जय गणेश जी
आज हम गुजरात की ऐतिहासिक और पुरातन भूमि पोरबंदर में है। यह महाभारत काल से भी पहले से अस्तित्व में है।
सुदामा मंदिर, पोरबंदर |
श्री कृष्ण के सखा सुदामा जी की जन्म भूमि जिसे सुदामा पुरी नाम से भी पहचान मिली थी। पौराणिक कथानुसार श्री कृष्ण के सखा सुदामा अत्यंत गरीब थे। बडी मुश्किल से गुजर बसर हो पाती थी। एक बार उनकी पत्नि ने उन्हे अपने सखा श्री कृष्ण से मिल कर कुछ जीवनयापन के लिये सहायता मांगने के लिये कहा किन्तु मित्र से मुलाकात करने पर भेंट देने के लिये कुछ नहीं था।तब तीन मुठ्ठी चावल का प्रबंध कर मिलने गये। श्री कृष्ण जी ने सुदामा जी से बडे प्रेम से मिले और बडी आवभगत की। भेंट मे मिले चावल को ग्रहण कर मित्र सुदामा को अथाह धन दौलत दी। यह बात सुदामा जी को नही मालूम थी। जब अपने घर वापस आये तो झोपड़े की जगह महल बना मिला।
इतिहास
पोरबंदर गुजरात के दक्षिणी छोर पर समुद्र किनारे बसा हुआ है। कहा जाता है यह महाभारत काल में अस्मावतीपुर और 10 वीं शताब्दी में पौरावेलापुर तथा बाद में सुदामापुरी के नाम से विख्यात हुआ था।आज इसे पोरबंदर नाम से जानते है। दुसरी बडी पहचान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को यही पर हुआ था। गांधी जी की प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर में हुई।
पोरबंदर बंदरगाह के रूप में भी पहचान जाता है ।
पोरबंदर के पर्यटन स्थल
सुदामा मंदिर
1902/1907 में जेठवा राजवंश ने शहर के मध्य स्थित इस मंदिर का निर्माण करवाया था। विशेष रूप से श्री कृष्ण सुदामा की मित्रता और श्री कृष्ण के सिंहासन पर सुदामा जी को बैठाकर रूक्मणी और कृष्ण द्वारा उनका सम्मान करने पर आधारित है । मंदिर में सुंदर बगीचे बने हुऐ है।
सुदामा मंदिर, पोरबंदर |
यहीं पर 84 भूलभुलैया है। कहते है इसे एकबार में बिना पैर बाहर किये यदि पार कर लिया जाता है तो इंसान सब पापों से मुक्त हो जाता है। हमने भी प्रयास किया था। किंतु सफल नहीं हो सके। बगीचे के एक ओर पक्षियों को दाना डालने की व्यवस्था है। दाना डालते ही एक साथ बहुत सारे कबूतर और अन्य पक्षी आ जाते है। इस मंदिर में तांदूल यानि कच्चे चावल का प्रसाद चढ़ता है।
भूल-भुलैया |
कीर्ति मंदिर
महात्मा गांधी जी का जन्म स्थान , 2 अक्टूबर 1869 को महात्मा गांधी जी का जन्म इसी स्थान पर हुआ था। इस जगह को उनकी स्मृति में एक उद्योगपति ने मूल संरंचना को केन्द्र में रख कर 79 फिट की इमारत में वह सब संजो कर रखा है जो गांधी से संबंधित है।यहां पर उस समय की लकड़ी की सीढियां, तहखाने,अलमारियां,कमरे सब वैसा ही है। एक संग्रहालय और पुस्तकालय भी है। यहां एक प्रार्थना कक्ष भी बनाया गया है।
कीर्ति मंदिर |
कीर्ति मंदिर के पीछे नवी खादी है। जहां कस्तूर बा का जन्म हुआ था
कीर्ति मंदिर |
धूमली गणेश मंदिर
अति प्राचीन करीब 10 वीं शताब्दी में बना यह मंदिर हिन्दू संस्कृति की वास्तुकला का उत्कृष्ठ उदाहरण है।
सूर्य मंदिर
पोरबंदर से करीब 48 किमी दूर उत्तर पूर्व में स्थित यह मंदिर छठीं शताब्दी के आरंभ काल में बना हिन्दू संस्कृति की आस्था और मंदिर निर्माण की वास्तुकला का बेहतरीन उदाहरण है।
श्री हरि मंदिर
रमेश भाई ओझा जी द्वारा संचालित यह मंदिर बहुत बडे क्षेत्र में फैला है। खुबसुरत बगीचों के मध्य 65 स्तंभों और 105 फिट ऊंचे इस मंदिर में दांयी तरफ गणेश जी की आकर्षक प्रतिमा के दर्शन होते है तो दुसरी तरफ चंद्रमौलीश्वर महादेव की प्रतिमा है। यहां राधा कृष्ण , जानकी वल्लभ, लक्ष्मीनारायण जी, करूणा मयी माता जी और हनुमान जी की प्रतिमाऐं है। यहां पर एक साईंस गैलरी भी है। इस मंदिर के अंतर्गत सांदीपनी आश्रम में अनेक विधार्थी वैदिक शिक्षा भी ग्रहण करते है। शाम के समय लाईटिंग लगने पर बहुत सुंदर दिखाई देता है। यहां पहुंच कर बहुत सकून मिल रहा था। कई तरह के फूल लगे थे जो अपनी महक से वातावरण को और सुखद बना रहे थे।
श्री हरि मंदिर |
रोकड़िया हनुमान
बहुत समय पहले एक संत महात्मा पत्थर की शीला को हनुमान स्वरूप पुजा करते थे। कभी कभी कोई भक्त अपनी समस्या का समाधान के लिये उनके पास जाता था तो महात्मा जी हनुमान जी का ध्यान करके उसकी सहायता करते थे। धीरे धीरे समय के साथ आस्था और प्रसिद्धि बढती गई। आज यह स्थान आस्था का प्रमुख केन्द्र बन गया है। सुंदर बगीचे खुले स्थान के मध्य मंदिर में पत्थर की शिला खडी स्थिती में है। हनुमान जी की मुर्ति के बांये पैर के नीचे शनिचर जी का सिर और दांये पैर के नीचे शनिदेव के पैर है। हनुमान जी के एक हाथ में संजीवनी पर्वत और दुसरे हाथ में गदा है।वीर मुद्रा में मुर्ति में मानो जाग्रत लगती है।
मंदिर में शांत वातावरण मन को शांति प्रदान करता है।
नेहरू तारा मंडल (प्लैनेटेरियम)
यहां पर खगोलीय धटना से संबंधित एक शो बडी सी इमारत में संचालित किया जाता है।
पोरबंदर चौपाटी
समुंद्र किनारे बहुत खुबसूरत स्थान है। साफ स्वच्छ तटीय क्षेत्र में अनेक मनोरंजक गतिविधियों के साथ जल क्रीडा का आनंद लिया जा सकता है या किनारे बैठकर समुद्रीय हलचल को निहारे। पास ही पक्षियों के लिये दाना डालने की व्यवस्था है। एक साथ हजारो पक्षियों को दाना चूगते देखना और उनका अचानक उनका उड़ना एक अलग ही अनुभव प्रदान करता है।
यहां से अरब सागर में सूर्योदय और सूर्यास्त दोनो देख सकते है। चौपाटी की सुबह और शाम बडी सुहावनी लगती है।
पक्षी अभ्यारण्य
हज़ारों पक्षियों का आश्रय स्थल 1 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है।यहां देशी व विदेशी पक्षियों को देखा जा सकता है।फ्लेमिंगो,आंईबिस,कर्ल जैसी सैकडों प्रजातियों हैं।
भूतनाथ महादेव
यह महादेव जी का मंदिर है। छोटे से मंदिर की बडी आस्था होने से हमेशा भक्तो की भीड लगी रहती है।
माधवपुर तट
रेतिले तटों पर नारियल पेडों से धिरा यह क्षेत्र बहुत सुंदर लगता है। यहां पर माधवराय जी का मंदिर है। यहां की शाम मनोहारी है।
पोरबंदर तट
यह द्वारका और वेरावल के मध्य पडने वाला प्रमुख तट है। यहां पर भी अनेक तटीय गतिविधी संचालित होती है।
इंद्रेश्वर महादेव
यह समुद्र किनारे स्थित लिंगरूप में सफेद रंग का मंदिर है। इसका नक्काशीदार गोल गुंबद दूर से ही दिखाई दे जाता है। यह मंदिर करीब 200 वर्ष पुराना है। यहां से सूर्योदय , सूर्यास्त और सागर दर्शन कर सकते है। यहां असीम शांति मिलती है। ऐसा लग रहा था ,धंटो यहां बैठकर सागर को निहारते रहे।
दरबारगढ़ महल
राणा सुलतान जी प्रतिहार द्वारा 1671/1699 के मध्य इसका निर्माण करवाया था। महल के प्रवेश द्वार को पत्थर पर खुबसुरत नक्काशी करके बनवाया गया था। अंदर दोनों तरफ ऊंची ऊंची मीनारें है। लकड़ी के बडे़ बडे दरवाजे विशाल दालान और बगीचों से सज्जित है।
हूजूर महल
राणा नटवर सिंह ने 20 वीं शताब्दी के आरंभ काल में इस महल का निर्माण करवाया था। महल में बडी बडी खिडकियां, अद्धगोलाकार आकृति ,बगीचे कमरों की बनावट , लकड़ी की छत और झाड फानूस में स्पष्ट यूरोपियन शैली का प्रभाव दिखाई देता है।
चोरो महल
राणा सतरन जी ने इस महल का निर्माण 1671/!691 के मध्य करवाया था। राजपूती शैली में बनी तीन मंजिली इमारत को ग्रीष्मकालीन अवकाश में उपयोग में लिया जाता था।
लाईट हाऊस
समुद्रीय किनारा और बंदरगाह होने से यहां एक लाईट हाऊस बना हुआ है। सन 1887 में निर्मित इस टावर की ऊंचाई करीब 90 फिट है। सफेद व काले रंग के टावर की लाईटें समुद्र में करीब 16 माईल तक दिखाई देती है।
जामवंत की गुफा
रामायण काल के प्रमुख पात्र जामवंत बहुत वीर और बुद्धिमान थे। एक बार जामवंत जी का श्री कृष्ण जी से मणी के विषय में युद्ध हुआ। इस युद्ध में जामवंत जी ने पराजय स्वीकार करते हुऐ अपनी पुत्री जमुवंती का विवाह श्री कृष्ण से करके मणी भी प्रदान कर दी।
जामवंत जी की इस गुफा में 51 शिव लिंग स्थापित है। जिन पर गुफा की छत से रिसाव वाला पानी सतत गिरता है मानो अभिषेक कर रहा हो। यहां एक कुंआ भी है। इसमें जल की धारा का प्रभाव बना रहता है। कहते है कि गुफा में स्वर्ण की बारिश होती रहती थी।आज भी इसकी छत व दीवारों पर स्वर्ण रंग की आभा दिखाई देती है।
इसके अलावा भारत मंदिर ,गीता मंदिर , सत्यनारायण मंदिर और रामधुन मंदिर प्रमुख है।
दिन भर घूमते घूमते थोडी सी थकान होने लगी थी। इसलिये शाम को कमला नेहरू पार्क में कुछ देर के लिये रूक गये। यहां के सुंदर बगीचे में हल्की शीतल वायु बडा सकून दे रही थी। शाम को पार्क में हलचल बढने लगी थी। पास ही बच्चे लोग झुले के आनंद ले रहे थे। हम भी पार्क का आनंद लेकर अब फिर अपने अगले गंतव्य के चल पडे। हमारा अगला गुजरात दर्शन के अंतर्गत आने वाला पडाव गिर गिरनार और जूनागढ़ था।
जय श्री कृष्ण
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