पहली हवाई यात्रा दिल्ली एयरपोर्ट से ( काश्मीर भाग- 2)
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पहली हवाई यात्रा दिल्ली एयरपोर्ट से |
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इंद्रिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट |
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डल झील में शिकारे की सैर |
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डल झील बाजार |
Welcome to my travel memoirs. It includes route distance, food, photography, sightseeing, history, jungle and easy travel options about beautiful places.
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पहली हवाई यात्रा दिल्ली एयरपोर्ट से |
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इंद्रिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट |
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डल झील में शिकारे की सैर |
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डल झील बाजार |
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डल झील |
हमने अपनी योजना अप्रैल के दुसरे सप्ताह में बनाई जब टूलिप् पुष्प अपनी निराली छटा पूर्णता से बिखेरते हैं। इस समय वहां बहुत भीड़ रहती है। असुविधा से बचने के लिये होटल ट्रेन व हवाई जहाज के सभी टिकीट दो माह पूर्व ही आरक्षित करवा लिये थे।
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कुतूबमीनार |
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इंडिया गेट ,दिल्ली |
जय श्रीकृष्ण |
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अगले दिन सुबह उज्जैन के लिये रवाना हुए। शाम को घर पर यात्रा के लिए विचार विमर्श करके तय किया राजस्थान चलना चाहिये। मगर राजस्थान में सभी शहर धूमने लायक है। पुनः खोज करना पड़ी और सब की सहमति झीलों की नगरी उदयपुर के लिए बनी।यह शहर बहुत सुंदर और अपनी स्थापत्यकला के लिए मशहूर है। जितना शहर सुंदर है उतना ही वहां पहुंचने का मार्ग भी। रास्ते में बोगदें (सुरंग) मिलते हैं। गूगल बाबा के अनुसार उज्जैन से उदयपुर की दूरी तकरीबन 350 किमी है। यह नागदा जंक्शन ,जावरा,नीमच निम्बाहेडा और मंगलवाडा होते करीब 8 धंटे का सफर है। मार्ग में कई दर्शनीय स्थल होने से बोरियत नहीं महसूस होती है। दिसंबर में ठंड बहुत ज्यादा थी बाहर शरीर कंपकपा ने वाली ठंडी हवा चल रही थी। ऐसे में विचार आया की चले या नहीं चले। मगर सभी के उत्साह को ध्यान में रखकर हिम्मत जुटाई और करीब 7.30 बजे चल दिये। कार के सभी कांच चढे होने पर भी ठंड लग रही थी। सफर का पहला पडाव नागदा में था। यहां लक्ष्मीनारायण जी का बिडला मंदिर देखने लायक है। बगीचे और मंदिर की व्यवस्था कुशल संचालन की वजह से बहुत सुंदर है। एक धंटे के विश्राम के बाद पुनः यात्रा शुरु करी अब अगला मुकाम मंदसौर था। यहां शिवना नदी के तट पर स्वयंभू पशुपतिनाथ जी का बहुत बडा और आकर्षक शिवलिंग है। दर्शन कर मन प्रसन्न हो गया जल्दी ही अपना सफर पुनः शुरु किया किंतु आगे अच्छा खासा जाम लगा हुआ था। एक जुलूस के कारण कई वाहन अपनी लेन छोड गलत दिशा में चलने से बडी विकट स्थिती बन गई । खैर किसी तरह बाहर निकलें। इन सब में बहुत सा समय खराब हो गया। उदयपुर जाते समय रास्ते में दो जगह टनल मिलती हैं। बडा ही खुबसुरत दृश्य था।
झीलों का शहर, उदयपुर |
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बोगदें उदयपुर हाईवे पर |
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सहेलियों की बाडी |
उदयपुर धूमने के लिये कम से कम तीन से चार दिन चाहिये। परिवार के सभी सदस्यों ने बहुत आनंद लिया। यहां रहने और खाने के लिये सभी स्तर की व्यवस्था है ।हां मगर यह जगह थोडी मंहगी अवश्य है। प्रमुख पर्यटन स्थल होने से सडक व वायू मार्ग से जुडा हुआ है। आपको एक बार अवश्य आना चाहिये।
एक कहावत है। जब मन से याद करो तो इच्छा अवश्य पुर्ण होती है। वैसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ। एक पारिवारीक शादी में शामिल होने पेटलावद जाना था। घर के अधिकांश लौग बस से रवाना हो गये थे। हम कुछ सदस्यों को कार से जाना था। सभी ने तय किया तारखेडी हनुमान जी के दर्शन करने चलेगें।
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एक कहावत है। जब मन से याद करो तो इच्छा अवश्य पुर्ण होती है। वैसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ। एक पारिवारीक शादी में शामिल होने पेटलावद जाना था। घर के अधिकांश लौग बस से रवाना हो गये थे। हम कुछ सदस्यों को कार से जाना था। सभी ने तय किया तारखेडी हनुमान जी के दर्शन करने चलेगें।
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सिद्ध तपोभूमि वागनाथ |
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जागनाथ महादेव मंदिर |
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वागनाथ महादेव मंदिर |
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विशाल और प्राचीन वृक्ष |
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बलवारी हनुमान मंदिर |
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मुरादपुरा हनुमान मंदिर, शाजापुर |
मुरादपुरा हनुमान मंदिर में कई बार जाने का अवसर मिला। जब भी दिव्य प्रतिमा के दर्शन करता, अपने में एक सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह को महसुस करता। एक बार मन में मंदिर के बारे में जानने कि इच्छा जाग्रत हुई। इसी इच्छा को लेकर मंदिर से जुडे कुछ वृद्ध सज्जनों से मुलाकात की।
जय श्री कृष्ण
हम
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Salasar bala ji |
सब को खाटू श्याम जी में दर्शन लाभ न मिलने से बहुत मायूसी हो रही थी। किंतु फिर तय किया कि समय व्यर्थ न करते हुऐ सालासर बाला जी के ही दर्शन कर लिये जाये। वैसे भी शनिवार का दिन बाला जी के दर्शनों के लिये उत्तम माना जाता है। सालासर बाला जी खाटू श्याम जी से 105 किमी की दूरी पर जयपुर - बीकानेर मार्ग पर स्थित है।
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लक्ष्मण द्वार, सालासर |
गूगल आंटी से मार्ग निर्देशन लिय कुछ किमी तक तो सिंगल और धुमावदार रोड होने से धीरे चलना पड रहा था।सीकर से हाई-वे मिलने पर गाडी की स्पीड बढ गई। लक्ष्मणगढ के पास ही सालासर धाम विकास समिती द्वारा निर्मित श्री लक्ष्मण द्वार बनाया गया है। यहां से 30 किमी की दूरी पर सालासर धाम में विराजित हैं दाढी मूंछ धारण किये हुऐ बाला जी का भव्य स्वरूप। |
श्री सालासर बाला जी की कथा कुछ ऐसी है कि सालासर के असोटा ग्राम में एक जाट किसान अपने खेत की जुताई में तल्लीन था। अचानक हल सें कोई चीज टकराई , वह कुछ देर रुक कर फिर हल चलाने की कोशिश करने लगा किंतु हल तो नहीं चला अपितु वहां से आवाज आई। तब तक किसान कि पत्नि भोजन लेकर आ गई थी। उस स्थान की खुदाई करने पर वहां दो मुर्तियां मिली। पत्नि ने मुर्तियों को साडी के पल्लू से पोंछ कर साफ किया तब पता चला कि ये मुर्तियां तो बाला जी की है। किसान ने पत्नि के साथ पुजन अर्चन कर घर से लाये चूरमें का भोग लगाया। और गांव के ठाकुर साहब को इसकी सूचना दी।
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हनुमान जी, सालासर |
बाला जी का पूजन कर एक मूर्ति को सालासर और दुसरी मूर्ति को यहां से 23 किमी नागौर जिले में स्थापित किया। इधर सालासर में उसी दिन हनुमान जी ने अपने परम भक्त बाल ब्रह्मचारी मोहन दास जी को स्वप्न में दर्शन देकर असोटा में प्रकट होने कि बात बताई और कहा कि मूर्ति को यहां लाकर स्थापित करो। मोहन दास जी ने स्वप्न की बात का जिक्र कर ठाकुर साहब को संदेश भेजा। ठाकुर साहब आश्चर्य चकित हो गये उन्हे भी इसी तरह का स्वप्न आया था। वे विचार करने लगे कि ये कैसे संभव है। तब उन्होने मोहन दास जी को मूर्तियों को ले जाने के लिये कहा। मोहन दास जी दो बैलगाड़ियां लेकर असोटा पहूंचे। वहां मूर्तियों पाबोलाम (जसवंतगढ़ ) के लिये रवाना किया। सुबह जसवंतगढ़ में और शाम को सालासर में एक ही दिन श्रावण शुक्ल पक्ष नवमी संवत 1811 शनिवार को दोनों स्थानों पर स्थापित किया गया। जिस बैलगाड़ी से सालासर मूर्ति ला रहे थे। वह एक स्थान पर रुक गई ।वहीं पर आज का मंदिर बना हुआ है। इस मंदिर के निर्माण में दो मुस्लिम कारीगर फतेहपुर के नूर मोहम्मद और दाऊ का विशेष योगदान रहा है।
मंदिर कि देखरेख मोहन दास जी ट्रस्ट द्वारा उनके भांजों के वंशज करते आ रहे हैं।
मंदिर में आज भी दो बैलगाड़ियां खडी रहती है।
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श्री बालाजी धाम, सालासर |
यहां पर मोहन दास जी द्वारा प्रज्वलित धुना आज भी जाग्रत है। भक्त लोग इसकी राख धारण करते है। पास ही वृक्ष पर सैकडों पक्षियों का डेरा है।, मंदिर में पिछले 8 सालों से निरंतर रामायण पाठ और 20 वर्षो से हरि कीर्तन राम धुन जारी है।
यहां पर संत मोहन दास जी और कनिदादी के पैरों के निशान और समाधि स्थल की। पुजा होती है व आगंतुक यहां श्रद्धा से नमन करते है
सालासर के आस पास अन्य दर्शनिय स्थल
1. अंजनी माता मंदिर
2. जमवाय माता मंदिर
3. चांदपोल मंदिर
4. त्रि पति बालाजी
5. हरीराम बाबा मंदिर
6. शयनन माता मंदिर
करीब 1100 वर्ष पुराना यह मंदिर सालासर से 15 किमी दूर रेगिस्तान में पहाडीं पर स्थित है।
सालासर में एक टैंक भी रखा हुआ है। पर्यटक यहां फोटोग्राफी का आनंद लेते है। हमने भी इसका आनंद लिया और टैंक को करीब से देखा।
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श्री बालाजी धाम, सालासर |
हनुमान जयंती , चैत्र शुक्ल व अश्विन शुक्ल पूर्णिमा को भव्य मेले का आयोजन होता है। बहुत दूर दूर से श्रद्धालू दर्शन को आते है।
यहां ठहरने के लिये धर्मशालाऐं व होटलें हैं। तथा खाने के लिये भोजनालय की उत्तम व्यवस्था है। समय समय पर भंडारों का भी आयोजन होता रहता है
कैसे पहूंचे --
जयपुर -बीकानेर राजमार्ग पर स्थित है।
सीकर -57
सुजानगढ-24
लक्ष्मणगढ-30
पिलानी-140
बीकानेर-178 किमी
जयपुर और बीकानेर
शाम के पांच बजे हम लोगों ने वापसी का सफर शुरु किया।लग रहा था रास्ते में कहीं रुकना पड़ेगा।
चलिये फिर मिलते है। एक नये सफर में तब तक के लिये अलविदा और हां आपका कोई सुझाव हो तो अवश्य दें
जय श्री कृष्ण
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खाटू श्याम जी |
प्रतिवर्ष अनुसार इस बार भी सांवलिया सेठ के दर्शन करने मंडफिया गये थे। रात वहीं रुके। अगले दिन सुबह दर्शन करके वापस पार्किंग की ओर जा रहे थे।तभी सामने होटल में गर्मा गर्म नाश्ता पोहे कचोरी बनते देख कर रुक गये। हल्की हल्की ठंड होने से गुंन गुंनी धूप अच्छी लग रही थी। सो हम लोग होटल में बाहर कुर्सियों पर ही बैठे गये और नाश्ते का आर्डर दे अगली यात्रा की चर्चा करने लगे।
नाश्ता करने के बाद वत्सल ने कहा नाना जी क्यों न खाटू श्याम जी चला जाय।
सभी की सहमति बनी और खाटू श्याम जी की ओर चल दिये। रास्ते में गूगल मैप की मदद से पता चला करीब 390 किमी है।
वत्सल ने अगली फर्माइश कर दी कि नाना जी , खाटू श्याम जी की कहानी सुनाओं। चलिये हम आपको भी प्रचलित कथा के बारे में बतातें है।
यह कहानी धटोत्कच और दैत्य राज मूर की पुत्री मोरवी के पुत्र तथा भीम के पौत्र बर्बरीक की है। बचपन में ही कठोर तपस्या कर भगवान शिव और मां आदिशक्ति को प्रसन्न कर आशिर्वाद स्वरुप दो वर प्राप्त किये थे।
1. प्रभु दर्शन
2. निर्बल और असहाय लौगो की रक्षार्थ शक्ति
तब भगवान शिव और आदि शक्ति मां ने दर्शन देकर तीन बाण प्रदान किये। और उन तीनों कि विशेषता बताई।
1. पहला बाण युध्द भूमि में जिनका वध करना चाहोगे उन सब पर मृत्यु चिन्ह अंकित कर देगा।
2. दुसरा बाण सभी चिन्हितों का वध कर देगा।
3. तीसरा बाण समस्त संसार का विनाश कर देगा और वापस तुणीर में आ जायेगा।
किन्तु ये सब मानवता की भलाई के लिये ही उपयोग करना। साथ ही कमजोर और हारने वाले की सहायता करना।
तीनों बाणों की शक्ति और अग्निदेव द्वारा प्रदान धनुष के कारण बर्बरिक बहुत शक्ति सम्पन्न हो गये थे।
महाभारत युद्ध के समय बर्बरिक को भी उसमें हिस्सा लेने कि इच्छा हुई और वह मां से युद्ध में भाग लेने के लिये अनुमति लेने गये। मां ने आशिर्वाद देकर एक वचन लिया कि युद्ध में सभी तुम्हारे रिश्तेदार है किन्तु जो हार रहा हो तुम हारने वाले का साथ देना। तभी से इनका एक नाम
बर्बरिक अपने नीले धोडे पर सवार हो युध्द भूमि की ओर चल दिये। रास्ते में इनकी मुलाकात ब्राह्मण वेशधारी श्री कृष्ण जी से हुई। चर्चा में बर्बरिक ने अपना परिचय देकर कहा युद्ध में भाग लेने जा रहा हूं। तब ब्राह्मण वेशधारी श्री कृष्ण जी ने उपहास उडाते हुऐ कहा बिना अस्त्र शस्त्र और सेना के युद्ध कैसे लडोगे। इस पर बर्बरिक ने भगवान शिव और मां आदिशक्ति से प्राप्त तीन बांणों के बारे में बताया और कहा कि कुछ ही पलों में युद्ध समाप्त कर सकता हूं।तब श्री कृष्ण जी ने बाणों की सत्यता को प्रमाणित करने के लिये कहा।
बर्बरिक ने सामने पीपल के वृक्ष को निशाने पर रख कर कहा इसके सभी पत्ते मेरे निशाने पर है। वह बांण प्रत्यंचा पर चढा कर प्रार्थना करने लगा। तभी श्री कृष्ण जी ने एक पत्ता चुपके से अपने पैर के नीचे छिपा लिया। जैसे ही बर्बरिक ने बांण छोडा वृक्ष के सभी पत्तों पर क्षणभर में चिन्ह अंकित हो गये और बांण श्री कृष्ण जी के पैरों के चक्कर लगाने लगा। अब बर्बरिक ने श्री कृष्ण जी से प्रार्थना कर कहा आप अपना पैर हटा लें अन्यथा यह आपके पैरो को क्षति पहूंचा देगा।
श्री कृष्ण जी यह सब देख सोचने लगे कि कौरवों की हार तो निश्चित है और मां के वचनों में बंधा बर्बरिक इसे एक क्षण में जीत में बदल देगा।। इससे इस धर्म युद्ध में अधर्म की जीत हो जायेगी।
उस समय श्री कृष्ण जी ने बर्बरिक से विश्राम के लिये साथ चलने को कहा। किन्तु प्रण अनुसार बर्बरिक ने वहीं रुकने का निवेदन किया।अगले दिन श्री कृष्ण जी और अर्जुन बर्बरिक से मिले और कहा वत्स आज शुक्ल फाल्गुनी द्वादशी है। कल से युद्ध आरंभ हो जायेगा किन्तु इसके पूर्व रंणचंडी काली एक महाबलशाली यौद्धा की बली मांग रही है। और हम तीनों के अलावा इस योग्य कोई नहीं।
अर्जुन ने अपने आप को प्रस्तुत किया। इस पर श्री कृष्ण जी ने कहा यह संभव नहीं । इस धर्म युद्ध में सभी पाडंवों का जीवित रहना आवश्यक है। तब श्री कृष्ण जी कहने लगे मैं ही अपनी बली देता हूं।
बर्बरिक श्री कृष्ण को गुरु कहते थे। अतः उन्होने कहा शिष्य के रहते यह संभव नहीं। मैं अपना शीश देता हूं कहकर एक ही क्षण में तलवार से अपना शीश काटकर श्री कृष्ण जी के हाथों में दे दिया। यहां ये ॥ शीश दानी॥ के नाम से विख्यात हुऐ।
यह सब देख सभी पांडव विलाप करने लगे और श्री कृष्ण जी को इसका दोषी मानने लगे।
उसी समय आदिशक्ति ने प्रगट हो आकाशवाणी द्वारा बर्बरिक के पूर्व जन्म में ब्रह्मदेव से धमंड कर शापित होने की बात बतायी और निवार्णार्थ जब पृथ्वी पर धर्म युद्ध होगा उसी समय इन्हे श्री कृष्ण द्वारा मोक्ष प्राप्त होगा। वे ही इनकी मृत्यु का कारण बनेगें। इसमें इनका कोई दोष नहीं।यह सुन सभी पांडव लज्जित हो क्षमा मांगने लगे।
श्री कृष्ण जी ने मां आदिशक्ति से वर मांगा और कहा कि हे देवी यह शीश एक भक्त का है। जिसने धर्म की रक्षार्थ निस्वार्थ भाव से दान किया है। इसे अमृत से सींच कर अमर कर दो। तब मां आदिशक्ति ने तथास्तु कह शीश को पूर्नजीवित कर दिया । श्री कृष्ण जी ने बर्बरिक को किर्तीमान भवः का आशिर्वाद दिया और अपनी सभी शक्तियां प्रदान कर नया नाम श्याम दिया। साथ ही उनकी इच्छा पुछी।
बर्बरिक ने अपनी दो इच्छा जाहिर करी।
दोनों इच्छाओं को स्वीकार कर उनके शीश को कुरुक्षेत्र के पास एक पहाडी पर सम्मान पूर्वक स्थापित किया।
महाभारत का युद्ध हुआ और परिणामस्वरुप पांडव जीते किंतु जीत के श्रेय के लिये आपस में विवाद होने लगा। तब सभी श्री कृष्ण जी के पास गये।
श्री कृष्ण जी ने कहा कि इस युद्ध का एक साक्षी है। जिन्होने सम्पूर्ण युद्ध देखा है। वहीं बता सकते है। व उचित निर्णय दे सकते है। सभी बर्बरिक के शीश के पास जाकर यह जानना चाहा कि इस विजय श्री का असली हकदार कौन है। बर्बरिक ने सभी पांडवो की गलतीयां बताई। उन्होनें कहा धर्मराज युधिष्ठिर ने असत्य का सहारा ले द्रोणाचार्य का वध किया। दादा श्री भीम ने गदा नियमों का उलंधन कर दुर्योधन को मृत्यु के धाट उतारा और गांडीवधारी अर्जुन ने पहले तो युद्ध पूर्व ही धनुष बांण रख दिये थे। फिर शीखंडी का सहारा ले पितामह भीष्म को सर शय्या पर लेटा दिया और दादा कर्ण से बचने के लिये पिता धटोत्कच की आहुती दे दी। इस युद्ध के महानायक तो श्री कृष्ण और उनका सुदर्शन चक्र ही थे। यत्र तत्र सर्वत्र श्री कृष्ण ही दिखाई दे रहे थे। यह सुन सभी पांडवों ने क्षमा मांगी।
श्री कृष्ण ने बर्बरिक को आषिश दे कहा कलयुग में तुम मेरे नाम से ही पुजित होवोगे।
खटवांग राजा बडा धर्म परायण और मानव सेवी था। उसके यहां एक बहुत बडी गौ शाला थी। प्रतिदिन सेवक लौग गायों को चराने पास के ग्राम खाटू ले जाते थे। जहां अकसर गायें झुंड में ही विचरण करती थी। किन्तु उन्में से राधा नाम की गाय सबसे अलग दूर एक पहाडी स्थान पर जाती थी। और अपना सारा दुध उस स्थान पर स्वतःही चढा कर वापस आ जाती थी। एक रोज सेवक ने अलग जाते हुऐ और दुध चढाते हुऐ देख लिया। अब सेवक उस पर नजर रख कर कुछ दिन यह सब देखता रहा। जब उसे विश्वास हो गया तो सारी धटना की जानकारी गौ शाला प्रधान को दी। उन्होनें भी हकिकत देख राजा को सारी धटना कि जानकारी दी। आश्चर्य होने से राजा स्वंयम आये और यकिन होने पर पास ही हनुमान मंदिर में पुजा अर्चना करवा कर उस स्थान की खुदाई करवायी। खुदाई वाले स्थान जिसे आज श्याम कुंड के नाम से जानते है। वहां से श्याम बाबा का शीश शालीग्राम विग्रह रुप में मिला था। आज उसी शालीग्राम विग्रह की पूजा अर्चना की जाती है। खाटू श्याम जी का मंदिर 1027 ई. में रुपसिंह चौहान और उनकी पत्नि नर्मदा कवंर ने बनवाया था। शीश रुपी विग्रह को कार्तिक मास की एकादशी को मंदिर में स्थापित किया था। कालांतर में मारवाड के दीवान अभय सिंह जी ने 1720 ई. में मंदिर का जीर्णोध्दार करवाया था। यहां पर प्रतिवर्ष फाल्गुन माह में मेले का आयोजन होता है।
कहते है सच्चे मन से श्याम बाबा को याद करो तो अवश्य ही कृपा होती हे।
जय श्याम बाबा की।
रास्ते में अत्यधिक डायवर्शन के कारण देर होने से सीधे जयपुर ही पहूंचे। रात जयपुर में ही रुके। अगली सुबह जल्दी ही खाटू श्याम जी के लिये चल दिये। यहां से मात्र 70 किमी है और रोड भी बहुत अच्छी होने से हम लोग 9.00 बजे पहूंच गये।
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श्री खाटू श्याम जी |
हम से एक बडी गलती हो गई थी। बिना रजिस्ट्रेशन के ही पहूंच गये थे। इसलिये श्याम बाबा के दर्शनों से वंचित रहे। कोरोना काल होने से सभी जगहों पर रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है। आप भी यदि दर्शनों के लिये जा रहे है तो वेब साईट पर एक नजर अवश्य डाल लें।
यहां रुकने के लिये बहुत सी धर्मशालाऐं और हर श्रेणी की होटलें हैं।
भोजन के लिये भी होटल , रेस्टोरेंट है।
1.यदि आप ट्रेन से जा रहे है। तो जयपुर से रींगस के लिये ट्रेन बदलनी होगी। रींगस से 16 किमी सडक मार्ग की यात्रा बस अथवा टेक्सी से करनी होती है।
जयपुर से 80 किमी बस ,टेक्सी सुविधा उपलब्ध है।
अजमेर से 175 किमी बस अथवा टेक्सी सुविधा उपलब्ध है।
3. सबसे निकट का एयरपोर्ट जयपुर है।
सभी को भुख लग रही थी। सो पहले पेट पूजा फिर काम दूजा। निकट की एक होटल में भोजन कर सालासर हनुमान जी के दर्शनों के लिये चल दिये। आप सबसे अब वहीं मुलाकात होगी।