पहली हवाई यात्रा दिल्ली एयरपोर्ट से ( काश्मीर भाग- 2)
पहली हवाई यात्रा दिल्ली एयरपोर्ट से |
हमारी श्रीनगर की फ्लाईट 11.30 बजे थी। पहली हवाई यात्रा होने से हम लोग एयरपोर्ट की कार्यप्रणाली से भी पूर्ण अनभिज्ञ थे। इसलिए तय किया कि 9.00 बजे तक एयरपोर्ट पहुंच जायेंगे।
टेक्सी ने हमे समय पर टर्मिनल नंबर 3 पर पहुंचा दिया। यहां आने पर पता चला क्यों जल्दी आना चाहिए। प्रवेशद्वार पर बहुत लंबी लाइन लगी थी। हम लोग भी लाईन में लग गये। करीब आधे धंटे में नंबर आया । यहां हमारे बोर्डिंग पास और आधार कार्ड की जांच हुई। बाकी तो सब ठीक था। मगर हमारे बेटू को थोडी देर रोक दिया। पता करने पर मालूम हुआ कि आधार कार्ड में पुरानी फोटो होने से पहचान नहीं हो पा रही थी। दरअसल हम से भी भूल हो गई नवनीकृत आधार कार्ड की जगह पुराना दे दिया था।
यहां से अब हमें अपनी एयरलाइंस के कांउटर पर जाना था। इसके लिए हमने एयरपोर्ट स्टाफ की मदद लेकर सही स्थान पहुंच गए। अपना बोर्डिंग पास दिखाकर अपने बैग जमा कर लगेज स्लिप ली और सिक्योरिटी गेट की तरफ चल दिये। लंबी लाइन लगी थी। हमारा नंबर आने पर अपना सभी सामान जैसे मोबाइल , पर्स,चिल्लर,बेल्ट और जो भी सामान जेब में था नगद राशि को छोड़कर एक प्लास्टिक बकेट में रखकर रोलिंग टेबल पर छोड़ दिया । हम स्वयं की सिक्योरिटी चेकिंग के लिए लाईन मे लग गये। इस प्रक्रिया से गुजरने के बाद अपना सामान रोलिंग टेबल से लिया किंतु धर्मपत्नी के पर्स में एक छोटा सा पैकेट होने से विशेष कैमरे से चेकिंग हुई पैकेट को खुलवाया और संतुष्टी होने पर जाने दिया। अब हम सभी एयरपोर्ट क्षेत्र में आ गये थे। सारी प्रक्रिया में दो धंटे का समय लग गया। अभी हमारे पास समय था इसलिए वहां लगी ड्यूटी फ्री दुकानों में घूमते हुऐ फुड जोन में आ गये । यहां हल्का नाश्ता किया मगर बहुत मंहगा था। हमारा अगला लक्ष्य निर्देशित गेट नंबर तक पहुंचना था। थोडे से प्रयास कर जल्द ही हम अपने गेट तक पहुंच गए।
इंद्रिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट |
11.15 बजे हमारा गेट खुला और साथ ही हमारी फ्लाईट के लिये एनाउंस हुआ। हम सभी एयरोब्रिज से होकर प्लेन में अपनी सीट तक पहुंच गये। थोडी देर के इंतजार बाद हमारा प्लेन रन-वे की ओर चल दिया।
करीब एक घंटे बीस मिनट में श्रीनगर एयरपोर्ट पर थे।
श्रीनगर में अपना लगेज लेकर एयरपोर्ट से बाहर आये और पूर्व भुगतान टेक्सी स्टैंड से टेक्सी लेकर सीधे अपने होटल पहुंचे। श्रीनगर में हमारी होटल के मालिक का व्यवहार बहुत ही अच्छा था।
यहां ये बता दें कि जो आशंकाएं काश्मीर के बारे में थी। वे निर्मूल साबित हुई। सभी लोग बहुत आत्मीयता से व्यवहार करते हैं। लेन देन के लिये नगद , गूगल पे, फोन पे,पेटीएम सब चलते हैं। वैसे स्टेट बैंक और अन्य बैंकों की शाखाएं भी कार्यरत हैं। शाकाहारी भोजनके कई होटल रेस्टोरेंट हैं। सुरक्षा की दृष्टि से चप्पे चप्पे पर पुलिस और सेना के जवान तैनात हैं।
दिन व्यर्थ न जाये इसलिये शाम 5.00 बजे हम लोग डल झील घूमने डल गेट पहुंचे। यहां बहुत सारे शिकारें थे।डल झील में शिकारा सैर बहुत ही खुशनुमा अनुभव रहा। सजे- संवरे शिकारा में मखमली पर्दे व कवर शाही अंदाज का अहसास दे रहे थे। झील के शांत जल में हमारे शिकारा के पास सामान बेचने वाली नावें आने लगी । कोई ऊनी कपडे तो कोई केसर , हस्तशिल्प की कलाकृतियां ऐसे ही कई प्रकार के सामान कि तैरती दुकानें थी। इसी बीच एक फोटोग्राफर कश्मीरी लिबास लेकर आया और हमें उस परिधान में यादगार पल संजोने
का अनुरोध करने लगा। परिवार के सदस्यों को भी अच्छा लगा और कई फोटो शूट करवाये।
डल झील में शिकारे की सैर |
डल झील के मध्य में खुबसूरत नेहरु पार्क है। शाम को लाईटिंग की रोशनी ऐसे लग रही थी मानो हजारों तारे झील में उतर आये हो। करीब दो धंटे की सैर कर वापस अपने होटल आ गये। शाम को बाजार की चहल पहल देखते बनती थी। हम लोग पैदल ही रेस्टोरेंट की तरफ चल दिये। यहां कई होटल रेस्टोरेंट हैं जहां केवल शाकाहारी भोजन उपलब्ध है। रात 10.00 बजे वापस होटल पहुंचे। कल हम लोग सोने की घास के मैदान सोनमार्ग का सफर [सोने की घास के मैदान सोनमार्ग का सफर [कश्मीर भाग 3] काश्मीर -भाग 3]पर मिलते हैं ।
डल झील बाजार |