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एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा पार्ट- 5


                               जय श्री कृष्ण

 सीता जी के जन्म स्थल जनकपुर की यात्रा-----


एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा पार्ट- 5


शाम  7.00 बजें काठमांडू से जनकपुर के लिये चले। रोड हाई-वे था। मगर अति व्यस्त खतरनाक पहाड़ी रास्ता और उपर से रात में भारी वाहनों की लाईटें परेशान कर रही थी। कभी कभी तो आंखो से आंसु भी आ जाते थे।  इन सब परेशानियों के बावजूद भी हमारे ड्राईवर साहब की ड्राईविंग स्किल कमाल की थी। बेख़ौफ़ वो अपना काम कर रहे थे।  

काठमांडू में ही तय कर लिया था कि भोजन रास्ते मे करेगें । किंतु हर जगह नानवेज का बोलबाला था। अतः चाय पीकर ही संतुष्ट होना पडा। जैसे जैसे समय बढ रहा था। नींद और भुख भी सता रही थी। इसी उहापोह में रात 1.20 बजे जनकपुर पहुंचे। यहां पर हल्की बारिश के कारण ठंड और बढ गई थी। एक सज्जन से धर्मशाला का पता पुछकर उस ओर चल दिये। मन में विचार आ रहा था। कि इतनी रात को वहां कौन मिलेगा। किंतु वहां पहुंचे तो देखा अच्छी खासी भीड थी। यात्री बसें आ जा रही थी। 

धर्मशाला पहुंचकर सबसे पहले एक हाल बुक किया।  फिर भोजन बनाने के लिये तामझाम गाडी से उतारे। वहां निर्देश थे।कि भोजन रसोईघर  में ही बनावें तो सारा सामान लेकर रसोईघर पहुंचे। सभी अपने अपने काम में लगे थे।  हमारे दो साथी बाकी का सामान हाल तक पहुंचाने चल दिये। 
सभी के सहयोग से जल्द ही भोजन बन गया था। पुरी यात्रा में पहली बार था । कि देर रात भोजन कर रहे थे। खैर एक कहावत है कि पहले पेट पुजा फिर काम दुजा ।

 सुबह सभी देर से उठे । बाहर आकर देखा तो धर्मशाला खाली हो गई थी। सफाई कर्मचारी अपने अपने काम में लगे थे। हमें भी जल्दी ही निकलना था। चलिये सभी लोग तैयार होकर आये, तब तक जनकपुर के बारे में थोडा जान ले।

 जनकपुर 

इतिहास 

 एक कथा के अनुसार जनकपुर के शासक कराल जनक ने कामांध होकर एक ब्राह्मण कन्या का शील भंग किया था। इसकि परिणीती में राजा अपने  बंधु बांधवों के साथ मारे गये।  जनक वंश के जो लोग शेष बचे थे। उन्होने जगंल में शरण लेकर जान बचाई थी। यह जंगल ही आज का जनकपुर है।  प्राचीन काल में मिथिला की राजधानी जनकपुर थी। यहां पर राजा जनक का शासन था। यह वही जनकपुर है। जहां पर सीता जी का जन्म हुआ था।  विदेह में निमी वंश के राजा सिरध्वज  जनक 22वें  जनक थे। सीता जी इन्ही की पुत्री थी।जनकपुर का महत्व तब और बढ गया जब सीता स्वयंवर और राम जी के साथ सीता जी का विवाह हुआ। राजा जनक को अपनी पुत्री के लिये योग्य वर चाहिये था। और उसके लिये राजा महाराजाओं में स्वयंवर का प्रचलन था। इन स्वयंवरों में योग्यता परखी जाती थी। राज महल में एक दिव्य शिव धनुष था। जिसे प्रतिदिन सीता जी एक हाथ से उठाकर उस स्थान की सफाई करती थी। यह देख राजा ने प्रतिज्ञा ली थी कि जो राजकुमार इस शिव धनुष की प्रत्यंचा चढा देगा उसी से सीता का विवाह करेगें। स्वयंवर में बहुत से राजकुमार आये पर कोई सफल नहीं हुआ। तब श्री राम जी ने धनुष की प्रत्यंचा चढा कर सीता जी से विवाह किया था।  साथ ही श्री राम जी के भाई  भरत जी का मांडवी से लक्ष्मण जी का उर्मिला तथा श्रुति कीर्ति का शत्रुघ्न के साथ विवाह हुआ था।

पर्यटन स्थल

जानकी मंदिर -

यह मंदिर सीता जी (जानकी जी) को समर्पित है। इसके निर्माण में 16 वर्षो का समय लगा था।  सन 1895 ई. में आरंभ होकर 1911 ई. में पूर्ण हुआ था। 4680 वर्ग फिट क्षेत्र में निर्मित इस भव्य मंदिर कि भी बड़ी रोचक कहानी है। कहते है कि टीकमगढ़ की महारानी वृषभानु कुमारी बुंदेला ने पुत्र की चाह में अयोध्या में कनक भवन मंदिर बनवाया। किन्तु सफलता नहीं मिली।


सीता मंदिर, जनकपुर नेपाल

तब गुरु की आज्ञा से जनकपुर में जानकी मंदिर का निर्माण शुरू करवाया था। इसके एक वर्ष में ही उन्हे पुत्र प्राप्त हुआ था। 

जानकी मंदिर, जनकपुर नेपाल 

किन्तु कुछ समय बाद उनकी मृत्यु होने से मंदिर का निर्माण प्रभावित हुआ था। बाद में वृषभानु बहन नरेन्द्र कुमारी ने निर्माण कार्य पुर्ण करवाया था। 

विवाह मंडप, जनकपुर नेपाल 

यहां और भी बहुत सुंदर स्थान है। थोडा समय लेकर जायें जिससे इन सब स्थानों को आप   देखना पसंद करेंगे। 

  • जालेश्वर महादेव 
  • दोलखा भीमसेन मंदिर 
  •  गंगासागर झील
  • धनुष सागर झील 
  • रत्ना सागर
हमारी गाडी की नेपाल में अनुमति की अवधि आज समाप्त हो रही थी। इसलिए अवधि सीमा में ही वापस भारत में प्रवेश करना था। अन्यथा भारी जुर्माना देना पड़ता। शाम पांच बजे भारत नेपाल सीमा चौकी पहुंच गये थे। लाईन बहुत लंबी थी । अपना नंबर आने पर सारे कागजात दिखाकर बेरियर पर अपना अनुमति पत्र दिखाया और गेट खुलने पर भारत में प्रवेश कर लिया । रात बौद्ध गया पहुंच गये।                                           
                 
 जय श्रीकृष्ण                 
 

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