सफर सांवलिया सेठ का
सांवलिया सेठ जी मंदिर, मंडफिया राजस्थान |
एक कहावत है उठ चंदा फिर वही धंधा, रोज की दिनचर्या दोहराते दोहराते मन मे उब होने लगती है। हम कई बार विचार करते है कि कुछ तो आराम मिलें या फिर कही बाहर घुम आये तो फिर से तरो ताजा हो जायेगे। परिवार के साथ बाहर घूमने का मजा ही कुछ और होता है। बस ऐसा समय मिले की सब एक साथ जा सके।
शनिवार का अवकाश होने से दो दिन मिल रहे थे। बिना किसी योजना के हम दोनों शुक्रवार शाम को ही इन्दौर के लिये निकल पड़े। गाडी में सांवलिया सेठ जी के भजन चल रहे थे। सुनकर बहुत अच्छा लग रहा था।
सफर सांवलिया सेठ का , बिड़ला मंदिर नागदा और पशुपतिनाथ मंदसौर |
इन्दौर पहुंच कर बेटू से फोन पर बात करी तो वो मचलने लगा नाना जी आप तो उज्जैन आ जाओ।मैं आपका इंतजार कर रहा हूँ । बहुत समझाने पर भी नहीं मान रहा था सो रात ही उज्जैन चल दिये।
घर पहुंचते तक दो तीन बार फोन आ गया। जैसे ही घर पहुंचे सामने बेटू हमारा इंतजार करता हुआ गेट पर ही खडा मिला । हमको देख कर जोर से बोला मम्मी नाना जी आ गये है।
भोजन पश्चात गपशप के दौरान ही घर वालो की फरमाइश हुई की कहीं घूमने चला जाय। सब अपनी अपनी पसंद की जगह बताने लगे, आखिर में हमारी बारी आई तो हमने सांवलिया जी का प्रस्ताव रखा जो सर्वानुमति से पारित हो गया। सबसे पहले यात्रा मार्ग और दूरी दोनो गूगल बाबा से मालूम की। और तय किया कि सुबह जल्दी चलने के लिये सारी तैयारी रात में ही कर लि जाय।
बिड़ला मंदिर नागदा,
पशुपतिनाथ मंदिर मंदसौर-नीमच
सांवलिया सेठ मंडफिया ये स्थान हमारी यात्रा में आने वाले थे।
बिड़ला मंदिर नागदा,
उज्जैन से लगभग 57 किमी है। हम लोग करीब 8 बजे मंदिर पहुंच गये।
बिड़ला मंदिर,नागदा जंक्शन |
निश्चित ही मंदिर बहुत बडे क्षेत्र में बनाया गया है। मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर सुरक्षा गार्ड तैनात है।थोडा सा आगे जाने पर बांई तरफ पार्किंग स्थल है। यहां से पैदल ही मंदिर तरफ जाना होता है मार्ग के दोनो तरफ खुबसुरत बगीचे बने हुऐ है दांई तरफ बच्चो के लिये झुले लगे है। मंदिर के ठीक सामने ही बहुत ही सुंदर फाउंटेन बना है।
बिड़ला मंदिर फाउंटेन,नागदा जंक्शन |
बांई ओर एक मंजिल की ऊंचाई तक सीढ़ियां चढने पर गणेश जी और हनुमान जी के मंदिर बने है और सामने नारायण जी (विष्णु जी) का भव्य मंदिर है सफेद संगमरमर से बनी हुई सभी मूर्तियां लगती है मानो सजीव हो। घंटो बैठने पर भी मन उठने को नहीं करता, सारे विचार शांत हो जाते है । दर्शन कर पुनः नीचे उतरने पर सामने ही चरण कमल के दर्शन होते है।
लक्ष्मीनारायण चरण कमल |
मंदिर दर्शन कर करीब 10 बजे मंदसौर के लिये निकले। रास्ते मे बहुत आनंद लिया, एक जगह नाश्ते के लिये, खेत में पेड़ के नीचे डेरा जमाया।
शहरी जिंदगी को जब खुला स्थान मिलता है तो उसका अपना अलग ही आनंद आता है। पेड़ की छाया में कुछ देर विश्राम के बाद मंदसौर के लिये रवाना हुए।नागदा से मंदसौर 93 किमी है। फिलहाल जहां रूके थे वहां से करीब 70 किमी का सफर करना था।
हम लोग 1.30 बजे पशुपतिनाथ मंदिर पहुंच गये थे। मंदिर से लगा हुआ बहुत बडा खाली मैदान है। गाडी पार्किंग की कोई परेशानी नहीं है। जल्दी से हाथ मुंह धोकर मंदिर दर्शन के लिये चल दिये।एक बडे से हाल को पार कर मंदिर क्षेत्र प्रवेश किया। सामने अष्टलिंगी शिवलिंग के दर्शन हुऐ ।
पशुपतिनाथ मंदिर, मंदसौर |
पशुपतिनाथ की अष्टलिंगी शिवलिंग केवल एक ही है। दुसरा मंदिर नेपाल में है किन्तु वहां पर चतुरलिगीं है ।अष्टलिंगी यानि आठ मुख वाली यह मुर्ति जीवन की 4 अवस्था को दर्शाती है।
पूर्व में बाल्यावस्था
दक्षिण में किशोरावस्था
पश्चिम में युवावस्था
उत्तर में प्रौढ़ावस्था। शिव के आठ मुख :- शर्व, भव, रूद्र, उग्र, भीम, पशुपतिनाथ,ईशान और महादेव को दर्शाते है।
यह मुर्ति तांबे के रंग के शिलाखंड की 7.25 फीट बाय 11.25 फीट की परिधी वाली 4650 किलो वजनी है। मुर्ति के आठ शिश दर्शाये गये है।उपर के 4 शिश स्पष्ट है जबकि नीचे के 4 शिश स्पष्ट नहीं है। मंदिर का शिखर 101 फिट ऊंचा है 100 किलो वजनी कलश पर 51 तौला सोने की परत चढाई गई है।
नंदी भगवान पशुपतिनाथ मंदिर |
मंदिर के इतिहास के बारे में एक कथा प्रचारित है कि शिवना नदी के किनारे उदा नाम का धोबी प्रतिदिन एक शिला पर कपडे धोता था।वह इस बात से अंजान था कि जिस शिला पर वह कपडे धो रहा है वास्तव में वह तो अष्टमुखी शिवलिंग है। एक दिन स्वपन में उसे वही शिला दिखी तो सुबह घाट पर जाकर ध्यान से देखा।यह बात उसने गांव में जाकर बताई। 19 जून 1940 को मुर्ति को नदी से बाहर निकाला गया। 21 साल तक मुर्ति शिवना नदी के तट पर ही रही ।इस बीच मंदिर का निर्माण किया और 23 नवंबर 1961 को चैतन्य। आश्रम के स्वामी प्रत्यक्षानंद जी महाराज ने मुर्ति की। प्राण प्रतिष्ठा की। 27नवंबर 1961 के दिन पशुपतिनाथ नामकरण किया।मंदिर प्रांगण में ही नंदी जी भी बहुत बडी मुर्ति स्थापित है।
प्रतिवर्ष शिवना नदी में इतना पानी आता है कि एक बार तो मुर्ति का अभिषेक या चरण स्पर्श अवश्य होता है।
शाम के पाॅंच बजने को है । सफर जारी रखते हुए हम चल दिए अपनी मंजिल साँवलिया सेठ मंदिर की और कल मिलते है ।
जय श्री कृष्ण
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