गिर,गिरनार और जूनागढ़
जब तक सब तैयार होते मैं गाडी लेकर सबसे पहले टायर दुकान गया । पंचर स्टेपनी बनने को दी। वापस होटल आकर शहर के बारे में कुछ जरूरी जानकारी ली जिससे समय बर्बाद न हो। हम अपने सफर की शुरूआत यहां के संक्षिप्त इतिहास से करेगें।
इतिहास
इतिहासकारों के अनुसार जूनागढ़ का निर्माण 9 वीं में शताब्दी में हुआ था। तत्कालीन रियासत पर चूड़ासमा राजपुतों का अधिकार था। अलग अलग कालखंड में कई शासकों का अधिकार रहा।
मौर्य शासक अशोक 260-238 ई.पू.
रूद्रामन 150 ई.पू.
स्कन्दगुप्त 455-467 ई.
1472 में गुजरात के महमूद बेगढा़ ने कब्जा करके इसका नाम मुस्तफाबाद रख दिया था। उस समय की एक मस्जिद खंडहर अवस्था में है।
100-700 ई. के मध्य बौद्ध काल में कई मंदिर , स्तुप और गुफाओं का निर्माण हुआ था।
मौर्य शासक अशोक 260-238 ई.पू.
रूद्रामन 150 ई.पू.
स्कन्दगुप्त 455-467 ई.
1472 में गुजरात के महमूद बेगढा़ ने कब्जा करके इसका नाम मुस्तफाबाद रख दिया था। उस समय की एक मस्जिद खंडहर अवस्था में है।
100-700 ई. के मध्य बौद्ध काल में कई मंदिर , स्तुप और गुफाओं का निर्माण हुआ था।
जूनागढ़ रियासत का भारत में विलय
विभाजन के पूर्व यहां का नवाब महाबत खान था। नवाब साहब को अपने अधिकार पाकिस्तान में ज्यादा सुरक्षित लगें सो उन्होने रियासत को पाकिस्तान मे शामिल करने का षडयंत्र रचा मगर यहां कि 80% हिंन्दु जनता को यह मंजूर नहीं था। 20 फरवरी 1948 को जनमत संग्रह में पाकिस्तान के पक्ष में 10% से भी कम वोट पड़े। नतीजों के पहले ही नवाब साहब अपनी कुछ बेगमों के साथ पाकिस्तान भाग गये। आदरणीय सरदार पटेल जी की अगुआई में विधिवत यह रियासत भारत का अभिन्न अंग बन गई।
जूनागढ़ मुख्य रूप से दो भागों में विभक्त है। पहला मुख्य शहर के चारों ओर दीवार से धिरा किलेनूमा और भाग और दुसरा प्राचीन दुर्ग जिसे उपर कोट कहते है।
जूनागढ़ के पर्यटन स्थल
उपर कोट किला
यह किला चंद्रगुप्त मौर्य के समय में बना था। इसका तोरण द्वार हिंन्दु संस्कृति की स्थापत्य कला का उत्कृष्ठ नमूना है। इस किले की खोज और जीर्णोद्धार चूड़ास्मा राजा ग्रिहारिपु ने करवायी। राजा को पिछली कोई जानकारी नहीं मिलने से इसका नाम जूनागढ़ रख दिया था। आस पास का जंगल साफ करवा कर कई इमारतों का निर्माण करवाया और इसे अपनी राजधानी बनाई ।
किले में प्रवेश करने पर एक तरफ गणेश जी व दुसरी तरफ हनुमान जी का मंदिर है। किले की दीवारें करीब 70 फिट ऊंची है। आगे जाने पर किले की रक्षा के लिये दो तोपें लगी हुई है। जिनका नाम नीलम और कांडल है। एक राज सिंहासन भी बना हुआ है। अंदर रानी रणक देवी का महल है। इस महल से एक सुरंग गिरनार तक जाती है। रानी गिरनार जी की परम भक्त थी।
मुस्लिम शासक मोहम्मद बेगडा़ ने महल को तोडकर मस्जिद में परिवर्तित कर दिया था।
अडी कडी की वाव
किले की जल आपूर्ति के लिये यहां दो वाव यानि बावडीनूमा कुऐ बनवाये थे। इनमे से एक की लंबाई करीब 300 फिट और गहराई 150 फिट की है। कुएं में नीचे जाने तक 120 सीढियां है। इसकी विशेषता चट्टानों को उपर से तराशते हुऐ नीचे तक गये है।
अडी कडी नाम की दो कुंवारी कन्याओं से संबंधित कई दन्त कथाएं है। एक कथानुसार उन दोनों की निर्माण के पूर्व बलि देना बताया है । वहीं दुसरी कथा में ये दोनों बहनें महल के लिये इस वाव से पानी भरती थी। सच क्या है। मगर इस वाव का नाम पडा इन दोनों बहनों के नाम पर ही।
नवध रथ रंन कुवां
राजा नवघन ने इस कुएं का निर्माण करवाया था। 156 फीट गहरे कुएं को काले पत्थर की चट्टानों को उपर से तराशते हुऐ नीचे तल तक ले जाया गया है। उसमें हर उस चीज का ध्यान रखा गया है जिसकी जरूरत होती है। कल्पना और मेहनत का सबसे बेहतरीन नमूना है। तत्कालीन समय पर इन दोनो जल संरचनाओं से किले की जल आपूर्ति की जाती थी।
दामोदर कुंड
यहां एक तालाब भी बना हुआ है। जिसके चारों ओर घाट बने है। तालाब के किनारे दामोदर राय जी का मंदिर बना हुआ है।
तालाब देखकर नहाने का मन हो गया। ठंडे ठंडे पानी में नहाना बडा अच्छा लग रहा था।
- इसके अलावा बौद्ध गुफाऐं , फिल्टर प्लांट व मृत्युद्वार जहां से मृत्युदंड प्राप्त कैदी को उपर से बाहर फेंक दिया जाता था।
जूनागढ में स्वामीनारायण मंदिर ,अंबा माता मंदिर ,नरसिंह मेहता का चबूतरा ,अशोक के शिलालेख,उपला विन्ध्येश्वरी मां मंदिर,साईंस म्युझियम,बापा प्यारे गुफा ,सक्करबाग ज्युलोझिकल गार्डन , जैक म्युझियम और महाबत खां मकबरा देखने योग्य जगह है।
उपर कोट किले से घुमकर आने के बाद भोजन का समय भी हो रहा था। पास ही एक रेस्टोरेंट मे सादी गुजराती थाली का आनंद लेकर फिर अन्य दर्शनीय स्थलों की ओर चल दिये। नई जगह नये लोगों से मिलना बहुत ही अच्छा लगता है।
शाम को होटल में रूके , अगले दिन गिरनार पर्वत पर जाने का कार्यक्रम था। गिरनार जी की चढाई और वापस आने में एक पुरा दिन लग जाता है।
गिरनार पर्वत
सुबह जल्दी हम दोनों ही तैयार हुऐ क्योंकि पापा मम्मी का पर्वत पर चढ़ाना संभव नहीं था।
पर्वत पर जाने के लिये हमने साथ में पानी की बोतल कुछ जरूरी दवाईयां और एक एक लकड़ी सहारे के लिये साथ ले ली थी।
गिरनार पर्वत की ऊंचाई 3500 है। यहां करीब 10 हजार पेढियां के साथ सम्पूर्ण रास्ते में पत्थर की सीढियां है। एक तरफ पहाड़ी और दुसरी तरफ खाई के साथ पत्थर से निर्मित सुरक्षा दीवार है।
भवनाथ के दर्शन कर भगवान शिव से अनुमति ली।
गिरनार पर्वत पर जाने के लिये एक तोरण द्वार से होकर गुजरना होता है। हनुमान मंदिर से सीढि़यों का क्रम शुूरू हो जाता है। इन सीढियों के दोनो और छोटी छोटी दुकानें व मंदिर है। ज्यादातर यात्री सुबह जल्दी जाने की कोशिश करते है जिससे ठंडे समय और सुबह की ऊर्जा
से चढने में दिक्कत न हो। पर्वत पर हिंन्दु और जैन धर्मावलंबियों के प्रमुख धर्मस्थल होने से चहल-पहल बनी हुई थी।
कोई पैदल जा रहा था तो किसी ने पालकी की सवारी कर रखी थी।रास्ते में हमारी पहचान एक महाराष्ट्रीयन परिवार से हो गई । चढते चढते बातों का सिलसिला चलता रहा। कुछ दूर चढने के बाद एक जगह व्यूह पाईंट से देखा तो पुरा जूनागढ़ दिख रहा था। उपर से मकान बहुत छोटे छोटे दिखाई दे रहे थे। लग रहा था मानो छोटे खिलौने सजाकर रख दिये हो। करीब 2100 सीढ़ियां चढने के बाद भव्य नेमिनाथ जैन मंदिर दिखाई देने लगा था। मंदिर की उत्कृष्ठ बनावट और वास्तुकला देखने योग्य थी।
अभी कुछ दूर चले थे कि हल्की बारिश होने लगी। एक खंडहर नुमा जगह में शरण ली। थोडी देर बाद मौसम खुशनुमा हो गया था। पेड़ों पर पक्षियों की चहचहाहट मानो मौसम का धन्यवाद और यात्रियों का स्वागत कर रही हो।
सामने नेमिनाथ जी का भव्य जैन मंदिर दिखाई दे रहा था। इस स्थान पर नेमिनाथ तीर्थंकर ने तपस्या कर मोक्ष को प्राप्त किया था। जन श्रुतिनुसार भगवान नेमिनाथ को विवाह में बलि देने के लिये लाये गये पशुओं को देख विरक्ति हो गई थी। तब यहां आकर तपस्या करी और निर्वाण को प्राप्त हुऐ।
कुछ देर विश्राम करके आगे चल दिये। करीब आधा रास्ता तय करने के बाद मां अंबा के मंदिर में प्रवेश किया। यहां तीन जल कुंड गौ मुख ,हनुमान धारा और कमंडल है। जल से अपने को शुद्ध करके मां के मंदिर में दर्शन किये। यहां पर विश्राम कर फिर आगे की यात्रा शुरू कर दी। मगर अब यात्रा थोडी कढिन होती जा रही थी। सीधी चढाई और दोनो तरफ सुरक्षा दीवार थी मगर हवा का दबाव बेहद तीव्र होने से संभल कर चलना पड रहा था। जरा सी चूक होने पर अनहोनी हो सकती थी। थोडी दूर के बाद पुनः दोनो तरफ पहाड़ियां आने से राहत महसूस करी।
नीचे देखने पर लग रहा था मानो हम बादलों के बीच में हो। धुंध ही धुंध थी। रास्ता कठिन था मगर रोमांच से भरपुर और अतः हमने दत्तात्रय मंदिर में प्रवेश कर लिया। वहां पर दत्तात्रय भगवान की चरण पादुका के दर्शन किये। मंदिर से बाहर देखने पर लगा हम कितनी ऊंचाई पर आ गये है। यदि कभी मौका मिले तो एक बार अवश्य जाना चाहिये।
अन्य मंदिरों में प्रमुख गोरखनाथ और कालका चोटी प्रमुख है।
अब बारी वापसी की थी। रूकते चलते नीचे की ओर चल दिये। रास्ते में प्रकृति के मन मोहक नजारों के साथ तलहटी के जंगल क्षेत्र का भी आनंद लिया।
शाम को वापस होटल पहुंचने तक बहुत थक चुके थे।
गिर वन्य अभ्यारण्य
यह वन सौ वर्ष पुराना है। रियासत काल में यहां के नवाब ने घटती हुई शेरों की संख्या के कारण शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया था और वन्य क्षेत्र को आरक्षित कर दिया था। स्वतंत्रता के बाद इसे गिर नेशनल पार्क का दर्जा देकर करीब 1425 वर्ग किमी मे विकसित किया। आज यहां शेरों की संख्या में बहुत वृद्धि हुई है। पिछली गणनानुसार करीब 523 शेर थे। इनके अलावा हिरण , बारहसिंगा, सियार , लकड़बध्धा और बहुत से वन्य जीव है। ये सब मुक्त जंगल में विचरण करते है। गिर नेशनल पार्क घूमने के लिये आन लाईन बुकिंग करवानी पड़ती है। दो तरह की सुविधा उपलब्ध है। एक बस से तथा दुसरी जंगल सफारी विशेष प्रकार की खुली जिप्सी से , यहां टूरिस्ट बगलों भी है। जो जंगल में रहने का सुखद अनुभव कराते है। यह जंगल सफारी करीब तीन धंटे की होती है।
सफारी के लिये केवल आन लाईन बुकिंग की व्यवस्था ही है।
सफारी का समय
6.15 से 9.00 बजे
8.00 से 11.00 बजे
15.00 से 18.00 बजे
गिर वन में देख ने योग्य बाणेज गंगा मंदिर ,जहां पर अर्जुन ने अज्ञातवास में मां कुंती को प्यास लगने पर बाण से जलधारा प्रगट की थी। यह स्थान एकांत में धने जंगल में है।
कनकी माता मंदिर और जंजीर वाला वाटर फाल
जूनागढ़ पहुंचने के लिये राजकोट ,अहमदाबाद,बडौदा से बस सेवाऐं उपलब्ध है। यह स्थान वायु मार्ग से भी जुडे है। पर्यटक बसों व कार भी उपलब्ध हो जाती
जूनागढ़ में तीन दिन की सैर करके अपने अगले पड़ाव चंद्रदेव के संकट मोचक सोमनाथ महादेव जोकि एक ज्योतिर्लिंग भी है। सुबह सोमनाथ की ओर चल दिये।