अतिप्राचीन जलप्रपात श्री गंगा महादेव
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श्री गंगा महादेव जल प्रपात |
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श्री गंगा महादेव झरना |
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श्री गंगा महादेव जल प्रपात |
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श्री गंगा महादेव झरना |
शाम 7.00 बजें काठमांडू से जनकपुर के लिये चले। रोड हाई-वे था। मगर अति व्यस्त खतरनाक पहाड़ी रास्ता और उपर से रात में भारी वाहनों की लाईटें परेशान कर रही थी। कभी कभी तो आंखो से आंसु भी आ जाते थे। इन सब परेशानियों के बावजूद भी हमारे ड्राईवर साहब की ड्राईविंग स्किल कमाल की थी। बेख़ौफ़ वो अपना काम कर रहे थे।
काठमांडू में ही तय कर लिया था कि भोजन रास्ते मे करेगें । किंतु हर जगह नानवेज का बोलबाला था। अतः चाय पीकर ही संतुष्ट होना पडा। जैसे जैसे समय बढ रहा था। नींद और भुख भी सता रही थी। इसी उहापोह में रात 1.20 बजे जनकपुर पहुंचे। यहां पर हल्की बारिश के कारण ठंड और बढ गई थी। एक सज्जन से धर्मशाला का पता पुछकर उस ओर चल दिये। मन में विचार आ रहा था। कि इतनी रात को वहां कौन मिलेगा। किंतु वहां पहुंचे तो देखा अच्छी खासी भीड थी। यात्री बसें आ जा रही थी।
धर्मशाला पहुंचकर सबसे पहले एक हाल बुक किया। फिर भोजन बनाने के लिये तामझाम गाडी से उतारे। वहां निर्देश थे।कि भोजन रसोईघर में ही बनावें तो सारा सामान लेकर रसोईघर पहुंचे। सभी अपने अपने काम में लगे थे। हमारे दो साथी बाकी का सामान हाल तक पहुंचाने चल दिये।
सभी के सहयोग से जल्द ही भोजन बन गया था। पुरी यात्रा में पहली बार था । कि देर रात भोजन कर रहे थे। खैर एक कहावत है कि पहले पेट पुजा फिर काम दुजा ।
सुबह सभी देर से उठे । बाहर आकर देखा तो धर्मशाला खाली हो गई थी। सफाई कर्मचारी अपने अपने काम में लगे थे। हमें भी जल्दी ही निकलना था। चलिये सभी लोग तैयार होकर आये, तब तक जनकपुर के बारे में थोडा जान ले।
एक कथा के अनुसार जनकपुर के शासक कराल जनक ने कामांध होकर एक ब्राह्मण कन्या का शील भंग किया था। इसकि परिणीती में राजा अपने बंधु बांधवों के साथ मारे गये। जनक वंश के जो लोग शेष बचे थे। उन्होने जगंल में शरण लेकर जान बचाई थी। यह जंगल ही आज का जनकपुर है। प्राचीन काल में मिथिला की राजधानी जनकपुर थी। यहां पर राजा जनक का शासन था। यह वही जनकपुर है। जहां पर सीता जी का जन्म हुआ था। विदेह में निमी वंश के राजा सिरध्वज जनक 22वें जनक थे। सीता जी इन्ही की पुत्री थी।जनकपुर का महत्व तब और बढ गया जब सीता स्वयंवर और राम जी के साथ सीता जी का विवाह हुआ। राजा जनक को अपनी पुत्री के लिये योग्य वर चाहिये था। और उसके लिये राजा महाराजाओं में स्वयंवर का प्रचलन था। इन स्वयंवरों में योग्यता परखी जाती थी। राज महल में एक दिव्य शिव धनुष था। जिसे प्रतिदिन सीता जी एक हाथ से उठाकर उस स्थान की सफाई करती थी। यह देख राजा ने प्रतिज्ञा ली थी कि जो राजकुमार इस शिव धनुष की प्रत्यंचा चढा देगा उसी से सीता का विवाह करेगें। स्वयंवर में बहुत से राजकुमार आये पर कोई सफल नहीं हुआ। तब श्री राम जी ने धनुष की प्रत्यंचा चढा कर सीता जी से विवाह किया था। साथ ही श्री राम जी के भाई भरत जी का मांडवी से लक्ष्मण जी का उर्मिला तथा श्रुति कीर्ति का शत्रुघ्न के साथ विवाह हुआ था।
यह मंदिर सीता जी (जानकी जी) को समर्पित है। इसके निर्माण में 16 वर्षो का समय लगा था। सन 1895 ई. में आरंभ होकर 1911 ई. में पूर्ण हुआ था। 4680 वर्ग फिट क्षेत्र में निर्मित इस भव्य मंदिर कि भी बड़ी रोचक कहानी है। कहते है कि टीकमगढ़ की महारानी वृषभानु कुमारी बुंदेला ने पुत्र की चाह में अयोध्या में कनक भवन मंदिर बनवाया। किन्तु सफलता नहीं मिली।
तब गुरु की आज्ञा से जनकपुर में जानकी मंदिर का निर्माण शुरू करवाया था। इसके एक वर्ष में ही उन्हे पुत्र प्राप्त हुआ था।
किन्तु कुछ समय बाद उनकी मृत्यु होने से मंदिर का निर्माण प्रभावित हुआ था। बाद में वृषभानु बहन नरेन्द्र कुमारी ने निर्माण कार्य पुर्ण करवाया था।
जय श्री कृष्ण
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पशुपति नाथ मंदिर ,काठमांडू नेपाल |
रात करीब 11.30 बजे हम लोग काठमांडू पहुंचे। देर रात पहुंचने से रूकने के लिये सबसे बडी समस्या हो गई थी। यहां भी संत जी का आशिर्वाद रहा। उन्होने ही अपने सम्पर्क सुत्र से एक होटल में हमारी व्यवस्था करवा दी थी। अब हमें उस पते पर पहुंचना था। देर रात अंजान शहर और कड़ाके की ठंड में बिना लोकल व्यक्ति की सहायता के सही जगह पहुंचना आसान नहीं था।एक दो जगह पता पुछने पर उन्होने कहीं ओर जगह ही पहुचां दिया हमें घूमते घूमते करीब एक घंटा हो गया। आखिर एक लोकल टेक्सी वाले को करना पडा। मोल भाव कर 200 IC में राजी किया तब जाकर सही मुकाम पर पहुंचे। हां होटल बहुत अच्छा था। एक ही हाल में हम सब की व्यवस्था कर दी थी।
भूगोलविदों के अनुसार काठमांडू पहले एक तालाब था। श्री कृष्ण के अनुयायी गोपाल वंशीय लोग यहां पर गाय चराते हुऐ आये और बाद में यही पर बस गये। राजा पृथ्वीनारायण शाह ने 1768 में मल्ल राजाओं से युद्ध में जीत कर गोरखाली नेपाल राज की स्थापना की और काठमांडू को राजधानी बनाया। राणाओं के समय बना सिंह दरबार जग प्रसिद्ध है। वर्तमान में यहीं पर नेपाल के प्रधानमंत्री का मंत्रालय और सर्वोच्च न्यायालय है।
1934 में भूकंप में ध्वस्त काठमांडू को पुनः 1950 में बसाया गया और पर्यटकों के लिये खोल दिया।
भगवान शिव को समर्पित हिंन्दु आस्था का प्रमुख तीर्थ स्थल है। बागमती के किनारे स्थित इस मंदिर के पास में ही श्मसान घाट भी है। यहां मुक्ति और भक्ति दोनों पास पास ही है।
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नंदी जी, पशुपति नाथ मंदिर, नेपाल |
नेपाल में राणा शासन के दौरान हुऐ विस्तार का प्रमुख केन्द्र रहा यह मार्ग अपना विशेष महत्व रखता है। इस पर कई धार्मिक स्थल और पुरातन मंदिर है। तथा राजा महेन्द्र की प्रतिमा भी लगी है।
भैरव नाथ का यह मंदिर आस्था का केन्द्र है। प्रतिवर्ष यहां इंद्रा जात्रा का आयोजन होता है।
10. धारहारा टावर
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बौद्ध स्तूप, काठमांडू नेपाल |
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बुढा नीलकंठ, काठमांडू नेपाल |
इसके अलावा गार्डन आफ ड्रीम ,तलेजु मंदिर ,नारायणहिती पैलेस संग्रहालय, सिद्धार्थ आर्ट गैलरी,मावु देवल और रूद्र वरण महाविहार ,कोपेन मोनेस्ट्री,कृष्ण मंदिर,बसंतपुर टावर, भीमसेन मंदिर,कुम्भेश्वर महादेव,काल भैरव,बसंतपुर डबली और न्यातापोल मंदिर देखने लायक जगह है।
एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा पार्ट-3
हमारी एक रोमांचक नेपाल की बजट यात्रा के रूट चार्ट के अनुसार अगला पाइंट पोखरा था। खुबसूरत पहाड़ों और झील से घिरे शहर की अद्भुत सुंदरता बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती है।
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गुप्तेश्वर महादेव, पोखरा |
हमें सेतीबेणी से वापसी में शाम हो गई थी। रात संत जी के निवास पर ही रूके। अगले दिन सुबह जल्दी ही नेपाल के प्रसिद्ध शहर और झीलों की नगरी ..
पोखरा की ओर जाना था
करीब 9.30 बजे संत जी से विदा ले पोखरा कि ओर चल दिये। पहाड़ी मार्ग पर सडक नागिन सी बल खाती हुई , एक पहाड़ी से दुसरी पहाड़ी तक ,कभी उपर कभी नीचे बहुत ही रोमांचक लग रही थी। इन सब के बीच खुबसुरत नजारे सफर को और खुशनुमा बना रहे थे। हम लोग कभी कभी रूक कर खुबसुरत दृश्यों को भी , चिरस्मृति में संजोने के लिये , अपने अपने मोबाइलों में कैद कर रहे थे। नेपाल यात्रा के हमारे अगले रूट चार्ट में जगत्रदेवी , गलकोट , कमलाती ,वालिंग ,पुतलीबाजार और फेदी खोला होते हुऐ पोखरा शहर था। करीब 98 किमी सिद्धार्थ राजमार्ग का सफर तय करके 1.00 बजे हम पोखरा पहुंचे। यहां पर भी संत जी की कृपा रही और एक परिचीत ने हमें शहर घूमने में मदद की। उन सज्जन के कारण ऐसा लगा ही नहीं की हम अपरिचित स्थान पर घूम रहे हैं।
बस एक ही बात का अफसोस रहा कि काश ऐसे स्थान पर आने के लिये , कम से कम दो से तीन दिन होने ही चाहिये। इतनी खुबसुरत जगह आने पर जल्दी जाने का मन नहीं कर रहा था। यहां के मनमोहक दृश्य और बहुत से दर्शनीय स्थलों की सैर यादगार अनुभव रहा। और हां यहां से प्रसिद्ध तीर्थ स्थल मुक्तिनाथ जाने का भी मार्ग है।
1. फेवा लेक
2. गुडे लेक
3. बेगनास लेक
4. मेंडी लेक
5. रूपा लेक
6. दिपांग् लेक
7. नियुरेनी लेक
8. खास्टे लेक
9. पोखरा लेक
10. डेविस फाल
11. राम मंदिर
12. भीमसेन मंदिर
13. भद्रकाली मंदिर
14. ढोर वाराही मंदिर
15. श्री विंधेश्वरी मंदिर
16. ताल बाराही मंदिर
17. गुप्तेश्वर महादेव
18. गुंबा मानेसट्री
19. श्री उरगेन छोलिंग बौद्ध मोनेसट्री
20. जंगचूब छोलिंग मोनेसट्री
21. माटेपानी गुंबा
22. पेमा साक्य मोनेसट्री
इंस्टीटयूट
23. अन्नपूर्णा तितली म्युझियम
24. रीजनल म्युझियम
25. अन्तरराष्ट्रीय पर्वतीय म्युझियम
26. गोरखा स्मारक म्युझियम
27. मितेरी पार्क
28. चच्वी पार्क
29. बसुंधरा पार्क
30. होली पार्क
31. पोखरा प्लेनेटेरियम एंड
साईंस सेंटर
( मिरर माजे हाऊस)
32. वर्ल्ड पीस पगोड़ा
33. तुतुंगा व्यूह पाईंट
34. महेन्द्र गुफा
35. चमेरे गुफा
36. सेती नदी धाटी
37. के आई सिंह पुल
38. जि एन रेकी ध्यान केन्द्र
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ताल वाराही मंदिर, पोखरा |
सडक मार्ग :- काठमांडू से कार ,बस सेवा उपलब्ध
यदि निजी वाहन से जा रहे है। तो बुटवल से सीधा मार्ग है। जगत्रदेवी वालिंग होते हुऐ।
गुप्तेश्वर महादेव घूमने के बाद .हमारे गाईड महोदय ने हाई-वे लिंक रोड पहुंचाकर बिदा ली। हम सबको दिन भर की भागदौड़ के बाद अब भुख सता रही थी। एक दो जगह होटलों में भी गये। किंतु नान वेज की वजह से बात नहीं बनी। धीरे धीरे ठंड भी बढती जा रही थी। अत्यधिक थकान होने से खाना बनाने का भी मन नहीं कर रहा था। आखिर एक जगह शुद्ध शाकाहारी होटल मिल ही गई।
खाना खाकर शाम करीब 6.30 बजे काठमांडू की ओर चले। 205 किमी का सफर था। उस पर बहुत ही व्यस्त राज मार्ग। धीरे धीरे हमारी कार की रफ्तार बढने लगी थी फिर काठमांडू पहुंचने में 4/5 धंटे का समय तो लगेगा ही।
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गुप्तेश्वर महादेव,पोखरा |
रात 11.00 बजे काठमांडू से 10 किमी पहले एक ग्राम में मार्ग की जानकारी के लिये रूके । मगर कोई भी व्यक्ति नहीं मिला। अब असमंजस की स्थिती बन रही थी। किधर जायें कोई संकेतक भी नहीं लगा था। अंदाजन ही चल रहे थे। तभी एक सुनसान स्थान पर दो तीन लोग खडे मिले। हमने उनसे जानकारी लेने के लिये कार रोकी किंतु खतरे का अहसास होते ही कार की रफ्तार बढ़ानी दी। करीब 5 किमी चलने के बाद एक वाहन दिखाई दिया उसके सहारे काठमांडू पहुंचे। चलिये अगले अंक में काठमांडू की सैर करेगें।
मालुंगा नेपाल की पहाडीयों के बीच बसा हुआ है। चारों ओर हरियाली,ऊंचे ऊंचे पहाड और मैदानी इलाके में बस्ती, एक तरफ बहती हुई विशाल काली गण्डकी नदी, ऐसा लग रहा था कि , पोस्टर पर उतारी हुई कोई खुबसुरत पेंटिंग हो। कल आस पास के पर्यटन स्थलों पर घूमने गये थे। प्रकृति को इतने नजदीक से देख कर भाव विभोर हो गये। शाम को संत जी के निवास पर कुछ धार्मिक परिचर्चा भी हुई। संत जी ने बताया कि यहां से थोडी दूरी पर सेतीबेणी नामक स्थान पर संसार की सबसे बडी शालीग्राम शिला है। कहते है कि इस नदी में ही कुछ इस तरह कि शिलाऐं मिलती है जिन पर स्वतः ही ॐ कि आकृति उभर आती है व और भी कुछ पहचान है जो कि कोई जानकार ही बता सकता है। खैर हम सब ने वहां जाने का मन बना लिया था। वैसे भी उस स्थान पर स्थानीय लोग ही ज्यादा जाते है।
अगले दिन सुबह भोजन के बाद संत जी के साथ सेतीबेणी जाने का कार्यक्रम बना। हम लोग कार से 85 किमी दुर हर्मिचौर की तरफ चल दिये। पहाड़ी व अधिकतर चढाई वाला मार्ग होने से करीब दो धंटे का वक्त लगा। हर्मिचौर में एक जल विधुत ईकाई है
श्री शिवांस महाराज जी हमारा इतंजार कर रहे थे। वे स्वयंम ही डैम स्थल तक हमे लेने आये। महाराज जी से मिलकर बडी प्रसन्नता हुई। उनका निवास पास ही एक मंदिर में है। यह मंदिर डैम स्थल से थोडा दुर जंगल के रास्ते पगडंडी वाले मार्ग पर है। शिवांस महाराज इस जगह अकेले ही रहते है। यहां तो दिन में भी दूर दूर तक कोई दिखाई नहीं दे रहा था। शायद भक्ति का मार्ग ही ऐसा है। सभी सांसारिक मोह बंधन से दुर रहकर एकांत में प्रभु अराधना करना। |
मंदिर जाने के लिये डैम के पास से ही रास्ता है। अतः हमने महाराज जी से डैम स्थल घूमाने का अनुरोध किया। इस पर उन्होने स्थानीय अधिकारी से इजाजत लेकर डैम दिखवाया। डैम के आस पास का नजारा बहुत सुंदर था।
शिवांस महाराज जी ने मंदिर में हम लोगों के लिये स्वल्पाहार का प्रबंध करवाया था। इस दौरान धार्मिक चर्चा भी हुई। स्वामी जी ने आशिर्वाद स्वरूप हम सब को एक एक रूद्राक्ष और शालीग्राम जी दिये। जल्द ही यहां से विदा लेकर बोट- स्टाप की ओर चल दिये। सेती बेणी जाने के लिये मोटर बोट से तकरीबन 50 मिनट का समय लगता है।
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सेतीबेणी जल मार्ग, नेपाल |
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पहाड़ों की सुबह |
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माता जी का आश्रम, भोपाल |
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विशाल हनुमान जी की प्रतिमा |
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त्रिवेणी संगम ,प्रयागराज |
अपना सामान टेंट मे रखकर नाव से त्रिवेणी संगम गये। संगम पर बहुत भीड भाड थी किंतु हमारे नाव वाले ने व्यवस्था करके स्नान ध्यान करवा दिया। वापसी तक वही नाव वाला हमारे साथ रहा। |
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बड़े हनुमान जी, प्रयागराज |
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परममित्र देबाशीश भाई, तिलोत्तमा |
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बुटवल शहर, नेपाल |
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सिध्दबाबा मंदिर, बुटवल नेपाल |
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कालीगण्डकी नदी,मालुंगा नेपाल |
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शालिग्राम शिला, कालीगण्डकी,मालुंगा नेपाल |