छोटी छोटी गईयां छोटे ग्वाल....  चल रहे थे। बांसुरी की मधुर धुन माहौल को और खुशनुमा बना रही थी। धंटे भर में हम लोग डाकोर जी मंदिर पहुंच गये।

मंदिर जाने वाला मार्ग बहुत व्यस्त था। थोडी सी परेशानी के बाद पार्किंग में पहुंचने में सफल हो गये। यहां से पैदल मंदिर की ओर चल दिये। रास्ते में दो तीन गलीयां पार करने के बाद मंदिर पहुंचे। एक बडे से दरवाजे में अंदर जाने पर सामने रणछोड़ राय मंदिर के दर्शन हुऐं। 

डाकोर जी मंदिर
डाकोर जी मंदिर

मंदिर और रणछोड़ राय जी की एक  पौराणिक कथा                             


कहते है मन में विश्वास हो तो भगवान भी दौडे चले आते है। कुछ ऐसी ही कहानी है। डाकोर जी मंदिर की। द्वारकाधीश के परम भक्त विजय सिंह बोडाना को विश्वास था कि प्रभु दर्शन अवश्य देगें। इसी आस्था के चलते वे अपनी हथेली में तुलसी के पौधे को उगाते और वर्ष में दो बार अपनी पत्नि गंगाबाई के साथ द्वारका में अर्पण करने जाते थे। यह क्रम वर्षो निर्बाध रूप से चलता रहा। धीरे धीरे बोडाणा जी वृद्धावस्था की ओर बढ रहे थे। और इसी के चलते अब जाने में कठिनाई आ रही थी। वे बडे बेचैन रहने लगे। तब प्रभु ने उन्हे स्वप्न में दर्शन दिये और कहा कि इस बार के बाद यहां आने की जरूरत नहीं बल्कि मुझे अपने साथ ले जाना। पहले तो बोडाणा जी धबराये किन्तु स्वप्नानुसार योजना बनाकर  द्वारका जी पहुंचे। दर्शन कर आधी रात में गृभ गृह से द्वारकाधीश की मुर्ति को चुरा कर बैलगाड़ी से वापस चल दिये।                                                         

सुबह जब पुजारी ने द्वारका में मंदिर के पट खोले तो    मुर्ति न पाकर भाग दौड़ मच गई। खोज खबर निकालने पर बोडाणा के बारे में पता चला। द्वारकावासी और पुजारियों की टोली बोडाणा का पीछा करने लगी। जब बोडाणा को लगा कि  पकड़े जायेगें तो उन्होने मुर्ति को गोमती तालाब में छिपा दिया। पुजारियों व द्वारकावासियों ने तालाब की खुदाई कर मुर्ति को ढुंढने की बहुत कोशिश करी फावड़े और भालों से तालाब खोद दिया । इसी धटना क्रम में भाले का प्रहार मुर्ति पर भी लगा जिसका निशान आज भी है। मुर्ति मिलने के बाद जब वापस ले जाने लगे तो एक समझोता हुआ।  पुजारियों ने लोभ वश शर्त रखी की मुर्ति बराबर सोना दे दो वापस चले जायेगे। अब पुनः बोडाणा पर विपदा आ गई , तब प्रभु ने ही राह बताई अपनी पत्नि के जेवर ले आओ। पत्नि के पास केवल एक जेवर नाक की नथ वो भी बहुत हल्की थी। तोल कांटे पर एक तरफ भगवान और दुसरे कांटे पर नाक की नथ व तुलसी का पत्ता रखा। ईश्वर की कृपा से बोडाणा का पलडा भारी हो गया। अतः पुजारियों को मुर्ति को छोड़कर जाना पडा। 

मु्र्ति को पूर्णिमा के दिन डाकोर जी में ही स्थापित कर दिया गया। यहां द्वारकाधीश रणछोड़ कैसे हुऐ। तो एक समय श्री कृष्ण और जरासंध में धमासान युद्ध हुआ। तब श्री कृष्ण जी को अपने लोगों को बचाने के लिये युद्ध से भागकर डाकोर जी में आ गये थे। तब से ही उनका नाम रणछोड़ राय पडा।

रणछोड़ राय  मंदिर                                                 

चलिये मंदिर में दर्शन कर लेते है। साथ ही यह जिज्ञासा भी हो रही होगी कि यह मंदिर कब और किसने बनवाया।
1772 में पूना के भालचंद्र राव और उनके वंशजों ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था।तथा बडौदा के गायकवाड महाराज नें सिंहासन भेंट किया था। मुख्य दरवाजे पर पहले तल पर प्रतिदिन तीन धंटे शहनाई वादन होता है। इस मंदिर की स्थापत्य कला में महाराष्ट्रीयन शैली का प्रयोग किया गया है। 
सम्पूर्ण डाकोर जी मंदिर सफेद संगमरमर से बना हुआ है। मंदिर में रणछोड़ राय जी की कृष्ण शिला की चतुर्भुज नयनाभिराम मुर्ति विराजित है। मंदिर के अंदर श्री कृष्ण की लीलाओं पर केंद्रीत कर चित्रकारी की हुई है। उपर गुंबद पर स्वर्ण कलश और सफेद ध्वज उसकी सुंदरता में चार चांद लगा देते है। 

मंदिर दर्शन का समय            

सुबह          6:15 - 12:00
शाम           4:15 -  7:00  
मंगल आरती प्रातः 6:45 पर मंगल भोग  बाल भोग,श्रीनगर भोग व राज भोग के साथ  
दोपहर में उस्थापन भोग, शयन भोग और शक्ति भोग के साथ दर्शन होते है।
प्रमुख उत्सव - कार्तिक,चैत्र,फाल्गुन और अश्विन पुर्णिमा पर तथा विशेष उत्सव शरद पुर्णिमा पर

डाकोर जी में अन्य देखने लायक स्थान 

1.गोमती नदी के किनारे तुलादान स्थल 
2.भक्त बोडाणा मंदिर
3. लक्ष्मी मंदिर 
4.बाल हनुमान,गांधी बाग 
5.गंगेश्वर महादेव
6.हिंगलाज माता मंदिर
7.स्वामीनारायण मंदिर
    
इसे भी देखें Vishvamangal.human.temple.Tarkhedi.html
                       

    कैसे पहुंचें    

सडक मार्ग से यह अहमदाबाद,बडौदा,दाहोद,गोधरा, इंदौर व नडियाद , से सीधा जुडा हुआ है।               
अहमदाबाद व बडौदा नजदीकी एयरपोर्ट है।           
डाकोर रेल मार्ग से भी जुडा है। यहां रेल्वे स्टेशन है   

    डाकोर जी में हर श्रेणी के होटल उपलब्ध है।
  
 इस ब्लाग में डाकोर जी मंदिर के संबंध में अधिकतम जानकारी दी गई है। यह हमारी गुजरात दर्शन श्रृंखला का एक पाईंट था। अब हमारी मुलाकात पावागढ़ में होगी ।
तब तक के लिये.
                  
                                      जय श्री कृष्ण
     
                                     



  

लाक डाऊन के बाद का पहला सफर

लाक डाउन के बाद का पहला सफर



कोरोना वायरस
कोरोना वायरस 


जनवरी माह में न्यूज चैनलों से मालूम चल रहा था कि कोई खतरनाक वायरस चीन की धरती से जन्म लेकर पुरी दुनिया में फैल रहा है। और इस वायरस के सामने बडे बडे सम्पन्न देश भी बेबस हो रहे हैं। 
धीरे धीरे मौत का आंकडा भी बढने लगा था। फरवरी महिना भी इसी तरह बीता मार्च के प्रथम सप्ताह में कोरोना ने भारत में भी दस्तक दे दी थी। मगर दुसरे सप्ताह में दक्षिण में पहली मौत के बाद 22मार्च को पुरे दिन लाक डाउन की पहली रिहर्सल ने समझाया कोरोना और लाक डाउन का संबंध ।  
अभी पुरी तरह से तैयार हुऐ भी नहीं थे की 23 मार्च से पुरी तरह लाक डाउन की घोषणा ने सब समझा दिया।  बाजार बंद, बसे बंद ,लोक परिवहन सेवाऐं बंद अब हम पुरी तरह से समझ गये कि लाक डाउन क्या होता है।
घर में कैद होकर रहना। ता जिंदगी यो घर पर रहे नहीं अब बाहर निकलना बंद। सात दिनो के बाद बेचैनी बढने लगी। यहां तक की डाक्टर भी उपलब्ध नहीं । शहर के सारे अस्पताल भी बंद। अब सब समझ आने लगा था। कभी ऐसा भी हो सकता है। बिना युद्ध के ही एक साथ कई देशों पर दबाव बनाना ।
 घर में रहकर प्रतिदिन न्यूज पर कोरोना  बीमारी और उसके प्रभाव तथा पीड़ित रोगी की विडीयो ने हमें अंदर तक भयभीत कर दिया था। हर पल डर के सायें में जीने लगे। बाहर निकलते ही  घबराहट कहीं कोरोना न हो जाये। हर चिर परिचीत भी शंका के दायरे में आ गया था।

 सब्जीवाले और न्यूज पेपर वाले से भी डर लगने लगा था। कोई भी वस्तु लेने से पहले सेनेटाईंज करना, हाथ धोना अनिवार्य हो गया था। खुला दुध लेने में डर का माहौल बना था। पैक चीजों पर ही विश्वास करने लगे थे।  किराना लेने जाने की झंझट खत्म आर्डर करो और सामान घर पहुंच सेवा मगर बिना मोलभाव व गुणवत्ता के।

एक सप्ताह  निकल जाने के बाद इन्दौर से फोन आया कि मम्मी जी की तबियत खराब है। अब जाये तो जायें कैसे । 
किसी तरह खोज खबर निकाली और  एस डी एम  आफिस में पता किया कैसे जा सकते है। वहां से पुरी प्रर्किया समझी तो 70% हिम्मत जवाब दे गई। उस पर इन्दौर में बढते मरीजों की संख्या ने और मुसीबत बढा दी। खैर अब केवल मोबाईल पर हाल चाल पुछने के अलावा कोई रास्ता नहीं था।  किसी तरह दो माह तक हर दिन हर पल जीवन का अहसास ले डर के साये में जी रहे थे। मजबुरी ऐसी की चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते थे। 

आखिर जून के दुसरे सप्ताह तक छुट मिलने लगी तो हमने भी इन्दौर जाने के लिये मन बना लिया। जरूरी सामान के साथ मास्क और सेनेटाइजर भी साथ लिया। 
सडकों पर नजारा बडा विचित्र था। केवल बसें नहीं चल रही थी ।मगर हर कोई अपने अपने उपलब्ध साधन से चला जा रहा था। सारी शोशल डिस्टेंसिंग गायब बाईक पर तीन तीन और कार में छः सवारी से कम नहीं । रफ्तार इतनी के बस चंद मिनटों में मुकाम तक पहुंचने की जद्दोजहद।  लाक डाउन में प्रदुषण, अपराध, एक्सीडेंट का जो ग्राफ नीचे चला गया था अब तेजी से बढने लगा था।   

मार्ग में कभी आबाद रहते होटलों पर इक्का दुक्का वाहन ही रूके थे। सडकों पर भीड थी मगर हर कोई दौड़ रहा हो रूकने की किसी को फुर्सत नहीं थी।  किसी तरह इन्दौर पहुंचे। 

यहां गाड़ियों की चेकिंग के साथ मास्क न पहनने वालों पर कार्यवाही हो रही थी। लंबी लाईन में लगना पडा। पुरे एक धंटे के बाद हमारा नंबर आया । व्यवस्था चाक-चौबंद मगर हर कार्य के लिये सरकार पर निर्भर नहीं हो सकते हमें भी जागरूक होना होगा। या यों कह सकते है। भविष्य में होने वाली कोई अप्रिय धटना कि रिर्हसल हो।
  इन्दौर में कहीं खुला कहीं बंद का मिला-जुला असर दिखाई दे रहा था। मगर हां भविष्य कैसा होगा इसकि तस्वीर उभरने लगी है। 
क्या आप भी महसुस करते है। इस तरह की आपदा के लिये कोई फुल प्रुफ प्लान हो। तो अपनी राय शेयर करें।

                                      घन्यवाद 

    

Swaminarayan Mandir स्वामीनारायण मंदिर वडताल के दर्शन


स्वामीनारायण मंदिर, वडताल 

गुजरात दर्शन यात्रा में हमारा अगला पाईंट  स्वामीनारायण मंदिर, वडताल था। जो कि सारंगपुर से 160 किमी की दूरी पर है। गुजरात में स्वामीनारायण संप्रदाय का बहुत प्रभाव है। कई भव्य मंदिरों की श्रृंखला और उनका संचालन बखुबी हो रहा है। किन्तु वडताल में मुख्य मंदिर होने से यहां का महत्व बढ जाता है।

मंदिर प्रवेशद्वार,वड़ताल
मंदिर प्रवेशद्वार, वड़ताल 


हम लोग करीब 10.30 बजे वडताल पहुंच गये थे। सीधे मंदिर की ओर जाने पर एक भव्य प्रवेश द्वार से अंदर प्रविष्ट होने पर, बांयी ओर पार्किंग स्थल बना हुआ था। जहां गाडी पार्क करके पैदल ही मंदिर की ओर चल दिये। रास्ते में बाजार में दोनो ओर दुकानें सजी हुई थी। यहां हर प्रकार का सामान था। एक दुकान पर कुछ गुजराती ड्रेस देखी, बहुत आकर्षक लग रही थी। थोडा मोल भाव करके खरीद ली।

मुख्य मंदिर प्रवेश द्वार ,वडताल
मुख्य मंदिर प्रवेश द्वार ,वडताल 


कुछ दुर चलने पर सामने स्वामीनारायण मंदिर क्षेत्र में प्रवेश के लिये अन्य द्वार था।
यहां से हम लोग मंदिर क्षेत्र में आ गये थे। चलिये पहले थोडा सा जान ले ,स्वामीनारायण संप्रदाय और इसके संस्थापक जी के बारे में ।

इतिहास      

  स्वामीनारायण संप्रदाय के संस्थापक स्वामी सहजानंद थे। इन्होने 1824 में  संप्रदाय की नींव रखी और प्रचार प्रसार किया। अपने शिष्यों को पांच व्रत मांस ,मदिरा,चोरी,व्यभिचार का सर्वथा त्याग और स्वधर्म का पालन करने की शिक्षा दी। सदाचार व समाज सेवा परमोधर्म के लिये प्रेरित किया। 
समाज की कुरीतियों जैसे यज्ञ में बली प्रथा,सती प्रथा,कन्या हत्या,भूत बाधा का विरोध कर बंद करवाया।  

स्वामी जी का जीवन परिचय

स्वामी सहजानंद जी का जन्म 3अप्रेल 1781(चैत्र शुक्ल,नवमीं,विं.संवत 1837) को उत्तरप्रदेश के गोंडा जिले के छपिया ग्राम में हुआ था। पिता हरिप्रसाद और माता भक्ति देवी ने इनका नाम धनश्याम रखा था। जन्म से ही इनके हाथों में पद्म पैर में बज्र उर्ध्व रेखा तथा कमल के चिन्ह होने से विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। अल्प आयु में ही सभी वेद शास्त्रों का अध्धयन कर लिया था। 11वर्ष की आयु में माता पिता का विछोह और परिवारिक परेशानीयों के चलते घर छोड़ देशाटन पर निकल गये। मार्ग में कई विभूतियों के दर्शन हुऐ तथा इनको भी एक उपनाम नीलकंठ वर्णी  मिला। श्री गोपाल योगी से विधिवत अष्टांग योग सीखा।
भ्रमणकाल में इनकी मुलाकात स्वामी मुक्तानंद से मांगरोल के पास लोज गांव में हुई। स्वामी मुक्तानंद ने अपने गुरू रामानंद जी से परिचय करवाया।
स्वामी रामानंद जी ने पीपलाणा ग्राम में नीलकंठ वर्णी को दीक्षा देकर नया नाम स्वामी सहजानंद दिया। 
इन्होने निर्धनों और प्राकृतिक आपदा में सेवा कार्य को प्रमुखता दी। 
सन 1830 में ब्रह्मलीन हो गये थे।चलिये मंदिर परिसर में चलते है।

मंदिर          


स्वामीनारायण मंदिर,वड़ताल
स्वामीनारायण मंदिर,वड़ताल

वडताल ,लक्ष्मीनारायण गादी का प्रमुख केन्द्र है। यहां का मंदिर निर्माण सदगुरू ब्रह्मानंद की देखरेख में मात्र 15 माह में ही पुर्ण कर लिया गया था। इस मंदिर के लिये दी गई जमीन एक डकैत जोबन पगी की थी। डकैत स्वामीनारायण जी के सम्पर्क में आने से सब गलत काम छोड़ उनका अनुयायी बन कर समाज सेवा में लग गया था।  सामने स्वर्ण रंग के गुंबदों वाला भव्य मंदिर वास्तुशिल्प का अदभुत नमुना दिखाई दे रहा था। यह मंदिर कमल की आकृति लिये हुऐ है। उपर नौ गुंबद बने हुऐ है। मंदिर में तीन प्रमुख विग्रह है। मध्य में लक्ष्मीनारायण जी दांई ओर श्री हरिकृष्ण महाराज के रूप में स्वामीनारायण जी के साथ राधाकृष्ण और बांयी ओर श्री वासुदेव ,श्रीधाम पिता व माता भक्तिदेवी की मुर्तियां स्थापित है। 


लक्ष्मीनारायण मंदिर
लक्ष्मीनारायण मंदिर,वड़ताल

इन मुर्तियों की प्राणप्रतिष्ठा 3 नवम्बर 1824 को की गई थी। मंदिर में भगवान की मुर्तियों के अलावा बांयी तरफ दक्षिणावर्त शंख  व  शालिग्राम जी और शेषनाग के आसन पर दस अवतारों की मुर्तियां है।


वासुदेव,धर्मदेवऔर भक्तिदेवी की प्रतिमा
वासुदेव, धर्मदेव और भक्तिदेवी की प्रतिमा

मंदिर में लकड़ी के स्तंभों पर आकर्षक रंगीन कलाकृति की गई है। रंगीन पत्थरों से जगह जगह विशेष आकार दिया गया है। मंदिर की छत को बहुत सुंदर सजाया गया है।

राधाकृष्ण मंदिर,वड़ताल
राधाकृष्ण मंदिर,वड़ताल

ज्ञानबाग बगीचा मंदिर के उत्तर-पश्चिम में है। दक्षिणी छोर पर अक्षर भुवन है। इसकी पहली मंजिल पर धनश्याम महाराज की खडी अवस्था की मुर्तियां है।दुसरी मंजिल पर धनश्याम महाराज की बैठी अवस्था की मुर्तियां है। यहीं पर धनश्याम महाराज की निजी व उपयोग में लाई वस्तु का संग्रह है। पश्चिम में हरि मंडप में शिक्षा पत्री रखी है। यहां प्रसाद की अलग व्यवस्था है।

मंदिर की बहुत सारी धर्मशालाएं व गेस्टहाऊस है। जहां यात्रियों को ठहरने की उत्तम व्यवस्था है। 

मंदिर की अद्भुत कलात्मकता
मंदिर की अद्भुत कलात्मकता ,वड़ताल


यहां की भोजन व्यवस्था भी सर्वोत्तम है।पहले रसोई नहीं थी तब नीबू और मिर्च दी जाती थी। समय के साथ साधन बढने पर एक बहुत बडी भोजनशाला का संचालन होता है। जहां एक बार में सैकडों भक्त एक साथ भोजन कर सकते है। 

पूर्णिमा को बहुत बडा मेला लगता है। इस अवसर पर हजारों भक्त सम्मिलित होते है। इसमें सेवा के लिये आस पास के ग्रामीण स्वेच्छा से सेवा देते है। भोग प्रसाद में लड्डू का भोग लगता है।

वडताल में एक आम के बगीचे में जहां स्वामीनारायण जी होली खेलते थे। एक छत्री बनी है। इसके दक्षिण की ओर बारह दरवाजों का झुला है। उत्तर में स्वामीनारायण जी द्वारा खुदवाई गई गोमती झील है। झील के मध्य एक स्थान बना हुआ है और पश्चिम में एक छतरी बनी हुई है। जहां खुदाई के समय बैठते थे। पास ही वह पेड़ है जहां बैठकर वतनामृत का प्रचार किया था।

वडताल के अलावा कई और जगह भी स्वामीनारायण के मंदिर है। इन्में अहमदाबाद,मूली,जेतलपुर,धोलका, गढ्डा,धोलेरा , जूनागढ़ प्रमुख है।


यहां आकर हम सब बहुत प्रसन्न थे। इस मंदिर के एक बार अवश्य दर्शन करने आना चाहिये। क्या आप मुझे इस यात्रा वृतांत की कोई कमी पर प्रकाश डालेंगे। 

शाम ढलने को आई है और आज हमारा अगला मुकाम डाकोर जी मंदिर दर्शन के लिए डाकोर जी में रात्रि विश्राम होगा। कल सुबह मंदिर दर्शन के लिए चलेगें।


                                                                                य श्री कृष्ण 













हनुमान मंदिर सारंगपुर


ऊना से सुबह जल्दी निकल पड़े थे। 190 किमी का सफर तय करके हमें हनुमान मंदिर सारंगपुर पहुंचना था। जो कि लगभग चार से पांच धंटे का सफर था।  

एक घंटे की लगातार ड्राईव के बाद सुस्ती सी आने लगी थी। रास्ते में रेस्टोरेंट पर चाय नाश्ते के लिये रूके। यहां पर हमने रास्ते के बारे में भी सुनिश्चित कर लिया।

सारंगपुर मंदिर   

हनुमान मंदिर सारंगपुर के बारे में बहुत सुना था। अतः उत्सुकता तो बढ़नी ही थी। 11 बजे सारंगपुर पहुंचे। मंदिर का प्रवेश द्वार बहुत बडा व सुंदर था। गाडी पार्किंग की व्यवस्था एक खुले मैदान में थी। 



कष्टभंजन हनुमान मंदिर प्रवेशद्वार
कष्टभंजन हनुमान मंदिर प्रवेशद्वार
    
पार्किंग से लगे सुंदर बगीचे के दोनो और धर्मशाला के कमरे बने हुऐ थे।यहां पर हर श्रेणी की व्यवस्था थी। बगीचे को  पार करने के बाद नीलकंठ महादेव का अत्यंत मनोहारी मंदिर बना हुआ है। थोडा आगे जाने पर  मंदिर परिसर का किलेनुमा प्रवेश द्वार आता है।

हम आगे की चर्चा से पहले यहां की पौराणिक कथा पर गौर कर लेते है। 

पौराणिक कथा   

कष्टभंजन हनुमान मंदिर
कष्टभंजन हनुमान मंदिर

 
 पौराणिक कथा के अनुसार एक बार शनिदेव अपने बल के अभिमान में सारी सीमाएं लांघकर हर तरफ त्राहि त्राहि मचा दी। तब भक्त हनुमान जी की शरण में गये। यह बात जब शनिदेव को पता चली तो वे घबराये और अपने बचाव का मार्ग तलाशने लगे। शनिदेव जानते थे। कि हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी है और वे स्त्री पर कभी हाथ नहीं उठायेंगे। तब शनिदेव स्त्री रूप में हनुमान जी की शरण गये और अपनी गलती की क्षमा याचना की इस तरह सभी भक्तों के कष्ट दूर हुऐ। तभी से कष्टभंजन नाम से प्रसिद्ध हुऐ। 


मंदिर बगीचा ,सारंगपुर
मंदिर बगीचा ,सारंगपुर

यदि कोई शनि बाधा से पीड़ित हो तो इनकी शरण में जाने पर निर्भय हो जाता है। इसी तरह भूत प्रेत पीडितों का भी यहां पर उपचार किया जाता है।   


कहते है स्वामीनारायण जी हनुमान जी के बडे भक्त थे। उन्हे हनुमान जी ने साक्षात दर्शन दिये थे। स्वामी गोपालानंद जी महाराज ने 1905 विक्रम संवत की अश्विन कृष्ण पक्ष की पंचमी को मंदिर नींव रखी थी। मुर्ति की स्थापना के समय जब मुर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हो रही थी तब उन्होने एक राड को स्पर्श करने  पर मुर्ति जाग्रत हो गई थी              
मंदिर में हनुमान जी के चारों ओर वानर सेना तथा चरणों में शनिदेव स्त्री रूप में विराजित है। स्वयंम हनुमान जी महाराजा रूप में 45 किलो सोना 95 किलो चांदी जडित सिंहासन पर विराजित है। हीरे जवाहरात जड़ित मुकुट और सोने की गदा है। 

 शनिवार मंगल वार विशेष पुजा अर्चना होती है। मंदिर की आरती इस प्रकार है।
मंगला आरती   5.15 सुबह
बाल भोग        6.30 -7.30
श्रंगार आरती    7.00    शनिवार ,मंगलवार
राज भोग         10.30-11.30
विश्राम            12- 15.00
शयन              21.00 बजे

वेब साईट : 
www.salangpurhanumanji@yahoo.co.in


मंदिर की अपनी भोजनशाला है । जहां भंडारा चलता है। प्रसादी का काउंटर अलग बना है। प्रसाद रूप में सुखडी मिलती है।

मंदिर की अपनी व्यवस्थित गौ शाला भी है।
                        
                                         

श्री हरि मंदिर 



श्री हरी मंदिर

                                                

 पास में हवेलीनुमा मंदिर है। जहां पर लकड़ियों की आकर्षक शिल्प कला से मंदिर की भव्यता और बढ जाती है। यहां स्वामीनारायण जी का निवास था। जो अब मंदिर रूप में है। स्वामी जी के द्वारा उपयोग में लाई बैलगाड़ी व अन्य सामान संजो के रख रखा है।  यह मंदिर देखने योग्य है।                                                                                                                    .                             

 नारायण कुंड  

श्री स्वामीनारायण मंदिर

ब्रह्मस्वरूप प्रमुख स्वामी स्मृति मंदिर          

नजदीकी रेल्वे स्टेशन बाटोड व सडक मार्ग से 

राजकोट से 150 किमी 

भावनगर से  90 किमी 

अहमदाबाद से 170किमी दूरी पर है।     कल Swaminarayan Mandir  स्वामीनारायण मंदिर वडताल के दर्शन करेगे ।                                         

                                                            "   शुभ रात्री  "


                                          






खुबसुरत द्वीप दीव की सैर


       
                      

                                                                       जय श्री कृष्ण


 मूल द्वारका की हरियाली और शांति ने मन मोह लिया था। मन कर रहा था। कुछ समय और रूक जाये किन्तु गुजरात दर्शन के बहुत सारे पाईंट शेष थे और हमारा सफर दुसरे सप्ताह के अंतिम चरण में होने से चलना ही विकल्प था।  घर से भी अब संदेश मिल रहे थे। कब आ रहे हो।




खुबसुरत द्वीप दीव की सैर




सफर जारी रखते हुऐ हम चल दिये खुबसुरत दीव द्वीप की ओर , ये तीन ओर से समुद्र से धिरा हुआ है। केवल दो पुलों की मदद से गुजरात से जुडा हुआ है।

48 किमी का सफर तय कर एक पुल को पार करने के बाद, प्रवेश द्वार से खुबसूरत दीव द्वीप में प्रविष्ट हुऐ।  एकदम शांत कोलाहल से दूर, न कोई भीड न कोई शोर कभी कभार कोई गाडी पास से गुजर जाती थी। मार्ग के दोनों ओर हरियाली ने और मोहक बना दिया था। 

आईये सबसे पहले हम यहां का इतिहास जान लें।

इतिहास          

सन 1535 से पुर्तगालियों का शासन रहा था। पहले व्यापारी के तौर पर आये और फिर धीरे धीरे जड़ें जमा ली। यह सिलसिला 1961 में आपरेशन विजय के तहत टुटा और दीव भारत का अभिन्न अंग बन गया। 19 दिसंबर आजादी के उपलक्ष में यहां विशेष उत्सव मनाते है ।

पर्यटन स्थल     

जैसे ही प्रवेश किया कुछ दुरी चलने के बाद बांये साईड के टर्न लेने पर शंख की बहुत सुंदर प्रतिकृती बनी हुई थी। थोडा आगे जाने पर किले की ओर का मार्ग था।  किले क्षेत्र कुछ ज्यादा ही चहल पहल थी। कोई स्कुल की टूर पार्टी थी।

किला       

किले के बारे में गाईड महोदय ने बताया कि इसे  एक बडी सी चट्टान को काट कर  56736 वर्ग मी. में बनाया गया था।पहले किले में प्रवेश के लिये एक लकड़ी के पुल पर से होकर गुजरना पड़ता था। जिसे रात में हटा लिया जाता था। यह किला अभेद्य रहा। किले में बुर्जों का निर्माण किया जहां पर आसानी से तोपों को तैनात किया जा सके। उपर जाने पर एक लाईट हाऊस (वाच टावर) भी बनाया गया है। इस टावर से दूर तक नजर रखी जा सकती थी।
सुरक्षा की दृष्टी से एक गुफा बनी हुई है जो कि सीधे किले के बाहर निकलती है।
किले के अंदर एक जेल बनी हुई है।  तथा  बाहर 1720 में बनी एक घंटी लगी हुई है। इस घंटी को बजाकर कैदीयों को भोजन के लिये संदेश दिया जाता था।

पानी कोठा        

यह जहाज की तरह बनाई गई एक जेल है। 475 वर्ष पुरानी इस जेल के चारों ओर पानी है।

सन राइज और सन सेट पाईंट

सन सेट पाईंट पर धीरे धीरे लोग आने लगे थे। हम भी उत्सुक थे सूर्यास्त के इस दृश्य को देखने के लिये, कुछ ही देर में अदभुत दृश्य देखने को मिला।। मानो कोई बडा सा गोला समुद्र में समा रहा हो। धीरे धीरे जब सूर्यदेव पुरी तरह अस्त हो गये तब हम भी अपनी होटल की ओर चल दिये।

गंगेश्वर महादेव 

 सुबह सबसे पहले यही आये थे। यहां समुद्र के किनारे पांच शिवलिंग बने है। कहा जाता है कि पांडवों ने इन्हे स्थापित किया था। समुद्र के पानी से लगातार अभिषेक होता रहता है। कभी कभी तो पानी बहुत ज्यादा आने से शिवलिंग पुर्ण रूपेण डुब जाते है। सुबह का समय इस जगह पर बहुत आनंद दायक होता है।
हम सब ने यहां पुजाकर समुद्र जल से भगवान का अभिषेक किया।

लाईट हाऊस
यह बहुत पुराना शायद पुर्तगाली शासन काल में बना था। बहुत ऊंचा स्तभं है। इससे समुद्र में रात को दूर तक जहाजों को लाईट से मार्ग दर्शन किया जाता होगा। इस इमारत पर से खुबसूरत दीव द्वीप का नजारा बहुत अदभुत दिखाई देता है।

यहां पर कई बीच है। जहां सी वाटर स्पोर्टस संचालित किये जाते है।

  1. नागवा बीच
  2. जालंधर बीच
  3. गोमती माता बीच
  4. धोधला बीच
  5. खोडियार बीच
  6. जामबोट बीच
  7. देवका बीच
  8. वनकाबरा बीच                                                  

इनमे सबसे पसंदीदा नागवा बीच है। यहां वाटर स्पोर्टस के अलावा बडी संख्या में नहाने वालो की भीड लगी रहती है। समुद्र में उठती हुई लहरों के बीच स्नान का अपना अलग ही मजा है। हम भी अपने को रोक नहीं सके। हां एक बात अवश्य थी। बाहर आने पर लगा नमक स्नान करके आये हो। पास ही बाथरूम में साफ पानी से नहाना पडा।

चक्रतीर्थ
यहांं पर विष्णु भगवान ने  जालंधर राक्षस का वध किया था।
पक्षी विहार        
यह स्थान नागवा बीच के करीब ही है। कई तरह के पक्षियों को देखने का मौका मिलता है।
बाहर निकलने पर एक व्यूह पाईंट बना है। उपर से नजारा देखने योग्य होता है।
डायनोसोर पार्क    
यहां पर डायनोसोर की खुबसूरत प्रतिकृतियां बनी हुई है।समुद्र के किनारे एकांत में सीमेंट की बैंच पर बैठना बहुत अच्छा अनुभव देता है।
ऐंट्री गेट आफ दीव सीटी    
बहुत सुंदर प्रवेश द्वार बना है। इसके बाद यहां का स्टेडियम बना हुआ है।
नायडा गुफाऐं     
प्राकृतिक रूप से पत्थरों के विभिन्न कटाव से बनी ये संरचनाएं या कहें तराश के बनाई गई हो, मगर है बहुत खुबसूरत।
आईएनएस खुकरी स्मारक
सन 1971 में नौ सेना के इस युद्धक पोत को पाक की सब मेरीन ने आक्रमण करके जल समाधिस्थ कर दिया था। तब इसके कैप्टन और अन्य साथियों ने भी साथ ही जल समाधि ले ली थी। उनकी स्मृति में INS खुकरी F 149  की वैसी प्रतिकृति बनाई गई है। 
समुद्र किनारे व्यूह पाईंट भी बना है। जहां से नजारे देख सकते है।         
दीव म्युझियम 
यहां पर कई तरह की वस्तुओं का संग्रह है। सामने बहुत सुंदर बगीचा बना हुआ है।
टेंट सिटी
खुबसूरत दीव द्वीप में खोडियार बीच के पास ही टेंट सिटी बनाई गई है। जहां पर सर्व सुविधा युक्त वातानुकुलित टेंट उपलब्ध है। 
सेंट पाल चर्च 
यह पुर्तगालियों का बहुत सुंदर चर्च बना है। इसकी बनावट और कलाकृति देखने योग्य है।

खुबसूरत दीव द्वीप की सैर आप यहां साईकिल से भी कर सकते है। इसके लिये आप साईकिल किराये ले सकते है।

खुबसूरत दीव द्वीप में रहने व खाने के लिये किले के पास बहुत सी होटल व रेस्टोरेंट है। जहां हर तरह का खाना मिल जाता है।

खुबसूरत दीव द्वीप की सैर का सबसे अच्छा समय दिसंबर से फरवरी का है।  दिसंबर में एक फेस्टिवल का आयोजन भी होता है। 

दो दिन की मनोरंजक खुबसूरत दीव द्वीप की सैर के बाद धोधला गांव की तरफ के पुल से उना सिटी में प्रवेश किया।
हमारा अगला पाईंट तुलसीश्याम था। जो कि मात्र 46 किमी दूर जंगल के एकांत में बसा पौराणिक महत्व लिये हुऐं है।

जंगल का रास्ता बहुत अच्छा लग रहा था। दोनों ओर हरियाली ,कहीं कहीं वन्य पशु पक्षी नजर आ जाते थे। पक्षियों की मधुर ध्वनि के बीच कभी कभार किसी वाहन के हार्न से लय भंग हो जाती थी। 

रास्ते में एक पहाड़ी मार्ग पर कुछ वाहन रूके हुऐ थे। दूर से कुछ समझ नहीं आया लेकिन पास जाने पर आश्चर्य जनक पहेली से रूबरू हुऐ। वे सब सडक पर पानी डालकर देख रहे थे। कि पानी नीचे जाने के बजाय उपर की ओर बह रहा था। कुछ लोग अपनी गाडी पर भी यही प्रयोग कर रहे थे। और नियम के उलट बंद गाडी भी उपर की ओर अपने आप चलने लगी थी।  शाम होने वाली थी। अतः मंदिर पहुंचना जरूरी था।
 तुलसीश्याम 
यहां गर्म पानी के तीन तप्त कुंड है। पहले वाले में सबसे ज्यादा गर्म पानी था। कहते है इस पानी में स्नान करने पर चर्म रोग में प्रभावी असरकारक है। 
यहां पर हमने स्नान कर रास्ते की सारी थकान दुर हो गई थी। यह भव्य मंदिर चारों ओर जंगल से धिरा है।कभी कभार शेर भी आ जाते है। यहां के महंत जी ने बताया था। कि भगवन ने तुल नामक राक्षस का वध किया था।
मंदिर में गणेश जी, हनुमान जी और रूक्मणी जी की मुर्तियां है। पहाड़ी पर सीढ़ियां चढकर जाने पर रूक्मणी जी का मंदिर है।

रात करीब 29 किमी का सफर तय कर ऊना वापस आये। यही पर रूकने की अच्छी व्यवस्था थी। चलिये फिर मिलते है हनुमान मंदिर ,सारंगपुर मे जहां कष्टभंजन हनुमान जी विराजते है । 

                                                                   " जय श्री कृष्ण "


                   

चंद्रदेव के संकट मोचक सोमनाथ महादेव

   
                                                                               जय श्री कृष्ण   

गिर नेशनल पार्क में बडा आनंद आया। कोलाहल से दूर प्रकृति की गोद में चारों ओर हरियाली और मुक्त वन्य जीवों को पास से देखने में समय तेजी से गुजर गया।
 शाम का समय हो चला था। सूर्य देव भी अस्तांचल की ओर प्रस्थान कर रहे थे हमें भी रात्री का ठोर ठिकाना देखना था। गूगल बाबा ने बताया कि 45 किमी पर अति प्राचीन स्थान प्राची है। बस चल दिये और वैसे भी कल रात की गलती करने के मुड में नहीं थे।

रात्री विश्राम प्राची में ही किया। यहां पर औसत श्रेणी की होटलें है।

प्राची

अति प्राचीन स्थान है। यहां कहा जाता है। सरस्वती नदी बहती है। और इसके किनारे पर किया गया पितृ तर्पण पुर्वजों को मोक्ष दिलाता है। एक कथानुसार युद्ध के बाद धर्मराज युधिष्ठीर ने कौरवों की आत्म शांति के लिये यही पितृ शांति कार्य कर मोक्ष के लिये प्रार्थना की थी। 
यहां पर देखने योग्य स्थान 
  1. माधवराय मंदिर
  2. प्राची मंदिर
  3. मोक्ष पीपल            
 माधवराय मंदिर में दर्शन कर रवाना होने ही वाले थे कि तभी आरती की तैयारी होने लगी। यह देख हम भी रूक गये । आरती शुरू हुई तो घंटो की लयबद्ध ध्वनि ने मंत्रमुग्ध कर दिया। लगा जैसे हमारे चारों ओर एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो रहा हो।  

सोमनाथ मंदिर


सोमनाथ महादेव ,सोमनाथ
सोमनाथ महादेव 


यह प्राची से मात्र 35 किमी दूर है।। दोपहर में मंदिर पहुंचे।  गाडी पार्किंग कि व्यवस्था एक बडे मैदान में है। पार्किंग स्थल से मंदिर तक जाने के पैदल मार्ग में   क्लाक रूम बना है। जहां पर अपने हैंड बैग, बेल्ट ,मोबाईल व चमडे की अन्य सामग्री लाकर में रखने की सुविधा है।इसके आगे  चैक पाईंट है जहां से दर्शनों के लिये लाईन लगती है। हम भी लाईन में लग गये। जब हमारा नंबर आया तो मुझे वापस कर दिया क्योंकि मेरे पास गाडी की चाबी थी जो कि इलेक्ट्रानिक्स वस्तु में आती है। अतः पुनः क्लाक रूम पर जाकर गाडी की चाबी जमा करानी पड़ी।



एक बार फिर से लाईन में लगना पडा मगर जल्दी ही नंबर आ गया।  लाईन में लगे थे तभी एक सज्जन ने सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के बारे मे पौरणिक कथा  व इतिहास बताया। चलिये आपको भी बता देते है।

इतिहास      

उपलब्ध जानकारी व उन सज्जन के अनुसार यह मंदिर आस्था और वैभव में सर्वोपरि होने से अनेक बार आक्रमण झेल चुका, जिसमें महमूद गजनवीं के सत्रह और कई अन्य मुस्लिम शासकों के आक्रमण प्रमुख है।हर बार नष्ट होने के बाद हिन्दू आस्था ने पुनः इसे खडा कर दिया ।

वर्तमान मंदिर की आधारशिला सौराष्ट्र के पुर्व राजा दिग्विजय सिंह ने 8 मई 1950 को रखी थी। मंदिर में ज्योतिर्लिंग की स्थापना डा. राजेन्द्र प्रसाद जी ने 19 मई 1951 में की थी। 1962 में मंदिर बन कर तैयार हुआ था। तत्कालीन भारत के गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल जी के नेतृत्व में बन कर तैयार हुऐ मंदिर को   1 दिसंम्बर 1995 को राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा जी ने  राष्ट्र को समर्पित किया था।
मंदिर तीन भाग में बना है। गर्भगृह ,सभामंडप और नृत्य मंडप। इसका शिखर 150 फिट का और 27 फिट की ध्वजा है।

पौराणिक कथा

महामना प्रजापति दक्ष ने अपनी अश्विनी आदि 27 कन्याओं का विवाह चंद्रमा से किया था। दक्ष कन्याऐं भी चंद्रमा को पाकर बहुत खुश थी। रोहिणी नाम की कन्या से चंद्रदेव का विशेष लगाव होने से विशेष प्रिती और प्रेम रहने लगा। यह देख बाकि कन्याएं दुखी होकर पिता की शरण में गई । दक्ष ने चंद्रदेव को समझाया मगर कोई परिवर्तन न देख शाप दिया तुम्हें क्षय रोग हो। शाप के प्रभाव से चंद्रदेव के क्षीण होने से ब्रह्मांड संतुलन गड़बड़ा गया। चंद्रदेव की दशा देख  इंद्र ने ब्रह्मा से युक्ति पुछी। तब ब्रह्मदेव ने कहा प्रभास क्षेत्र में जाकर शिव लिंग की स्थापना करें और महामृत्युंज्य मंत्र का जाप करें। चंद्रदेव ने निष्ठा पूर्वक भक्ति की जिससे  शिवजी ने प्रसन्न होकर वर दिया और कहा कि एक पक्ष में प्रतिदिन तुम्हारी कला क्षीण होगीं और दुसरे पक्ष में निरंतर बढती रहेगी। यह वर पाकर चंद्रदेव संतुष्ट हुऐ। तभी से चंद्रमा का यश विस्तार करने के लिये भगवान शिव सोमनाथ नाम से प्रसिद्ध हुऐ। 


सोमनाथ
सोमनाथ 



अंदर मंदिर में शिवलिंग के दर्शन कर पीछे की दीवार से लगे समुद्र के दर्शन किये। बडी बडी लहरें दीवारों से टकरा कर जैसे प्रणाम कर रही हो।बडा भव्य मंदिर है ।दूर से ही ध्वजा के दर्शन हो जाते है।

बाण स्तंभ  

सन 1970 में जामनगर की राजमाता ने अपने पति राजा दिग्विजय सिंह जी की स्मृति में दिग्विजय द्वार का निर्माण करवाया था। मंदिर के दांई ओर बने स्तंभ पर एक तीर के निशान का संकेत है कि सोमनाथ और दक्षिणी ध्रुव के मध्य कोई भू भाग नहीं है। इस स्तंभ को ही  बाण स्तंभ कहते है। केवल आपकी जानकारी के लिये।

सोमनाथ
सोमनाथ 

  1. दर्शन प्रतिदिन सुबह 6 से शाम रात 9.30 बजे तक
  2. आरती दिन में तीन बार सुबह 7 दोपहर 12 और शाम 7 बजे   
यहां पर समुद्र का शोर दूर से ही सुन सकते है। किनारे चहल कदमी करना बडा रोमांचक लगा।
 समुद्र में उठती हुई लहरों में स्नान और बीच पर ऊंट व घुड सवारी का आनंद परम अहसास दे रहा था।
मंदिर से दर्शन कर अन्य पर्यटन स्थलों की ओर चल दिये।               

भालका तीर्थ

यहां पर जरा नामक शिकारी ने श्री कृष्ण जी के तलवों में तीर मारा था । जिससे वे परम धाम को चले गये थे।

बाण गंगा शिव लिंग

बहुत खुबसुरत जगह है।  यह शिवलिंग समुद्र मे स्थित होने से समुद्र के जल से ही अभिषेक होता हैै। पानी में भीगना और भगवान शिव जी का अभिषेक दोनों का  एक साथ पाकर हम धन्य हो गये।           

त्रिवेणी संगम          

यहां पर तीन नदी सरस्वती,कपिल और हिरण्या नदी का संगम स्थल है।

  • सूर्य मंदिर
  • गौ लोक धाम
  • गीता मंदिर
  • पांडव कालीन गुफाऐं
  • स्वामीनारायण मंदिर
  • सोमनाथ बीच
  • प्रभास पाटन म्यूज़ियम                                           
  • यहां पर आने के लिये अहमदाबाद और बडौदा से कार व बस सेवा तथा वेरावल तक ट्रेन सुविधा उपलब्ध है। रहने के लिये हर श्रेणी की होटलें  व रेस्टोरेंट मिल जाते है। 


सोमनाथ में एक दिन रूकने के बाद अगला सफर यहां से 45 किमी की दूरी पर मूल द्वारका का था।। कहा जाता है कि श्री कृष्ण जी मथुरा से आकर द्वारका के निर्माण तक यहां पर रहे थे।

बहुत सुन्दर मंदिर बने हुऐ है। बाग बगीचों के मध्य एकदम शांत चारों ओर हरियाली आज ऐसा है तो श्री कृष्ण के समय कैसा रहा होगा।

हमारा अगला पाईंट दीव है। यह तीन तरफ से समुद्र से घिरा है । बहुत सुन्दर जगह है । खूबसूरत द्वीप दीव की सैर पर चलते  है 

                                                                                     जय श्री कृष्ण











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