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एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा पार्ट-3


एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा  पार्ट-3

          

हमारी एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा के रूट चार्ट के अनुसार अगला पाइंट पोखरा था। खुबसूरत पहाड़ों और झील से घिरे शहर की अद्भुत सुंदरता बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती है। 


एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा  पार्ट-3
गुप्तेश्वर महादेव, पोखरा 

 हमें सेतीबेणी से वापसी में शाम हो गई थी। रात संत जी के निवास पर ही रूके। अगले दिन सुबह जल्दी ही नेपाल के प्रसिद्ध शहर और झीलों की नगरी ..
पोखरा की ओर जाना था

दो दिन की मालुंगा यात्रा अविस्मरणीय रही। सुबह सभी लोग अगले सफर की तैयारी में लग गये थे। संत जी से मार्ग की सारी जानकारी प्राप्त करके हम अगला कार्यक्रम तय करने मे लगे थे। तभी ग्राम में एक जगह से चाय नाश्ते के लिये आमंत्रण आया। अतः आग्रह स्वीकार कर के सब उनके घर  गये। वहां हमारा बहुत ही आत्मिक स्वागत हुआ। 

करीब 9.30 बजे संत जी से विदा ले पोखरा कि ओर चल दिये। पहाड़ी मार्ग पर सडक नागिन सी बल खाती हुई , एक पहाड़ी से दुसरी पहाड़ी तक ,कभी उपर कभी नीचे बहुत ही रोमांचक लग रही थी। इन सब के बीच खुबसुरत नजारे सफर को और खुशनुमा बना रहे थे। हम लोग  कभी कभी रूक कर खुबसुरत दृश्यों को भी , चिरस्मृति में संजोने के लिये , अपने अपने मोबाइलों में कैद कर रहे थे। नेपाल यात्रा के हमारे अगले रूट चार्ट में जगत्रदेवी , गलकोट ,  कमलाती ,वालिंग ,पुतलीबाजार और फेदी खोला होते हुऐ पोखरा शहर था। करीब 98 किमी सिद्धार्थ राजमार्ग का सफर तय करके 1.00 बजे हम पोखरा पहुंचे। यहां पर भी संत जी की कृपा रही और एक परिचीत ने हमें शहर घूमने में मदद की। उन सज्जन के कारण ऐसा लगा ही नहीं की हम अपरिचित स्थान पर घूम रहे हैं। 

बस एक ही बात का अफसोस रहा कि काश ऐसे स्थान पर आने के लिये , कम से कम दो से तीन दिन होने ही चाहिये। इतनी खुबसुरत जगह आने पर जल्दी जाने का मन नहीं कर रहा था। यहां के मनमोहक दृश्य और बहुत से दर्शनीय स्थलों की सैर यादगार अनुभव रहा। और हां यहां से प्रसिद्ध तीर्थ स्थल मुक्तिनाथ जाने का भी मार्ग है। 


पोखरा के मुख्य पर्यटन स्थल :.     

 1.  फेवा लेक
2.   गुडे लेक
3.   बेगनास लेक
4.   मेंडी लेक
5.   रूपा लेक
6.   दिपांग् लेक
7.   नियुरेनी लेक
8.   खास्टे लेक
9.   पोखरा लेक
10.  डेविस फाल
11.   राम मंदिर
12.  भीमसेन मंदिर
13.  भद्रकाली मंदिर
14.  ढोर वाराही मंदिर
15.  श्री विंधेश्वरी मंदिर
16.  ताल बाराही मंदिर
17.  गुप्तेश्वर महादेव
18.  गुंबा मानेसट्री 
19.  श्री उरगेन छोलिंग बौद्ध मोनेसट्री 
20.   जंगचूब छोलिंग मोनेसट्री
21.    माटेपानी गुंबा
22.    पेमा  साक्य मोनेसट्री
          इंस्टीटयूट
23.    अन्नपूर्णा तितली म्युझियम 
24.    रीजनल म्युझियम 
25.    अन्तरराष्ट्रीय पर्वतीय म्युझियम
26.    गोरखा स्मारक म्युझियम 
27.    मितेरी पार्क
28.     चच्वी पार्क
29.     बसुंधरा पार्क
30.     होली पार्क
31.     पोखरा प्लेनेटेरियम एंड
          साईंस सेंटर 
          ( मिरर माजे हाऊस)
32.     वर्ल्ड पीस पगोड़ा
33.     तुतुंगा व्यूह पाईंट
34.     महेन्द्र गुफा
35.     चमेरे गुफा
36.     सेती नदी धाटी
37.     के आई सिंह पुल
38.     जि एन रेकी ध्यान केन्द्र


एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा  पार्ट-3
ताल वाराही मंदिर, पोखरा 

इसके अतिरिक्त कई जगह माऊंटेनिंग व   रिवर राफ्टिंग के लिये भी कैप है। 

एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा  पार्ट-3
पोखरा लेक, पोखरा

यहां पर   मनोरंजन और रोमांच का मिला जुला आनंद मिलता है। 

एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा  पार्ट-3
पोखरा लेक बोटिंग पाइंट 

पोखरा  आने का सही समय:- 

 पोखरा में  दिसंबर और जनवरी में सबसे ज्यादा ठंड रहती है। और मई से अगस्त के माह तक बारिश का मौसम रहता है इसलिये सबसे अनुकुल समय मार्च-अप्रेल और सितंबर से नवम्बर 

पोखरा कैसे जाये:-

हवाई मार्ग :- पोखरा एयरपोर्ट है 

सडक मार्ग :-  काठमांडू से कार ,बस सेवा उपलब्ध 
यदि निजी वाहन से जा रहे है। तो बुटवल से सीधा मार्ग है। जगत्रदेवी वालिंग होते हुऐ।

गुप्तेश्वर महादेव घूमने के बाद .हमारे गाईड महोदय ने हाई-वे लिंक रोड पहुंचाकर बिदा ली। हम सबको दिन भर की भागदौड़ के बाद अब भुख सता रही थी। एक दो जगह होटलों में भी गये। किंतु नान वेज की वजह से बात नहीं बनी।  धीरे धीरे ठंड भी बढती जा रही थी। अत्यधिक थकान होने से खाना बनाने का भी मन नहीं कर रहा था। आखिर एक जगह शुद्ध शाकाहारी होटल मिल ही गई। 
खाना खाकर शाम करीब 6.30 बजे काठमांडू की ओर चले।  205 किमी का सफर था। उस पर बहुत ही व्यस्त राज मार्ग।  धीरे धीरे हमारी कार की रफ्तार बढने लगी थी फिर काठमांडू पहुंचने में 4/5 धंटे का समय तो लगेगा ही। 



एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा  पार्ट-3
गुप्तेश्वर महादेव,पोखरा


रात 11.00 बजे काठमांडू से 10 किमी पहले एक ग्राम में मार्ग की जानकारी के लिये रूके । मगर कोई भी व्यक्ति नहीं मिला। अब असमंजस की स्थिती बन रही थी। किधर जायें कोई संकेतक भी नहीं लगा था। अंदाजन ही चल रहे थे। तभी एक सुनसान स्थान पर दो तीन लोग खडे मिले। हमने उनसे जानकारी लेने के लिये कार रोकी किंतु खतरे का अहसास होते ही कार की रफ्तार बढ़ानी दी। करीब 5 किमी चलने के बाद एक वाहन दिखाई दिया उसके सहारे काठमांडू पहुंचे। चलिये अगले अंक में काठमांडू की सैर करेगें।



                                                                                
                                                                                  जय श्री कृष्ण












एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा पार्ट-2

                              राधे राधे मित्रों

आज हमारी एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा पार्ट-2 की शुरूआत हो रही है। इस पार्ट मे हम यात्रा करेगें।........

 सेतीबेणी की जहां संसार की सबसे बडी शालीग्राम शिला है। 

 

एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा पार्ट-2
सेतीबेणी, नेपाल 

मालुंगा नेपाल की पहाडीयों के बीच बसा हुआ है। चारों ओर हरियाली,ऊंचे ऊंचे पहाड और मैदानी इलाके में बस्ती, एक तरफ बहती हुई विशाल काली गण्डकी नदी, ऐसा लग रहा था कि , पोस्टर पर उतारी हुई कोई खुबसुरत पेंटिंग हो। कल आस पास के पर्यटन स्थलों पर घूमने गये थे। प्रकृति को इतने नजदीक से देख कर भाव विभोर हो गये।  शाम को संत जी के निवास पर कुछ धार्मिक परिचर्चा भी हुई। संत जी ने बताया कि यहां से थोडी दूरी पर सेतीबेणी नामक स्थान पर संसार की सबसे बडी शालीग्राम शिला है। कहते है कि इस नदी में ही कुछ इस तरह कि शिलाऐं मिलती है जिन पर स्वतः ही कि आकृति उभर आती है व और भी कुछ पहचान है जो कि कोई जानकार ही बता सकता है। खैर हम सब ने वहां जाने का मन बना लिया था। वैसे भी उस स्थान पर स्थानीय लोग ही ज्यादा जाते है। 

संत श्री शिवांश महाराज 

अगले दिन सुबह भोजन के बाद संत जी के साथ सेतीबेणी जाने का कार्यक्रम बना। हम लोग कार से 85 किमी दुर  हर्मिचौर की तरफ चल दिये। पहाड़ी व अधिकतर चढाई वाला मार्ग होने से करीब दो धंटे का वक्त लगा। हर्मिचौर में एक जल विधुत ईकाई है


हर्मिचौर बोट स्टाप


श्री शिवांस महाराज जी हमारा इतंजार कर रहे थे। वे स्वयंम ही डैम स्थल तक हमे लेने आये। महाराज जी से मिलकर बडी प्रसन्नता हुई। उनका निवास पास ही एक मंदिर में है।  यह मंदिर डैम स्थल से थोडा दुर जंगल के रास्ते पगडंडी वाले मार्ग पर है। शिवांस महाराज इस जगह अकेले ही रहते है। यहां तो दिन में भी दूर दूर तक कोई दिखाई नहीं दे रहा था। शायद भक्ति का मार्ग ही ऐसा है। सभी सांसारिक मोह बंधन से दुर रहकर एकांत में प्रभु अराधना करना।                                               

मंदिर जाने के लिये डैम के पास से ही रास्ता है। अतः हमने महाराज जी से डैम स्थल घूमाने का अनुरोध किया। इस पर उन्होने स्थानीय अधिकारी से इजाजत लेकर डैम दिखवाया।  डैम के आस पास का नजारा बहुत सुंदर था। 
शिवांस महाराज जी ने मंदिर में हम लोगों के लिये स्वल्पाहार का प्रबंध करवाया था। इस दौरान धार्मिक चर्चा भी हुई।  स्वामी जी ने आशिर्वाद स्वरूप हम सब को एक एक रूद्राक्ष और शालीग्राम जी दिये। जल्द ही यहां से विदा लेकर बोट- स्टाप की ओर चल दिये। सेती बेणी जाने के लिये मोटर बोट से तकरीबन 50 मिनट का समय लगता है। 


सेतीबेणी जल मार्ग, नेपाल 

दोंनो और बहुत ऊंची ऊंची पहाड़ियां बीच में जल मार्ग दुर से देखने पर लगेगा ही नहीं की आगे कोई मार्ग है। मोटर बोट अपनी रफ्तार से दौड़ रही थी। और उसका शोर भी पहाडीयों से प्रतिध्वनित होकर इतना ज्यादा हो रहा था। कि पास बैठे साथी की आवाज भी साफ नहीं सुन पा रहे थे। आखिर 50 मिनट का सफर थोडी असुविधा व रोमांच के साथ पुरा हुआ । बोट से उतरकर सेतीबेणी की ओर चल दिए।
छोटा सा गांव है। हम लोग इसकी मुख्य सडक जिसके दोनों ओर मकानों की श्रृंखला को पार करके शालीग्राम शिला के दर्शन करने गये। वास्तव में यह शिला  एक बडी सी चट्टान है। जिस पर स्यावभाविक रूप से बहुत सारे ओम उभरे है । 


विशाल शालिग्राम शिला,सेतीबेणी नेपाल

दर्शन कर हमें जल्द ही लौटना था। क्योंकि आखरी बोट के जाने का समय हो रहा था। यह पुरा सफर रोमांच से भरपुर था।

हम लोग करीब 9.00 बजे वापस मालुंगा आ पाये। यदि थोडा जल्दी आ जाते तो पोखरा के लिये चल देते। सभी लोग थक भी गये थे। अतः रूकना ही अच्छा रहा। चलिये नेपाल यात्रा पार्ट-3 में पुनः मुलाकात होगी। तब तक के लिये.......

                                                  ।। जय श्री कृष्ण ।।

एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा

                         जय श्री कृष्ण     

एक रोमांचक बजट यात्रा


एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा
पहाड़ों की सुबह


हमारे यहां गीता जयंती महोत्सव मनाया जाता है। इस महोत्सव में प्रति वर्ष एक संत के गीता जी पर प्रवचन होते है। इस कड़ी में नेपाल के संत श्री चैतन्य कृष्ण जी को आमंत्रित किया गया था। वे उज्जैन तक ट्रेन से पधारे थे। वहां से उन्हें लाने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ। रास्ते मे ज्ञान चर्चा के साथ नेपाल के बारे में भी बहुत कुछ जाना। 
महोत्सव के समापन पर संत जी हमें नेपाल आने के लिये आमंत्रित कर गये थे। 
सभी मित्रों के समक्ष नेपाल यात्रा का प्रस्ताव रखा गया। हम छः सदस्य तैयार हुऐ। सभी ने यात्रा के सभी पहलू पर विचार विमर्श किया। इसमें प्रमुख था। यात्रा मार्ग , वाहन , मार्ग में होने वाला व्यय , भोजन की व्यवस्था और किन किन जगहों पर रूकना है इत्यादि। अब सबसे मुख्य वह गाडी जिससे हमे यात्रा करनी थी। उसकी सर्विसिंग जरूरी थी । यह काम ड्राईवर भाई अंबाराम जी के जिम्मे किया गया। 

अगले दिन सुबह सामान गाडी में व्यवस्थित रखवाया। जिससे रास्ते में किसी तरह की परेशानी न हो। 11 बजे से सभी साथियों का इंतजार करते करते दोपहर करीब 2.30 बजे कहीं जाकर सफर शुरू हुआ। सभी में यात्रा का उत्साह चेहरे पर साफ झलक रहा था। 

हम लोग रात 8.00 बजे भोपाल पहुंचे। जनवरी महिने की रात्री में ठंड भी अच्छी खासी होती है। अतः रात भोपाल में माता जी के आश्रम में रूके। एक बडे से हाल में हम सब के रूकने की व्यवस्था कर दी गई थी। 
      

एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा
माता जी का आश्रम, भोपाल 


बाहर कड़ाके की  ठंड पड रही थी। कमरे में जाते ही सकून मिला। रात बहुत अच्छी निकली। अगले दिन सुबह जल्दी तैयार होना था। सो ठंडे पानी से ही स्नान करना पडा। कंपकपाते तैयार हो रहे थे। तभी आश्रम के सेवाभावी भक्त चाय ले आये। ठंड में चाय मिल जाये तो समझो नव जीवन मिला हो। 
सुबह 6.00 बजे हमारा सफर पुनः शुरू हुआ । आज का लक्ष्य 500 किमी दूर चित्रकूट था। हाईवे पर आते ही स्पीड पकड़ी किंतु बाहर ठंड ज्यादा थी और कांच बंद करो तो विंड स्क्रीन पर धुंध छाने लगती थी। आखिर एक तरफ के कांच थोडे नीचे करने पड़े। सूर्य देव के भी दर्शन नहीं हो पा रहे थे। रूकते चलते शाम 7.30 बजे चित्रकूट में प्रवेश किया। सबसे पहला काम, ठहरने की जगह का इंतजाम करना और उसके लिये थोडे से प्रयास में ही एक धर्मशाला में जगह मिल गई थी। जरूरी सामान गाडी से उतरवा कर भोजन बनाने का काम शुरू किया। इसके लिये सभी सदस्य सहायता करवाते थे। इस तरह की मेरी पहली यात्रा थी। जो बहुत कुछ नया सिखा रही थी

चित्रकूट 


अगले दिन हम लोग चित्रकूट घूमने निकले। यह वही चित्रकूट है जहां प्रभु श्रीराम जी ने चौदह वर्षो के वनवास में कुछ समय यही विश्राम किया था। 


एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा
नौका विहार, चित्रकूट 

मंदाकिनी नदी के दोनों ओर मंदिर बने है। नाव से सभी जगह दर्शन करने गये।



एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा
विशाल हनुमान जी की प्रतिमा
 
राम घाट पर जहां श्री राम जी स्नान ध्यान करते थे।और इसी नदी के किनारे भरत मिलाप भी हुआ था। चित्रकूट के पास जंगल में सती अनुसूईया का भी मंदिर है।

एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा
सती अनुसूईया मंदिर, चित्रकूट 

पास ही स्फटिक शीला पर मां सीता जी के चरण अंकित है।

एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा
स्फटिक शिला पर मां सीता के चरण चिन्ह 

चित्रकूट के पास हनुमान धारा और अन्य बहुत से दर्शनीय स्थल है।किंतु समयाभाव के चलते खास खास जगह पर ही जा सके। शाम हो गई थी अतः रात यही पर रूके। दुसरे दिन सुबह जल्दी ही सफर पर चल दिये। वैसे तो हमारा लक्ष्य गोरखपुर था। किंतु प्रयाग राज में कुंभ महोत्सव चल रहा था। सो कुंभ स्नान के लिये सर्व सम्मति बन गई । 135 किमी का सफर तय कर सुबह करीब 9.00 बजे प्रयागराज स्थित कुंभ मेले में  पहुंचे। बहुत भीड भाड लगी थी। किसी तरह मेले क्षेत्र में एक परिचीत पंडे के टेंट तक पहुंचे।   

एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा
त्रिवेणी संगम ,प्रयागराज 


अपना सामान टेंट मे रखकर नाव से त्रिवेणी संगम गये। संगम पर बहुत भीड भाड थी किंतु हमारे नाव वाले ने व्यवस्था करके स्नान ध्यान करवा दिया। वापसी तक वही नाव वाला हमारे साथ रहा।


एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा
बड़े हनुमान जी, प्रयागराज 


वापस आकर एक संत के यहां चल रहे भंडारे में भोजन प्रसादी ग्रहण की। कुंभ मेला स्थल के नजदीक हनुमान जी का प्रसिद्ध पुरातन मंदिर है।

 दोपहर 3.00 बजे हम लोग गोरखपुर के लिये चल दिये। बहुत भीड भाड होने से जगह जगह ट्रेफिक जाम की स्थिती बनी हुई  थी। हमारी गाडी बहुत ही कम गति से आगे बढ पा रही थी। बहुत मुश्किल से हाई वे तक पहुंच पाये थे। हाई वे का हाल भी बहुत अच्छा नहीं था। बहुत लंबी लाईन लगी हुई थी। तकरीबन 3 धंटे में जाम से निजात पाई। शाम 7.00 बजे फिर गाडी ने स्पीड पकड़ी। गोरखपुर का सफर 300 किमी का था। इस सारी जद्दोजहद में सभी लोग थक गये थे। अतः पुनः तरोताजा होने के लिये कहीं थोडा विश्राम और एक अदद चाय की तलब सता रही थी। कुछ किमी चलने पर एक होटल पर रूके। थोडा सुस्ताने के बाद चाय का आनंद लेकर वापस अपने सफर पर चल दिये।

रात करीब 11.00 बजे धुंध बढने लगी थी। मगर कुछ दुरी तक का दिखाई दे रहा था। मैने अंबु भाई से पुछा कि रूके या चले। वे बोले जब तक चल सकते है। चलेगें। मगर समय के साथ हालात और खराब हो रहे थे। दृश्यता अब और कम हो गई थीगाडी के सभी साईड इंडिकेटर चालू करके चलना पडा।  ऐसे में सडक के एक किनारे पर मैने नजरे गडा रखी थी। डर था कहीं नीचे न उतर जाये।  रात 2.50 बजे कोहरा बहुत धना होने से मजबूरन एक होटल पर रूकना ही पडा।   कुछ देर रूक कर हालात के बारे में जानकारी ली। स्थानीय व्यक्ति ने सलाह दी धीरे धीरे जा सकते हो गोरखपुर  की दूरी 20 किमी  है। एक बार फिर हिम्मत करके चल दिये। अब बहुत ही सावधानी से व धीरे धीरे गाडी चला रहे थे। 
आखिर सुबह 5.00 बजे गुरू गोरखनाथ मंदिर के पास वाली धर्मशाला पहुंचे। किंतु  धर्मशाला में भीड थी और कोई कमरा न मिलने पर बरामदे मे ही समय गुजारना पडा।
सुबह 8.00 बजे सोनाली बार्डर की तरफ चल दिये।  रास्ते में हमने अपने नेपाली मित्र देबाशीश भाई को फोन कर दिया था।  उन्होने हमें सोनाली बार्डर पर मिलने का कहा।

एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा
नेपाल प्रवेशद्वार, सोनाली बार्डर 

सोनाली बार्डर के एक ओर भारत व दुसरी ओर नेपाल का प्रवेश द्वार है। जिस देश में जाना हो वहां की कुछ कानूनी प्रक्रियाऐं पुर्ण करनी पड़ती है। हम लोगों ने नेपाल की सीमा पर पहुंच कर नेपाल का रोड टेक्स ,वहां की नंबर प्लेट व कुछ जरूरी खानापूर्ति करी। इस सब में हमें तीन धंटे का समय लगा साथ ही वहां की करेंसी एक्सचेंज करवाई ।और एक अति महत्वपूर्ण काम, एक मोबाईल चिप भी खरीद ली थी। बस एक और जरूरी औपचारिकता, रोड परमिट बनवाने के साथ ही पुरी हो गई।  हमारे मित्र देबाशीश भाई जी का विशेष आग्रह होने से उनके निवास स्थान तिलोत्तमा शहर में रूके। घर पर बहुत अच्छा सत्कार किया तथा उन्होने आगे के मार्ग के लिये हमें गाईड कर दिया।

एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा
परममित्र देबाशीश भाई, तिलोत्तमा

तिलोत्तमा से करीब 2.00 बजे  चले। हमारा अगला शहर बुटवल था । भारत से नेपाल का प्रवेश द्वार बुटवल शहर है। यह  तिनाउ नदी के किनारे बसा बहुत खुबसुरत शहर है। यहां से नेपाल के कई प्रमुख शहरों तक पहुंचा जा सकता है।

एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा
बुटवल शहर, नेपाल 

एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा
सिध्दबाबा मंदिर,बुटवल नेपाल 

इस शहर के पास ही पहाड़ी पर बना सिद्ध बाबा का मंदिर प्रमुख आस्था का केंद्र है। अतः हमारी भी आस्था और प्रबल होने से मंदिर दर्शन को चल दिये। जैसा सुना था। वाकई पहाड़ी पर बना बहुत सुंदर मंदिर था। आईये आपको भी दर्शन करवा देते है। 


एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा


एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा
सिध्दबाबा मंदिर, बुटवल नेपाल 

मंदिर पहाड़ी पर स्थित होने से दर्शन करने में करीब दो धंटे लग गये। उपर  एकांत में शिव धुन सुन कर मन  बहुत प्रसन्न हुआ।

शाम के 4.00 बजने वाले थे। और आगे का सफर पुरी तरह पहाड़ी मार्ग का था। आज हम लोगो को मालुंगा ,काली गण्डकी मार्ग तक पहुंचना था।  पहाड़ों में नेटवर्क न मिलने से गूगल देव असहाय थे। अब तो स्थानीय लोगो से जानकारी लेकर ही चलना पड रहा था। मुख्य मार्ग की हालत भी कुछ ठीक नहीं थी। अभी कुछ दुर ही चले थे। कि चेक पाईंऐट आ गया था। गाडी के कागज और मार्ग परमिट चेक किया गया। चेक पोस्ट के आफिसर का व्यवहार बहुत अच्छा था। उन्होने ही हमें आगे के रास्ते की जानकारी दी। पहली बार पहाड़ों में सफर कर रहे थे। ऊंचे नीचे टेढ़े मेढे रास्ते और दोनों ओर बडे बडे पहाड दूर से देखने में लग रहा था अगले पहाड के बाद रास्ता कहीं खो गया हो। उस पर स्थानीय वाहन चालकों की स्पीड कभी कभी डरा देती थी। एक बात पहाड़ों की बहुत अच्छी लगी कम से कम कोहरे की समस्या नहीं आ रही थी। किसी तरह पता करते करते आखिर रात 10.00 बजे मालुंगा पहुंचे।
श्री चैतन्य कृष्ण जी हमारा इंतजार ही कर रहे थे। आपका घर मेन रोड के पास में था। अतः कोई परेशानी नहीं हुई।  रात संत श्री चैतन्य कृष्ण जी के निवास पर ही हम लोगों के रूकने की व्यवस्था की गई ।

एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा
कालीगण्डकी नदी,मालुंगा नेपाल 

पहाड़ों की सुबह बहुत ही सुहावनी लग रही थी। ठंड के साथ सुर्य की किरणें, मानो हमें बुला रही हो ,यहां आओ प्रकृति के पास ,मैं अपने को रोक नही पाया जब तक सब तैयार होते बाहर का एक चक्कर लगा आया।  सुबह की ताजी हवा ने  मन प्रफुल्लित कर दिया था। हम सब संत श्री जी के साथ काली गण्डकी के किनारे स्थित मंदिर और शालीग्राम शिला के दर्शन के लिये चल दिये। नदी पर बने झुला पुल से पार करते वक्त बहुत डर लग रहा था। पुरा पुल ही हिल रहा था। आश्चर्य स्थानीय निवासी मोटर साईकिल से गुजर रहे थे। मालुंगा उत्तरवाहिनी काली गंडकी नदी के किनारे स्थित है। यह नेपाल की सबसे बडी नदी और सबसे लंबा मार्ग तय करती है।

एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा
                                                कालीगण्डकी नदी पर बना झुला पुल


एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा
शालिग्राम शिला, कालीगण्डकी,मालुंगा नेपाल 

काली गण्डकी नदी में स्व निर्मित ॐ चिन्ह के साथ शालीग्राम जी की मुर्तियां मिलती है। पास ही संत जी का एक आश्रम का कार्य होने वाला है । 

वहां पर भी गये।  संत जी ने नदी के पास बनने वाले इस आश्रम की रूपरेखा बताई। बहुत सुंदर जगह थी। एकांत ध्यान योग के लिये उत्तम स्थान।
हमें बताया गया कि कल हम लोग उस स्थान पर जायेंगें जहां विश्व की सबसे बडी शालीग्राम शिला है। आप सब भी अगले अंक में साथ रहियेगा। यह ब्लाग थोडा लंबा हो गया है

कल हमारी यात्रा सेतीबेणी और पोखरा शहर की ओर होगी ।

इसे भी देखें    khatu shyam ji 

                              क्रमशः--           


                                                                     जय श्री कृष्ण














  



   


  




चोटीला माता के दरबार में


                                                                         जय श्री कृष्ण सभी को                                   


चोटिल माता जी
चोटिल माता जी

 गुजरात दर्शन मे मोढेरा के सूर्य मंदिर और वहां की वास्तुकला ने मंत्रमुग्ध कर दिया। गुजरात दर्शन मे अगला मुकाम चोटीला माता जो कि 190 किमी दूर है । चाय नाश्ता करके रास्ते की जानकारी ली। सड़कें अच्छी होने से रास्ते मे कोई परेशानी नहीं हुई। शाम को हम लोग चोटीला पहुंच गये थे। मंदिर ऊंचाई पर होने से दर्शन के लिए अब सुबह जाने का फैसला किया। रात्रि विश्राम के लिए मंदिर संस्थान की बेहतरीन धर्मशाला बनी हुई है । वहीं पर एक कमरा लिया । मगर जब कमरे में गये तो लगा चार सदस्यों के लिए छोटा है। प्रबंधक महोदय को अपनी समस्या से अवगत कराने पर उन्होनें हमें नवनिर्मित भवन में बडा कमरा दे दिया। कमरे पर थोडा तरोताजा होकर घूमने के लिए बाजार कि ओर चल दिए। धर्मशाला के बाहर बहुत सारे रेस्टोरेंट हैं जहां भोजन की अच्छी व्यवस्था है। 

चोटीला माता जी
चोटीला माता के दरबार में


मंदिर दर्शन के लिए  सुबह जल्दी तैयार हुए  चूंकि मंदिर  दूर था इसलिए  धर्मशाला का कमरा छोड़कर गाडी अब हमें मंदिर के समीप बनी पार्किंग में जाना था। यहां से थोडा सा चलने पर एक बड़ा सा प्रवेशद्वार  बना हुआ है । यहीं  से सीढ़ियां शुरु होती हैं। चढाई देख माता जी से निवेदन किया कि आपको चलने मे तकलीफ़ आयेंगी आप यहीं रुके । मगर कहते है ना कि आस्था और विश्वास दृढ़ हो तो असंभव भी संभव हो जाता हैन जाने कौन सी शक्ति से प्रेरित होकर उन्होनें आधी चढाई बिना रुके ही तय कर ली।  ऊपर माता जी का भव्य मंदिर निहारते ही रह गये। दर्शन कर कुछ देर विश्राम किया। मंदिर प्रांगण में बैठना बहुत शकुन दे रहा था। हालांकि भीड़ तो थी फिर भी मन में अद्भुत शांति का अनुभव हो रहा था। पहाड़ी पर से आस पास का दृश्य बड़ा मनोहारी दिखाई दे रहा था । 



यह मंदिर राजकोट अहमदाबाद हाईवे पर पहाड़ी पर स्थित है।मंदिर मे प्रवेश के लिए तोरण द्वार से 635 सीढियां जो कि टीन शेड के कवर ढकी  है ।  चढकर जाना होता है।कई वर्ष पूर्व यह मंदिर बहुत छोटा था और पहुंच  मार्ग  बडा कठिन था।                                                                                                                 

चोटिल माता जी


पौराणिक कथानुसार मां ने चंड और मुंड नाम के दो राक्षसों का संहार किया था।तब से मां चामुण्डा नाम से विख्यात हुई मंदिर मे उपर है  पहाड़ी के आस पास के दृश्य बहुत खुबसुरत लगते है। प्रांगण के पास एक ओर बडा सा त्रिशुल बरबस ही ध्यान आकृष्ट करता है।                                                
इस मंदिर की विशेषता है कि शयन आरती के बाद पुजारी जी सहित सब लोग पहाड़ी से नीचे उतर आते है किसी को भी वहां रहने की इजाजत नहीं है, यह रहस्य आज भी बरकरार है।                                           
हमारी यह यात्रा कल जामनगर का अनोखा मुक्तिधाम की और चल दी। कहते है की यहाँ  पर विशेष रूप से देखने आते है। 
 
                                                                 

जय श्री कृष्ण 











मांडू की सैर (मांडव)

 मांडू की सैर (मांडव)


मांडू की सैर  (मांडव)
मांडव का रोड मैप 

बरसात होने से चारों ओर हरियाली छाई हुई थी। हर ओर उमंग आनंद कि लहरे हिलोरे ले रही थी। ऐसे में परिवार के सभी सदस्यों ने प्रोग्राम बनाया कहीं घूमने चला जाय। अब प्रश्न था। कहां चलें। विचार मंथन के बाद सर्व सम्मति से मांडव चलने का तय किया। क्योंकि यह स्थान ऐतिहासिक के साथ  पहाड़ी क्षेत्र में बहुत ही सुंदर रमणीय स्थल है।                           

सभी अपनी अपनी तैयारी में लग गये। और हो भी क्यो न , बहुत समय बाद परिवार के साथ कार्यक्रम बन रहा था। मौज मस्ती सैर सपाटा। शहर के भीड भाड भरे वातावरण से दूर सुरम्य पर्यटन स्थल पर जाने का। 

मांडव को करीब से देखना हो तो भीड वाले दिन को छोड़कर जाने में ही मजा आयेगा। रविवार और अन्य हाली डे पर  बहुत भीडभाड रहती है। अतः इन दिनों को छोड़कर प्रोग्राम बनाया।
सभी की राय से सोमवार का दिन तय हुआ। 
सुबह 6 बजे हम लोग इंदौर से मांडव के लिये रवाना हुऐ। वहां पहुंचने के दो मार्ग है । एक धार सिटी होकर, दुसरा मानपुर होकर, सो हमने दुसरा विकल्प चुना। 

रास्ते में चर्चा हुई कि जहां जा रहे है ।उसके इतिहास के बारे में थोडी बहुत जानकारी हो तो घूमने का आनंद दो गुना हो जाता है। तो चलिये। मांडवगढ़ का संक्षिप्त इतिहास जान लेते है।

भौगोलिक स्थिती  
मांडवगढ़ समुद्र तल से 633.7 मीटर ऊंचाई पर स्थित पहाड़ी पर बसा है। पश्चिम में विशिष्ट ऊंचाई लिये हुऐ सोनगढ़ के पर्वत है।पूर्व,पश्चिम और उत्तर की तरफ से गहरी तंगघाटी से घिरा होने के कारण मालवा के पठार से अलग हो जाता है।


मांडू की सैर  (मांडव)
कांकडा खोह,मांडव

एवम पूर्व की पहाड़ी के मध्य से एक गहरी तंग धाटी है। यह करीब 13 वर्ग किमी क्षेत्र में बसा है। वर्षा काल में यहां अनेक झरने जीवित हो जाते है। 
 इसे सिटी आफ ज्वाय के नाम से भी जाना जाता है।

इतिहास 

विक्रम संवत 612 (555 ई.) के संस्कृत अभिलेख के अनुसार मंडप दुर्ग में स्थित तारापुर के पाशर्वनाथ मंदिर मे चंद्र सिंह शाह नामक सौदागर ने भगवान आदिनाथ की मुर्ति स्थापित की थी। इतिहासकार खुसरों परवींज के अनुसार (590- 628 ई.) में आनंद देव राजपुत ने निर्माण करवाया था। 

छठी शताब्दी के मध्य  इसे मंडप दुर्ग नाम से जाना जाता था। इसके बाद तीन शताब्दी तक कोई पुख्ता उल्लेख नहीं मिले। दसवीं शताब्दी में यह दुर्ग कनौज के गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य की सीमा चौकी था।

वि.संवत 1003 (946 ई.) में सम्राट महेन्द्र पाल के अधीन था। दसवीं शताब्दी के अंत में परमार वंश के अधीन रहा। इनमे राजा मुंज ने मुंज तालाब का निर्माण करवाया। राजा भोज ने धार शहर को राजधानी बनाया तथा अपनी इष्ट वांग्देवी (सरस्वती देवी ) की प्रतिमा मांडवगढ़ में स्थापित करवाई।

सर्प बन्ध पर अंकित एक अभिलेख में वि.संवत् 1125 (1068 ई.) के अनुसार परमार राजा उदयादित्य के  अधीन भट्टारक देवेन्द्र देव  मांडू के सावंत थे। राजा उदयादित्य ने लोहानी गुफाओं और शैव मंदिर का निर्माण करवाया।  

1227 ई. में शम्मसुद्दीन अल्तमश ने विदिशा और उज्जैन को तो लूटा मगर मांडू राजा देवपाल से संधि कर ली। 1293 ई. में दिल्ली के सुलतान जल्लालुद्दीन ख़िलजी ने आक्रमण कर लूटपाट करी। 1305 ई. तक मांडू हिंन्दु   शासकों के अधीन रहा। 
अलाउद्दीन ख़िलजी  के सेनापति अइन-उल-मुल्क ने राजा महलक देव के सेनापति कोकदेव को आक्रमण कर मार दिया व गुप्तचर की सहायता से गुप्त मार्ग से दुर्ग में पहुंच कर राजा महलक देव की हत्या कर दी । इसके साथ हिंन्दु शासन का अंत हुआ।
मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में दिलावर खाँ गौरी मालवा का राज्यपाल बना। 1405 ई. में इसकी मृत्यु हो गई। इसने तारापुर  गेट और शाही क्षेत्र बनवाया।  
1405 ई. में होशंग शाह ने राज संभाला और 27 वर्ष तक राज किया। 

1435 ई. में होशंग शाह की मृत्यु के बाद पुत्र गज़नी खाॅं ने शासन संभाला। 1436 ई. में महमूद खाॅं ने गज़नी को जहर देकर मार दिया और शासन पर अधिकार कर लिया। 
खिलजी वंश के शासक महमूद शाह ने 33 वर्ष तक राज किया। 1469 ई. में महमूद की मृत्यु के बाद पुत्र गयासुद्दीन ने 31 वर्षो तक राज किया। पुत्र द्वारा जहर देने से मृत्यु हो गई।
नासिरूद्दीन ने 10 सालो तक शासन किया और तीव्र ज्वर के कारण मृत्यु हो गई। पुत्र महमूद द्वितीय ने शासन संभाला। राजपुत सरदार की बढती ताकत से वह भागकर मुज़फ्फर शाह द्वितीय की शरण गया  और फिर शासन पर अधिकार जमा लिया। किंतु मुज़फ्फर के उत्तराधिकारी बहादुर शाह से मित्रता नहीं बन पाई और 1526ई. में बहादुर शाह ने आक्रमण करके मांडवगढ़ पर अधिकार जमा लिया। 
1534 ई. में  हूमांयू ने युद्ध कर अपना अधिकार जमा लिया। 1536 ई. में कादिर शाह ने सिंहासन पर कब्जा कर लिया। 
1542 में शेरशाह का अधिकार हो गया ।
उसने शुजात खाँ को गवर्नर नियुक्त किया।
1554 ई. में शुजात खाँ कि मृत्यु के बाद सुलतान बाज़ बहादुर ने शासन संभाला। 

बा़ज बहादुर दुर्गावती के हाथो पराजित होकर संगीत साधना में लग गया ।इसी दौरान रानी रूपमती से प्रणय और विवाह किया। 
1561 ई. में अकबर के जनरल आदम खाँ से सारंगपुर के नजदीक पराजित होने पर बंदी बना लिया गया। रानी रूपमती दुश्मन के हाथों बंदी बनने से पहले हीरा निगल कर स्वाभीमान के कारण आत्म हत्या कर ली। 
1732 ई. में मराठों ने मुगल गवर्नर बहादुर को पराजित कर अपना अधिकार जमा लिया। तब से यह दुर्ग मराठों के अधीन रहा। 

कांकड़ खोह  (गहरी तंग धाटी)

इतिहास की चर्चा  करते करते हम काकड़ा खोह यानि बहुत गहरी तंग धाटी तक पहुंच गये थे। बरसात में 1200 फिट गहरी इस धाटी का सौंदर्य पूर्ण निखार पर आ गया था। नीचे देखने पर हरियाली और पेडों की लंबी श्रृंखला ने मानों जमीन को अपने आगोश में ले लिया हो।  हल्की रिमझिम बारिश से सफर का आनंद और बढ़ गया था।  सामने झरनों के तीव्र गति से धाटी में गिरने की ध्वनि और हल्की धुंध ने इस खुबसुरत नजारें को चार चांद लगा दिये थे। 
आगे गहरी खाई होने से सुरक्षा के लिये रेलिंग लगी थी। हम लोगो ने रेलिंग के पास से ही धाटी के अदभुत नजारों का लुफ्त लिया। 
यहां सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा अपना अलग ही अनुभव देता है।

 मांडू जीवाश्म पार्क           

इस पार्क में विलुप्त विशाल प्राणी डायनासोर के जीवाश्म रखे गये है। एक खोज अभियान के अन्तर्गत प्रकाशित समाचार के अनुसार धार जिले में मिले शाकाहारी और मांसाहारी डायनासोर और मगरमच्छ के जीवाश्म करीब 6500 से 10000 करोड वर्ष पुराने है। जिन्हे संग्रहित कर पार्क मे रखने का कार्य चल रहा है। यहां पर डायनासोर के अंडों के जीवाश्म रखे गये हैै। पार्क में विभिन्न डायनासोरों की आकृतियों व चित्रों के माध्यम से जानकारी देने का प्रयास किया जा रहा है। 

पार्क से अब हम लोग मांडव के लिये चल दिये। आगे पहाड़ी मार्ग घुमावदार होने के साथ कही कही सकरा भी है। मांडवगढ़ में प्रवेश करने के लिये पहला द्वार दिल्ली दरवाजा है। कहते है यहां की भौगौलिक स्थिती के मध्य नजर , किलेबंदी और प्रवेश द्वार के निर्माण से यह अभेध्य रहा।

मांडवगढ़ के बारह प्रमुख प्रवेश द्वार है। जिन्में से  दिल्ली दरवाजा, आलमगीर,भंगी दरवाजा,लोहानी दरवाजा,सोनपुर दरवाजा,तारापुर दरवाजा,भगवानीया दरवाजा,जहांगीर दरवाजा और राम गोपाल प्रमुख है

चलिये अब चलते है यहां के प्रमुख पर्यटन स्थलों पर 

 1. हिंडोला महल  :

इसकी दीवारें 77° के कोण पर झुकी हुई है। बाहर से ऐसा प्रतित होता है जैसे कोई झुला बंधा हो। इसकी बनावट अंग्रेजी अक्षर T  के आकार की है। इसमें बने कक्ष के दोनों ओर 6 मेहराब दार दरवाजे बने हुऐ है। सुलतान इसे दरबार-ए-खास के रूप में प्रयोग करता था। इसका निर्माण संभवतः 15 वीं शताब्धी में रहा होगा।

2. शाही महल और चंपा बावड़ी :

मुंज तालाब के पास ही एक महल बना हुआ है। महलों मे पहले पानी की प्रचुरता के लिये खाश इंतजाम किये जाते थे। यहां पर भी एक बावड़ी बनी हुई है। महल के नीचे बनी बावड़ी के तल तक जाता हुआ मार्ग आगे तहखाने नाम से प्रसिद्ध मेहराबदार कक्षों की भूल भूलैया में मिल जाता है। बावड़ी से महक आती थी इसलिये इसे चंपा बावड़ी नाम दिया गया था।
महल के मंडप की दीवारों को बावड़ी और मुंज तालाब के किनारों से  बडी कुशलता से जोडा गया है। जिससे गर्मीयों में भी ठंडी ठंडी वायु आती रहे जिससे कक्ष ठंडे बने रहे।

3. उजाला बावड़ी और अंधेरी बावड़ी :- 

जल स्त्रोत के दो कुऐं है एक खुला और दुसरा बंद है। दोनों मे नीचे तक जाने के लिये तोरण द्वार और सीढियां है। इसमें एक तरफ रहट लगी है तथा दुसरे किनारे जल सुरक्षा के लिये शाही पहरेदारों की चौकी। अंधेरी बावड़ी के उपर गलियारे में एक गुंबद बना है । जिससे हवा और प्रकाश अंदर तक जाता है।

4. गदा शाह का महल और दुकान :- 
 
शाही परिसर में दो भवन बने है। जो गदा शाह नामक प्रभावशाली व्यक्ति के है।

5. राम मंदिर :- 

भगवान राम को समर्पित यह मंदिर बहुत पुरातन है।

6. हाथी पोल :-

 नाहर झरोखे मे पहुंचने के पहले मुख्य प्रवेश द्वार पर हाथीयों की प्रतिमा लगी है। इसलिये इसे हाथी पोल नाम से जाना जाता है।

7. दिलावर खां की मस्जिद :-  

यह मस्जिद शाही परिवारों के लिये बनी थी। यह भारतीय इस्लामिक वास्तुकला के अनुरूप बनवाई गई है।

8. नाहर झरोखा :- 

मस्जिद के पास ही बाध की आकृति का एक झरोखा बना है। जहां आकर राजा अपनी प्रजा को दर्शन देता था।

9. जहाज महल:-  

 मूंज्ज और कपूर तालाब के मध्य बने इस महल की बनावट ऐसी है। मानो कोई जहाज लंगर डाले खडा हो। महल का आगे का भाग करीब 121 मी. और चौड़ाई 15.2 मी. है 

10. तवेली महल  :

  इस महल के नीचे वाले भाग में अश्वशाला थी और उपर पहरेदारों का आवास।

11. होशंग शाह का मकबरा :- 
 संगमरमर के गुंबद वाला मकबरा बना है।

 12. जाली महल  :-  

 सागर तालाब के उपर की तरफ पहाड़ी पर बना है। यह महल । पास ही इको पाईंट भी है।

13. रेवा कुंड  :-  

जल संचय के प्रमुख स्तोत्र के रूप में बनाया गये इस कुंड में नीचे तक सीढियां बनी हुई है। 

14. बाज बहादुर का महल  :- 

  पहाड़ी ढलान पर खुबसुरत वादियों के बीच महल के प्रवेश द्वार तक चालीस सीढियां चढ़ना पडती है। अंदर दोनों तरफ संतरियों के कमरे के सामने से गुजर कर महल के बाहरी प्रांगण में पहुंच जाते है। इसके चारों ओर कक्ष बने हुऐ है। तथा मध्य में एक सुंदर कुंड । महल की बनावट बहुत ही सुंदर बनी हुई है। छत पर दो सुंदर बिरादरियां बनी हुई है। जहां से आस पास के सुंदर नजारों को निहार सकते है।

15. रूपमति का मंडप   :-   

बाज बहादुर के महल के पीछे पहाड़ी के ऊंचे शिखर पर एक महल बना हुआ है।यह पहाड़ी ढलान 365.8 मी. की खडी चट्टान पर बनाया गया है। निचली मंजिल में आर पार छतों के सहारे मेहराबदार दरवाजे बने है। पश्चिम में एक बडा कुंड है। जिसमें मानसून के पानी को एकत्र करने के लिये नालियां बनी हई है। 
महल के उपर मण्डप बने है। जो कि नीचे से वर्गाकार और उपर अर्द्ध गोल गुंबद है।  रानी रूपमति यही से मां नर्मदा के दर्शन करती थी। कहते है कि रानी रूपमति प्रतिदिन मां नर्मदा नदी के दर्शनों के पश्चात ही भोजन ग्रहण करती थी। 
इस मंडप से मांडू की वादी और निमाड़ के मैदानी इलाकों के मनोहारी दृश्य बहुत खुबसुरत लगते है।


बाज बहादुर और रूपमति का प्रेम:-

रानी रूपमति बेहद खुबसुरत और एक अच्छी गायिका थी। जब बाजबहादुर ने इनके बारे में चर्चा सुनी तो उसने विवाह प्रस्ताव भेजा जिसे रूपमति ने अपने स्वजनों के हित के लिये स्वीकार कर लिया । आगे चलकर ये प्रणय अमर प्रेम बन गया।

16. नीलकंठ मंदिर :- 

धाटी के छोर पर बनाया गया यह मंदिर प्राकृतिक दृश्यों से परिपूर्ण है। मंदिर में जाने के लिये सीढियां बनाई गई है। नीचे उतरने के बाद मध्य में सुंदर कुंड के पास से होकर मंदिर में प्रवेश करते है। अंदर शिवलिंग पर अविरल जल की धारा बहती है। मंदिर के कक्ष  अर्द्ध गुंबदी है। यहां आकर परम शांति मिलती है। 

  1. अन्य दर्शनीय पर्यटन स्थलों में 
  2. अशर्फी महल
  3. जामी मस्जिद
  4. छप्पन महल
  5. लौहानी दरवाजा
  6. लौहानी गुफाऐं
  7. लाल बंगला
  8. दरिया खां का मकबरा
  9. लाल सराय
  10. मलिक मुधीर की मस्जिद
  11. दांई की छोटी बहन का महल
  12. दांई का महल प्रमुख है।

पर्यटन का सबसे अच्छा समय मानसून का है। चारों ओर हरियाली के साथ ही झरने सजीव हो उठते है।

यहां पहुंचने के लिये सडक मार्ग से इंन्दौर , धार ,महू ,धामनोद और रतलाम से सीधे पहुंचा जा सकता है।
निकटतम रेल्वे स्टेशन इन्दौर व महू है।

वायु मार्ग के लिये नजदीकी एयरपोर्ट इन्दौर है।  

ठहरने के लिये विश्राम गृह और बजट होटल उपलब्ध है। यहां का प्रसिद्ध भोजन दाल बाटी है। मांडू की इमली दूर दूर तक प्रसिद्ध है। कुछ विशेष मौसमी फल जैसी खिरनी व सीताफल भी मांडू क्षेत्र के प्रसिद्ध है।

पुरा दिन कैसे बीत गया पता ही नहीं चला ,दिन भर सबने बहुत आनंद लिया। सुबह सबने केवल नाश्ते से ही काम चलाया अब शाम को भुख सता रही थी । जल्द ही रेस्टोरेंट की ओर चल दिये।  प्रति वर्ष दिसंबर में मांडू उत्सव का आयोजन होता है। इसमे कई कलाकार भाग लेते है। कई तरह के खेल आयोजित होते है । करीब सप्ताह भर चलने वाले इस आयोजन मे बहुत गहमा गहमी रहती है।

मौका मिले तो मांडवगढ़ एक बार अवश्य आना चाहिये।  

                                                         जय श्री कृष्ण






          
  

     


पावागढ़ दर्शन

पावागढ़ दर्शन  

आज हम लोग गुजरात दर्शन श्रृंखला के अंतिम पडाव पावागढ़ दर्शन के लिये चल दिये। पिछले दो हफ्तों से गुजरात की संस्कृति वहां का खान पान, पहनावा और विभिन्न पर्यटन व धार्मिक स्थलों को बहुत नजदीक से देखने का अवसर मिला। कुल मिलाकर ये सफर अविस्मरणीय रहा। 

शाम 6 बजें डाकोर जी से चले। यहां से पावागढ़ की दूरी करीब 70 किमी है। रास्ते में चारों ओर हरियाली ने सफर को ओर खुशनुमा बना दिया था। हम लोग अपनी बातों में मशगूल थे। तभी सामने मैदान में बडी चहल पहल दिखाई दी। उत्सुकतावश रूक कर जानकारी निकाली तो पता चला कि यहां स्थानीय कालेज का वार्षिक महोत्सव है और बडे पैमाने पर गरबे का कार्यक्रम होने वाला है। जिज्ञासावश हम लोग भी कार्यक्रम देखने रूक गये। 

करीब आधे धंटे इंतजार के बाद गरबा शुरू हुआ। बहुत सारे युवक युवतियां पारंम्परिक वेशभुषा में नजर आ रहे थे। सामने स्टेज पर कुछ गायक कलाकार और म्यूजिशियन थे।  हर और उल्लास का वातावरण था। 
जैसे ही स्टेज़ से संगीत की धुन और गरबे गाने की शुरू आत हुई मैदान में युवक युवतियां गरबा नृत्य करने लगे। एक साथ लयबद्ध सबको नृत्य करते देख बहुत अच्छा लग रहा था। 

रात 11 बजे होटल पहुंचे। ठहरने के लिये हालोल में बहुत सारे बजट होटल तथा रेस्टोरेंट है। 
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सुबह पावागढ़ दर्शन के लिये चल दिये। यह गुजरात के पंचमहल जिले में चांपानेर के निकट पहाड़ी पर स्थित है। हालोल से 13 किमी दूर 1471 फीट की ऊंचाई पर मांची हवेली तक वाहन जाते है। यहां पर एक बडा पार्किंग स्टैंड है। 

मांची हवेली से उपर दक्षिण मुखी महाकालिका माता जी के मंदिर जाने के लिये दो विकल्प है। 
  1. पैदल मार्ग 
  2. रोपवे         
        बहुत से यात्री पैदल मार्ग चुनते है। पहाड़ी क्षेत्र का पैदल मार्ग बहुत अच्छा लगता है। पुरे मार्ग में जगह जगह छोटी छोटी दुकानें और आवाजाही सफर को मनोरंजक बना देती है। किन्तु समय और पैदल चलने की हिम्मत दोनों होना चाहिये। दुसरा विकल्प रोपवे है। हमने भी दुसरा विकल्प ही चुना। 

पावागढ़
पावागढ़ 

रोप-वे के टिकिट काउंटर से हमने रिटर्न का टिकिट ले गार्डन में अपनी बारी का इंतजार करने लगे। जल्द ही हमारा नंबर आ गया। ट्राली से नीचे का नजारा बहुत सुंदर लग रहा था। उपर से पैदल मार्ग भी दिखाई दे रहा था।

पावागढ़ रोप वे, पावागढ़
पावागढ़ रोप वे 


ट्राली से उतर कर हम लोग मंदिर की ओर चल दिये।रास्ते में छोटा सा बाजार क्षेत्र है।यहां पर पुजा सामग्री व खानपान की दुकानें है। चलिये चलते चलते थोडा सा यहां का इतिहास और कथा की चर्चा कर लेते है।

इतिहास 

पावागढ़ यानि पवन का स्थान ,बहुत समय पहले इस दुर्गम पहाड़ी पर चढ़ना लगभग असंभव था। चारों ओर गहरी खाईयां और सीधी पहाड़ी। यहां पर हवा का दबाव भी अधिकतम था। अतः कहा जाता था पवन देव का गढ़ यानि पावागढ़।

इस स्थान को चांपानेर के राजा वनराज चावडा़ ने अपने बुद्धिमान मंत्री के नाम पर बसाया था। यह करीब 800 मीटर की ऊंचाई पर बसा है।

कथा 

यह स्थान 51 शक्तिपीठों मे से एक है। पौराणिक कथानुसार सती माता अपने पिता राजा दक्ष  के यहां होने वाले यज्ञ में बिना बुलावे के ही चली गई थी। वहां पर उनका व शिव जी का घोर अपमान हुआ। इससे आहत हो माता ने योग बल से यज्ञ कुंड में प्रवेश कर अपने जीवन की आहुति दे दी। भगवान शिव ने सती माता के मृत  शरीर को उठाकर उग्र तांडव करते हुऐ ब्रह्मांड में यहां वहां घूमने लगे। जिससे धरती का संतुलन गडबडाने गया। प्रलय की आशंका से विष्णु भगवान ने सुदर्शन चक्र से सती माता के अंग काट दिये। इस तरह जहां जहां अंग गिरे वह स्थान शक्ति पीठ कहलाया। 

पावागढ़ में भी सती माता के दांये पैर की अंगुली गिरी थी। यह स्थान शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध हुआ। यहां की दुसरी विशेषता महाकाली देवी का दक्षिणेश्वर मुख होना। इस तरह के मंदिरों में तांत्रिक पुजा का विशेष महत्व होता है।
कहा जाता है कि विश्वामित्र जी ने महाकाली को कठोर तपस्या कर प्रसन्न किया था। रामचंद्र जी के समय में यह मंदिर अस्तित्व में था।  

हम लोग चर्चा करते करते मंदिर की सीढियों तक पहुंच गये थे। अब यहां से करीब 250 सीढियां चढकर महाकाली मंदिर में प्रवेश होगा। 

सीढ़ियां चढते  वक्त थकान लगने पर साईड में बने स्थान पर कुछ देर रूककर फिर से चढने लगते । अंततः मंदिर पहुंचने मे सफल हो ही गये। यहां भी लाईन बहुत लंबी लगी थी। धीरे धीरे आगे बढते रहे। माता के मंदिर में पहुंचकर दर्शन किये। बहुत ही सुंदर मुर्ति है। पास ही सीढियों से मंदिर के उपर गूंबद की ओर चल दिये। उपर का नजारा बहुत ही मनमोहक था। दुर तक हरियाली और छोटी बडी पहाडीयों की श्रृंखलाऐं नजर आ रही थी।

पावागढ़ जाने का मार्ग


हवाई मार्ग :- अहमदाबाद एयर पोर्ट से                         170  किमी पर     
                   बडौदा एयर पोर्ट से 55                         किमी 
रेल मार्ग    ;-   बडौदा रेलवे स्टेशन 

सडक मार्ग :-   गोधरा - 51 किमी
                     बडौदा - 55किमी
                    अहमदाबाद - 160 किमी
                     इन्दौर -    314 किमी    
उपरोक्त स्थान से बस सेवा , लक्जरी कार व ट्रेवल्स सेवा भी उपलब्ध हो जाती है।
चारों ओर से सडक मार्ग से जुडा हुआ है।
 आज हमारी गुजरात दर्शन यात्रा यहां पुर्ण हुई। माता जी के स्थान अंबा जी से शुरू हुई ये यात्रा पावागढ़ माता जी के यहां सम्पूर्ण हुई।

   माता का प्रसिद्ध गरबा

पंखिडा...तू  उड़ी ने जजे पावागढ़ रे.............
नवरात्री में माता के दर्शन और उपासना के चलते बहुत भीड रहती है। कई लोग दूर दूर से नवरात्री पूर्व पैदल यात्रा करके माता की ज्योत लेने आते है। सभी अपनी अपनी आस्थानुरूप माता की अराधना करते है।  अगला सफर खाटूश्यामजी khatushyamji  में मिलते हैं।         
               
                   
                  जय माता दी
               
                              जय श्रीकृष्ण 



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