हमारी ओंकारेश्वर यात्रा
बडे दिनो बाद एक संयोग बना,मन ओंकारेश्वर जाने का कर रहा था।मगर कुछ न कुछ अडचनो के चलते जा नहीं पा रहे थे।अचानक गुजरात से मौसी जी का परिवार के साथ आगमन हुआ, बहुत समय बाद आई थी ,परिवार मे मेल मिलाप के बाद शाम को चर्चा हुई कि औकारेश्वर यहां से कितनी दूर है व कैसे जाये ।मैने उन्हें सारी जानकारी दे दी,मगर उनका आग्रह था कि आप दोनो भी साथ चले तो ज्यादा अच्छा रहेगा कहीं कोई तकलीफ़ नहीं होगी ,हम भी तैयार हो गये।कार्यक्रम बना और तय हुआ कि सुबह जल्दी चला जाय।
8 मार्च ,सब जल्दी उठे।
हम भी कार की सफाई मे लग गये ।
यात्रा रथ |
नाव से ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की ओर |
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
मंदिर में प्रवेश करने पर सबसे पहले पंचमुखी गणेश जी के दर्शन होते है। उसके बाद प्रथम तल पर ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग है। यह शिखर से विलग एक ओर विराजित है। पास ही मां पार्वती विराजित है। दुसरे तल पर महाकालेश्वर तीसरे तल पर सिद्धनाथ चौथे तल पर गुप्तेश्वर और पांचवे तल पर ध्वजेश्वर लिंग स्थापित है। प्रथम दो तलों तक छत है।बाकी खुले में मंदिर बना है। पहले दो तलों पर नंदी विराजित है। जिसमें प्रथम तल पर नंदी की मुर्ति के हनु के नीचे एक स्तंभ दिखाई देता है। जो सबसे विलग है। ओंकारेश्वर के साथ मां नर्मदा का भी महत्व है
ओंकारेश्वर तीर्थ में 24 अवतार ,माता धाट, मार्कण्डेय शिला,धावडी कुंड,सीता वाटिका,विज्ञान शाला,बडे हनुमान,सन्यास आश्रम,अन्नपूर्णा आश्रम, खेड़ापति हनुमान,गायत्री मंदिर,ओंकार मठ,माता आनंदमयी आश्रम, ऋणमुक्तेश्वर महादेव,सिद्धनाथ गौरी, आड़े हनुमान,गायत्री माता मंदिर,चांद-सूरज दरवाजे,विष्णु मंदिर,बंध्धेश्वर महादेव,गजानन महाराज,नरसिंह टेकडी,कुबेरेश्वर व चंद्रमोलेश्वर महादेव मंदिर है। मान्धाता टापू करीब 4 मील लंबा व 2 मील चौड़ा है।
औंकारेश्वर परिक्रमा का बहुत महत्व है। किन्तु इसके लिये एक दिन यहां रूक कर अगले दिन प्रातः काल में मान्धाता पर्वत जिसे ओंकार पर्वत भी कहते है ,के चारों ओर यह दो प्रकार से होती है। एक नाव से तथा दुसरी पैदल । किन्तु पैदल परिक्रमा में बहुत सारे मंदिर संगम स्थल आते है। परिक्रमा करने पर मन को असीम शांति के साथ प्राकृति नजारे भी देखने को मिलते है। रास्ते में राजा मान्धाता का महल भी दिखाई देता है। |
मां नर्मदा नदी
अति पूजनीय पुर्व से पश्चिम की ओर बहने वाली यह नदी के बारे में कहा जाता है कि एक बार दर्शन से ही वह सारा पुण्य प्राप्त हो जाता है । जो कि गंगा ने कई बार स्नान से मिलता है।
यहां से पुनः सीढियां चढकर दर्शन वाली लाईन मे लगे । किस्मत से लाईन ज्यादा लंबी नहीं थी जल्द ही दर्शन हो गये । बाहर आकर उपर मंदिरो के दर्शन के लिय पुनः कुछ सीढियां चढनी पड़ी ।
मां नर्मदा नदी |
यहां से नदी और औकारेश्वर का मनोहारी दृश्य देखने को मिलता है ।
नौका सेर के समय हमने नाविक से यहां के बारे में पुछा तो उसने अपनी ही शैली में एक कथा सुनाई।
नाव से नर्मदा परिक्रमा |
कथा
यहां के राजा मान्धाता बहुत बडे शिव भक्त थे। एक बार उन्होने इस पर्वत पर जहां ओंकारेश्वर विराजित है बहुत कठोर तपस्या करी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी ने वर मांगने को कहा। तब राजा मान्धाता ने शिव जी से यहीं पर विराजित होने का वर मांग लिया। भगवान शिव जी ने तथास्तु कह स्वयंम प्रकट लिंग रूप में विराजित हुऐ।
महादेव जी की पालकी |
एक अन्य कथा के अनुसार कुबेर जी ने शिवलिंग स्थापित उनकी पुजा अर्चना करके प्रभु को प्रसन्न किया था।वरदान में उन्हे देवों का धनपति बनाया। कुबेर के स्नान के लिये शिवजी ने अपनी जटा के बाल से कावेरी नदी उत्पन्न की जो नर्मदा-कावेरी संगम पर मिलता है ।
आस्था
महादेव का भव्य त्रिशूल |
देवी अहिल्याबाई होलकर की ओर से प्रतिदिन 18 सहस्त्र शिवलिंग तैयार करके नित्य पुजन किया जाता था। और उन्हे नर्मदा नदी में प्रवाहित किया जाता था।
हर हिन्द आस्था रखने वाला एक बार अवश्य ही आना चाहता है। वैसे भी ज्योतिर्लिंगों में चौथे स्थान पर स्मरणीय इस मंदिर पर हर तीर्थयात्रा की पूर्णता मानी जाती है।
मित्रों अगले अंक में नौका से ओंकारेश्वर यात्रा परिक्रमा और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी साझा करेगें।
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