header

अति प्राचीन बलवारी हनुमान मंदिर तक पद यात्रा

 अति प्राचीन बलवारी हनुमान मंदिर तक पद यात्रा 

अति प्राचीन बलवारी हनुमान मंदिर तक पद यात्रा
बलवारी हनुमान मंदिर 

पद यात्रा

बलवारी ग्राम के आस पास क्षेत्रों में मान्यता है। कि हनुमान जी की कृपा पुरे वर्ष उन पर बनी रहे। इसलिये  नव वर्ष के पहले हफ्ते में तय दिन पद यात्रा कर झंडा चढ़ाते है। इसी कडी में मनावर से वर्ष के पहले सोमवार को यह यात्रा निकाली जाती है। इस यात्रा का आयोजन नगर के प्रतिष्ठित गणमान्य लौग करते है। सैकडों की संख्या में नगरवासी इसमें शामिल होते हैं। 
एक वर्ष मुझे भी इस यात्रा का हिस्सा बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। हम सभी लोग सुबह धार रोड स्थित हनुमान जी के मंदिर पहुंचे। यहां पर सभी ने सामुहिक रुप से हनुमान चालिसा का पाठ किया । इसके पश्चात विधिवत यात्रा की शुरूआत हुई ।  22 किमी की इस पद यात्रा में बडी संख्या में श्रद्धालू सम्मिलित हुऐ थे। जय सीया राम के जयकारों से पुरा मार्ग गूंजायमान हो रहा था। रास्ते में भक्त लोग पदयात्रियों के लिये चाय पानी व नाश्ते की व्यवस्था कर रहे थे। एक जगह हम अपने  सहयात्रियों के साथ चाय व पानी के लिये रुके। यहां से फिर तरो ताजा हो आगे चल दिये। पैदल चलने के कारण ठंड में भी गर्मी का अहसास होने लगा था। लिहाजा स्वेटर उतारना पडा। कुछ देर तक तो स्वेटर लेकर चलें किंतु थकान होने पर ये बोझ लगने लगा। तब साथ चल रहे परिचीत के वाहन में रख थोडा सकून महसुस किया। करीब आधे मार्ग तय करने पर एक जगह थोडे विश्राम और चाय नाश्ते की व्यवस्था की गई थी। यहां पहूंचने पर जैसे ही थोडा सुस्ताने के लिये रुके बडा सकून महसुस किया साथ ही समझ आ रहा था। आगे का मार्ग आसान नहीं है। खैर अब प्रण किया है तो निभाना पड़ेगा ही। संगी साथियों से बलवारी हनुमान जी के बारे में और जानने के लिये चर्चा की।

अति प्राचीन बलवारी हनुमान मंदिर तक पद यात्रा

इतिहास 

मंदिर के पुजारी जी के अनुसार उनके पूर्वजों के समय से  इस मंदिर की पुजा अर्चना करते आ रहे है। कहते है सन 1100 के पुर्व से ही यह मुर्ति यहां स्वयंम प्रकट हुई थी। करीब साडे बारह फीट की मुर्ति बिना किसी सहारे के खडी हुई है। उस समय धना जंगल था। हर समय जंगली जानवरों का भय बना रहता था। किंतु हनुमान जी की कृपा से यह स्थान पावन हो गया था। यहां निर्भय होकर भक्त सतत पुजा अर्चना निरंतर करते आ रहे है। कई वर्षो तक तो मंदिर खुले में ही था।  इंदौर के व्यवसायी को हनुमान जी की प्रेरणा से मंदिर की छत डालने का अवसर प्राप्त हुआ।समय समय पर निर्माण होता गया। 

हमारी पद यात्रा भी चल रही थी। गंधवानी ग्राम तक आने पर थकान महसूस होने लगी थी। किसी तरह यात्रा जारी रखी। हनुमान जी की कृपा से हम मंदिर पहूंच गये। सभी ने मिलकर आरती करी। आरती पश्चात भंडारे का आयोजन था। वहां सभी ने मिलकर प्रसादी ग्रहण करी।
 हनुमान जयंती पर व समय समय पर कई बडे आयोजन होते रहते है। 


अति प्राचीन बलवारी हनुमान मंदिर तक पद यात्रा



    बलवारी हनुमान जी की कृपा से भक्तों को कई अदभुत सुखद अनुभव प्राप्त हुऐ है। बहुत दुर दुर सें भक्त आते है।     
पहूंच मार्ग :-
सडक मार्ग 

इंदौर से धामनोद मनावर होते हुऐ गंधवानी ग्राम से 160  किमी

यदि आप इंदौर अहमदाबाद मार्ग से आते हैं। तो मांगोद जीराबाद होते हुऐ 130 किमी का सफर है।
रेल मार्ग व वायु मार्ग केवल इंदौर तक ही उपलब्ध है।
 भोजन व ठहरने के लिये गंधवानी और मनावर में ही सुविधा है।                          

                                                                 

                                                                           ।।  जय श्री राम ।।
           

Muradpura.hanuman.ji.shajapur



मुरादपुरा हनुमान जी,शाजापुर


दिव्य बाल हनुमान जी
मुरादपुरा हनुमान मंदिर, शाजापुर 

मुरादपुरा हनुमान मंदिर में कई बार जाने का अवसर मिला। जब भी दिव्य प्रतिमा के दर्शन करता, अपने में एक सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह को महसुस करता। एक बार मन में मंदिर के बारे में जानने कि इच्छा जाग्रत हुई। इसी इच्छा को लेकर मंदिर से जुडे कुछ वृद्ध सज्जनों से मुलाकात की। 

कथा ः-

एक प्रचलित कथानुसार सैकडों वर्षो पुर्व जहां आज मंदिर है।वहां पर खेत हुआ करता था।धने जंगल के मध्य से नदी पार करके खेत में जाने का रास्ता था। इस मार्ग पर एक पुराने वृक्ष को किसान काटना चाहता था। एक दिन जब वह वृक्ष को काट रहा था। उसी समय ऐसा न करने का चेतावनी भरा स्वर गूंजा। किंतु किसी के न दिखाई देने पर वहम समझ ध्यान नहीं दिया और वृक्ष को काट दिया। अगले दिन उसकी मृत्यु हो गई।
इस धटना से ग्रामीण भयभीत हो वहां जाने से डरने लगे। कुछ समय बाद हनुमान भक्त बेजु बा रजक वहां से गुजरे तो उन्हें दिव्य अनुभूति का अहसास हुआ। वह नित्य वहां जाते और हनुमान जी का स्मरण करते थे।एक दिन उन्हे स्वप्न में हनुमान जी ने दर्शन देकर उस स्थान पर प्रतिमा होना बताया। अगले दिन सभी की सहमति से खुदाई करने पर हनुमान जी की बाल रूप खडी मुर्ति मिली। उन्होने पुरे विधी विधान से मुर्ति स्थापित कर नित्य पुजा अर्चना करने लगा।


मुरादपुरा हनुमान मंदिर
मुरादपुरा बाल हनुमान मंदिर, शाजापुर 

कुंडी  :-

मंदिर के पास ही वह कुंडी भी है। जहां से मुर्ति प्रगट हुई थी।
 
धीरे धीरे ग्रामीण भी मंदिर से जुडने लगे। कई भक्त अपनी मनोकामना लेकर हनुमान जी की शरण में आते है और पुर्ण होने पर अपनी श्रद्धानुसार चोला, प्रसाद अथवा भंडारा करवाते है। 

 प्रभू कृपा :-

एक ऐसे ही भक्त की आप बीती बताते है। बहुत पुरानी बात है। जावरा के प्रतिष्ठित व्यापारी का कारोबार बहुत अच्छा चल रहा था। ना जाने किस की नजर लग गई। उनसे उस समय के ईनामी डकैत ने बहुत बडी रकम की मांग रख दी और न देने पर परिवार सहित खत्म कर देने की धमकी। अब व्यापारी बडी मुसीबत में पड  गये। अचानक बहुत बडी रकम की व्यवस्था कर पाना संभव नहीं था। उस पर जीवन बचाने की चिंता। इस फिक्र में वे परिवार सहित अज्ञात स्थान पर चले गये। एक दिन भयग्रस्त व्यापारी मुरादपुरा हनुमान जी के मंदिर में अपनी याचना लेकर गये और प्रभू चरणों में  व्यथा रखी।

हे प्रभू प्राण संकट में है। रक्षा करो अब तो तुम ही तारणहार हो।  
अपनी विनती लगा इंदौर चले गये। डकैत के डर से बार बार स्थान बदलने की भी मजबुरी थी। एक दिन वे किसी काम से बाहर जाने के लिये इंदौर बस स्टैंड गये थे। तभी उनकी नजर अखबार में प्रकाशित एक खबर पर पड़ी। वे खुशी से झुम उठे और हनुमान चालीसा की पंक्तियां गुनगुनाने लगे। 
तुम रक्षक काहू को डरना। ईनामी डकैत पुलिस मुठभेड में मारा गया था। इसी तरह के अनगिनत किस्से हैं।   

   मंदिर परिसर में नवग्रहों के मंदिर और एक छोटा सा शिवालय भी है।

मंदिर के पिछले भाग में एक छोटा सा बगीचा है। जहां बच्चों के मनोरंजन के लिये झुले लगे हुऐ है।

मुरादपुरा हनुमान मंदिर बगीचा


पास ही धर्मशाला बनी हुई है। कोरोना काल में मंदिर बंद कर दिया है। बाहर से ही दर्शन कर सकते है। सावधानी व सुरक्षा के मध्ये नजर रखते हुऐ विशेष प्रकार की घंटी लगी हुई है।जब आप घंटी के सामने जाते हैं।तो बजती है


मुरादपुरा हनुमान मंदिर बगीचे के झूले



 नेशनल हाईवे आगरा बाम्बे मार्ग पर इंदौर से आगरा जाते समय शाजापुर शहर के पास ही यह मंदिर स्थित है।

               "जय श्री राम"


Salasar bala ji dham ( सालासर बाला जी)

                   जय श्री कृष्ण

 

हम
Salasar bala ji dham ( सालासर बाला जी)
Salasar bala ji 

 सब को खाटू श्याम जी में दर्शन लाभ न मिलने से बहुत मायूसी हो रही थी। किंतु फिर  तय किया कि समय व्यर्थ न करते हुऐ सालासर बाला जी के ही दर्शन कर लिये जाये। वैसे भी शनिवार का दिन बाला जी के दर्शनों के लिये उत्तम माना जाता है। सालासर बाला जी खाटू श्याम जी से 105 किमी की दूरी पर जयपुर - बीकानेर मार्ग पर स्थित है। 


Salasar bala ji dham ( सालासर बाला जी)
लक्ष्मण द्वार, सालासर 

गूगल आंटी से मार्ग निर्देशन लिय कुछ किमी तक तो सिंगल और धुमावदार रोड होने से धीरे चलना पड रहा था।सीकर से हाई-वे मिलने पर गाडी की स्पीड बढ गई। लक्ष्मणगढ के पास ही सालासर धाम विकास समिती द्वारा निर्मित श्री लक्ष्मण द्वार बनाया गया है। यहां से 30 किमी की दूरी पर सालासर धाम में विराजित हैं  दाढी मूंछ धारण किये हुऐ बाला जी का भव्य स्वरूप।

श्री सालासर बाला जी की कथा -- 

श्री सालासर बाला जी की कथा कुछ ऐसी है कि सालासर  के असोटा ग्राम में  एक जाट किसान अपने खेत की  जुताई में तल्लीन था। अचानक हल सें कोई चीज टकराई , वह कुछ देर रुक कर फिर हल चलाने की कोशिश करने लगा किंतु हल तो नहीं चला अपितु वहां से आवाज आई। तब तक किसान कि पत्नि भोजन लेकर आ गई थी। उस स्थान की खुदाई करने पर वहां दो मुर्तियां मिली। पत्नि ने मुर्तियों को साडी के पल्लू से पोंछ कर साफ किया तब पता चला कि ये मुर्तियां तो बाला जी की है। किसान ने पत्नि के साथ पुजन अर्चन कर घर से लाये चूरमें का भोग लगाया। और गांव के ठाकुर साहब को इसकी सूचना दी।

Salasar bala ji dham ( सालासर बाला जी)
हनुमान जी, सालासर 

बाला जी का पूजन कर एक मूर्ति को सालासर और दुसरी मूर्ति को यहां से 23 किमी नागौर जिले में स्थापित किया। इधर सालासर में उसी दिन हनुमान जी ने अपने परम भक्त बाल ब्रह्मचारी मोहन दास जी को स्वप्न में दर्शन देकर असोटा में प्रकट होने कि बात बताई और कहा कि मूर्ति को यहां लाकर स्थापित करो। मोहन दास जी ने स्वप्न की बात का जिक्र कर ठाकुर साहब को संदेश भेजा। ठाकुर साहब आश्चर्य चकित हो गये उन्हे भी इसी तरह का स्वप्न आया था। वे विचार करने लगे कि ये कैसे संभव है। तब उन्होने मोहन दास जी को मूर्तियों को ले जाने के लिये कहा। मोहन दास जी दो बैलगाड़ियां लेकर असोटा पहूंचे। वहां मूर्तियों  पाबोलाम‌ (जसवंतगढ़ ) के लिये रवाना किया। सुबह जसवंतगढ़ में और शाम को सालासर में एक ही दिन श्रावण शुक्ल पक्ष नवमी संवत 1811 शनिवार को दोनों स्थानों पर  स्थापित किया गया। जिस बैलगाड़ी से सालासर मूर्ति ला रहे थे। वह एक स्थान पर रुक गई ।वहीं पर आज का मंदिर बना हुआ है। इस मंदिर के निर्माण में दो मुस्लिम कारीगर फतेहपुर के नूर मोहम्मद और दाऊ का विशेष योगदान रहा है।

सालासर बाला जी मंदिर की व्यवस्था --

 मंदिर कि देखरेख मोहन दास जी ट्रस्ट द्वारा उनके भांजों के वंशज करते आ रहे हैं। 

मंदिर में आज भी दो बैलगाड़ियां खडी रहती है।

    मनोकामना पुर्ती के लिये --यहां कि विशेषता भक्त और भगवान के मध्य कोई नहीं। सीधे बाला जी से निवेदन के लिये एक नारियल लेकर अपनी मनोंकामना मन में दोहराइये और वहीं पर बांध दिजीये। मनोकामना पूर्ण होने पर नारियल अपने आप गिर जाता है। जिसे बाद में मंदिर के सेवादार एक तय जमीन में विसर्जित कर देते है। 


Salasar bala ji dham ( सालासर बाला जी)
श्री बालाजी धाम, सालासर 

अखंड धूना --

यहां पर मोहन दास जी द्वारा प्रज्वलित धुना आज भी जाग्रत है। भक्त लोग इसकी राख धारण करते है। पास ही वृक्ष पर सैकडों पक्षियों का डेरा है।, मंदिर में पिछले 8 सालों से निरंतर रामायण पाठ और 20 वर्षो से हरि कीर्तन राम धुन जारी है।

श्री मोहन दास मंदिर -- 

यहां पर संत मोहन दास जी और कनिदादी के पैरों के निशान और समाधि स्थल की। पुजा होती है व  आगंतुक यहां श्रद्धा से नमन करते है                                                     

  सालासर के आस पास अन्य दर्शनिय स्थल                     

1.   अंजनी माता मंदिर

2.    जमवाय माता मंदिर

3.    चांदपोल मंदिर

4.     त्रि पति बालाजी 

5.      हरीराम बाबा मंदिर

6.      शयनन माता मंदिर 

    

 करीब 1100 वर्ष पुराना यह मंदिर सालासर से 15 किमी दूर रेगिस्तान में पहाडीं पर स्थित है। 

पर्यटन स्थल --

सालासर में एक टैंक भी रखा हुआ है। पर्यटक यहां फोटोग्राफी का आनंद लेते है। हमने भी इसका   आनंद लिया और टैंक को करीब से देखा।

    

Salasar bala ji dham ( सालासर बाला जी)
श्री बालाजी धाम, सालासर 


उत्सव व मेले --

हनुमान जयंती , चैत्र शुक्ल व अश्विन शुक्ल पूर्णिमा को भव्य मेले का आयोजन होता है। बहुत दूर दूर से श्रद्धालू दर्शन को आते है।

यहां ठहरने के लिये धर्मशालाऐं व होटलें हैं। तथा खाने के लिये भोजनालय की उत्तम व्यवस्था है। समय समय पर भंडारों का भी आयोजन होता रहता है

कैसे पहूंचे --

जयपुर -बीकानेर राजमार्ग पर स्थित है। 

सीकर -57

सुजानगढ-24

लक्ष्मणगढ-30

पिलानी-140

जयपुर से सालासर बाला जी की दूरी -171 किमी है।

बीकानेर-178 किमी 

निकटतम हवाईअड्डा -

जयपुर और बीकानेर

सालासर के निकटतम रेल्वे स्टेश  सुजानगढ ,जयपुर ,सीकर ,डीडवाना और रतनगढ 

    शाम के पांच बजे हम लोगों ने वापसी का सफर शुरु किया।लग रहा था रास्ते में कहीं रुकना पड़ेगा। 

चलिये फिर मिलते है। एक नये सफर में तब तक के लिये अलविदा और हां आपका कोई सुझाव हो तो अवश्य दें

                                                                जय श्री कृष्ण      




khatu.shyam.ji

 

Khatu shyamji ( खाटू श्याम जी) 

khatu shyam ji
खाटू श्याम जी

प्रतिवर्ष अनुसार इस बार भी सांवलिया सेठ के दर्शन करने मंडफिया गये थे। रात वहीं रुके। अगले दिन सुबह दर्शन करके वापस पार्किंग की ओर जा रहे थे।तभी सामने होटल में गर्मा गर्म नाश्ता पोहे कचोरी बनते देख कर रुक गये। हल्की हल्की ठंड होने से गुंन गुंनी धूप अच्छी लग रही थी। सो हम लोग होटल में बाहर कुर्सियों पर ही बैठे गये और नाश्ते का आर्डर  दे अगली यात्रा की चर्चा करने लगे।

 नाश्ता करने के बाद  वत्सल ने  कहा नाना जी क्यों न खाटू श्याम जी चला जाय। 

सभी की सहमति बनी और खाटू श्याम जी की ओर चल दिये। रास्ते में गूगल मैप की मदद से पता चला करीब 390 किमी  है।  

वत्सल ने अगली फर्माइश कर दी कि नाना जी , खाटू श्याम जी की कहानी सुनाओं। चलिये हम आपको भी प्रचलित कथा के बारे में बतातें है।  

खाटू श्याम जी की कथा -

  यह कहानी धटोत्कच और दैत्य राज मूर की पुत्री मोरवी के पुत्र तथा भीम के पौत्र बर्बरीक की है। बचपन में ही कठोर तपस्या कर भगवान शिव और मां आदिशक्ति को प्रसन्न कर आशिर्वाद स्वरुप दो वर प्राप्त किये थे।

1. प्रभु दर्शन

2. निर्बल और असहाय लौगो की रक्षार्थ       शक्ति

तब भगवान शिव और आदि शक्ति मां  ने दर्शन देकर तीन बाण प्रदान किये। और उन तीनों कि विशेषता बताई।

1. पहला बाण युध्द भूमि में जिनका वध करना चाहोगे उन सब पर मृत्यु चिन्ह अंकित कर देगा।

2. दुसरा बाण सभी चिन्हितों का वध कर देगा।

3. तीसरा बाण समस्त संसार का विनाश कर देगा और वापस तुणीर में आ जायेगा।

किन्तु ये सब मानवता की भलाई के लिये ही उपयोग करना। साथ ही कमजोर और हारने वाले की सहायता करना।

तीनों बाणों की शक्ति और अग्निदेव द्वारा प्रदान धनुष के कारण  बर्बरिक बहुत शक्ति सम्पन्न हो गये थे। 

महाभारत युद्ध के समय बर्बरिक को भी उसमें हिस्सा लेने कि इच्छा हुई और वह मां से युद्ध में भाग लेने के लिये अनुमति लेने गये। मां ने आशिर्वाद देकर एक वचन लिया कि युद्ध में सभी तुम्हारे रिश्तेदार है किन्तु जो हार रहा हो तुम हारने वाले का साथ देना। तभी से इनका एक नाम 

हारे का सहारा " पडा। 

बर्बरिक अपने नीले धोडे पर सवार हो युध्द भूमि की ओर चल दिये। रास्ते में इनकी मुलाकात ब्राह्मण वेशधारी श्री कृष्ण जी से हुई। चर्चा में बर्बरिक ने अपना परिचय देकर कहा युद्ध में भाग लेने जा रहा हूं। तब ब्राह्मण वेशधारी श्री कृष्ण जी ने उपहास उडाते हुऐ कहा बिना अस्त्र शस्त्र और सेना के युद्ध कैसे लडोगे। इस पर बर्बरिक ने भगवान शिव और मां आदिशक्ति से प्राप्त तीन बांणों के बारे में बताया और कहा कि कुछ ही पलों में युद्ध समाप्त कर सकता हूं।तब श्री कृष्ण जी ने बाणों की सत्यता को प्रमाणित करने के लिये कहा।

परिक्षा -(examination)

बर्बरिक ने सामने पीपल के वृक्ष को निशाने पर रख कर कहा इसके सभी पत्ते मेरे निशाने पर है। वह बांण प्रत्यंचा पर चढा कर प्रार्थना करने लगा। तभी श्री कृष्ण जी ने एक पत्ता चुपके से अपने पैर के नीचे छिपा लिया। जैसे ही बर्बरिक ने बांण छोडा वृक्ष के सभी पत्तों पर क्षणभर में चिन्ह अंकित हो गये और बांण श्री कृष्ण जी के पैरों के चक्कर लगाने लगा। अब बर्बरिक ने श्री कृष्ण जी से प्रार्थना कर कहा आप अपना पैर हटा लें अन्यथा यह आपके पैरो को क्षति पहूंचा देगा।

 श्री कृष्ण जी यह सब देख सोचने लगे कि कौरवों की हार तो निश्चित है और मां के वचनों में बंधा बर्बरिक इसे एक क्षण में  जीत में बदल देगा।।  इससे इस धर्म युद्ध में अधर्म की जीत हो जायेगी।

उस समय श्री कृष्ण जी ने बर्बरिक से विश्राम के लिये साथ चलने को कहा। किन्तु प्रण अनुसार बर्बरिक ने वहीं रुकने का निवेदन किया।अगले दिन श्री कृष्ण जी और अर्जुन बर्बरिक से मिले और कहा वत्स आज शुक्ल फाल्गुनी द्वादशी है। कल से युद्ध आरंभ हो जायेगा किन्तु इसके पूर्व रंणचंडी काली एक महाबलशाली यौद्धा की बली मांग रही है। और हम तीनों के अलावा इस योग्य कोई नहीं।  

अर्जुन ने अपने आप को प्रस्तुत किया। इस पर श्री कृष्ण जी ने कहा यह संभव नहीं । इस धर्म युद्ध में सभी पाडंवों का जीवित रहना आवश्यक है। तब श्री कृष्ण जी कहने लगे मैं ही अपनी बली देता हूं।  

बर्बरिक श्री कृष्ण को गुरु कहते थे। अतः उन्होने कहा शिष्य के रहते यह संभव नहीं। मैं अपना शीश देता हूं कहकर एक ही क्षण में तलवार से अपना शीश काटकर श्री कृष्ण जी के हाथों में दे दिया। यहां ये   शीश दानी॥ के नाम से विख्यात हुऐ। 

यह सब देख सभी पांडव विलाप करने लगे और श्री कृष्ण जी को इसका दोषी मानने लगे। 

उसी समय आदिशक्ति ने प्रगट हो आकाशवाणी द्वारा बर्बरिक के पूर्व जन्म में ब्रह्मदेव से धमंड कर शापित होने की बात बतायी और निवार्णार्थ जब पृथ्वी पर धर्म युद्ध होगा उसी समय इन्हे श्री कृष्ण द्वारा मोक्ष प्राप्त होगा। वे ही इनकी मृत्यु का कारण बनेगें। इसमें इनका कोई दोष नहीं।यह सुन सभी पांडव लज्जित हो क्षमा मांगने लगे।

श्री कृष्ण जी ने मां आदिशक्ति से वर मांगा और कहा कि हे देवी यह शीश एक भक्त का है। जिसने धर्म की रक्षार्थ निस्वार्थ भाव से दान किया है। इसे अमृत से सींच  कर अमर कर दो। तब मां आदिशक्ति ने तथास्तु कह शीश को पूर्नजीवित कर दिया । श्री कृष्ण जी ने बर्बरिक को किर्तीमान भवः का आशिर्वाद दिया और अपनी सभी शक्तियां प्रदान कर नया नाम  श्याम दिया। साथ ही उनकी इच्छा पुछी।

बर्बरिक ने अपनी दो इच्छा जाहिर करी

1. मेरी देह को आप ही अग्नि दें।

2. मैं महाभारत का युद्ध देखना चाहता हूं।

दोनों इच्छाओं को स्वीकार कर उनके शीश को कुरुक्षेत्र के पास एक पहाडी पर  सम्मान पूर्वक स्थापित किया।

 महाभारत का युद्ध हुआ और परिणामस्वरुप पांडव जीते किंतु जीत के श्रेय के लिये आपस में विवाद होने लगा। तब सभी श्री कृष्ण जी के पास गये। 

श्री कृष्ण जी ने कहा कि इस युद्ध का एक साक्षी है। जिन्होने सम्पूर्ण युद्ध देखा है। वहीं बता सकते है। व उचित निर्णय दे सकते है। सभी बर्बरिक के शीश के पास जाकर यह जानना चाहा कि इस विजय श्री का असली हकदार कौन है। बर्बरिक ने सभी पांडवो की गलतीयां बताई। उन्होनें कहा धर्मराज युधिष्ठिर ने असत्य का सहारा ले द्रोणाचार्य का वध किया। दादा श्री भीम ने गदा नियमों का उलंधन कर दुर्योधन को मृत्यु के धाट उतारा और गांडीवधारी अर्जुन ने पहले तो युद्ध पूर्व ही धनुष बांण रख दिये थे। फिर शीखंडी का सहारा ले पितामह भीष्म को सर शय्या पर लेटा दिया और दादा कर्ण से बचने के लिये पिता धटोत्कच की आहुती दे दी। इस युद्ध के महानायक तो श्री कृष्ण और उनका सुदर्शन चक्र ही थे। यत्र तत्र सर्वत्र श्री कृष्ण ही दिखाई दे रहे थे। यह सुन सभी पांडवों ने क्षमा मांगी। 

श्री कृष्ण ने बर्बरिक को आषिश दे कहा कलयुग में तुम मेरे नाम से ही पुजित होवोगे। 

खाटू श्याम का प्रगटीकरण

खटवांग राजा बडा धर्म परायण और मानव सेवी था। उसके यहां एक बहुत बडी गौ शाला थी। प्रतिदिन सेवक लौग गायों को चराने पास के ग्राम खाटू ले जाते थे। जहां अकसर गायें झुंड में ही विचरण करती थी। किन्तु उन्में से राधा नाम की गाय सबसे अलग दूर एक पहाडी स्थान पर जाती थी। और अपना सारा दुध उस स्थान पर स्वतःही चढा कर वापस आ जाती थी। एक रोज सेवक ने अलग जाते हुऐ और दुध चढाते हुऐ देख लिया। अब सेवक उस पर नजर रख कर कुछ दिन यह सब देखता रहा। जब उसे विश्वास हो गया तो सारी धटना की जानकारी गौ शाला प्रधान को दी। उन्होनें भी हकिकत देख राजा को सारी धटना कि जानकारी दी। आश्चर्य होने से राजा स्वंयम आये और यकिन होने पर पास ही हनुमान मंदिर में पुजा अर्चना करवा कर उस स्थान की खुदाई करवायी।  खुदाई वाले स्थान जिसे आज श्याम कुंड के नाम से जानते है। वहां से  श्याम बाबा का शीश शालीग्राम विग्रह रुप में मिला था। आज उसी शालीग्राम विग्रह की पूजा अर्चना की जाती है। खाटू श्याम जी का मंदिर 1027 ई. में रुपसिंह चौहान और उनकी पत्नि नर्मदा कवंर ने बनवाया था। शीश रुपी विग्रह को कार्तिक मास की एकादशी को मंदिर में स्थापित किया था। कालांतर में मारवाड के दीवान अभय सिंह जी ने 1720 ई. में मंदिर का जीर्णोध्दार करवाया था। यहां पर प्रतिवर्ष फाल्गुन माह में मेले का आयोजन होता है। 

कहते है सच्चे मन से श्याम बाबा को याद करो तो अवश्य ही कृपा होती हे।

जय श्याम बाबा की। 

रास्ते में अत्यधिक डायवर्शन के कारण देर होने से सीधे जयपुर ही पहूंचे। रात जयपुर में ही रुके। अगली सुबह जल्दी ही खाटू श्याम जी के लिये चल दिये। यहां से मात्र 70 किमी है और रोड भी बहुत अच्छी होने से हम लोग 9.00 बजे पहूंच गये। 

Khatu Shyam ji
श्री खाटू श्याम जी                                                                          

दर्शनों के लिये आन लाईन रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है।

हम से एक बडी गलती हो गई थी। बिना रजिस्ट्रेशन के ही पहूंच गये थे। इसलिये श्याम बाबा के दर्शनों से वंचित रहे। कोरोना काल होने से सभी जगहों पर रजिस्ट्रेशन अनिवार्य  है। आप भी यदि दर्शनों के लिये जा रहे है तो वेब साईट पर एक नजर अवश्य डाल लें।  

 यहां रुकने के लिये बहुत सी धर्मशालाऐं और हर श्रेणी की होटलें हैं।

भोजन के लिये भी होटल , रेस्टोरेंट है।

खाटू श्याम जी कैसे पहूंचने -

रेल मार्ग -

1.यदि आप ट्रेन से जा रहे है। तो जयपुर से रींगस के लिये ट्रेन बदलनी होगी। रींगस से 16 किमी सडक मार्ग की यात्रा बस अथवा टेक्सी से करनी होती है।

2. सडक मार्ग  

 जयपुर से 80 किमी  बस ,टेक्सी सुविधा उपलब्ध है।

अजमेर से 175 किमी  बस अथवा टेक्सी सुविधा उपलब्ध है।

निकटतम् हवाई अड्डा -

3. सबसे निकट का एयरपोर्ट जयपुर है। 

सभी को भुख लग रही थी। सो पहले पेट पूजा फिर काम दूजा। निकट की एक होटल में भोजन कर सालासर हनुमान जी के दर्शनों के लिये चल दिये। आप सबसे अब वहीं मुलाकात होगी।

                                                                                जय श्री कृष्ण

                               


                        



अतिप्राचीन जलप्रपात श्री गंगा महादेव

अतिप्राचीन जलप्रपात श्री गंगा महादेव



गंगा महादेव 

कोरोना काल की इस लंबी अवधि में सारी गति विधीयां सिमट कर रह गई थी। घर से आफिस और जरुरी हुआ तो बाजार से सामान लेने जाने के अलावा कहीं नहीं जा सकते थे। पहले तो अच्छा लगा मगर अब बोरियत होने लगी थी। ऐसे में विचार आया कि क्यों न कहीं आस पास ही घूमने चला जाय।थोडी सी जांच पड़ताल में एक बहुत सुंदर प्राकृति के मध्य भीडभाड से दुर स्थल का पता चला।अति प्राचीन जलप्रपात श्री गंगा महादेव 
कार्यक्रम बना, तय किया रविवार को वहीं पर पिकनीक पार्टी मनाई  जाय। 
सभी जरुरी सामान शनिवार शाम को ही गाडी में रख दिये। अगले दिन रविवार को हम लोग श्री गंगा महादेव की ओर चल दिये। हल्की हल्की ठंड में सुबह का सफर बडा सुहाना लग रहा था। सभी बडे खुश थे। बहुत दिनों बाद कहीं बाहर जाने का मौका मिला। रास्ते में एक होटल पर रुके।  गर्म गर्म जलेबी और पोहे देख अपने आप को रोक नहीं सके। सभी ने नाश्ता किया व चाय पी कर तरोताजा हो गये।
श्री गंगा महादेव बहुत ही प्राचीन जलप्रपात है। जंगल के मध्य यह स्थान हरियाली से आच्छादित अति रमणीय मनमोहक स्थान है।                                 

श्री गंगा महादेव जल प्रपात 


 हम लोग करीब 8.00 बजे पहुंच गये। गाडी पार्किंग कर प्रवेश द्वार की ओर चल दिये। प्रवेश द्वार के करीब से ही सीढियां  उतरने पर सामने ही मनोहारी जलप्रपात दिखाई दिया। हल्की हल्की पानी की बुंदे बहुत सुकून दे रही थी। काफी ऊंचाई से गिर रहे झरने की तीव्र ध्वनि ने रोमांचित कर दिया। सामने पानी के कुंड में बहुत से दर्शनार्थी नहाने का आनंद ले रहे थे। वाकई बहुत ख़ूबसूरत जगह है। कहते है बारिश में तो यहां की छटा और निराली हो जाती है। चारों ओर फुलों की सुगंध और पक्षियों की चहचहाहट से वातावरण गूंजायमान रहता है। शिवरात्री पर मेले का आयोजन होता है। विशेषकर सावन माह में ज्यादा गहमा गहमी रहती है।

श्री गंगा महादेव झरना

 चट्टानों के नीचे गंगा महादेव जी का मंदिर है। हम सब ने भी मुंह हाथ धो कर महादेव जी के दर्शन किये। एक ओर मंदिर की घंटी और दुसरी तरफ झरने की मधुर ध्वनि
ने मंत्र-मुग्ध कर दिया। कहते है यहां पर बहुत से औषधीय वृक्ष भी  है किंतु जानकारी के अभाव में हम वहां तक नहीं पहुंच पाए। कुंड से थोडा आगे जाने पर खुले मैदान  में हरियाली और घनी होती जा रही थी।  सभी अपनी तरह से    आनंद लेने लगे। हम लोग भी एक चट्टान पर बैठकर दृश्यों को निहार रहे थे।    

श्री गंगा महादेव झरना
                        
यह स्थान इंदौर -अहमदाबाद हाई वे पर स्थित धार से करीब 20 किमी दूर ग्राम सुलतानपुर के समीप है। बोधवाडा तक  हाई वे  है यहां से श्री गंगा महादेव जी निजी वाहन से ही जा सकते है ।                                  शाम की वापसी के साथ आज की            

 पिकनीक पार्टी का समापन हुआ।             

 
जय श्री कृष्ण
            


                      









 



एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा पार्ट- 5


                               जय श्री कृष्ण

 सीता जी के जन्म स्थल जनकपुर की यात्रा-----


एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा पार्ट- 5


शाम  7.00 बजें काठमांडू से जनकपुर के लिये चले। रोड हाई-वे था। मगर अति व्यस्त खतरनाक पहाड़ी रास्ता और उपर से रात में भारी वाहनों की लाईटें परेशान कर रही थी। कभी कभी तो आंखो से आंसु भी आ जाते थे।  इन सब परेशानियों के बावजूद भी हमारे ड्राईवर साहब की ड्राईविंग स्किल कमाल की थी। बेख़ौफ़ वो अपना काम कर रहे थे।  

काठमांडू में ही तय कर लिया था कि भोजन रास्ते मे करेगें । किंतु हर जगह नानवेज का बोलबाला था। अतः चाय पीकर ही संतुष्ट होना पडा। जैसे जैसे समय बढ रहा था। नींद और भुख भी सता रही थी। इसी उहापोह में रात 1.20 बजे जनकपुर पहुंचे। यहां पर हल्की बारिश के कारण ठंड और बढ गई थी। एक सज्जन से धर्मशाला का पता पुछकर उस ओर चल दिये। मन में विचार आ रहा था। कि इतनी रात को वहां कौन मिलेगा। किंतु वहां पहुंचे तो देखा अच्छी खासी भीड थी। यात्री बसें आ जा रही थी। 

धर्मशाला पहुंचकर सबसे पहले एक हाल बुक किया।  फिर भोजन बनाने के लिये तामझाम गाडी से उतारे। वहां निर्देश थे।कि भोजन रसोईघर  में ही बनावें तो सारा सामान लेकर रसोईघर पहुंचे। सभी अपने अपने काम में लगे थे।  हमारे दो साथी बाकी का सामान हाल तक पहुंचाने चल दिये। 
सभी के सहयोग से जल्द ही भोजन बन गया था। पुरी यात्रा में पहली बार था । कि देर रात भोजन कर रहे थे। खैर एक कहावत है कि पहले पेट पुजा फिर काम दुजा ।

 सुबह सभी देर से उठे । बाहर आकर देखा तो धर्मशाला खाली हो गई थी। सफाई कर्मचारी अपने अपने काम में लगे थे। हमें भी जल्दी ही निकलना था। चलिये सभी लोग तैयार होकर आये, तब तक जनकपुर के बारे में थोडा जान ले।

 जनकपुर 

इतिहास 

 एक कथा के अनुसार जनकपुर के शासक कराल जनक ने कामांध होकर एक ब्राह्मण कन्या का शील भंग किया था। इसकि परिणीती में राजा अपने  बंधु बांधवों के साथ मारे गये।  जनक वंश के जो लोग शेष बचे थे। उन्होने जगंल में शरण लेकर जान बचाई थी। यह जंगल ही आज का जनकपुर है।  प्राचीन काल में मिथिला की राजधानी जनकपुर थी। यहां पर राजा जनक का शासन था। यह वही जनकपुर है। जहां पर सीता जी का जन्म हुआ था।  विदेह में निमी वंश के राजा सिरध्वज  जनक 22वें  जनक थे। सीता जी इन्ही की पुत्री थी।जनकपुर का महत्व तब और बढ गया जब सीता स्वयंवर और राम जी के साथ सीता जी का विवाह हुआ। राजा जनक को अपनी पुत्री के लिये योग्य वर चाहिये था। और उसके लिये राजा महाराजाओं में स्वयंवर का प्रचलन था। इन स्वयंवरों में योग्यता परखी जाती थी। राज महल में एक दिव्य शिव धनुष था। जिसे प्रतिदिन सीता जी एक हाथ से उठाकर उस स्थान की सफाई करती थी। यह देख राजा ने प्रतिज्ञा ली थी कि जो राजकुमार इस शिव धनुष की प्रत्यंचा चढा देगा उसी से सीता का विवाह करेगें। स्वयंवर में बहुत से राजकुमार आये पर कोई सफल नहीं हुआ। तब श्री राम जी ने धनुष की प्रत्यंचा चढा कर सीता जी से विवाह किया था।  साथ ही श्री राम जी के भाई  भरत जी का मांडवी से लक्ष्मण जी का उर्मिला तथा श्रुति कीर्ति का शत्रुघ्न के साथ विवाह हुआ था।

पर्यटन स्थल

जानकी मंदिर -

यह मंदिर सीता जी (जानकी जी) को समर्पित है। इसके निर्माण में 16 वर्षो का समय लगा था।  सन 1895 ई. में आरंभ होकर 1911 ई. में पूर्ण हुआ था। 4680 वर्ग फिट क्षेत्र में निर्मित इस भव्य मंदिर कि भी बड़ी रोचक कहानी है। कहते है कि टीकमगढ़ की महारानी वृषभानु कुमारी बुंदेला ने पुत्र की चाह में अयोध्या में कनक भवन मंदिर बनवाया। किन्तु सफलता नहीं मिली।


सीता मंदिर, जनकपुर नेपाल

तब गुरु की आज्ञा से जनकपुर में जानकी मंदिर का निर्माण शुरू करवाया था। इसके एक वर्ष में ही उन्हे पुत्र प्राप्त हुआ था। 

जानकी मंदिर, जनकपुर नेपाल 

किन्तु कुछ समय बाद उनकी मृत्यु होने से मंदिर का निर्माण प्रभावित हुआ था। बाद में वृषभानु बहन नरेन्द्र कुमारी ने निर्माण कार्य पुर्ण करवाया था। 

विवाह मंडप, जनकपुर नेपाल 

यहां और भी बहुत सुंदर स्थान है। थोडा समय लेकर जायें जिससे इन सब स्थानों को आप   देखना पसंद करेंगे। 

  • जालेश्वर महादेव 
  • दोलखा भीमसेन मंदिर 
  •  गंगासागर झील
  • धनुष सागर झील 
  • रत्ना सागर
हमारी गाडी की नेपाल में अनुमति की अवधि आज समाप्त हो रही थी। इसलिए अवधि सीमा में ही वापस भारत में प्रवेश करना था। अन्यथा भारी जुर्माना देना पड़ता। शाम पांच बजे भारत नेपाल सीमा चौकी पहुंच गये थे। लाईन बहुत लंबी थी । अपना नंबर आने पर सारे कागजात दिखाकर बेरियर पर अपना अनुमति पत्र दिखाया और गेट खुलने पर भारत में प्रवेश कर लिया । रात बौद्ध गया पहुंच गये।                                           
                 
 जय श्रीकृष्ण                 
 

एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा पार्ट- 4

                                                                    जय श्री कृष्ण


काठमांडू की सैर




एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा पार्ट- 4
पशुपति नाथ मंदिर ,काठमांडू नेपाल 


रात करीब 11.30 बजे हम लोग काठमांडू पहुंचे।  देर रात पहुंचने से रूकने के लिये सबसे बडी समस्या हो गई थी। यहां भी संत जी का आशिर्वाद रहा। उन्होने ही अपने सम्पर्क सुत्र से एक होटल में हमारी व्यवस्था करवा दी थी। अब हमें उस पते पर पहुंचना था। देर रात अंजान शहर और कड़ाके की ठंड में बिना लोकल व्यक्ति की सहायता के सही जगह पहुंचना आसान नहीं था।एक दो जगह पता पुछने पर उन्होने कहीं ओर जगह ही पहुचां दिया हमें घूमते घूमते करीब एक घंटा हो गया। आखिर एक लोकल टेक्सी वाले को करना पडा।  मोल भाव कर 200 IC में राजी किया तब जाकर सही मुकाम पर पहुंचे।  हां होटल बहुत अच्छा था। एक ही हाल में हम सब की व्यवस्था कर दी थी। 

सुबह तैयार होकर सबसे पहले रिशेप्शन पर काठमांडू के पर्यटन स्थलों की जानकारी ली और रूट मैप बनाया। असुविधा से बचने के लिये यह बहुत जरूरी था। 

काठमांडू  चारों ओर पहाडीयों से धिरा हुआ है। यह समुद्र तल से 1300 मीटर की ऊंचाई पर करीब 51 वर्ग किमी क्षेत्र में बसा हुआ है। नेपाल देश की राजधानी और सबसे बडा शहर है। यहां हिन्दुओं के आराध्य भगवान शिव का विश्व प्रसिद्ध पशुपति नाथ मंदिर होने से इसका महत्व और बढ जाता है। 

काठमांडू शब्द काष्ट मंडप का अपभ्रंश है।नगर के मध्य में गोरखनाथ जी का मंदिर और एक विश्राम स्थल है। जो कि कहा जाता है कि एक ही वृक्ष  की लकड़ी से बनाया गया है। मध्यकालीन समय में इसे कांतिपुर नाम से भी जाना जाता था।

 इतिहास

भूगोलविदों के अनुसार काठमांडू पहले एक तालाब था। श्री कृष्ण के अनुयायी गोपाल वंशीय लोग यहां पर गाय चराते हुऐ आये और बाद में यही पर बस गये। राजा पृथ्वीनारायण शाह ने 1768 में मल्ल राजाओं से युद्ध में जीत कर गोरखाली नेपाल राज की स्थापना की और काठमांडू को राजधानी बनाया। राणाओं के समय बना सिंह दरबार जग प्रसिद्ध है। वर्तमान में यहीं पर नेपाल के प्रधानमंत्री का मंत्रालय और सर्वोच्च न्यायालय है। 

1934 में भूकंप में ध्वस्त काठमांडू को पुनः 1950 में बसाया गया और पर्यटकों के लिये खोल दिया।

   प्रमुख पर्यटन स्थल 

1.पशुपतिनाथ मंदिर

भगवान शिव को समर्पित हिंन्दु आस्था का प्रमुख तीर्थ स्थल है। बागमती के किनारे स्थित इस मंदिर के पास में ही श्मसान घाट भी है। यहां मुक्ति और भक्ति दोनों पास पास ही है।


एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा पार्ट- 4
नंदी जी, पशुपति नाथ मंदिर, नेपाल 


2.हनुमान ढोका


हनुमान जी का यह मंदिर देगुताले और तालेत मंदिरों के मध्य खुले मैदान में स्थित है। 1672 में प्रताप मल्ल ने हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित कर पुजा अर्चना करी थी। आज भी अनवरत जारी है।

 3.काष्टमंडप   

गोरखनाथ जी का मंदिर और विश्राम स्थल एक ही पेड़ की लकड़ी से बनाया गया है। 

4. अशोक विनायक मंदिर

अशोक वृक्ष के नीचे भगवान गणेश का यह मंदिर काष्ट मंडप के पीछे स्थित है। यहां पर धार्मिक आयोजनों के साथ राज्याभिषेक के कार्यक्रम भी होते है।

5. दरबार मार्ग

नेपाल में राणा शासन के दौरान हुऐ विस्तार का प्रमुख केन्द्र रहा यह मार्ग अपना  विशेष महत्व रखता है। इस पर कई धार्मिक स्थल और पुरातन मंदिर है। तथा राजा महेन्द्र की प्रतिमा भी लगी है।

   6. जगन्नाथ मंदिर

 हनुमान ढोका के पास में ही विष्णु जी का मंदिर है। इसमें तीन तरफ से प्रवेश कर सकते है। सम्पूर्ण मंदिर में की नक्काशी करी गई है।

7.स्वयंभू नाथ स्तूप 


एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा पार्ट- 4
स्वयंभू नाथ स्तूप, काठमांडू नेपाल 


विश्व में सबसे बडे बौद्ध स्तूपों मे से एक है।

 8.आकाश भैरव

भैरव नाथ का यह मंदिर आस्था का केन्द्र है। प्रतिवर्ष यहां इंद्रा जात्रा का आयोजन होता है।

9. राष्ट्रीय संग्रहालय

यहां राजाओं के स्मृति चिन्ह व कलाकृतियों का संग्रह है।

10. धारहारा टावर

उत्कृष्ठ वास्तु कला का यह टावर नौ मंजिला होकर करीब 61.88 मीटर ऊंचा है। इसे भीमसेन टावर के नाम से भी जानते है।

11.बौद्ध स्तूप



बौद्ध स्तूप, काठमांडू नेपाल 

12. रानी पोखरी 

सन 1670 में बनाया गया कृत्रिम तालाब है। इसे रानी का तालाब के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर बाल गोपालेश्वर का प्रसिद्ध मंदिर है।  भूकंप में ध्वस्त इस क्षेत्र का पुनः नव निर्माण किया गया है।

13. कुमारी घर

यह एक जीवित कन्या का देवी रूप में निवास स्थान है।एक प्राचीन प्रथा अनुसार नेवार कन्या का कुछ जटिल  प्रक्रिया से चयन किया जाता है। उस कन्या की देवी तालिजू का अवतार मान देवी प्रतिनिधित्व के रूप में पुजा की जाती है। विशेषता है कि कन्या कभी भी जमीन पर पैर नहीं टिकाती है केवल कुछ विशेष त्यौहारों को छोड़ कर।

14.असन बाजार

नेपाल का प्रसिद्ध बाजार है। जहां हर तरह का सामान मिलता है। खासकर इलेक्ट्रानिक सामान के लिये मशहुर है।

15.रत्न पार्क

बच्चो के लिये बनाया गया यह थीम पार्क नेपाल के राजा महेन्द्र सिंह की धर्मपत्नि के नाम पर रखा गया है 

16.पाटन दरबार क्षेत्र

काठमांडू से 9 किमी दूर ललितपुर शहर में स्थित है यह क्षेत्र । नेपाल के तीन शाही दरबारों मे से एक है। वर्तमान में युनेस्कों ने इसे विश्व धरोहर के रूप में चयनित किया है। लाल ईंटों के चौकोर फर्श पर नेवार वास्तुकला का अदभुत प्रदर्शन है।

17.शक्तिपीठ श्री गुह्येश्वरी मंदिर

कहा जाता है कि यहां पर सती के दोनों घुटने गिरे थे। इसलिये 51शक्तिपीठों में इस स्थान की मान्यता है

18.दक्षिण काली मंदिर

काठमांडू से 22 किमी दूर फार्पिंग गांव में स्थित यह मंदिर मां काली को समर्पित है। यह पुरातन मंदिरों में से एक है। 

19.तारा गांव संग्रहालय 

आर्ट गैलरी के लिये विख्यात है।

20.बुढा नीलकंठ

यहां पर भगवान विष्णु की, लेटे हुऐ मुद्रा मे श्याम शिला की बडी मनोहारी मुर्ति है।



एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा पार्ट- 4
बुढा नीलकंठ, काठमांडू नेपाल 

इसके अलावा गार्डन आफ ड्रीम ,तलेजु मंदिर ,नारायणहिती पैलेस संग्रहालय, सिद्धार्थ आर्ट गैलरी,मावु देवल और रूद्र वरण महाविहार ,कोपेन मोनेस्ट्री,कृष्ण मंदिर,बसंतपुर टावर, भीमसेन मंदिर,कुम्भेश्वर महादेव,काल भैरव,बसंतपुर डबली और न्यातापोल मंदिर देखने लायक जगह है।

 शाम करीब 6.00 बजे एक जगह भोजन के लिये रूके। उस समय हम सब विचार कर रहे थे। यहां रूके या आगे चले। आगे का सफर 225 किमी का है। वहां पहुंचने में अंदाजन 7 से 8 धंटे लगेगें।  आखिर ड्राईवर अंबू भाई पर निर्णय छोड़ा गया। कुछ विचार के बाद आगे चलना तय हुआ और शाम 7.00 बजे हम लौग जनकपुर की ओर चल दिये। यहीं पर नेपाल यात्रा पुर्ण कर भारत में प्रवेश करना था। 
काठमांडू से जनकपुर का मार्ग भी पहाडी ही था। मगर रोड ठीक होने से बिना किसी कठनाई के सफर जारी रहा। रात 1.20 बजे जनकपुर पहुंचे।

काठमांडू कैसे पहुंचे

हवाई मार्ग से जाने के लिये  काठमांडू में एयरपोर्ट है। कई देशों से सीधी उडान मिल जाती है।
सड़क मार्ग से भी जा सकते है। कई ट्रेवल ऐजेंसियां गोरखपुर व दिल्ली से सीधी बस सेवाऐं उपलब्ध करवाती है।

सडक मार्ग से जाने के लिये सोनाली बोर्डर व जनकपुर से सीधे 
यहां पर आने का सही मौसम फरवरी से अप्रेल और सितंबर से नवंबर का महिना सबसे अच्छा समय है।
 काठमांडू पर्यटन स्थल होने से रहने खाने की सुविधा हर स्तर पर मिल जाती है।


अगले अंक में जनकपुर में मिलेगें ।


                                                 जय श्री कृष्ण











एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा पार्ट-3


एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा  पार्ट-3

          

हमारी एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा के रूट चार्ट के अनुसार अगला पाइंट पोखरा था। खुबसूरत पहाड़ों और झील से घिरे शहर की अद्भुत सुंदरता बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती है। 


एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा  पार्ट-3
गुप्तेश्वर महादेव, पोखरा 

 हमें सेतीबेणी से वापसी में शाम हो गई थी। रात संत जी के निवास पर ही रूके। अगले दिन सुबह जल्दी ही नेपाल के प्रसिद्ध शहर और झीलों की नगरी ..
पोखरा की ओर जाना था

दो दिन की मालुंगा यात्रा अविस्मरणीय रही। सुबह सभी लोग अगले सफर की तैयारी में लग गये थे। संत जी से मार्ग की सारी जानकारी प्राप्त करके हम अगला कार्यक्रम तय करने मे लगे थे। तभी ग्राम में एक जगह से चाय नाश्ते के लिये आमंत्रण आया। अतः आग्रह स्वीकार कर के सब उनके घर  गये। वहां हमारा बहुत ही आत्मिक स्वागत हुआ। 

करीब 9.30 बजे संत जी से विदा ले पोखरा कि ओर चल दिये। पहाड़ी मार्ग पर सडक नागिन सी बल खाती हुई , एक पहाड़ी से दुसरी पहाड़ी तक ,कभी उपर कभी नीचे बहुत ही रोमांचक लग रही थी। इन सब के बीच खुबसुरत नजारे सफर को और खुशनुमा बना रहे थे। हम लोग  कभी कभी रूक कर खुबसुरत दृश्यों को भी , चिरस्मृति में संजोने के लिये , अपने अपने मोबाइलों में कैद कर रहे थे। नेपाल यात्रा के हमारे अगले रूट चार्ट में जगत्रदेवी , गलकोट ,  कमलाती ,वालिंग ,पुतलीबाजार और फेदी खोला होते हुऐ पोखरा शहर था। करीब 98 किमी सिद्धार्थ राजमार्ग का सफर तय करके 1.00 बजे हम पोखरा पहुंचे। यहां पर भी संत जी की कृपा रही और एक परिचीत ने हमें शहर घूमने में मदद की। उन सज्जन के कारण ऐसा लगा ही नहीं की हम अपरिचित स्थान पर घूम रहे हैं। 

बस एक ही बात का अफसोस रहा कि काश ऐसे स्थान पर आने के लिये , कम से कम दो से तीन दिन होने ही चाहिये। इतनी खुबसुरत जगह आने पर जल्दी जाने का मन नहीं कर रहा था। यहां के मनमोहक दृश्य और बहुत से दर्शनीय स्थलों की सैर यादगार अनुभव रहा। और हां यहां से प्रसिद्ध तीर्थ स्थल मुक्तिनाथ जाने का भी मार्ग है। 


पोखरा के मुख्य पर्यटन स्थल :.     

 1.  फेवा लेक
2.   गुडे लेक
3.   बेगनास लेक
4.   मेंडी लेक
5.   रूपा लेक
6.   दिपांग् लेक
7.   नियुरेनी लेक
8.   खास्टे लेक
9.   पोखरा लेक
10.  डेविस फाल
11.   राम मंदिर
12.  भीमसेन मंदिर
13.  भद्रकाली मंदिर
14.  ढोर वाराही मंदिर
15.  श्री विंधेश्वरी मंदिर
16.  ताल बाराही मंदिर
17.  गुप्तेश्वर महादेव
18.  गुंबा मानेसट्री 
19.  श्री उरगेन छोलिंग बौद्ध मोनेसट्री 
20.   जंगचूब छोलिंग मोनेसट्री
21.    माटेपानी गुंबा
22.    पेमा  साक्य मोनेसट्री
          इंस्टीटयूट
23.    अन्नपूर्णा तितली म्युझियम 
24.    रीजनल म्युझियम 
25.    अन्तरराष्ट्रीय पर्वतीय म्युझियम
26.    गोरखा स्मारक म्युझियम 
27.    मितेरी पार्क
28.     चच्वी पार्क
29.     बसुंधरा पार्क
30.     होली पार्क
31.     पोखरा प्लेनेटेरियम एंड
          साईंस सेंटर 
          ( मिरर माजे हाऊस)
32.     वर्ल्ड पीस पगोड़ा
33.     तुतुंगा व्यूह पाईंट
34.     महेन्द्र गुफा
35.     चमेरे गुफा
36.     सेती नदी धाटी
37.     के आई सिंह पुल
38.     जि एन रेकी ध्यान केन्द्र


एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा  पार्ट-3
ताल वाराही मंदिर, पोखरा 

इसके अतिरिक्त कई जगह माऊंटेनिंग व   रिवर राफ्टिंग के लिये भी कैप है। 

एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा  पार्ट-3
पोखरा लेक, पोखरा

यहां पर   मनोरंजन और रोमांच का मिला जुला आनंद मिलता है। 

एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा  पार्ट-3
पोखरा लेक बोटिंग पाइंट 

पोखरा  आने का सही समय:- 

 पोखरा में  दिसंबर और जनवरी में सबसे ज्यादा ठंड रहती है। और मई से अगस्त के माह तक बारिश का मौसम रहता है इसलिये सबसे अनुकुल समय मार्च-अप्रेल और सितंबर से नवम्बर 

पोखरा कैसे जाये:-

हवाई मार्ग :- पोखरा एयरपोर्ट है 

सडक मार्ग :-  काठमांडू से कार ,बस सेवा उपलब्ध 
यदि निजी वाहन से जा रहे है। तो बुटवल से सीधा मार्ग है। जगत्रदेवी वालिंग होते हुऐ।

गुप्तेश्वर महादेव घूमने के बाद .हमारे गाईड महोदय ने हाई-वे लिंक रोड पहुंचाकर बिदा ली। हम सबको दिन भर की भागदौड़ के बाद अब भुख सता रही थी। एक दो जगह होटलों में भी गये। किंतु नान वेज की वजह से बात नहीं बनी।  धीरे धीरे ठंड भी बढती जा रही थी। अत्यधिक थकान होने से खाना बनाने का भी मन नहीं कर रहा था। आखिर एक जगह शुद्ध शाकाहारी होटल मिल ही गई। 
खाना खाकर शाम करीब 6.30 बजे काठमांडू की ओर चले।  205 किमी का सफर था। उस पर बहुत ही व्यस्त राज मार्ग।  धीरे धीरे हमारी कार की रफ्तार बढने लगी थी फिर काठमांडू पहुंचने में 4/5 धंटे का समय तो लगेगा ही। 



एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा  पार्ट-3
गुप्तेश्वर महादेव,पोखरा


रात 11.00 बजे काठमांडू से 10 किमी पहले एक ग्राम में मार्ग की जानकारी के लिये रूके । मगर कोई भी व्यक्ति नहीं मिला। अब असमंजस की स्थिती बन रही थी। किधर जायें कोई संकेतक भी नहीं लगा था। अंदाजन ही चल रहे थे। तभी एक सुनसान स्थान पर दो तीन लोग खडे मिले। हमने उनसे जानकारी लेने के लिये कार रोकी किंतु खतरे का अहसास होते ही कार की रफ्तार बढ़ानी दी। करीब 5 किमी चलने के बाद एक वाहन दिखाई दिया उसके सहारे काठमांडू पहुंचे। चलिये अगले अंक में काठमांडू की सैर करेगें।



                                                                                
                                                                                  जय श्री कृष्ण












Popular post