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मांडव का रोड मैप |
बरसात होने से चारों ओर हरियाली छाई हुई थी। हर ओर उमंग आनंद कि लहरे हिलोरे ले रही थी। ऐसे में परिवार के सभी सदस्यों ने प्रोग्राम बनाया कहीं घूमने चला जाय। अब प्रश्न था। कहां चलें। विचार मंथन के बाद सर्व सम्मति से मांडव चलने का तय किया। क्योंकि यह स्थान ऐतिहासिक के साथ पहाड़ी क्षेत्र में बहुत ही सुंदर रमणीय स्थल है। सभी अपनी अपनी तैयारी में लग गये। और हो भी क्यो न , बहुत समय बाद परिवार के साथ कार्यक्रम बन रहा था। मौज मस्ती सैर सपाटा। शहर के भीड भाड भरे वातावरण से दूर सुरम्य पर्यटन स्थल पर जाने का। |
मांडव को करीब से देखना हो तो भीड वाले दिन को छोड़कर जाने में ही मजा आयेगा। रविवार और अन्य हाली डे पर बहुत भीडभाड रहती है। अतः इन दिनों को छोड़कर प्रोग्राम बनाया।
सभी की राय से सोमवार का दिन तय हुआ।
सुबह 6 बजे हम लोग इंदौर से मांडव के लिये रवाना हुऐ। वहां पहुंचने के दो मार्ग है । एक धार सिटी होकर, दुसरा मानपुर होकर, सो हमने दुसरा विकल्प चुना।
रास्ते में चर्चा हुई कि जहां जा रहे है ।उसके इतिहास के बारे में थोडी बहुत जानकारी हो तो घूमने का आनंद दो गुना हो जाता है। तो चलिये। मांडवगढ़ का संक्षिप्त इतिहास जान लेते है।
भौगोलिक स्थिती
मांडवगढ़ समुद्र तल से 633.7 मीटर ऊंचाई पर स्थित पहाड़ी पर बसा है। पश्चिम में विशिष्ट ऊंचाई लिये हुऐ सोनगढ़ के पर्वत है।पूर्व,पश्चिम और उत्तर की तरफ से गहरी तंगघाटी से घिरा होने के कारण मालवा के पठार से अलग हो जाता है।
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कांकडा खोह,मांडव |
एवम पूर्व की पहाड़ी के मध्य से एक गहरी तंग धाटी है। यह करीब 13 वर्ग किमी क्षेत्र में बसा है। वर्षा काल में यहां अनेक झरने जीवित हो जाते है।
इसे सिटी आफ ज्वाय के नाम से भी जाना जाता है।
इतिहास
विक्रम संवत 612 (555 ई.) के संस्कृत अभिलेख के अनुसार मंडप दुर्ग में स्थित तारापुर के पाशर्वनाथ मंदिर मे चंद्र सिंह शाह नामक सौदागर ने भगवान आदिनाथ की मुर्ति स्थापित की थी। इतिहासकार खुसरों परवींज के अनुसार (590- 628 ई.) में आनंद देव राजपुत ने निर्माण करवाया था।
छठी शताब्दी के मध्य इसे मंडप दुर्ग नाम से जाना जाता था। इसके बाद तीन शताब्दी तक कोई पुख्ता उल्लेख नहीं मिले। दसवीं शताब्दी में यह दुर्ग कनौज के गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य की सीमा चौकी था।
वि.संवत 1003 (946 ई.) में सम्राट महेन्द्र पाल के अधीन था। दसवीं शताब्दी के अंत में परमार वंश के अधीन रहा। इनमे राजा मुंज ने मुंज तालाब का निर्माण करवाया। राजा भोज ने धार शहर को राजधानी बनाया तथा अपनी इष्ट वांग्देवी (सरस्वती देवी ) की प्रतिमा मांडवगढ़ में स्थापित करवाई।
सर्प बन्ध पर अंकित एक अभिलेख में वि.संवत् 1125 (1068 ई.) के अनुसार परमार राजा उदयादित्य के अधीन भट्टारक देवेन्द्र देव मांडू के सावंत थे। राजा उदयादित्य ने लोहानी गुफाओं और शैव मंदिर का निर्माण करवाया।
1227 ई. में शम्मसुद्दीन अल्तमश ने विदिशा और उज्जैन को तो लूटा मगर मांडू राजा देवपाल से संधि कर ली। 1293 ई. में दिल्ली के सुलतान जल्लालुद्दीन ख़िलजी ने आक्रमण कर लूटपाट करी। 1305 ई. तक मांडू हिंन्दु शासकों के अधीन रहा।
अलाउद्दीन ख़िलजी के सेनापति अइन-उल-मुल्क ने राजा महलक देव के सेनापति कोकदेव को आक्रमण कर मार दिया व गुप्तचर की सहायता से गुप्त मार्ग से दुर्ग में पहुंच कर राजा महलक देव की हत्या कर दी । इसके साथ हिंन्दु शासन का अंत हुआ।
मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में दिलावर खाँ गौरी मालवा का राज्यपाल बना। 1405 ई. में इसकी मृत्यु हो गई। इसने तारापुर गेट और शाही क्षेत्र बनवाया।
1405 ई. में होशंग शाह ने राज संभाला और 27 वर्ष तक राज किया।
1435 ई. में होशंग शाह की मृत्यु के बाद पुत्र गज़नी खाॅं ने शासन संभाला। 1436 ई. में महमूद खाॅं ने गज़नी को जहर देकर मार दिया और शासन पर अधिकार कर लिया।
खिलजी वंश के शासक महमूद शाह ने 33 वर्ष तक राज किया। 1469 ई. में महमूद की मृत्यु के बाद पुत्र गयासुद्दीन ने 31 वर्षो तक राज किया। पुत्र द्वारा जहर देने से मृत्यु हो गई।
नासिरूद्दीन ने 10 सालो तक शासन किया और तीव्र ज्वर के कारण मृत्यु हो गई। पुत्र महमूद द्वितीय ने शासन संभाला। राजपुत सरदार की बढती ताकत से वह भागकर मुज़फ्फर शाह द्वितीय की शरण गया और फिर शासन पर अधिकार जमा लिया। किंतु मुज़फ्फर के उत्तराधिकारी बहादुर शाह से मित्रता नहीं बन पाई और 1526ई. में बहादुर शाह ने आक्रमण करके मांडवगढ़ पर अधिकार जमा लिया।
1534 ई. में हूमांयू ने युद्ध कर अपना अधिकार जमा लिया। 1536 ई. में कादिर शाह ने सिंहासन पर कब्जा कर लिया।
1542 में शेरशाह का अधिकार हो गया ।
उसने शुजात खाँ को गवर्नर नियुक्त किया।
1554 ई. में शुजात खाँ कि मृत्यु के बाद सुलतान बाज़ बहादुर ने शासन संभाला।
बा़ज बहादुर दुर्गावती के हाथो पराजित होकर संगीत साधना में लग गया ।इसी दौरान रानी रूपमती से प्रणय और विवाह किया।
1561 ई. में अकबर के जनरल आदम खाँ से सारंगपुर के नजदीक पराजित होने पर बंदी बना लिया गया। रानी रूपमती दुश्मन के हाथों बंदी बनने से पहले हीरा निगल कर स्वाभीमान के कारण आत्म हत्या कर ली।
1732 ई. में मराठों ने मुगल गवर्नर बहादुर को पराजित कर अपना अधिकार जमा लिया। तब से यह दुर्ग मराठों के अधीन रहा।
कांकड़ खोह (गहरी तंग धाटी)
इतिहास की चर्चा करते करते हम काकड़ा खोह यानि बहुत गहरी तंग धाटी तक पहुंच गये थे। बरसात में 1200 फिट गहरी इस धाटी का सौंदर्य पूर्ण निखार पर आ गया था। नीचे देखने पर हरियाली और पेडों की लंबी श्रृंखला ने मानों जमीन को अपने आगोश में ले लिया हो। हल्की रिमझिम बारिश से सफर का आनंद और बढ़ गया था। सामने झरनों के तीव्र गति से धाटी में गिरने की ध्वनि और हल्की धुंध ने इस खुबसुरत नजारें को चार चांद लगा दिये थे।
आगे गहरी खाई होने से सुरक्षा के लिये रेलिंग लगी थी। हम लोगो ने रेलिंग के पास से ही धाटी के अदभुत नजारों का लुफ्त लिया।
यहां सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा अपना अलग ही अनुभव देता है।
मांडू जीवाश्म पार्क
इस पार्क में विलुप्त विशाल प्राणी डायनासोर के जीवाश्म रखे गये है। एक खोज अभियान के अन्तर्गत प्रकाशित समाचार के अनुसार धार जिले में मिले शाकाहारी और मांसाहारी डायनासोर और मगरमच्छ के जीवाश्म करीब 6500 से 10000 करोड वर्ष पुराने है। जिन्हे संग्रहित कर पार्क मे रखने का कार्य चल रहा है। यहां पर डायनासोर के अंडों के जीवाश्म रखे गये हैै। पार्क में विभिन्न डायनासोरों की आकृतियों व चित्रों के माध्यम से जानकारी देने का प्रयास किया जा रहा है।
पार्क से अब हम लोग मांडव के लिये चल दिये। आगे पहाड़ी मार्ग घुमावदार होने के साथ कही कही सकरा भी है। मांडवगढ़ में प्रवेश करने के लिये पहला द्वार दिल्ली दरवाजा है। कहते है यहां की भौगौलिक स्थिती के मध्य नजर , किलेबंदी और प्रवेश द्वार के निर्माण से यह अभेध्य रहा।
मांडवगढ़ के बारह प्रमुख प्रवेश द्वार है। जिन्में से दिल्ली दरवाजा, आलमगीर,भंगी दरवाजा,लोहानी दरवाजा,सोनपुर दरवाजा,तारापुर दरवाजा,भगवानीया दरवाजा,जहांगीर दरवाजा और राम गोपाल प्रमुख है।
चलिये अब चलते है यहां के प्रमुख पर्यटन स्थलों पर
1. हिंडोला महल :-
इसकी दीवारें 77° के कोण पर झुकी हुई है। बाहर से ऐसा प्रतित होता है जैसे कोई झुला बंधा हो। इसकी बनावट अंग्रेजी अक्षर T के आकार की है। इसमें बने कक्ष के दोनों ओर 6 मेहराब दार दरवाजे बने हुऐ है। सुलतान इसे दरबार-ए-खास के रूप में प्रयोग करता था। इसका निर्माण संभवतः 15 वीं शताब्धी में रहा होगा।
2. शाही महल और चंपा बावड़ी :-
मुंज तालाब के पास ही एक महल बना हुआ है। महलों मे पहले पानी की प्रचुरता के लिये खाश इंतजाम किये जाते थे। यहां पर भी एक बावड़ी बनी हुई है। महल के नीचे बनी बावड़ी के तल तक जाता हुआ मार्ग आगे तहखाने नाम से प्रसिद्ध मेहराबदार कक्षों की भूल भूलैया में मिल जाता है। बावड़ी से महक आती थी इसलिये इसे चंपा बावड़ी नाम दिया गया था।
महल के मंडप की दीवारों को बावड़ी और मुंज तालाब के किनारों से बडी कुशलता से जोडा गया है। जिससे गर्मीयों में भी ठंडी ठंडी वायु आती रहे जिससे कक्ष ठंडे बने रहे।
3. उजाला बावड़ी और अंधेरी बावड़ी :-
जल स्त्रोत के दो कुऐं है एक खुला और दुसरा बंद है। दोनों मे नीचे तक जाने के लिये तोरण द्वार और सीढियां है। इसमें एक तरफ रहट लगी है तथा दुसरे किनारे जल सुरक्षा के लिये शाही पहरेदारों की चौकी। अंधेरी बावड़ी के उपर गलियारे में एक गुंबद बना है । जिससे हवा और प्रकाश अंदर तक जाता है।
4. गदा शाह का महल और दुकान :-
शाही परिसर में दो भवन बने है। जो गदा शाह नामक प्रभावशाली व्यक्ति के है।
5. राम मंदिर :-
भगवान राम को समर्पित यह मंदिर बहुत पुरातन है।
6. हाथी पोल :-
नाहर झरोखे मे पहुंचने के पहले मुख्य प्रवेश द्वार पर हाथीयों की प्रतिमा लगी है। इसलिये इसे हाथी पोल नाम से जाना जाता है।
7. दिलावर खां की मस्जिद :-
यह मस्जिद शाही परिवारों के लिये बनी थी। यह भारतीय इस्लामिक वास्तुकला के अनुरूप बनवाई गई है।
8. नाहर झरोखा :-
मस्जिद के पास ही बाध की आकृति का एक झरोखा बना है। जहां आकर राजा अपनी प्रजा को दर्शन देता था।
9. जहाज महल:-
मूंज्ज और कपूर तालाब के मध्य बने इस महल की बनावट ऐसी है। मानो कोई जहाज लंगर डाले खडा हो। महल का आगे का भाग करीब 121 मी. और चौड़ाई 15.2 मी. है
10. तवेली महल :-
इस महल के नीचे वाले भाग में अश्वशाला थी और उपर पहरेदारों का आवास।
11. होशंग शाह का मकबरा :-
संगमरमर के गुंबद वाला मकबरा बना है।
12. जाली महल :-
सागर तालाब के उपर की तरफ पहाड़ी पर बना है। यह महल । पास ही इको पाईंट भी है।
13. रेवा कुंड :-
जल संचय के प्रमुख स्तोत्र के रूप में बनाया गये इस कुंड में नीचे तक सीढियां बनी हुई है।
14. बाज बहादुर का महल :-
पहाड़ी ढलान पर खुबसुरत वादियों के बीच महल के प्रवेश द्वार तक चालीस सीढियां चढ़ना पडती है। अंदर दोनों तरफ संतरियों के कमरे के सामने से गुजर कर महल के बाहरी प्रांगण में पहुंच जाते है। इसके चारों ओर कक्ष बने हुऐ है। तथा मध्य में एक सुंदर कुंड । महल की बनावट बहुत ही सुंदर बनी हुई है। छत पर दो सुंदर बिरादरियां बनी हुई है। जहां से आस पास के सुंदर नजारों को निहार सकते है।
15. रूपमति का मंडप :-
बाज बहादुर के महल के पीछे पहाड़ी के ऊंचे शिखर पर एक महल बना हुआ है।यह पहाड़ी ढलान 365.8 मी. की खडी चट्टान पर बनाया गया है। निचली मंजिल में आर पार छतों के सहारे मेहराबदार दरवाजे बने है। पश्चिम में एक बडा कुंड है। जिसमें मानसून के पानी को एकत्र करने के लिये नालियां बनी हई है।
महल के उपर मण्डप बने है। जो कि नीचे से वर्गाकार और उपर अर्द्ध गोल गुंबद है। रानी रूपमति यही से मां नर्मदा के दर्शन करती थी। कहते है कि रानी रूपमति प्रतिदिन मां नर्मदा नदी के दर्शनों के पश्चात ही भोजन ग्रहण करती थी।
इस मंडप से मांडू की वादी और निमाड़ के मैदानी इलाकों के मनोहारी दृश्य बहुत खुबसुरत लगते है।
बाज बहादुर और रूपमति का प्रेम:-
रानी रूपमति बेहद खुबसुरत और एक अच्छी गायिका थी। जब बाजबहादुर ने इनके बारे में चर्चा सुनी तो उसने विवाह प्रस्ताव भेजा जिसे रूपमति ने अपने स्वजनों के हित के लिये स्वीकार कर लिया । आगे चलकर ये प्रणय अमर प्रेम बन गया।
16. नीलकंठ मंदिर :-
धाटी के छोर पर बनाया गया यह मंदिर प्राकृतिक दृश्यों से परिपूर्ण है। मंदिर में जाने के लिये सीढियां बनाई गई है। नीचे उतरने के बाद मध्य में सुंदर कुंड के पास से होकर मंदिर में प्रवेश करते है। अंदर शिवलिंग पर अविरल जल की धारा बहती है। मंदिर के कक्ष अर्द्ध गुंबदी है। यहां आकर परम शांति मिलती है।
- अन्य दर्शनीय पर्यटन स्थलों में
- अशर्फी महल
- जामी मस्जिद
- छप्पन महल
- लौहानी दरवाजा
- लौहानी गुफाऐं
- लाल बंगला
- दरिया खां का मकबरा
- लाल सराय
- मलिक मुधीर की मस्जिद
- दांई की छोटी बहन का महल
- दांई का महल प्रमुख है।
पर्यटन का सबसे अच्छा समय मानसून का है। चारों ओर हरियाली के साथ ही झरने सजीव हो उठते है।
यहां पहुंचने के लिये सडक मार्ग से इंन्दौर , धार ,महू ,धामनोद और रतलाम से सीधे पहुंचा जा सकता है।
निकटतम रेल्वे स्टेशन इन्दौर व महू है।
वायु मार्ग के लिये नजदीकी एयरपोर्ट इन्दौर है।
ठहरने के लिये विश्राम गृह और बजट होटल उपलब्ध है। यहां का प्रसिद्ध भोजन दाल बाटी है। मांडू की इमली दूर दूर तक प्रसिद्ध है। कुछ विशेष मौसमी फल जैसी खिरनी व सीताफल भी मांडू क्षेत्र के प्रसिद्ध है।
पुरा दिन कैसे बीत गया पता ही नहीं चला ,दिन भर सबने बहुत आनंद लिया। सुबह सबने केवल नाश्ते से ही काम चलाया अब शाम को भुख सता रही थी । जल्द ही रेस्टोरेंट की ओर चल दिये। प्रति वर्ष दिसंबर में मांडू उत्सव का आयोजन होता है। इसमे कई कलाकार भाग लेते है। कई तरह के खेल आयोजित होते है । करीब सप्ताह भर चलने वाले इस आयोजन मे बहुत गहमा गहमी रहती है।
मौका मिले तो मांडवगढ़ एक बार अवश्य आना चाहिये।
जय श्री कृष्ण