गुजरात के प्रमुख दर्शनीय स्थलों की सैर
अंबा जी व गब्बर के दर्शन कर हम लोग अपनी होटल लौट आये।कुछ देर सुस्ताने के बाद पास ही रेस्टोरेंट मे भोजन किया।बाजार कि चहलपहल देखने पैदल ही घूमने निकल गये। बाजारों मे गुजराती पहनावे से संबंधित, पुजन सामग्री और कुछ एक दुकानें संगमरमर को तराशकर बनाई गई मुर्तियां मंदिर व विभिन्न कलात्मक कलाकृतियों की थी। मंदिर के आसपास होटल, धर्मशाला और भोजनालयों की बहुतायत है। शाम को विचार किया गया क्यों न द्वारका और सोमनाथ चला जाय। दोस्तो अब जो प्लान बनाया गया है इसमें अधिकांश गुजरात की जगह समावेश हो रही थी।अतः हमने अपने टूर को गुजरात दर्शन नाम दिया। कल से हमारी यात्रा यथावत चालू रहेगा।
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मातृ गया ,सिद्धपुर |
हमारा इस टूर का पहला पडाव सिद्धपुर है।अंबा जी से करीब 83 किमी दुर है यह स्थान मातृ गया यानि मां व कुल की सभी दिवंगत महिलाओं को पिंडदान संस्कार कर आत्मा की शांति की प्रार्थना करते है। कहा जाता है कि प्रमुख पांच सरोवर कैलाश मानसरोवर, नारायण सरोवर, पुष्कर सरोवर, पंम्पा सरोवर और बिंन्दु सरोवर मे से बिंन्दु सरोवर यही पर हैै। तथा सरस्वती नदी यहां लुप्त हो गई है। कपिल मुनि के पिता ने इस सरोवर के पास कई वर्षो तक तपस्या की। कपिल मुनी ने यही पर अपनी माता जी का श्राद्ध कर्म किया। परशुराम जी ने भी मां रेणुका का श्राद्ध किया। पौराणिक कथानुसार नारायण लक्ष्मी जी के साथ यही पर निवास करते थे। यहां की कैमल रेस और देशी घोड़ा दौड़ बहुत प्रसिद्ध है ।बर्फ के गोलों की दूर दूर तक पहचान है।
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श्राद्ध स्थल, सिद्धपुर |
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सिद्धपुर |
पाटण पटोला साड़ीयों के लिये प्रसिद्ध है, यहां हैंडलूम पर बनी पटोला साडीयां बेहतरीन डिजाईन और बनावट के लिये प्रसिद्ध है।ये साडीयां इतनी महिन और मुलायम होती है कि अंगुठी मे से निकाल सकते है।इनकी कीमत भी 12000 से लेकर 1.5लाख और उससे कहीं अधिक हो सकती है। पाटण मे एक कलात्मक वाव (बावड़ी) है जो कि वहां की रानी उदयामति ने अपने दिवंगत पति राजा भीमदेव प्रथम की याद मे वर्ष 1063 मे बनवाई थी। वास्तुकला की भव्यता से पूर्ण 64मीटर लंबी 20मीटर चौड़ी और 27 मीटर गहराई वाली वाव मे सात तल है प्रत्येक तल पर बेजोड़ कला कृतियाँ भगवान विष्णु, वामन अवतार और नाग कन्या को समर्पित है।भारत सरकार ने अपने नये 100 रूपये के नोट मे इसे दर्शाया है। वाव के आसपास बहुत सुंदर गार्डन है। घूमते घूमते समय का पता ही नहीं चला ,एक जगह आस पास की मालूमात करने पर जानकारी मिली कि यहां से कुछ ही दूरी पर सूर्य मंदिर है ।
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मोढेरा सूर्य मंदिर |
35 किमी का सफर कर मोढेरा पहुंचे। 1026 ईश्वी मे राजा भीमदेव प्रथम ने पुष्पावती नदी के तट पर बनवाया था।कलाकृति का बेजोड़ नमूना है।मंदिर के चारो ओर सुंदर बगीचा विकसित किया है।यहां पर रख रखाव के लिये टिकीट व्यवस्था है और पास ही पार्किंग की भी।
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सरोवर |
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सूर्य मंदिर, मोढेरा |
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सूर्य मंदिर,मोढेरा |
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सरोवर |
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सूर्य मंदिर |
कल मां चोटिला के दरबार मे फिर मिलेगे।
जय श्री कृष्णा ..... क्रम
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