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श्री कृष्ण जी की कर्म भूमि द्वारका


                                                                    जय श्री कृष्ण 
 

आज हमारे गुजरात दर्शन यात्रा का चौथा दिन  था। और ये इस पुरी यात्रा का मुख्य केन्द्र था। हिंन्दु  मान्यताओं के अनुसार सात पुरीयों और चार धाम में से एक  द्वारका धाम है। श्री कृष्ण जी की पुरी जहां हर जगह श्री कृष्ण जी बसते है।         
         

राधा कृष्ण जी
राधा कृष्ण जी 

  कल शाम को जब जामनगर से निकले तो रास्ते में कुछ दूर तक ही ट्राफिक मिला उसके बाद दूर दूर तक कोई हलचल नहीं मिलने से मन में थोडी बैचेनी सी होने लगी।आगे रास्ता कैसा होगा, कही अकेले चलने का हमारा विचार गलत तो नहीं इसी उधेड बुन में चल रहे थे। मगर अब चलने का ही विकल्प होने से भगवान भरोसे चलते रहे। करीब एक धंटे के बाद दूर से किसी वाहन की लाईटें नजर आने लगी तब जाकर राहत महसूस की। अब हमारा पुरा ध्यान इस वाहन के साथ को बनाये रखने पर केन्द्रित हो गया।  कुछ समय के अंतराल पर वाहन दिखाई देने लगा तब पता चला कि ये कोई बस है ,और बडी तेजी से चली आ रही है। लिहाजा हमको भी थोडी स्पीड बढ़ानी पड़ी। आखिर इस भागमभाग में हम हाईवे तक पहुंच गये थे। कुछ ही देर में एक चेक पोस्ट पर रूकना पडा। यहां बहुत सारे वाहन रूके हुऐ थे। हम भी गाडी के कागजात लेकर चौकी पर पहुंचे। सारे पेपर दिखाने और जरूरी जानकारी देने के बाद  वहां से रवाना हुऐ।  


द्वारका, गुजरात
द्वारका, गुजरात 

रात करीब 10 बजे द्वारका जी में प्रवेश किया।  सबसे पहले रूकने के लिये जगह तलाश करी। शहर के बाहर ही एक होटल में जगह मिल गई। हम सभी तरोताजा होकर पास ही एक रेस्टोरेंट में खाना खाने के लिये गये। यहां रात में भी बहुत चहल पहल थी। कहीं कोई आ रहा था तो कोई जाने की तैयारी में थे। बाहर पैदल घूमना बहुत अच्छा लग रहा था।  वापस होटल आकर द्वारका शहर और मंदिर जाने की सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त की।
           
    
द्वारकाधिश मंदिर
 द्वारकाधिश मंदिर 

   द्वारका 

  भारत के पश्चिमी समुद्र तट पर बसी यह अतिप्राचीन नगरी है। हिंन्दु धर्म की आस्था का केन्द्र चार धामों और सात पुरीयों में से एक श्री कृष्ण जी की कर्म भूमि रही है। कहा जाता है कि श्री कृष्ण जी ने मथुरा से यहां बंधु बांधवों सहित आकर इस सुंदर नगरी का निर्माण करवाया था।  आज यहीं के दर्शन कर हम भी अनुभव करेगे और धर्म की इस वैतरणी में एक गोता लगा कर अपने आप को कृतार्थ महसूस करने का सौभाग्य पायेगें। सभी मंदिर एक परकोटेनुमा चारदिवारी में स्थित है।

  सुबह जल्द ही तैयार होकर मंदिर की ओर चल दिये।  पुर्वी प्रवेश द्वार से प्रविष्ट होकर गाडी  गोमती नदी किनारे पार्किंग स्थल में पार्क करके यहां से पैदल ही धाट की ओर चल दिये।


    गोमती धाट 
             
  द्वारका के दक्षिण में एक बहुत बडा व लंबा तालाब है। इसे गोमती तालाब और गोमती द्वारका के नाम से भी जाना जाता है। इस तालाब के किनारे नौ धाट है ।

गोमती धाट, द्वारका
गोमती धाट, द्वारका 

 इनमें तीर्थयात्री निष्पाप धाट पर स्नान करके पवित्र होते है। कुछ श्रद्धालु अपने पूर्वजों  का पिंड दान भी करते है।  यहां से दक्षिण में पांच कुंऔं के पानी से कुल्ला करके  द्वारकाधीश मंदिर दर्शन को जाने की परम्परा का निर्वहन करते है। हमने भी इसका पालन कर रास्ते में आने वाले गोमती माता मंदिर ,श्री कृष्ण मंदिर और महालक्ष्मी मंदिरों के दर्शन कर मुख्य मंदिर की ओर चल दिये। आगे मार्ग संकरा था। इस कारण भीड़ ज्यादा हो गई थी। हम सब का एक ही लक्ष्य  मंदिर पहुंचने का था। किसी तरह मंदिर पहुंचे।
        मंदिर में प्रवेश के लिये दो द्वार है एक उत्तर दिशा में जिसे मोक्ष द्वार कहते है यह मुख्य बाजार की तरफ का है। तथा दुसरा दक्षिण में जिसे  स्वर्ग द्वार जो कि गोमती नदी की तरफ जाता है। स्वर्ग द्वार से मंदिर में प्रवेश  का विधान है।


    द्वारकाधिश मंदिर 
       
          यह द्वारका का सबसे बडा और प्राचीन मंदिर है। इसका एक नाम जगत मंदिर भी है। श्री कृष्ण जी के मूल निवास स्थान हरि गृह पर श्री कृष्ण जी के पड पौते वज्रनाभ ने निर्माण करवाया था। सामने मंदिर में श्री कृष्ण जी की श्याम वर्णिय 4 फिट ऊंची आकर्षक मनोहारी मुर्ति विराजित है। हीरे जवाहरात से सुसज्जित पीत वस्त्र धारण किये,  गले में ग्यारह स्वर्ण मालाऐं पहने चतुर्भुजधारी के  हाथ में शंख, चक्र , कमल और गदा है सिर पर स्वर्ण मुकुट पहने हुऐ। गले में पुष्प माला के साथ तुलसी की मालाऐं अति शोभित हो रही थी।   मंदिर के दरवाजों पर चांदी के पत्तर चढ़े हुऐ थे।छतों में कीमती झाड फानुस लटके हुऐ थे। यह 72 स्तंभों पर निर्मित सात मंजिला भवन है। इसकी पहली मंजिल पर मां अंबे का मंदिर है । 78.3 मीटर ऊंचे शिखर पर 84 फिट का ध्वज दिन में पांच बार बदला जाता है। हर बार ध्वज का रंग अलग हो सकता है मगर सूर्य और चांद का निशान निश्चित है।
         
     
द्वारकाधीश मंदिर परिक्रमा मार्ग , द्वारका
द्वारकाधीश मंदिर, द्वारका

   दर्शन के पश्चात परिक्रमा का महत्व है और यह परिक्रमा मार्ग दोहरी दीवारों के मध्य से है।
  इसके साथ ही सामने 100 फीट ऊंचा जगमोहन है । इसकी भी परिक्रमा करके माखन मिश्री का प्रसाद ग्रहण किया जाता है। तत्पश्चात दक्षिण में दुर्वासा जी ,टीकम जी और प्रद्युम्न के दर्शन कर  कुशेश्वर महादेव जी के दर्शन किये जाते है।  महादेव जी के मंदिर से लगे हुऐ  राधा, रूकमणी, सत्यभामा और जाबवंती में जी के मंदिर है। दक्षिण  में भगवान का भंडारा और शारदा मठ है।                                                 

   द्वारका शहर परिक्रमा मार्ग

               जगमोहन मंदिर से शुरू होकर गोमती के किनारे नौ धाटों में  वासुदेव धाट होती हुई संगम धाट (जहां गोमती नदी और समुद्र का संगम होता है)  पर संगम नारायण के दर्शन करके उत्तर में चक्र तीर्थ से रत्नेश्वर महादेव, सिद्धनाथ महादेव होकर ग्यान कुंड बावड़ी से सौमित्री बावड़ी (लक्ष्मण जी प्रद्त) होकर काली माता मंदिर दर्शन करते है। तत्पश्चात कैलाश कुंड (यहां का पानी गुलाबी है)  पर सुर्यनारायण के दर्शनों का विधान है। यहां से शहर का पुर्वी द्वार आता है इस द्वार के द्वारपाल जय और विजय है। यहां से  होकर पुनः निष्पाप कुंड होते हुऐ द्वारकाधीश के मंदिर में दर्शन कर परिक्रमा पुर्ण करके प्रभु का आशिर्वाद प्राप्त करते है।
  
  रुकमणी मंदिर थोडी दुरी पर है। द्वारका जी के दर्शनों के पश्चात हम लोग ने ओखा की ओर  प्रस्थान किया। रास्ते में लगा सडक और समुद्र एक साथ चल रहे हों। बहुत सुंदर दृश्य देख हम सब मंत्रमुग्ध हो गये थे। एक जगह पुल पर रूक कर कुछ देर तक समुद्र देव को निहारते रहे।  

 ओखा       

  द्वारका से 30 किमी दक्षिण में स्थित यह नगरी प्रमुख रूप से भेंट द्वारका जाने की एक कडी है। समुद्र के किनारे होने से यहां एक व्यवसायिक बंदरगाह के साथ कुछ उधोग भी है जिनमें टाटा केमिकल्स जो कि नमक निर्माण की बहुत बडी ईकाई है।  

ओखा , द्वारका
ओखा , द्वारका

    भेंट द्वारका जाने के लिये यहां से फैरी बोट द्वारा जाना होता है। पास ही गाडी पार्किंग के लिये एक बडे से स्थान पर जेट्टी द्वारा पार्किंग  संचालित किया जाता है। यहां गाडी पार्क करके हम लोग पैदल  जेट्टी के गेट की ओर चल दिये। टिकीट खिडकी से टिकीट लेकर बोट के इंतजार में जेट्टी पर कुछ समय गुजारना पडा। जैसे ही बोट अपने निर्धारित स्थान पर लगी। हलचल बढ गई थी। सब अपना स्थान सुरक्षित करने की जल्दी में थे।

      
बेंट द्वारका
बेंट द्वारका

ओखा से करीब 3.5 किमी समुद्र में स्थित बेंट द्वारका संभवतः श्री कृष्ण जी ने परिवार के लिये  बनवाई होगी। यह द्वीप करीब 13 किमी लंबा और  4 किमी चौड़ा है। यहां पर कई तालाब, मंदिर और श्री कृष्ण जी के परिवार के पांच बडे भवन है।           
  
  समुद्र में बोट से आनंद भी आ रहा था और जब लहरो की वजह से थोडी उपर नीचे होती तो डर भी लग रहा था। जैसे ही बोट किनारे लगी बडा सकून मिला। बोट से उतरकर पुल से गुजर रहे थे।दोनों ओर छोटी छोटी दुकानें लगी हुई थी। कहीं पर रंगीन पत्थर तो कहीं सीपियों से बनी कला कृतियाँ कुछ एक दुकानों पर चाय, पानी की बोतल इत्यादि सामान था। पुल पार करने पर बेंट द्वारका की छोटी छोटी गलियां से होते हुए द्वारकाधीश के मुख्य मंदिर पहुंचने पर मालूम पडा कि 4 बजे बाद खुलेगा।  समय पास करने के लिये वापस चौराहे पर आये और एक आटो वाले से जानकारी ली। उसने बताया कि  5 किमी पर दांडी हनुमान जी का प्रसिद्ध मंदिर है। और यहां कई तालाब भी है सभी दर्शनीय स्थलों के लिये उसका आटो बुक कर लिया।

    शंख तालाब

    यह द्वारकाधीश मंदिर से 1.25 किमी पर है। यहां श्री नारायण जी ने शंख नामक राक्षस का वध किया था। इस तालाब पर धाट बने हुऐ हैं जहां तीर्थयात्री स्नान कर पास ही बने हुऐ मंदिरों में पुष्प चढ़ाकर पुण्य लाभ प्राप्त करते है। नजदीक ही रणछोड़ तालाब, रत्न तालाब और कचौरी तालाब है। किनारे पर मुरलीमनोहर, नीलकंठ महादेव, रामचंद्र जी का मंदिर और शंखनारायण प्रमुख है।           

दांडी हनुमान मंदिर   

   यह मंदिर द्वारकाधीश मंदिर से 5 किमी दूर है।  मकरध्वज हनुमान मंदिर के बारे में कहा जाता है कि जब हनुमान जी लंका जा रहे थे तो उनके पसीने की एक बुंद समुद्र में एक राक्षसी ने निगल ली थी।और उससे उत्पन्न हुऐ थे मकरध्वज। बहुत ही शांत वातावरण में स्थित मंदिर में बडा सकून मिला। यहां लग रहा था मन शांत स्थिरचित्त हो गया है ।   मंदिर के महंत जी से चर्चा कर बहुत सी जानकारियां प्राप्त की। उनके आग्रह पर भंडारे में प्रसाद ग्रहण किया।                               

चौरासी धूना 
          
द्वारकाधीश से 7 किमी दूर है। यह प्राचीन व ऐतिहासिक तीर्थ स्थल है।  उदासीन संप्रदाय को समर्पित इस अखाड़े के बारे में श्री पंचायती अखाड़ा बडा उदासीन के पीठाधिश्वर श्री महंत रधुमनी जी ने बताया कि ब्रह्मा जी की श्रृष्टि रचना को न मानकर उदासीन संप्रदाय की स्थापना की और भ्रमण करते हुऐ यहां आये थे। साथ ही 4 सनंत कुमार और 80 अन्य संतो को जोडकर 84 दिव्य संतो ने चौरासी धुने स्थापित किये और प्रत्येक धुने के बारे में एक लाख महिमा का बखान किया था। यहां पर रहने खाने की व्यवस्था अखाड़ा निशुल्क करता है  

मुख्य मंदिर द्वारकाधीश जी 

            यह बेंट द्वारका का मुख्य मंदिर है।यहां पर पांच बडे भवन है। श्री द्वारकाधीश जी के तीन मंजिले भवन की उपरी मंजिल में बडे बडे शीशे लगे है। झुला लगा है। खेलने के लिये चौपड़ बनी है। बाकि चार भवन दो मंजिले है। दक्षिण में सत्यभामा और जांबवंती  तथा उत्तर में रूकमणी और राधा जी के भवन है। सभी भवनों के दरवाजों पर चांदी के पतरे चढ़े हुऐ है। सभी सुख सुविधा से संपन्न प्रत्येक भवन का अपना भंडार गृह है।


द्वारकाधीश मंदिर
द्वारकाधीश मंदिर 

         मंदिर के खुलने का समय जरूर ध्यान रखे क्योंकि यहां पर यह ही मुख्य है। सुबह 5 बजे से 12 बजे तक और शाम को 4 बजे से रात 9 बजे तक किन्तु आखरी बोट शाम 6 बजे तक ही है।  
         
          अन्य मंदिरों में प्रधुम्न मन जी का, टीकम जी का, पुरषोत्तम जी का, देवकी माता, माधव जी, अंबा जी , गरूड़ जी , साक्षी गोपाल, लक्ष्मीनारायण और गोवर्धन नाथ जी के मंदिर प्रमुख है। 
      
          यहीं पर से श्री कृष्ण जी ने नृसिंह मेहता का मायरा भरा था और कृष्ण जी के बाल सखा सुदामा जी भी भेंट के लिये चावल लेकर आये थे। यही परंमपरा आज भी प्रचलित है प्रसाद स्वरूप चावल भेंट किये जाते है।      
             समुद्र के रास्ते तीन मील दक्षिण  पुर्व में सोमनाथ पट्टल है। यहां पर तीन नदियां हिरण्य, सरस्वती और कपिला का संगम स्थल है। यहां पर ही हुआ था। श्री कृष्ण जी का अंतिम संस्कार


  हमारी बोट का समय हो गया था।अतः वापसी के लिये बोट की तरफ चल दिये। बोट लगभग भर चुकी थी फिर भी दो बार हुटर बजाकर जाने का संकेत देकर चल दी। वापस  पार्किंग से गाडी लेकर हम द्वारका के लिये रवाना हो गये। द्वारका के पहले ही बांये हाथ का मार्ग चुना। यह सीधे गोपी तालाब होते हुऐ दारूका वन नागेश्वर  ज्योतिर्लिंग को जाता है।
               
 गोपी तालाब 


गोपी तालाब
गोपी तालाब 

गोपी नाथ
गोपी नाथ 

   

यहां के पंडित जी के अनुसार एक पौराणिक कथा है कि महाभारत के बाद अर्जुन को अपने आप पर बडा अभिमान हो गया था कि मेरे समान संसार में सबसे सर्व श्रेष्ठ धनुर्धारी और बलवान कोई दुसरा नहीं है इस अभिमान को तोडने के लिये भगवान ने एक लीला रची और अर्जुन को सभी गोपीयों को मथुरा छोड़ने का कहा। रास्ते में इसी तालाब में गोपियां स्नान करने के लिये रूकी । तभी प्रभु माया से लुटेरों ने आक्रमण कर दिया । अर्जुन ने अपना गांडीव धनुष चलाया किंतु अभिमान के कारण वह प्रभाव हीन हो गया। तब लुटेरों ने अर्जुन को लूट लिया यह देख सभी गोपीयों ने द्वारकाधीश को याद किया। भगवन भोजन को छोड़कर  रक्षा के लिये आये और सभी गोपियों को मोक्ष दिया। तभी से यह तालाब गोपी तालाब के नाम से प्रसिद्ध हुआ। और आज भी इसकी मिट्टी को गोपी चंदन रूप में  प्रयोग करते है
गोपी तालाब पर एक संयोग बना । हम पुर्णिमा के दिन रात के समय गोपी तालाब पर थे। उस समय सब तरफ शांति थी। और चंद्र देव अपनी पुर्ण कला के साथ आकाश में शीतल प्रकाश कर रहे थे मानो हमें यहां का मनमोहक दृश्य दिखा रहे हो।  रात के 9.45 बज रहे थे। और अब हमें अगले मुकाम की ओर भी जाना था । अतः निकट द्वारका ही था जहां भोजन की व्यवस्था हो सकती थी। यहां से करीब 45 मिनट में द्वारका जी पहुंच गये। 
   भोजन कर हमने सफर जारी रखने का फैसला किया। रात 11 बजे पोरबंदर के लिये निकले, हाईवे होने से समय मालूम ही नहीं पडा करीब 1 बजे हम पहुंच गये थे। सुदामा मंदिर के पास ही होटल मिल गई । चलिये सुबह मिलेगें अगले सफर पोरबंदर के पर्यंटन स्थल पर । 
                     

दारूका वन नागेश्वर ज्योतिर्लिंग 

            मान्यता है कि यह बारह ज्योतिर्लिंगों मे से एक है। 

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग 

पौराणिक कथा में बताया गया है कि पुरातन काल में सुप्रिय शिव जी के अनन्य भक्त थे। वह हमेशा शिव भक्ति में मगन रहते थे। यह बात शिव विरोधी दारूका नामक राक्षस को नागवार गुजरती, एक बार सुप्रिय अपने संगी साथियों के साथ नाव से कहीं जा रहे थे। ऐसे समय में दारूका राक्षस नें आक्रमण करके सभी को बंदी बना लिया। इस कठिन परिस्थिती में भी सुप्रिय अविचलित शिव के ध्यान में मगन थे।। तब दारूका राक्षस ने सुप्रिय को मारने के लिये आदेश दिया।  भक्त सुप्रिय ने शिव जी को याद किया और सहायता मांगी। तब शिव जी लिंग रूप में प्रकट होकर सुप्रिय को पाशुपत अस्त्र प्रदान किया। इस अस्त्र से सभी राक्षसों  का वध किया।
                                                                           
                                                                जय श्री कृष्ण 

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