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सफर सांवलिया सेठ का

        
                         
       कल , शाम 8 बजे ही मंडफिया स्थित सांवलिया सेठ के भव्य मंदिर मे पहुंच गये थे। 


सांवलिया सेठ
सांवलिया सेठ जी 

                                          
             

सांवलिया सेठ मंदिर

मुख्य प्रवेश के पास में शू स्टैंड पर अपनी चरण पादुकाओं को सुरक्षित रखकर  सीढियों से होते हुऐ मंदिर परिसर को पार करने पर मुख्य मंदिर में प्रवेश करते है। श्री कृष्ण जी का ही रूप है सांवलिया जी। 
मुख्य मंदिर के दोनों ओर दो मंदिर बने है। सामने सांवलिया जी की मन मोहक कृष्ण शिला से बनी हुई मुर्ति बहुत ही सुंदर लग रही थी

जय सांवलिया सेठ  

 इसके उत्कृष्ठ निर्माण में कलाकृति और नक्काशी का बेजोड़ संगम है।  36 फिट ऊंचे विशाल शिखर पर स्वर्ण जड़ित कलश स्थापित है।                                     

सांवलिया सेठ मंदिर
सांवलिया सेठ मंदिर 

यह मंदिर बहुत बडे क्षेत्र मे बना हुआ है।चारों ओर परिक्रमा स्थल पर पक्का निर्माण और बीच मे बगीचा मंदिर को बहुत ही खुबसुरत बना देता है । शाम के समय लाईटें मंदिर को चार चांद लगा देती है। आरती के समय तो बहुत ही अच्छा लगता है।                
            

सांवलिया सेठ मंदिर के कलात्मक स्तंभ
सांवलिया सेठ मंदिर के कलात्मक स्तंभ

 हर स्तंभ पर मुर्तियों को बहुत बारिकी से उत्कीर्ण किया गया है। कारीगरी का अदभुत नमूना है। अधिकतर मुर्तियां कृष्ण जी और उनकी भक्ति से संबंधित है।                                         

सांवलिया सेठ मंदिर प्रांगण
सांवलिया सेठ मंदिर प्रांगण 

  इतिहास                                                                                                                               
                     मंदिर के बारे में कहा जाता है कि ये मीरा बाई के श्री कृष्ण जी से संबंधित है।मीरा बाई कृष्ण भक्ति में भ्रमणशील रहती थी।उस समय एक संत दयाराम जी भी उनकी मंडली में साथ थे। संत दयाराम जी के पास 4  श्री कृष्ण जी की मुर्तियां थी। वे सदा इन्हे साथ लेकर चलते थे। कहा जाता है कि इन मुर्तियों के बारे में बहुत चर्चा होती थी। एक बार कट्टर मुस्लिम शासक औरंगजेब अपने दल बल के साथ गुजर रहा था। ये दल मार्ग में आनेवाली हर हिन्दू संस्कृति को तहस नहस करते जा रहा था।जैसे ही दल  मेवाड तरफ से गुजरा तो कही से सैनिकों को इन मुर्तियों के बारे में जानकारी लगी और वे ढुंढने लगे तब संत दयाराम जी ने इन मुर्तियों को बागून भादसोड़ा ग्राम में एक वट वृक्ष के नीचे छिपा दी। कालांतर में संत जी ब्रह्मलीन हो गये।

                  सन 1840  में मंडफिया ग्राम के भोलाराम गुर्जर को एक दिन स्वपन में ये मुर्तियां दिखाई दी और कहा कि इन्हे बाहर निकाल लो, तब ये बात गांववालो की जानकारी में लाई गई, सब की सहमति से निर्धारित स्थान पर खुदाई की गई और आश्चर्य  की वहां से चारों मुर्तियां निकली। सबसे बडी मुर्ति को भादसोड़ा के गृहस्थ संत पुराजी भगत के देखरेख में मेवाड राज्य परिवार के भींडर ठिकाने की ओर से सांवलिया जी का मंदिर बनवाया गया जो कि आज प्राचीन सांवलिया   मंदिर नाम से प्रसिद्ध हैं।                                   
             
सांवलिया सेठ प्राकट्य मंदिर
सांवलिया सेठ प्राकट्य मंदिर

                      मंझली मुर्ति को प्राकट्य स्थल पर स्थापित किया गया और सन 1961 में प्रभु प्रेरणा से भक्त मोती लाल मेहता, दीपचंद्र तलेसरा, नारायण सोनी, डाडम चंद्र चौरडिया और मीठा लाल ओझा के अथक प्रयासों से मंदिर का निर्माण किया गया और आज भी जन सहयोग से कार्य चल रहा है।    


सांवलिया सेठ प्राकट्य मंदिर
सांवलिया सेठ प्राकट्य मंदिर 
  
छोटी मुर्ति को भोला राम गुर्जर अपने साथ मंडफिया ले आया और घर के पिरांडे यानी पानी रखने वाले स्थान पर विराजित कर विनीत भाव से  पुजा अर्चना करने लगा।  आज जो विशाल मंदिर है वो मूल स्थान पर ही है।           


                     चौथी मुर्ति खुदाई के दौरान खंडित होने से पुनः उसी स्थान पर जमीन में समाहित कर दी गई।             

जय सांवलिया सेठ 


सांवलिया सेठ जी
जय सांवलिया सेठ 

 कहा जाता है कि तीनों मंदिरो के दर्शन करने पर ही पूर्ण दर्शन माने जाते हैं। किवंदतियां तो बहुत है पर आस्था सर्वोपरि ।  एक बार दर्शन अवश्य करके अनुभव ले सकते है।                                                     
जय सांवलिया सेठ की          
        यहां का प्रसाद बहुत प्रसिद्ध है, लाडू और पपड़ी भोजन के लिये मंदिर की तरफ से भंडारा संचालित किया जाता है।  

अब हम जा रहे है । राजस्थान का प्रसिद्ध चित्तौड़गढ़ का किला देखने ।  यह  प्रसिद्ध शूरवीरों की कर्मभुमि रहा है वहीं अपने सतीत्व की रक्षा के लिये जौहर करती वीरांगनाऔं की भूमि था तो दुसरी ओर भक्ति रस से सरोबार मीराबाई भी यही की थी।    पन्नाधाय का त्याग और भामाशाह की देश के प्रति  दानवीरता की भूमि है चित्तौडगढ़  की।                      

                 

                                                                 जय श्री कृष्ण                             







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